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T-23/36 हमने सदा की आग लगाई हुई तो है-स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’
हमने सदा की आग लगाई हुई तो है ख़ामोशियों ने चीख़ दबाई हुई तो है साया हमारा टेक ले शायद, हमारी अब हम ने फ़सीले-नूर गिराई हुई तो है ये रुत के जिस के सुर हैं दुखों से भरे हुए कोरस में ही सहीह प गाई हुई तो है फुर्क़त की रात में भी चमक […]
T-4/26 रम गए ग़म में अनासिर मेरे-दिनेश नायडू
‘ज़ख्म ग़ायब हैं बज़ाहिर मेरे’ रम गए ग़म में अनासिर मेरे ख़ून फिर टपका मिरी आँखों से बन गए अश्क जवाहिर मेरे मैं हूँ सूना सा मुसाफ़िरख़ाना दूर बैठे हैं मुसाफ़िर मेरे मेरी क़िस्मत में खिज़ाँ लिखते वक़्त हाथ कांपा न मुहर्रिर मेरे मेरी सूरत को मुकम्मल पा कर कितने हैरां हैं मुसव्विर मेरे आजकल […]
T-4/25 उलझे-उलझे हैं अनासिर मेरे – अभिषेक शुक्ला
उलझे-उलझे हैं अनासिर मेरे कम हैं आसाब के माहिर मेरे मैं किसी हाथ से बनने का नहीं रंग हैं आप मुसव्विर मेरे आसमां बंद न कर ऐ मालिक उड़ रहे हैं अभी ताइर मेरे बाढ़ आएगी यकायक मुझमें टूट जायेंगे मुआबिर मेरे आ मेरी ज़ात में दाखिल हो जा घर बना शहर की ख़ातिर मेरे […]
T-4/24 राज़ क्यों करते हैं ज़ाहिर मेरे-पूरन एहसान
राज़ क्यों करते हैं ज़ाहिर मेरे आप तो दोस्त हैं आखिर मेरे रंग भी करते हैं ज़ाहिर मेरे तेरा मय्यार मुसव्विर मेरे शेर का टुकड़ा ही दे दे मौला ज़हनो-दिल कासे हुए फिर मेरे छीन सकते हैं मिरी आँखें भी मेरे अन्दर के मनाज़िर मेरे अपने घर आ तो गया हूँ लेकिन खो गए सारे […]
T-4/22 पेश-रौ हैं वो बज़ाहिर मेरे-वाक़िफ़ फ़ारूक़ी
पेश-रौ हैं वो बज़ाहिर मेरे आयें लग जायेँ गले फिर मेरे सब अयाँ है मिऱा अपना वजूद सारे बातिन हुए ज़ाहिर मेरे उन से पूछा तो यूँ वो कहने लगे चश्मे-मैगुं हैं ये काफिर मेरे इक क़यामत ही नहीं सुबहो-शाम आप हैं फित्नये-आखिर मेरे इक टका तक न मिला जिन से मियां हाँ वही हैं […]
T-4/21 क्या नज़र आयेगा नाज़िर मेरे-पवन कुमार
क्या नज़र आयेगा नाज़िर मेरे ‘ज़ख्म ग़ायब हैं बज़ाहिर मेरे’ फिर मुझे दोस्त मिले पत्थर के आइने टूट गये फिर मेरे इनमें किसको नज़रंदाज़ करूं सामने हैं जो मनाज़िर मेरे दुश्मनों से मुझे पहचान मिली काम आये वही आख़िर मेरे इश्क़ की राह में ख़तरे हैं बहुत सोच लेना ये मुसाफ़िर मेरे दर्द सीने में […]
T-4/20 दोस्त इस दर्जा थे शातिर मेरे-अशहर फ़ारूक़ी
दोस्त इस दर्जा थे शातिर मेरे ले गए छीन मनाज़िर मेरे दर्द से रूह भी छलनी है मगर ज़ख्म ग़ायब हैं बज़ाहिर मेरे मिल के हम मंज़िलें तलाशेंगे साथ चल तू भी मुसाफ़िर मेरे इश्क़ में नींद उड़ी है ऐसी हो गए ख़्वाब मुहाजिर मेरे जिससे हर दर्द को छुपाया था उसपे ग़म हो गए […]
T-4/19 मेरी तहरीर जुदा कर सब से –सालिम शुजा अंसारी
मुन्दमिल नक़्श हुये फिर मेरे शक्ल दे मुझको मुसव्विर मेरे मेरी तहरीर जुदा कर सब से हर्फ तश्कील हों नादिर मेरे हो गया ज़हन मेरा खानाबदोश हैं खयालात मुहाजिर मेरे वुसअतें दिल की हुईं लामहदूद दायरे हो गये कासिर मेरे हो के गुमराह तेरी राहगुज़र आ गयी पाँव तक आखिर मेरे करवटें वक़्त ने बदलीं […]
T-4/18 जो ख़यालात थे आख़िर मेरे-अवनि अस्मिता शर्मा
