ग़ज़ल की प्रचलित 32 बहरें – नवीन
प्रणाम
आदरणीय आर. पी. शर्मा महर्षि जी की विभिन्न पुस्तकों से अर्जित जानकारी के आधार पर तथा उस्ताज़ आदरणीय तुफ़ैल साहब की निगरानी में काम करते हुये आज ग़ज़ल की प्रचलित 32 बहरों पर काम पूरा हुआ। बहरें तो और भी कई हैं, परन्तु मैंने मुख्यत: व्यावहारिक तथा महर्षि जी द्वारा निर्देशित बहरों को ही केंद्र में रखा है। समस्त 32 बहरों को उन के नाम, अरकान, वर्णिक संकेत तथा उदाहरण सहित पेश कर रहा हूँ। उम्मीद करता हूँ कि यह प्रयास इच्छुक व्यक्तियों के लिये उपयोगी सिद्ध होगा। यदि इस उपक्रम में मेरी कम-इल्मी की वज़्ह से या असावधानीवश कहीं कोई भूल रह गई हो तो मैं उस के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ तथा आप सभी से विनम्र निवेदन करता हूँ कि उक्त ग़लती को संज्ञान में लाते हुये सुधरवाने की कृपा करें। यदि आप को लगे कि यह प्रयास आप के काम का है तो जीवन में कम से कम एक व्यक्ति तक इस जानकारी को पहुँचा कर मुझे अनुग्रहीत करें।
आभार
1. बहरे कामिल मुसम्मन सालिम
मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन मुतफ़ाइलुन
11212 11212 11212 11212
ये चमन ही अपना वुजूद है इसे छोड़ने की भी सोच मत
नहीं तो बताएँगे कल को क्या यहाँ गुल न थे कि महक न थी
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2. बहरे खफ़ीफ मुसद्दस मख़बून
फ़ाइलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
2122 1212 22
प्या ‘स’ को प्या ‘र’ करना था केवल
एक अक्षर बदल न पाये हम
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3. बहरे मज़ारिअ मुसम्मन मक्फ़ूफ़ मक्फ़ूफ़ मुख़न्नक मक़्सूर
मफ़ऊल फ़ाइलातुन मफ़ऊल फ़ाइलातुन
221 2122 221 2122
जब जामवन्त गरजा, हनुमत में जोश जागा
हमको जगाने वाला, लोरी सुना रहा है
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4. बहरे मुजतस मुसमन मख़बून महज़ूफ
मुफ़ाइलुन फ़यलातुन मुफ़ाइलुन फ़ेलुन
1212 1122 1212 22
भुला दिया है जो तूने तो कुछ मलाल नहीं
कई दिनों से मुझे भी तेरा ख़याल नहीं
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5. बहरे मज़ारिअ मुसमन अख़रब मकफूफ़ मकफूफ़ महज़ूफ़
मफ़ऊल फ़ाइलात मुफ़ाईलु फ़ाइलुन
221 2121 1221 212
क़िस्मत को ये मिला तो मशक़्क़त को वो मिला
इस को मिला ख़ज़ाना उसे चाभियाँ मिलीं
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6. बहरे मुतकारिब मुसद्दस सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122
कहानी बड़ी मुख़्तसर है
कोई सीप कोई गुहर है
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7. बहरे मुतकारिब मुसमन सालिम
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन
122 122 122 122
वो जिन की नज़र में है ख़्वाबेतरक़्क़ी
अभी से ही बच्चों को पी. सी. दिला दें
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8. बहरे मुतक़ारिब मुसम्मन मक़्सूर
फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़ऊलुन फ़अल
122 122 122 12
इबादत की किश्तें चुकाते रहो
किराये पे है रूह की रौशनी
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9. बहरे मुतदारिक मुसद्दस सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212
सीढ़ियों पर बिछी है हयात
ऐ ख़ुशी! हौले-हौले उतर
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10. बहरे मुतदारिक मुसम्मन अहज़ज़ु आख़िर
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ा
212 212 212 2
अब उभर आयेगी उस की सूरत
बेकली रंग भरने लगी है
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11. बहरे मुतदारिक मुसम्मन सालिम
फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ाइलुन
212 212 212 212
जब छिड़ी तज़रूबे और डिग्री में जंग
कामयाबी बगल झाँकती रह गयी
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12. बहरे रजज़ मख़बून मरफ़ू’ मुख़ल्ला
मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन मुफ़ाइलुन फ़ाइलुन फ़ऊलुन
1212 212 122 1212 212 22
बड़ी सयानी है यार क़िस्मत, सभी की बज़्में सजा रही है
किसी को जलवे दिखा रही है कहीं जुनूँ आजमा रही है
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13. बहरे रजज़ मुरब्बा सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212
ये नस्ले-नौ है साहिबो
अम्बर से लायेगी नदी
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14. बहरे रजज़ मुसद्दस मख़बून
मुस्तफ़इलुन मुफ़ाइलुन
2212 1212
क्या आप भी ज़हीन थे?
