शाम का चेहरा जब धुँधला हो जाता है
मन भारी भीगा-भीगा हो जाता है
यौवन, चेहरा, आँखें बहकें ही बहकें
रंग हिना का जब गाढ़ा हो जाता है
यकदम मर जाना,क्या मरना,यूँ भी तो
‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’
सपने की इक पौध लगाओ जीवन में
सुनते हैं ये पेड़ बड़ा हो जाता है
सब साझा करते, पलते, भाई भाई
कैसे फिर तेरा मेरा हो जाता है
ग़ोता गहरे पानी में मोती देगा
मन लेकिन उथला-उथला हो जाता है
बाँट रहा है सुख दुःख जाने कौन यहाँ
जो जिस को मिलता उसका हो जाता है
शीशा है दिल अक्स दिखायी देगा ही
मुस्काता जो बस अपना हो जाता है
देख लहू का रंग बहुत बतियायेगा
पूछेगा,वो क्यूँ फीका हो जाता है
भांज रहे हैं वो तलवारें, भांजेंगे
बस मुद्दा पारा पारा हो जाता है
अश्वनी शर्मा 09414052020
अच्छी ग़ज़ल, बढ़िया गिरह।
दाद क़ुबूल फ़रमाइये।
सादर
नवनीत
शुक्रिया नवनीत शर्मा जी
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुयी है अश्वनी जी…दाद क़बूलें !
शुक्रिया गौतम साहब
शाम का चेहरा जब धुँधला हो जाता है
मन भारी भीगा-भीगा हो जाता है
Aha… Kya achha manzar baandha hai Tanha shaam ka… Waah… Bahut pasand aaya ye sher 🙂
आभारी हूँ दिनेश जी
वाह …अच्छी ग़ज़ल हुई है ..बधाई अश्विनी जी …
शुक्रिया ….अहसान मंद हूँ
आश्विनी साहब
सपने की इक पौध लगाओ जीवन में
सुनते हैं ये पेड़ बड़ा हो जाता है
सादा लफ़्ज़ों में कही गयी असरदार बात !!!!
अत्यंत आभार आप का
सपने की इक पौध लगाओ जीवन में
सुनते हैं ये पेड़ बड़ा हो जाता है
सुन्दर शेर कहा है !!! अश्वनी साहब का शाइर उनके कवि को हम आहंग करता हुआ चलता है –इसलिये उनकी गज़ल में कुछ कुछ कविता का भी अनन्द मिलता है। छोटी बहर में उनको कमाल हासिल है । लेकिन दो भिन्न विधाओं में समर्थ होना और इस सामर्थ्य के सातत्य को अखण्ड रखना –मेरी नज़र में एक महती उपलब्धि है क्योंकि आजकल ज़िन्दगी के सारे संगीत को हमारे माहौल का शोर निगल जाता है –ऐसे में अपनी रचना प्रक्रिया के साथ साथ स्वयं को समस्वर किये रखना किसी तपश्चर्या से कम नहीं और यह तभी होता है जब काव्य आपकी नैसर्गिक अभिव्यक्ति हो – एक व्यस्त पद और एक व्यस्त ज़िन्दगी से अश्वनी साहब ने यह संगीत निकाला है और हर बार वो कोई यादगार शेर ज़रूर कहते हैं जो उनके शाइर का विभव बताता है – बधाई –मयंक
मयंक सर अब क्या कहूँ ……आप की ज़र्रा नवाजी है जो आप ने मान दिया…शुक्रिया दिल से
बहुत सुन्दर
आभार आप का
उम्दा ग़ज़ल हुई है शर्मा साहब! सपने की इक पौध लगाओ जीवन में
सुनते हैं ये पेड़ बड़ा हो जाता है ..वाह!
…
बहुत बहुत आभार सौरभ शेखर साहब
सब साझा करते, पलते, भाई भाई
कैसे फिर तेरा मेरा हो जाता है
.सामाजिक सच्चाई को उकेरती ग़ज़ल
बहुत सुन्दर ग़ज़ल.
महेंद्र गुप्ता साहब मशकूर हूँ
भांज रहे हैं वो तलवारें, भांजेंगे
बस मुद्दा पारा पारा हो जाता है
ye she’r bahut umda aur paaye ka laga!
अत्यंत आभार सिद्ध नाथ सिंह साहब
ग़ोता गहरे पानी में मोती देगा
मन लेकिन उथला-उथला हो जाता है
बाँट रहा है सुख दुःख जाने कौन यहाँ
जो जिस को मिलता उसका हो जाता है
अश्विनी जी प्रणाम,बहुत उम्दा ग़ज़ल और इतने गहरे शेरों के लिए ढेरों दाद कबूल फरमाएं
शुक्रिया जनाब खुर्शीद साहब
शाम का चेहरा जब धुँधला हो जाता है
मन भारी भीगा-भीगा हो जाता है
यौवन, चेहरा, आँखें बहकें ही बहकें
रंग हिना का जब गाढ़ा हो जाता है
सपने की इक पौध लगाओ जीवन में
सुनते हैं ये पेड़ बड़ा हो जाता है
सब साझा करते, पलते, भाई भाई
कैसे फिर तेरा मेरा हो जाता है
क्या कहने ,बहुत ही खूबसूरत ग़ज़ल हुई है ,वाह वाह वाह।
आलोक मिश्र साहब शुक्रगुजार हूँ आप की मोहब्बतों का
अच्छी ग़ज़ल, बढ़िया गिरह। वाह,वाह …. दाद क़ुबूल फ़रमाइये।
दादा आप की सर परस्ती में कुछ सीख पायें यही तमन्ना है …….. कृपा बनाए रखें
bahut umda ghazal hui hai ashwani ji… girah bahut umdaa lagi…sapne ki ek paudh wala she’r bhi umda ban pada hai.. daad qubulen…
swapnil bhai aap jaise guni shayar ki daad hausala badhati hai ….shkriya
बहुत खूब..
शाम का चेहरा जब धुँधला हो जाता है
मन भारी भीगा-भीगा हो जाता है
सपने की इक पौध लगाओ जीवन में
सुनते हैं ये पेड़ बड़ा हो जाता है
वाह..
बहुत बढ़िया ग़ज़ल..
rajeev bharol sahab ….shukrgujaar hun