जो ख़यालात थे आख़िर मेरे……Jo khayalaat the aakhir mere….. हो गए शेर से ज़ाहिर मेरे……..ho gaye sher se zaahir mere… शायरी कैसे ग़ज़ल कैसे हो……..shayari kaise gazal kaise ho… शेर होने को हैं क़ासिर मेरे ……..sher hone ko haiN qasir mere ….. आज जज़्बात भी बेरंग हैं क्यूँ…….aaj jazbaat bhi berang haiN kyuN …. भर […]
T-4/17 ज़ख्म गायब हैं बज़ाहिर मेरे-अहमद सोज़
ज़ख्म गायब हैं बज़ाहिर मेरे क़ैद में हैं मेरी मुख़्बिर मेरे कुछ तो हैं आप भी ईमान शिकन कुछ इरादे भी हैं काफ़िर मेरे फ़ोबिया है मुझे तनहाई का साथ रहना मुतवातिर मेरे कुछ मिरे दोस्त तो बेलौस भी हैं और कुछ दोस्त हैं ताजिर मेरे इम्तिहां आज है फिर से मेरा सामने आज है […]
T-4/16 तुझपे ज़ाहिर न हों नासिर मेरे-नवनीत शर्मा
तुझपे ज़ाहिर न हों नासिर मेरे ज़ख्म इतने कहां माहिर मेरे था मिरे होने का पहरा मुझपर ख़ाली हाथ आए हैं मुख़बिर मेरे आस मिलने की नहीं अब कोई दफ़्न मुझमें हैं मनाज़िर मेरे जिस्म है एक ही मेरा लेकिन मुन्तज़िर कितने मक़ाबिर मेरे शे’र पलकों पे तेरी यादों के हो गए अश्क भी शाइर […]
T4/15 आइना सामने है फिर मेरे …सौरभ शेखर
आइना सामने है फिर मेरे मुझ पे सब ऐब हैं ज़ाहिर मेरे कोई आँखों से मिरी रोया था भीगे-भीगे हैं मनाज़िर मेरे सबसे कह दे कि निहत्था हूँ मैं डुगडुगी पीट दे मुख़बिर मेरे शब ढले तंज़ किया शाखों ने थे कहाँ सुब्ह से ताइर मेरे है तसव्वुर में अभी इक दुनिया चंद अरमान हैं […]
T4-14 -माँ की नज़रों से –मयंक अवस्थी
कौन जाने ओ मुसाफिर मेरे कब बिखर जायें अनासिर मेरे मैं वही शहरे- वफा हूँ जिस पर थूक देते हैं मुहाजिर मेरे फिर बहारों ने इनायत की है लौट अब आयेंगे ताइर मेरे शेख इक रोज़ खुदा कह देगा तुझसे मक़्बूल हैं काफ़िर मेरे माँ की नज़रों से मगर छुप न सके “ ज़ख़्म गायब […]
T-4/13 -नज़्र मैं क्या करूँ नाज़िर मेरे-द्विजेन्द्र द्विज
नज़्र मैं क्या करूँ नाज़िर मेरे ज़ख्म इतने नहीं नादिर मेरे बेशक अल्फ़ाज़ हैं फ़ाकिर मेरे जानो-दिल अब भी हैं काफ़िर मेरे चुप रहे गर्चे मुक़र्रिर मेरे बोल उठ्ठेंगे मक़ाबिर मेरे तेरी नज़रों से भला क्या पर्दा ‘ज़ख़्म ग़ायब हैं बज़ाहिर मेरे’ वो न होता तो न होता कुछ भी मस्जिदें तेरी न मंदिर मेरे […]
T-4/12बुतशिकन मेरे न काफ़िर मेरे-सतपाल ख़याल
बुतशिकन मेरे न काफ़िर मेरे मैं नमाजी हूँ न मंदिर मेरे टीस इस दिल से उठी है शायद “ज़ख्म ग़ायब है बज़ाहिर मेरे” वक़्त आने पे बदल जायेंगे हैं तो कहने को ये आखिर मेरे रात कटते ही सहर आयेगी सोचता क्या है मुसाफ़िर मेरे मै न उर्दू ,न मैं हिंदी साहिब बस ग़ज़ल हूँ […]
T-4/11 सर पे बादल की तरह घिर मेरे -इरशाद खान सिकंदर
सर पे बादल की तरह घिर मेरे धूप हालात हुए फिर मेरे मेरे महबूब गले से लग जा आके क़दमों पे न यूँ गिर मेरे रात गुज़रे तो सफ़र पर निकलें मुझमें सोये हैं मुसाफ़िर मेरे दिल में झाँके ये किसे फ़ुर्सत है ज़ख्म ग़ायब हैं बज़ाहिर मेरे एक दिन फूट के बस रोया था […]
T-4/10 दाग़ होने लगे ज़ाहिर मेरे-विकास शर्मा ‘राज़’
दाग़ होने लगे ज़ाहिर मेरे तेज़ कर रंग मुसव्विर मेरे मेरी आँखों में सियाही भर दे या हरे कर दे मनाज़िर मेरे नुक़रई झील बुलाती थी उन्हें फंस गये जाल में ताइर मेरे धूप हूँ, सब पे करम है मेरा राह मेरी न मुसाफ़िर मेरे है कहाँ शंख बजाने वाला कब से ख़ामोश हैं मंदिर […]
