T-1

T-1/27 रात भर ये किन सदाओं में घिरा रहता हूँ मैं – मनीष शुक्ल

रात भर ये किन सदाओं में घिरा रहता हूँ मैं नींद में भी जाने क्या क्या बोलता रहता हूँ मैं हो गयी कैसी ख़ता मुझसे जुनूने-इश्क़ में अपनी तन्हा वहशतों से पूछता रहता हूँ मैं याद का पर्वत, मुसलसल आंसुओं की बारिशें एक धारा हूँ कि खुद को काटता रहता हूँ मैं जानलेवा है फ़साना […]

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T-1/25 आब पर रोग़न के जैसा तैरता रहता हूँ मैं – डा.मुहम्मद ‘आज़म’

आब पर रोग़न के जैसा तैरता रहता हूँ मैं यानी सब के साथ रह कर भी जुदा रहता हूँ मैं हैं इसी की वज्ह से महरूमियाँ,नाचारियाँ देखता हूँ कब तलक ज़ेरे-अना रहता हूँ मैं तेरे होने का जहां होता नहीं एहसास भी वसवसों के उस जहां में ए ख़ुदा रहता हूँ पूछ मत कैसी है […]

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T-1/24 एक कतरे को नदी में ढूँढता रहता हूँ मै – दिनेश नायडू

एक कतरे को नदी में ढूँढता रहता हूँ मै इसलिए तो खुद में ही सिमटा हुआ रहता हूँ मैं ये नहीं है की हमेशा मसअला रहता हूँ मैं हाँ यकीनन भीड़ से थोड़ा जुदा रहता हूँ मैं ये हरापन ,ताजगी,गिरते हुए पत्तों में क्यूँ , कितनी कुदरत बेमहर है सोचता रहता हूँ मैं आप पर […]

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T-1/23 तीरगी-सी कुछ लकीरें खींचता रहता हूँ मैं – आदिल रज़ा मंसूरी

तीरगी-सी कुछ लकीरें खींचता रहता हूँ मैं रौशनी के उस तरफ़ जब-जब खड़ा रहता हूँ मैं कोई भी मौसम मुकम्मल कर नहीं पाया मुझे कोई भी मौसम हो लेकिन अधखिला रहता हूँ मैं आज भी पाता नहीं हूँ दाखिले का हौसला जंगलों को दूर ही से देखता रहता हूँ मैं क्या समंदर को मिला है […]

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T-1/22 मुझसे बाहर मुझको समझा जाए ये मुमकिन कहाँ – अभिषेक शुक्ला

पहले कुछ दिन तक तो जंगल की हवा रहता हूँ मैं फिर किसी ख़ुशबू के क़दमों में पड़ा रहता हूँ मैं आग की तफ़सील में जाना भी कारआमद रहा अब चरागों की समझ से मावरा रहता हूँ मैं मुझसे बाहर मुझको समझा जाए ये मुमकिन कहाँ एक हंगामा हूँ और ख़ुद में बपा रहता हूँ […]

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T-1/21 दोस्तो! ये झूठ तो मुझसे न बोला जाएगा – मस्तो

जोड़ने में रात दिन खुद को लगा रहता हूँ मैं.. कौन ये कहता है कि यकसर बना रहता हूँ मैं .. आईनों के शोर से हर दम घिरा रहता हूँ मैं देख कर फिर अक्स अपना क्यों डरा रहता हूँ मैं बस यही इक बात खुद से पूछता रहता हूँ मैं जब बचा ही कुछ […]

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T-1/20 रात दिन गर्दिश में हैं लेकिन पड़ा रहता हूँ मैं – महेंदर सानी

रात दिन गर्दिश में हैं लेकिन पड़ा रहता हूँ मैं काम क्या मेरा यहाँ है सोचता रहता हूँ मैं   बाहर अन्दर के जहानों से मिला मुझको फराग़ तीसरी दुनिया के चक्कर काटता रहता हूँ मैं   “देखिये मेरी पजीराई* को अब आता है कौन” मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं   कर दिया किसने […]

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T-1/19 क़ैद हूँ अपनी जगह और जा-ब-जा रहता हूँ मैं – अब्दुल अहद ‘साज़’

क़ैद हूँ अपनी जगह और जा-ब-जा रहता हूँ मैं यानी तन्हाई-ब-जां, महफ़िल-ब-पा रहता हूँ मैं जादा-ओ-आवारगी में नक्शे-पा रहता हूँ मैं गोया अपनी गुमरही में रहनुमा रहता हूँ मैं मौत है इक नींद या ये ज़िन्दगी इक नींद है जागता हूँ नींद में और सोचता रहता हूँ मैं भाईचारा, एकता,इंसानियत जो नाम दें ‘मैं हूँ […]

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T-1/18 आने वालों के लिए महवे-दुआ रहता हूँ मैं – मदन मोहन ‘दानिश’