आ जाइये – क़तार में
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15. बहरे रजज़ मुसद्दस सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212
मैं वो नदी हूँ थम गया जिस का बहाव
अब क्या करूँ क़िस्मत में कंकर भी नहीं
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16. बहरे रजज़ मुसम्मन सालिम
मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन मुस्तफ़इलुन
2212 2212 2212 2212
उस पीर को परबत हुये काफ़ी ज़माना हो गया
उस पीर को फिर से नयी इक तरजुमानी चाहिये
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17. बहरे रमल मुरब्बा सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122
मौत से मिल लो, नहीं तो
उम्र भर पीछा करेगी
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18. बहरे रमल मुसद्दस मख़बून मुसककन
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 22
सनसनीखेज़ हुआ चाहती है
तिश्नगी तेज़ हुआ चाहती है
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19. बहरे रमल मुसद्दस महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 212
अजनबी हरगिज़ न थे हम शह्र में
आप ने कुछ देर से जाना हमें
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20. बहरे रमल मुसद्दस सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122
ये अँधेरे ढूँढ ही लेते हैं मुझ को
इन की आँखों में ग़ज़ब की रौशनी है
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21. बहरे रमल मुसमन महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलुन
2122 2122 2122 212
वह्म चुक जाते हैं तब जा कर उभरते हैं यक़ीन
इब्तिदाएँ चाहिये तो इन्तिहाएँ ढूँढना
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22. बहरे रमल मुसम्मन मख़बून महज़ूफ़
फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन
2122 1122 1122 22
गोया चूमा हो तसल्ली ने हरिक चहरे को
उस के दरबार में साकार मुहब्बत देखी
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23. बहरे रमल मुसम्मन मशकूल सालिम मज़ाइफ़ [दोगुन]
फ़यलात फ़ाइलातुन फ़यलात फ़ाइलातुन
1121 2122 1121 2122
वो जो शब जवाँ थी हमसे उसे माँग ला दुबारा
उसी रात की क़सम है वही गीत गा दुबारा
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24. बहरे रमल मुसम्मन सालिम
फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन फ़ाइलातुन
2122 2122 2122 2122
कल अचानक नींद जो टूटी तो मैं क्या देखता हूँ
चाँद की शह पर कई तारे शरारत कर रहे हैं
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25. बहरे हज़ज मुसद्दस महजूफ़
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन ,
1222 1222 122
हवा के साथ उड़ कर भी मिला क्या
किसी तिनके से आलम सर हुआ क्या
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26. बहरे हज़ज मुसद्दस सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222
हरिक तकलीफ़ को आँसू नहीं मिलते
ग़मों का भी मुक़द्दर होता है साहब
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27. बहरे हजज़ मुसमन अख़रब मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ मक्फ़ूफ महज़ूफ़
मफ़ऊल मुफ़ाईल मुफ़ाईल फ़ऊलुन
221 1221 1221 122
आवारा कहा जायेगा दुनिया में हरिक सम्त
सँभला जो सफ़ीना किसी लंगर से नहीं था
