दिल तुझे अपना फ़साना जो सुनाने लग जाय
अश्क क्या चीज़ लहू आँखों से आने लग जाय
तू जो हलकान किये है मुझे इक मुददत से
तेरे पीछे भी अगर कोई ज़माने लग जाय
थोड़ी तस्कीन का इमकान है सुन कर ये ख़बर
आँख शायद तिरे आने के बहाने लग जाय
वो कि इक शख़्स नहीं शोला-ए-जव्वाला है
वो जिधर जाय उधर धूम मचाने लग जाय
आपके रूप का तय है कि पड़ा वार ओछा
मुझसे दीवाना अगर होश में आने लग जाय
तुम कि मज़हब का धुआँ बाँट रहे हो फिर से
शहर का शहर अगर अबके ठिकाने लग जाय
मर गया मैं, सभी मरते हैं मगर साहब जी
जो भी ये बात सुने नाचने-गाने लग जाय
तुफ़ैल चतुर्वेदी
Gazal toh bahut khubsurat,
Kabhi aap mere blog pe aate aur like comment ke jariye ka positive suggestion dete toh mujhe khushi hoti,
I shall wait you…….
आभार भाई
Sir ji bahut khoob bade dino k baad aaye magar ak behtareen gazal k saath
साबिर जी आभार
प्रणाम सर जी
बहुत दिनों के पश्चात ।
आपको बहुत- बहुत बधाई ।
राम प्रसाद जी आभार
Kya Bakamaal ashaar se saji shaandaar Ghazal inayat ki hai wah wah wah jitni daad den kam waaaaaaah waaah
Tapish
तपिश साहब, करम फ़रमाई के लिये आभार