T-12

T-12/36 तरही-12 का समापन-तुफ़ैल चतुर्वेदी

तरही-12 का समापन दोस्तो, इस बार की तरही महफ़िल मेरे नज़दीक ख़ासी कामयाब रही। आप सब ने आम तौर पर अच्छी ग़ज़लें कहीं। फिर भी कुछ चूकें जो नुमायां तौर पर रहीं उनकी निशानदेही मुझे ज़ुरूरी लग रही है। तरही मुशायरे में ग़ज़ल का कमज़ोर होना कोई ख़ास बात नहीं है। ज़मीन अगर मिज़ाज से […]

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T-12/35 सुनायेंगे जो गीत मल्हार में-मुहम्मद फ़रहतुल्लाह ख़ान

सुनायेंगे जो गीत मल्हार में बढ़ायेंगे बेचैनी बेकार में बचाता कोई भी नहीं अस्मतें कहानी बना देंगे अख़बार में ख़ुशी से लुटा देते हम अपनी जान हिलाते जो सर अपना इक़रार में सरे-राह तुझ पर वो पहली नज़र फ़साना थी बरसों ही अगियार में मसाइल कहां और ले जाते हम सुनी अनसुनी हो जो दरबार […]

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T-12/34 ख़बर हम जो पढ़ते हैं अख़बार में-फ़ज़ले-अब्बास ‘सैफ़ी’

ख़बर हम जो पढ़ते हैं अख़बार में वो होता है क्या सच में संसार में क़दम चूमने आयी आसानियां चले जब भी हम राहे-दुश्वार में शराफ़त, मुरव्वत, मुहब्बत, वफ़ा ये सब देखा जाता है किरदार में बना लेता है ऐब को भी हुनर हुनर ऐसा होता है फ़नकार में किसी की ख़ुशी के लिये हार […]

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T-12/33 लगी बोलियाँ ख़ूब बाज़ार में-अनिल जलालपुरी

लगी बोलियाँ ख़ूब बाज़ार में मज़ा आ गया मुझको इन्कार में न जीता न हारा मगर प्यार में जिया ज़िन्दगी खूब तकरार में रखा हाथ माथे पे उसने मिरे सुकूँ आ गया मुझको आज़ार में बहकने लगें हैं सभी के क़दम हवा ये चली कैसी संसार में चलो आओ बचपन के पल ढूँढ ले ‘इन्हीं […]

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T-12/32 ज़मीर और मतलब की यलग़ार में-मुमताज़ नाज़ां

ज़मीर और मतलब की यलग़ार में उजागर हुए ऐब किरदार में गिरा है ज़मीर ऐसा इंसान का क़बा बेच आया है बाज़ार में न पूछो वहाँ ऐश राजाओं के जहां संत लिपटे हों व्यभिचार में है दी उम्र तो तजरुबे पाये हैं निहाँ हैं जो चांदी के हर तार में तमद्दुन ने हम को अता […]

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T-12/31 कमी तो यकीनन थी फनकार में-पवनेंद्र पवन

कमी तो यकीनन थी फनकार में गए दोष ढूंढ़े हैं औजार में ये ले जाएं कश्‍ती क्‍या मंझधार में बने छेद अनगिन हैं पतवार में जुबां ज़ात सूबे की हद तोड़ने वो आता है आशिक के अवतार में नहीं भीड़ में थे सभी भक्‍तजन थे कुछ जेबकतरे भी दरबार में हैं क्‍या लोग इतने ये […]

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T-12/30 गिरफ़्तार हैं वो मिरे प्यार में-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’

गिरफ़्तार हैं वो मिरे प्यार में यही शोर है बज़्मे-अग़यार में मैं जिन्से-वफ़ा का ख़रीदार हूं अगर है तो ले आओ बाज़ार में वो गुज़रें इधर से तो क्या बात है खिला हूं मैं गुल बन के गुलज़ार में समझ लो कि जीवन अकारथ गया अगर लग गया दाग़ किरदार में जिन्हें दीन से कोई […]