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28. बहरे हज़ज मुसम्मन अख़रब मक़्फूफ़ मक़्फूफ़ मुख़न्नक सालिम
मफ़ऊल मुफ़ाईलुन मफ़ऊल मुफ़ाईलुन
221 1222 221 1222
हम दोनों मुसाफ़िर हैं इस रेत के दरिया के
उनवाने-ख़ुदा दे कर तनहा न करो मुझ को
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29. बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्फूफ़ मक़्बूज़ मुख़न्नक सालिम
फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन फ़ाइलुन मुफ़ाईलुन
212 1222 212 1222
ख़ूब थी वो मक़्क़ारी ख़ूब ये छलावा है
वो भी क्या तमाशा था ये भी क्या तमाशा है
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30. बहरे हज़ज मुसम्मन अशतर मक़्बूज़, मक़्बूज़, मक़्बूज़
फ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
212 1212 1212 1212
लुट गये ख़ज़ाने और गुन्हगार कोइ नईं
दोष किस को दीजिये जवाबदार कोई नईं
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31. बहरे हज़ज मुसम्मन मक़्बूज़
मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन मुफ़ाइलुन
1212 1212 1212 1212
गिरफ़्त ही सियाहियों को बोलना सिखाती है
वगरना छूट मिलते ही क़लम बहकने लगते हैं
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32
बहरे हज़ज मुसम्मन सालिम
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन
1222 1222 1222 1222
मुझे पहले यूँ लगता था करिश्मा चाहिये मुझको
मगर अब जा के समझा हूँ क़रीना चाहिये मुझको
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:- नवीन सी. चतुर्वेदी
+91 99 670 24 593
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आदरणीय आपका बहुत बहुत शुक्रिया , कि आपने लगभग सभी प्रचलित बहर एक साथ नये ग़़ज़लकारो के लिये उपलब्ध कराया ।
चुपके चूपके रात दीन आंसू बहाणा याद है…
इस लाईन का बहर क्या है ..?
मंजिल मैं थक गया हूं, हारा नहीं हूं मैं /
अर्श से टूट कर गिरने वाला सितारा नहीं हूं मैं//
तर्क कर दो, मुझ तक पहुंचने की आरजू /
तूफान भी है। भवर भी है किनारा नहीं हूं मैं //
हर शख्स मेरे दिल में आईने की तरह है/
सच तो यह है कि तुमने दिल में उतारा नहीं हूं मैं//
फूलों की जगह खुद को बिछा देता। राह में तेरी/
दिल क्या लबों से भी उसने पुकारा नहीं हूं मैं//
मेरे कुसूर दिल में तुमने दफन कर लिए /
फिर कैसे मान लूं कि तुम्हारा नहीं हूं मैं//
writer—- mohammad zulfekar husain moradabad 4/3/2022
सराहनीय!
अच्छी जानकारी, सिलसिले वार ढंग से प्रस्तुत।
धन्यवाद चतुर्वेदी जी
Thanks for this☝️🤗
👍💐
Mistake in point 12.
Sahi h
बहुत बहुत धन्यवाद आपका।
2212 2212 2212 12 bahar par koi geet bataiye
Bhai point 21 me aapse kuchh mistake ho gai he use theek karlo…
2122 2122 2122 212
Aapne likha h
2122 2122 21222 212
2112 1212 2112 1212
ये बहर इसमें शामिल क्यों नहीं
उदाहरण
हालत-ए-हाल के सबब हालत-ए-हाल ही गई
शौक़ में कुछ नहीं गया शौक़ की ज़िंदगी गई
तेरा फ़िरा क़ जान-ए-जाँ ऐश था क्या मिरे लिए
या’नी तिरे फ़िराक़ में ख़ूब शराब पी गई
जौन एलिया
बहुतख़ूब जानकारी…👍👌💐
आदरणीय जी बहरे 19 है तो 32 कैसे हो गई
सर आपने बहुत ही उम्दा जनकारी दी है। मेरा एक प्रश्न ही कि बहर के प्रचलन से पहले ग़ज़ल नहीं लिखी जाती थी? क्या ग़ालिब साहिब की सब ग़ज़लें बहर के मापदंड में आती हैं?