T-4/9 सामने कैसै हों ज़ाहिर मेरे-याक़ूब आज़म
सामने कैसै हों ज़ाहिर मेरे हैं पसे-पर्दा अनासिर मेरे मेरा अंजाम लिखेगा कैसा मुझको समझा दे मुहर्रिर मेरे सिर्फ़ दिल ही मिरा सरमाया है सोच ले ख़ूब ये ताजिर मेरे मेरे ज़ख्मों की नुमाइश करते यार ऐसे न थे शातिर मेरे मुद्दतों बाद हँसी आई है खींच ले अक्स मुसव्विर मेरे क्या नया कोई तमाशा […]
T-4/8 हो गए ग़म सभी शातिर मेरे- स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’
बर्ग जो सब्ज़ हुए फिर मेरे लौट आये सभी ताइर मेरे रंग उड़ ही गए आखिर मेरे कुछ न कर पाए मुसव्विर मेरे दोस्ती ख़ुशियों से कर ली सब ने हो गए ग़म सभी शातिर मेरे ग़म तिरा इनको लगा अपना वतन अश्क अब तक थे मुहाजिर मेरे फ़्रेम दर फ़्रेम तू ही है सबमे […]
T-4/6 उसपे इसरार हैं ज़ाहिर मेरे-मनोहर मनु गुनावी
उसपे इसरार हैं ज़ाहिर मेरे हाल पूछे मेरी ख़ातिर मेरे पंख उसके थे ख़ला भी उसका हौसले ही तो थे आख़िर मेरे घुल गयी ख़ुशबू फ़ज़ा में हर सू हो गए शेर बज़ाहिर मेरे वक़्त के जैसे हुनर सीख लिए दोस्त सब कितने हैं शातिर मेरे मनोहर मनु गुनावी
T-4/5 -ज़ख्म ग़ायब हैं बज़ाहिर मेरे-तुफ़ैल चतुर्वेदी
ज़ख्म ग़ायब हैं बज़ाहिर मेरे…………………Zakhm ghayab hai’n bazahir mere मुझमें लड़ते हैं अनासिर मेरे…………………Mujhme’n ladte hai’n anasir mere मैं कि बदहाल भटकता दर-दर……………….Mai’n ki badhal bhatakta dar-dar मिम्बरों पर हैं मुक़र्रिर मेरे………………….Mimbaro’n par hai’n muqarrir mere अम्न क़ायम है कि लड़ सकता हूँ……………..Amn qayam hai ki lad sakta hu’n ख़ून से लिख ये मुहर्रिर मेरे…………………Khun […]
T-4/3 नुक़्स करते हैं जो ज़ाहिर मेरे -फ़रहत खान
नक़्स ही करते हैं ज़ाहिर मेरे……………….nuqs hi karte haiN zaahir mere हो गए अपने ही मुख़बिर मेरे……………….ho gaye apne hi mukhbir mere अस्ल दुश्मन तो वही हैं साहब ………………asl dushman to wahi the mere दोस्त वो जो हैं बज़ाहिर मेरे ………………..dost wo jo haiN bazaahir mere कहते थे मुझको जो मुहसिन कल तक ……………kahte the […]
T-4/2 रतजगे जब से हुये फिर मेरे-गौतम राजरिशी
रतजगे जब से हुये फिर मेरे हो गए ख़्वाब मुहाजिर मेरे दर्द-सा दर्द मिले कोई अब ज़ख्म गायब हैं बज़ाहिर मेरे बात से बात निकल आयेगी साथ तो चल ओ मुसाफ़िर मेरे आ के पहलू में यूं तुम क्या बैठे जल उठे सारे अनासिर मेरे शोख़ आँखों से संभाला न गया राज़ सब खुल गए […]
Tarahi-4/1 -ज़ख्म सब पर हुए ज़ाहिर मेरे-शबाब मेरठी
ज़ख्म सब पर हुए ज़ाहिर मेरे चारागर हो गए शातिर मेरे जाओ तुम पर नहीं होंगे ज़ाहिर ये मिरे दर्द हैं आख़िर मेरे लुत्फ़ आने लगा जबसे ज़िच में मात देते नहीं शातिर मेरे कब धुएं की ये हटेगी चादर कब नज़र आएंगे ताइर मेरे प्यास पर क़ैद है वैसे उनकी और दरिया हैं बज़ाहिर […]
तरही-4 का मिसरा तरह। 15 दिन कहने के लिए। पोस्टिंग की आख़िरी तारीख़ 4-12-2112
अज़ीज़ो, तरही-4 का मिसरा हाज़िर है। इस बार जानबूझ कर ऐसा मिसरा तय किया जा रहा है जिसमें फ़ारसी के शब्द लाना पड़ें। इसका कारण ये है कि पिछले दिनों लखनऊ के एक साहब ने ग़ज़ल पर गुफ़्तगू के दौरान कहा कि कुछ लोग कहते हैं कि आसान कहना तो बहुत आसान है। तो आइये […]