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T-12/29 मैं ढूंढा किया जिसको संसार में-प्रकाश सिंह ‘अर्श’

मैं ढूंढा किया जिसको संसार में वो खोया रहा अपने किरदार में मुझे दुनिया वाले ख़ुदा कह गये मैं उलझा रहा अपने घर-बार में मुहब्बत मिरी शक्ल लेने लगी वो जैसे ही बैठे मिरी कार में कहाँ बाँध पाये थे ख़ुशबू को, बस चमेली लपेटी गयी तार में मिरे इश्क़ का घर बना जब, जुड़ी […]

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T-12/27 मैं घर छोड़ आया था बेकार में – आदिल रज़ा मंसूरी

अगर तू नहीं मेरे पिन्दार में बचा क्या है फिर मेरे अफ़कार में वही बेकली थी, वही बेकली मैं घर छोड़ आया था बेकार में मुझे ढूँढने की क़वायद हुई मिरे बाद मेरे ही घर-बार में कई राज़ दुनिया पे रौशन हुए ये साअत से साअत की तकरार में दरीचों से बोली गुज़रती हवा कोई […]

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T-12/26 उजाला दिखायी दिया कार में-तुफ़ैल चतुर्वेदी

उजाला दिखायी दिया कार में                Ujala Dikhayi diya car me’n चमक भर गयी मेरे अशआर में            Chamak bhar gayi mere ashaar me’n ये डिम्पल से मिसरों में पड़ते हुए         Ye dimpal se misro’n me’n padte hue ख़ुशी देखिये आज […]

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T-12/25 हसीं आरज़ूओं के अम्बार में-असलम इलाहाबादी

हसीं आरज़ूओं के अम्बार में परेशां हुए आज बाज़ार में सुलगते-सिसकते पलों के सिवा हमें क्या मिला तेरी सरकार में चराग़े-मुहब्बत जलाते भी क्या हवा तेज़ थी कूचा-ए-यार में फिराती रही वहशते-दिल मुझे न दर में रहा और न दीवार में लहू-रंग ज़ख्मों के साये तले तुझे रोज़ पढ़ता हूं अख़बार में बज़िद थे सभी […]

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T-12/24 लुटा कर दिलो-जानो-तन प्यार में-शरीफ़ अंसारी

लुटा कर दिलो-जानो-तन प्यार में मज़ा लीजिये जीत का हार में मुझे फ़िक्र है अपनी पापोश की तिरी फ़िक्र है उलझी है दस्तार में बबातिन है साहिल का रंगीं समां बज़ाहिर तो कश्ती है मंझधार में ये मैंने नहीं मेरे दिल ने किया तकल्लुफ़ मुहब्बत के इज़हार में बस इक आरज़ू है तिरी दीद की […]

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T-12/23 यहीं, बीवी बच्चों में, घरबार में-राजीव भारोल

यहीं, बीवी बच्चों में, घरबार में मैं उलझा रहा अपने किरदार में बची ही नहीं जान बीमार में लगे हैं सभी फिर भी उपचार में जो, कुछ-लोग चाहेंगे, होगा वही छपेगा वही कल के अखबार में अँधेरों से सूरज के घर का पता यूं ही पूछ बैठा मैं बेकार में अजी छोड़िये बातें ईमान की […]

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T-12/22 न बन शोख़ तू अपनी गुफ़्तार में-मुबारक रिज़वी पुरनावी

न बन शोख़ तू अपनी गुफ़्तार में न रख फ़ासला क़ौलो-किरदार में परेशां हूं मैं आज संसार में कि है ज़िन्दगी मेरी मंझधार में मिली मेरे मदफ़न को दो गज़ ज़मीन मिरा नाम भी है ज़मींदार में है मंज़िल-ब-मंज़िल अभी भी मिरा निशाने-क़दम राहे-पुरख़ार में ख़ुदा के ग़ज़ब से जो डरते न थे वही लोग […]

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T-12/21 चमकते थे पहले जो किरदार में-‘शफ़ीक़’ रायपुरी