कृपया कोई जवाब….
चतुर्वेदी जी
आपकी बहुमूल्य जानकारी को मुझ जैसे अल्पज्ञों के समझाने के लिए निम्न तालिका बनाई है. यदि इसमें कोई बड़ी गलती हो तो बताएं. छोटी-मोटी गलतियाँ तो होंगी ही, क्योंकि यह किसी विद्वान का विश्लेषण नहीं है.
bAhoor ko hindi me pesh karne ki kamyaab koshish k liye badhayi……kuchh print ki ghAltiyaN meri nAzar me aayiN behr No(3),(5),(27),(28) me mAf-ool ko mAf-oolu=221 hona chahiye /behr(5) me fa-ilat ko fa-ilatu=2121, (23) me fAy-laat ko FAy-laatu(fA- i -laatu)=1121,(27) me mufa -eel ko mufa-eeiu=1221,hona chahiye /behr (12) me fA-oo-lAn ka wazn 22 print hai jo 122 hona chahiye…ummeed hai ghAur fArmyen ge
तहेदिल से शुक्रगुज़ार हूँ आप का भाई.
आप ने वक़्त निकाल कर न सिर्फ़ इस पोस्ट को पढ़ा बल्कि मिस्टेक्स को नोटिफाई भी किया. आप का कहना एक दम बजा है. जल्द ही इन को सुधारता हूँ. और भी कुछ मिस्टेक्स हों तो देखिएगा प्लीज. फिर से बहुत-बहुत शुक्रिया.
Any pdf you have plz send
example 3..rukn awwAl mAf-ool (hurf aakhir sakin) likh gaya hai jAb k iss ka wAzAn mAf-oo-lu(hurf aakhir mutahhrik),,221..hai
अत्यंत महत्त्वपूर्ण जानकारी साझा हुई है आपकी ओरसे नवीन भाईजी जिसे सीखने के क्रम में जागरुक अभ्यासकर्ता और पाठक जान तो जाते हैं लेकिन इस तरह कॉलम में लिखा होना सभी के प्रयास को और सरल कर देता है.
कुछ टंकण त्रुटियाँ रह गयी हैं, भाईजी जिनका निवारण हो जाना जरूरी है.
एक उदाहरण, क्रमसं. 8 में बह्र के वज़्न को लिखते समय आखिरी रुक्न का मात्र ग़ाफ़ लिखा होना. वह 1 2 होना चाहिये. वैसे, उसके लिए फ़उल का सही इस्तमाल हुआ है.
सादर
आप का बहुत-बहुत शुक्रिया आदरणीय, इंगित भूल का सुधार कर दिया है। काम करने वाले को अपनी भूल नहीं मालूम पड़ती है, आप जैसे सुधिजन सुधरवाते हैं। बहुत-बहुत आभार।
Dada..bahut hi mahattwapurn jaankari ke liye dil se abhar .bahut shukriya ,is post ko maine draft bana ke rakh liya hain,thanks a ton to you .
यह आप जैसे ज्ञान पिपासु शोधार्थियों के लिये ही है, ख़ुश रहिये जीते रहिये आलोक
नवीन जी, तुफैल जी. बहरों की उदाहरण सहित दी गई इस अमूल्य जानकारी के लिए धन्यवाद.
बहुत बहुत शुक्रिया राजीव जी
Eye opening article. An educational step has taken by you. Regards
शुक्रिया पवन साहब, माँ शारदे की इच्छा से हो पाया