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T-33/11 रोज़ो-शब को शुमार करना था. असरार किठौरवी

रोज़ो-शब को शुमार करना था
शुक्रे-सद किरदिगार करना था।

हर अंधेरा शुमार करना था
रात को शर्मसार करना था

हो न पाया कि बाद -ए-तरके-वफ़ा
कुछ नया कारोबार करना था

शर्त दरिया-ए-दिल की क्या कहते
डूबना था ना पार करना था

आंख को अश्कबार करना भी
दर्द को इश्तेहार करना था

और क्या है भला अताये-हयात
ख़्वार होना था ख़्वार करना था

कोई मुश्किल सा वक़्त ढूंढता हूं
दोस्तों का शुमार करना था

आइने से तुम्हे जो फ़ुर्सत हो
कुछ बयां हाले-ज़ार करना था

तुझ से मनसूब करके हर ग़म को
कारे-जाँ खुशगवार करना था

अबलापाई ही से ऐ ‘असरार’
दश्त को लालाज़ार करना था

असरार किठौरवी
07060951656

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3 comments on “T-33/11 रोज़ो-शब को शुमार करना था. असरार किठौरवी

  1. शर्त दरिया-ए-दिल की क्या कहते
    डूबना था ना पार करना था
    वाह बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई है वाह ……………

  2. हाय क्या शेर निकाले हैं। इसे कहते हैं पुराने चावल। वाह वाह वाह वाह। सदहा दाद क़ुबूल फरमाइये

    हर अंधेरा शुमार करना था
    रात को शर्मसार करना था

    शर्त दरिया-ए-दिल की क्या कहते
    डूबना था ना पार करना था

    आंख को अश्कबार करना भी
    दर्द को इश्तेहार करना था

    और क्या है भला अताये-हयात
    ख़्वार होना था ख़्वार करना था

    कोई मुश्किल सा वक़्त ढूंढता हूं
    दोस्तों का शुमार करना था

  3. BEHTAREEN GHAZAL DAAD HAZIR HAI

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