चाँद का इन्तिज़ार करना था
रात को बेक़रार करना था
रेत खानी थी धूप पीनी थी
हमको ये दश्त पार करना था
जानता हूँ ख़सारा है लेकिन
इश्क़ का कारोबार करना था
जो मेरे हर तरह मुख़ालिफ़ हैं
उनमें ख़ुद को शुमार करना था
रोकने थे अगर क़दम मेरे
बाज़ुओं को हिसार करना था
अब ये रिश्ता रफ़ू नहीं होगा
अब इसे तार तार करना था
तू कहीं जाये लौट कर आए
ख़ुद को ऐसा मदार करना था
पवन कुमार
उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद हाज़िर है|
पूरी ग़ज़ल बहुत मुरस्सा है मगर इस शेर पर दिल न्योछावर वह वह हज़ारी दाद क़ुबूल फ़रमाइये
रोकने थे अगर क़दम मेरे
बाज़ुओं को हिसार करना था
KAMAAL KI GHAZAL HUI HAI PAWAN BHAI…DHERON DAAD KABOOL KAREN. WAAH WAAH WAAH , HAR SHER LAJAWAB HAI AUR YE TO ANOOTHA HAI
अब ये रिश्ता रफ़ू नहीं होगा
अब इसे तार तार करना था
ZINABAAD