चमकते थे पहले जो किरदार में नहीं लोग अब ऐसे संसार में मुहब्बत को चुनवा के दीवार में कहां ख़ुश था अकबर भी दरबार में बयां में था रंगे-सदाक़त मगर क़यामत की तल्ख़ी थी गुफ़्तार में नहीं कोई नमो-नसब काम का बताओ कहां तुम हो किरदार में दरिंदा बना कल फिर इक आदमी ख़बर फिर […]

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T-12/20 जो मिन्नत-समाजत हो इज़हार में-मुनव्वर अली ‘ताज’

जो मिन्नत-समाजत हो इज़हार में बदल जाय इनकार इक़रार में मिला वो नहीं हमको दीनार में मिला जो सुकूं हमको ईसार में दबे हैं बहारों के नामो-निशां ‘इन्हीं ज़र्द पत्तों के अम्बार में’ नज़र वो नज़र ही नहीं दोस्तो झुके जो न मौला के दरबार में बहुत पुरअसर है हुनर आपका नसीहत नुमायां है अफ़कार […]

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T-22/19 सम्हालो मुझे अब भी घर-बार में-डॉ मुहम्मद आज़म

सम्हालो मुझे अब भी घर-बार में कहीं दिल न लग जाय बाज़ार में जब अपने मुक़ाबिल हूं तकरार में ख़ुशी जीत में है न ग़म हार में अरे मोजिज़ा हो गया आज तो छपी है ख़बर सच्ची अख़बार में सज़ा से ख़ता पूछती है ये क्या बुराई थी इतनी गुनहगार में गिरेबानो-दामन न हो जांय […]

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T-12/18 न इक़रार में हूँ न इन्कार में-पवन कुमार

न इक़रार में हूँ न इन्कार में है उलझन मुझे अपने इज़हार में सरे-रहगुज़र रुक गये दफ़’अतन था जल्दी में वो, मैं भी रफ़्तार में कोई मौज बेचैन है उस तरफ़ लगाये कोई नक़्ब दीवार में बदलते हैं नाम और चेहरे फ़क़त हैं ख़बरें वही रोज़ अखबार में कहानी हमेशा अधूरी रही मैं गुम हो […]

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T-22/17 मुझे लुत्फ़ आता है इनकार में-अहमद सोज़

मुझे लुत्फ़ आता है इनकार में करूं कुछ नये तजरुबे प्यार में निकल जाइये नोट ले कर ज़रा मुहब्बत भी मिलती है बाज़ार में स्वयं आ गया है मिरे सामने मज़ा अब नहीं आता ईसार में मैं सोता रहूं देर तक उसके बाद मज़े ढेरों हैं और इतवार में बहुत कम है इक उम्र जीने […]

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T-12/16 ये कैसी अजब बात है प्यार में-अभय कुमार अभय

ये कैसी अजब बात है प्यार में मज़ा जीत ही का सा है हार में किनारे भी थे दस्तरस में मगर रहे हम सदा अपने मंझधार में नदी यूं भी गहरी है जज़्बात की मैं इस पार में हूँ, तू उस पार में तुझे तुझ में हम किस तरह देखते कि गुम रह गये ज़ुल्फ़ो-रुखसार […]

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T-12/15 मिरा ही लहू है गुलो-ख़ार में-विकास शर्मा ‘राज़’

मिरा ही लहू है गुलो-ख़ार में शिकस्ता पड़ा हूँ मैं गुलज़ार में मिरी भी रसाई न थी मुझ तलक उजाला हुआ कैसे इस ग़ार में मुझे ज़र्द लगती है हर सब्ज़ शय अजब रम्ज़ है मेरे अफ़कार में फ़क़त एक दस्तक ही बारिश ने दी दरारें उभर आईं दीवार में लिपटती नहीं पाँव से मंज़िलें […]

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T-12/14 ग़ज़ब सनसनी थी समाचार में-आदिक भारती