आने वालों के लिए महवे-दुआ रहता हूँ मैं ‘मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का, खुला रहता हूँ मैं’ इसलिए की रात का एहसास कुछ रोशन रहे आसमानों में सितारों सा बिछा रहता हूँ मैं बस तभी होता है कोई मोजिज़ा तख्लीक़ का जिस घड़ी अपने अलावा जाने क्या रहता हूँ मैं राहगीरों से मैं उनके तजरुबे […]

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T-1/17 हाँ इसी अह्सासे-ग़म में मुब्तिला रहता हूँ मैं – याकूब आज़म

हाँ इसी अह्सासे-ग़म में मुब्तिला रहता हूँ मैं देख कर ग़म दूसरों के ग़मज़दा रहता हूँ मैं धूप, बारिश, छावं में देखो पड़ा रहता हूँ मैं मील का पत्थर हूँ ख़िदमत में लगा रहता हूँ मैं दौरे-हाज़िर की रिफाक़त देख कर ये दोस्तो आज-कल ख़ुद अपने साये से डरा रहता हूँ मैं आज़माना है कभी […]

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T-1/16 बस इसी कारे-ज़ियाँ में मुब्तिला रहता हूँ मैं – भारत भूषण पन्त

बस इसी कारे-ज़ियाँ में मुब्तिला रहता हूँ मैं सोचने लगता हूँ तो फिर सोचता रहता हूँ मैं  ढूँढती रहती हैं मुझको मिलके दीवारें सभी अपने ही घर में कई दिन लापता रहता हूँ मैं  हाँ कभी आँखों से बाहर झांक लेता हूँ मगर बेशतर तो अपने ही अन्दर छुपा रहता हूँ मैं बंद रहते हैं हमेशा मेरे दरवाज़े सभी […]

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T-1/15 पत्तियां गिरने के मौसम में बुझा रहता हूँ मैं – तुफ़ैल चतुर्वेदी

पत्तियां गिरने के मौसम में बुझा रहता हूँ मैं फूल खिलते हैं तो फूलों सा खिला रहता हूँ मैं उसका वादा था पलट कर आऊंगा मैं एक दिन दिन गुज़रते जा रहे हैं, देखता रहता हूँ मैं रोज़ मेरे ख़ाब में आता है इक चेहरे का चाँद रोज़ मद्धम रौशनी में भीगता रहता हूँ मैं […]

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T-1/14 हज़रात,वो ग़ज़ल जिससे तरह का मिसरा लिया गया था, पेश है

खूने-दिल से किश्ते-ग़म को सींचता रहता हूँ मैं ख़ाली काग़ज़ पर लकीरें खींचता रहता हूँ मैं आजसे मुझ पर मुकम्मल हो गया दीने-फ़िराक़ हाँ, तसव्वुर में भी अब तुझसे जुदा रहता हूँ मैं तू दयारे-हुस्न है ऊँची रहे तेरी फ़सील ‘मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं शाम तक खींचे लिए फिरते हैं […]

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T-1/12 रौशनी रहती है कमरे में बुझा रहता हूँ मैं — विकास शर्मा राज़

बिन तुम्हारे कितना बेतरतीब-सा रहता हूँ मैं रौशनी रहती है कमरे में बुझा रहता हूँ मैं रौशनी और तीरगी में झूलता रहता हूँ मैं अपने अन्दर ही उभरता डूबता रहता हूँ मैं नींद ले आती है मुझको दूर शहरे-संग से ख़्वाब की बस्ती में हँसता खेलता रहता हूँ मैं शाम ही से तेज़ हो जाती […]

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T-1/11 जाना-पहचाना हूँ और नाआशना रहता हूँ मैं – सरफ़राज़ ‘शाकिर’

जाना-पहचाना हूँ और नाआशना रहता हूँ मैं सब की रग-रग में लहू सा दौड़ता रहता हूँ मैं मैं तो बाशिंदा हूँ इक ऊँची हवेली का हुज़ूर जाने किन गलियों में, कूचों में पड़ा रहता हूँ मैं रस्ता-रस्ता रह्ज़नों से है भरा तो क्या हुआ ‘मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं’ वो जो मिल जाता […]

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T-1/10 लम्स उस मासूम का करता है ताज़ादम मुझे – सौरभ शेखर

एक और तरही ग़ज़ल हाज़िर है हसरतों से रहगुज़र को देखता रहता हूँ मैं मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं उसकी यादें गूंथ कर एहसास की तस्बीह में रात-दिन अब उँगलियों पर फेरता रहता हूँ मैं मुन्तजिर शायद नहीं है वो दुआओं का मेरी पर उसे दिल से दुआएं भेजता रहता हूँ […]

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T-1/9 ग़ज़ल — आपसे मुँह फेरकर ये देखता रहता हूँ मैं – मयंक अवस्थी

आपसे मुँह फेरकर ये देखता रहता हूँ मैं खुद का हो सकता हूँ या फिर आपका रहता हूँ मैं आइने के सामने अक्सर खड़ा रहता हूँ मैं अक्स हूँ मैं भी किसी का, सोचता रहता हूँ मैं तुम मेरे हो, मैं तुम्हारा हूँ, हम इक दूजे के हैं खुद से तनहाई में क्या क्या बोलता […]

