फूल को फूल लिखा कांटे को कांटा लिक्खा
क्यों ज़माना है खफ़ा मैंने बुरा क्या लिक्खा
अपने दिल का यूँ तिरे हुस्न से रिश्ता लिक्खा
शाम को भी तिरे आने पे सवेरा लिक्खा
सौ बलाओं ने मुझे घेरा हुआ है,फिर भी
हाल अपना जिसे लिक्खा बहुत अच्छा लिक्खा
बेक़रारी ही में क्या उम्र गुज़र जायेगी
मेरे अल्लाह मिरा कैसे नसीबा लिक्खा
दुश्मनी ,बैर ,अदावत को भुला कर दिल से
अपने क़ातिल को भी ऐ दोस्त मसीहा लिक्खा
तब्सिरा अब जो करें भी तो करें क्या ‘शाहिद’
जाने किस -किस ने मिरे बारे में क्या लिक्खा
शाहिद हसन ‘शाहिद’
9759698300