ग़ज़ब सनसनी थी समाचार में लहू बरसा इस बार त्योहार में अक़ीदत नहीं गर परस्तार में परस्तिश वो करता है बेकार में बदल दें जो हर अक्स..वो आइने मिलेंगे सियासत के बाज़ार में दरिन्दे रहे यूँ ही बेख़ौफ़ अगर तो कल रेप होंगे खुली कार में जियो सीधी सादा-सी इक ज़िन्दगी शनावर ही फँसते हैं […]

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T-12/13 दिखावे के शब्दों की बौछार में-राजमोहन चौहान

दिखावे के शब्दों की बौछार में सरोकार कम था सरोकार में बदलना तो लाज़िम था इक़रार में छिपी भूख थी उस के इन्कार में लहू क्या पसीना भी बहता नहीं रहा क्या भला उस के अशआर में मगर ज़िन्दगी जन्म, लेगी यहीं इन्हीं ज़र्द पत्तों के अम्बार में सभी का ख़ुदा है सभी से जुदा […]

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T-12/12 बहुत शहद है उसके रुख़सार में-कुमार स्वामी ‘शबाब’ मेरठी

बहुत शहद है उसके रुख़सार में यक़ीनन जंचेगा वो अशआर में समझ लीजिये उसकी याद आ गयी जहां धूप भर जाय गुफ़्तार में कशीदों से भरपूर सीना मिरा बड़ा ज़ब्त है मेरे किरदार में वो आंखें जो कल बोल कर रुक गयीं कहीं कोई अड़चन थी इज़हार में उदासी भी उसने वहीं पर रखी ख़ुशी […]

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T-12/11 ज़रा देर ठहरा न किरदार में-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

ज़रा देर ठहरा न किरदार में कोई खोट थी क्या अदाकार में खुला भेद पहली ही बौछार में कई दर निकल आये दीवार में कहाँ फँस गये तीरो-तलवार में ज़बाँ काम कर देगी इक वार में रियासत ये हमसे सँभलती नहीं पलट आइये दिल के दरबार में सभी पगड़ियाँ सख्त मुश्किल में हैं हवा आज […]

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T-12/10 हवा के सिवा है जो रफ़्तार में-नवीन सी. चतुर्वेदी

हवा के सिवा है जो रफ़्तार में। असर उसका डाल अपने किरदार में॥ हदें हम पे हँसती रहीं और हम, तलाशा किये तर्क तकरार में, भला हो भरम का जो भरमा लिया, वगरना धरा क्या है संसार में॥ हमें यूँ अज़ल से ही मालूम था, है किस-किस का इसरार इस रार में, मगर क्या करें […]

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T-12/9 मुसलसल थपेड़ों की यलग़ार में-दिनेश नायडू

मुसलसल थपेड़ों की यलग़ार में मैं मुद्दत से ठहरा हूँ मंझधार में नये फूल आये हैं गुलज़ार में नये फूल आयेंगे बाज़ार में मुझे तेरा भी ध्यान आता नहीं मैं इस दरजा खोया तिरे प्यार में जो बिल्कुल कहानी से वाक़िफ़ न था वही फिर भी डूबा था किरदार में वही एक चेहरा दिखा हर […]

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T-12/8 झुका हूं सदा अपने दरबार में-नवनीत शर्मा

झुका हूं सदा अपने दरबार में ख़ज़ाना है मेरा इसी ग़ार में बदन की हिरासत में हूं इस तरह कि जैसे हो मछली किसी जार में फिर इक रोज़ दिल का खंडर ढह गया नमी थी लगातार दीवार में हुआ हमसुख़न एक लम्‍हा मगर मज़ा आ गया ख़ुद से ग़ुफ्तार में लबों पर है मुस्‍कान […]

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T-12/7 हरिक संग शीशे सा है इन दिनों –मयंक अवस्थी

तनासुब वो रखता है किरदार में रिज़ा भी झलकती है इनकार में यही सोच ले आई है ग़ार में कोई शर्त होती नहीं प्यार में ज़ुबाँ फिर खुली उसकी, फिर ये खुला बहुत धार बाकी है तलवार में हरिक संग शीशे सा है इन दिनों नज़र आता है मुँह भी दीवार में वसूलेगी हफ्ता अभी […]