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T-1/8 बाट दुनिया भर की लोगों जोहता रहता हूँ मैं -irshad khan sikandar

बाट दुनिया भर की लोगों जोहता रहता हूँ मैं मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं ज़िंदगी हैरान है मेरी ढिठाई देखकर मुस्कुराकर ग़म की चालें काटता रहता हूँ मैं क्या ये मुमकिन है कि सजदे सब हों मेरे रायगाँ जबकि तेरे इश्क़ ही में बावला रहता हूँ मैं ढूँढने जो भी उसे […]

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T-1/7 सामने हो तू तो आँखों तक भरा रहता हूँ मैं- स्वप्निल तिवारी “आतिश”

एक दस्तक दो कि बस यूँ ही लगा रहता हूँ मैं मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं देखते रहने से ही शायद खुदा इक शक्ल ले सोच कर ये ही खला में देखता रहता हूँ मैं खुद ही हर तितली को चौंका कर उडाता हूँ मगर फिर त’आकुब में उसी के भागता […]

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T-1/6 रास्ते कुहसार में भी खोजता रहता हूँ मैं – सौरभ शेखर

रास्ते कुहसार में भी खोजता रहता हूँ मैं हाँ अना की सब चटानें तोड़ता रहता हूँ मैं इन दिनों तो ख्वाहिशों की गुनगुनी सी धूप में ओढ़ कर इक ज़ब्त की चादर पड़ा रहता हूँ मैं जैसे इक सिक्के के दो पहलू हों वैसे ही हैं हम रो रहा होता है वो और भीगता रहता […]

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T-1/5 मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं – सुलभ जैसवाल

मुस्कराता हाथ मलता सोचता रहता हूँ मैं साथ चलती  जिंदगी से क्यूँ खफा रहता हूँ उसने मुझको भीड़ में छोड़ा था फिर ये किसलिए रात-दिन वीरानियों में घूमता रहता हूँ मैं जिम्मेदारी खुशबुएँ फैलाने की दीजे मुझे ‘मैं हूँ दरवाजा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं’ अलबमों में, शहर की गलियों में या बस्ती से […]

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T-1/4 बेसबब सैयाद की छत पर पड़ा रहता हूँ मैं – शबाब मेरठी

बेसबब सैयाद की छत पर पड़ा रहता हूँ मैं ऐसा लगता है मुहब्बत से बंधा रहता हूँ मैं मेरे घर में कोई भी रहता नहीं मेरे सिवा फिर भी तन्हाई मुसलसल ढुंढता  रहता हूँ मैं कब वो आयेगा हवा की पायलें पहने हुए बारिशों की खिड़कियों से झांकता रहता हूँ मैं दिन में लगता है मैं जैसे धूप का हूँ इश्तिहार रात को घर की दरारों में […]

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T-1/3 कम ज़ियादा हर किसी का आइना रहता हूँ मैं – अनिल जलालपुरी

कम ज़ियादा हर किसी का आइना रहता हूँ मैं ‘मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं’ अब चरागां कौन करता है ज़माने के लिए मुफ़लिसी का दीप हूँ हर-दम बुझा रहता हूँ मैं दादी-नानी की कहानी के फ़साने गुम हुए अहदे-नौ की बेहिसी से अनमना रहता हूँ मैं एक नन्हे से फ़रिश्ते ने मुझे पापा कहा ग़म भुला कर अपने सारे अब खिला रहता हूँ मैं कहने को बस्ती है आदम और हव्वा की मगर इस क़दर आपस में नफ़रत बुत बना रहता हूँ मैं                                                       Anil Jalalpuri 0 -9452487457

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T-1/2 मेरा साया ढूंढ़ता फिरता है मुझको हर-तरफ – ओम राज़ गुप्ता

साँस की लौ तेज़ करने में लगा रहता हूँ मैं साथ इक बीमार के शब भर जला रहता हूँ मैं मेरा साया ढूंढ़ता फिरता है मुझको हर-तरफ जाने क्यों नज़रों से अपनी ख़ुद छुपा रहता हूँ मैं ओढ़ कर निकला हूँ घर से एक मसनूई ख़ुशी सच तो ये है इन दिनों ख़ुद से ख़फ़ा […]

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T-1/1 ख़्वाब ऐसा रफ़्ता-रफ़्ता टूटता रहता हूँ मैं -इरशाद खान ‘सिकंदर’

फ़र्ज़ के बंधन में हर लम्हा बंधा रहता हूँ मैं मैं हूँ दरवाज़ा मुहब्बत का खुला रहता हूँ मैं नाम लेकर तेरा, मेरा लोग उड़ाते हैं मज़ाक़ इस बहाने ही सही तुझसे जुड़ा रहता हूँ मैं जानता हूँ लौटना मुमकिन नहीं तेरा, मगर आज भी उस रहगुज़र को देखता रहता हूँ मैं दोस्तों से मिलना-जुलना […]

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