बस ज़रा फेरफार करना था।
दायरों को दयार करना था॥
अब तो हम ख़ुद नहीं रहे उसके।
जिस पर एकाधिकार करना था॥
नित बिगड़ते ही जा रहे हैं हम।
जबकि हमको सुधार करना था॥
रामजी ने तो कुछ कमी न रखी।
कुछ हमें भी विचार करना था॥
हार भी अपनी जीत भी अपनी।
फ़ैसला इस प्रकार करना था॥
वो हमारी हवस ही थी जिसको।
शाकिरों का शिकार करना था॥
इक सफ़ीने प नाख़ुदा कितने।
हम को यह भी शुमार करना था॥
ख़ून के अश्क़ रो रही थी नदी।
और हमें जलविहार करना था॥
सिर्फ़ रोने से क्या हुआ हासिल।
ख़ुदनुमाई प वार करना था॥
अब भी ख़ुद में भटक रहे हैं हम।
“हमको ये दश्त पार करना था”॥
नवीन सी चतुर्वेदी
+919967024593
नवीन भाई
उम्दा ग़ज़ल के लिए दाद हाज़िर हैI
‘जलविहार’ वाला शे’र बेहतरीन !!!!!!!!!!!!!
नवीन जी बेहतरीन ग़ज़ल
नवीन भाई ज़िंदाबाद – कमाल की गजल कही है, दाद कबूलें