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T-12/6 खड़े हो निगाहों के बाज़ार में-अदील जाफ़री

खड़े हो निगाहों के बाज़ार में दिखे कोई धब्बा न किरदार में नहीं कोई मुझसे बड़ा ताजवर पसीने के हीरे हैं दस्तार में ये ज़ख्मों की गहराइयों ने कहा बड़ी काट है नर्म गुफ़्तार में इसी मोड़ पर खेल को रोक लो न तुम जीत में हो न हम हार में हवा, रौशनी, धूप आने […]

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T-12/5 न था दूसरा कोई संसार में-ख़ुरशीद खैराड़ी

न था दूसरा कोई संसार में हुआ मैं ही फ़िट अपने किरदार में पसे-दर मकां में सभी अंधे हैं दरीचे हज़ारों हैं दीवार में बहारें अजब दिल्लगी कर गयीं उगे ख़ार ही ख़ार गुलज़ार में फ़क़ीरी की दौलत मिली उस क़दर लुटा जिस क़दर मैं तिरे प्यार में ग़मों को ग़ज़ल में लिया ढाल जब […]

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T-12/4 सभी यूँ हैं कहने को बाज़ार में-सौरभ शेखर

सभी यूँ हैं कहने को बाज़ार में मुनाफ़े का बंटवारा दो-चार में हटाया गया मेरे कांधों से बोझ हिलाया था सर मैंने इनकार में जुनूं ने धकेला नदी में मुझे ख़िरद मुझपे हावी है अब धार में यही एक मौक़ा मिरे पास है गिराना है ग़म को इसी वार में मुझे भी शिकायत नहीं दश्त […]

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T-12/3 गुज़र जायेगी शाम तकरार में-गौतम राजरिशी

गुज़र जायेगी शाम तकरार में चलो! चल के बैठो भी अब कार में अरे ! फ़ब रहा है ये कुर्ता बहुत ख़फ़ा आइने हो बेकार में तुम्हें देखकर चाँद छुप क्या गया फ़साना बनेगा कल अख़बार में अजब हैंग-ओवर है सूरज पे आज ये बैठा था कल चाँदनी-बार में न परदा ही सरका, न खिड़की […]

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T-12/2 उलझते हैं क्यूँ आप बेकार में-याक़ूब आज़म

उलझते हैं क्यूँ आप बेकार में मिलेगा न हल कोई तकरार में पता तो चले कम से कम दिन तो है झरोखा ये रहने दो दीवार में अगर छू दे पत्थर तो सोना बने असर कुछ है ऐसा मिरे यार में खड़ा कटघरे में करे ज़ुल्म को हुनर अब कहाँ वो क़लमकार में बहारों की […]

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T-12/1 तिरा लौटना फिर से बाज़ार में-स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’

तिरा लौटना फिर से बाज़ार में मिरी वापसी मेरे किरदार में चलेगा वही शख्स बाज़ार में कोई पेंच हो जिसके किरदार में सुना है जलाये गये शह्र कल धुंआ तक नहीं लेकिन अख़बार में हवा आयेगी आग पहने हुए समा जायेगी घर की दीवार में मेरी शायरी यूं भी रंगीन है शफ़क है कोई उसके रुख़सार […]

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T-12 ..मिसरा तरह :- इन्हीं ज़र्द पत्तों के अम्बार में

साहिबो ! ‘ज़ेब’गौरी साहब की ग़ज़ल के वक़्त ख़ाकसार ने आपसे दर्याफ़्त किया था कि क्या उनकी इस ग़ज़ल के किसी मिसरे को तरह बना लिया जाये ? कई दोस्तों ने इस पर हामी भरी तो यही तय रहा कि ‘ज़ेब’ साहब के एक मिसरे ‘इन्हीं ज़र्द पत्तों के अम्बार में’ को तरही मिसरा किये […]

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