T-26

T-26/61 क्‍या जरूरी है वफ़ा कीजिए बस-नवनीत शर्मा

हज़रत ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी साहब की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया मुझसे इक बात किया कीजिए बस इस कदर मेहरो-वफ़ा कीजिए बस आफ़रीं सामने आंखें के मिरी यूं ही तादेर रहा कीजिए बस दिले-बीमार हुआ अब चंगा दोस्‍तो तर्के-दवा कीजिए बस ख़ूने-आशिक़ से ये परहेज़ उसे आशना-ए-कफ़े-पा कीजिए बस शर्म ता चंद हया भी कब […]

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T-26/60 जब सुब्ह का आलम है और रात ख़याली है-सलीम ख़ान

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया हर-चंद के बात अपनी कब लुत्फ़ से ख़ाली है पर यार न समझें तो ये बात निराली है आग़ोश में हैं वो और पहलू मिरा ख़ाली है माशूक़ मिरा गोया तस्वीरे-ख़याली है क्या डर है अगर उस ने दर से मुझे उठवाया कहते है तग़ीरी […]

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T-26/59 चलता ही नहीं प्यार का अफ़्सूं मिरे आगे-‘शफ़ीक़’ रायपुरी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया ख़ामुश हैं अरसतूं-ओ-फ़लातूं मिरे आगे दावा नहीं करता कोई मज़्मूं मिरे आगे लाता नहीं ख़ातिर में सुख़न बेहुदागो का एजाज़े-मसीहा भी है अफ़्सूं मिरे आगे बांधे हुए हाथों को बउम्मीदे-इजाबत रहते हैं खड़े सैकड़ों मज़्मूं मिरे आगे समझूँ हूँ उसे मुहरा-ए-बाज़ीचा-ए-तिफ़लां किस काम का है […]

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T-26/58 तूने ही दिल हलाक किया मैंने क्या किया -‘अयाज़’ संबलपुरी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया जीते ही जी को ख़ाक किया मैंने क्या किया अपने तईं हलाक किया मैंने क्या किया हैराँ हूँ मैं कि क्या ये मिरे जी में आ गया क्यों ख़त को लिख के चाक किया मैंने क्या किया ख़ंजर पे उसके रात गला जा के रख […]

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T-26/57 अपना ज़मीर बेच दूँ ? मर जाऊँ क्या करूँ-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया जीता रहूँ कि इश्क़ में मर जाऊं क्या करूँ तू ही मुझे बता मैं किधर जाऊं क्या करूँ है इज़्तेराबे-दिल से निपट अरसा मुझपे तंग आज उस तलक बदीदा-ए-तर जाऊं क्या करूँ हैरान हूँ कि क्यूंकि ये क़िस्सा चुके मिरा सर रखके तेग़ ही पे […]

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T-26/56 दोस्तों का ये प्यार कैसा है-सुख़नवर हुसैन ‘सुख़नवर’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया दिल को ये इज़ितरार कैसा है देखियो बेक़रार कैसा है एक बोसा भी दे नहीं सकता मुझको प्यारे, तू यार कैसा है कुश्ता-ए-तेग़े-नाज़ क्या जाने ख़ंजरे-आबदार कैसा है हर घड़ी गालियाँ ही देते हो जान मेरी ये प्यार कैसा है मय नहीं पी कियूं छुपाते […]

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T-26/55 तबीयत है बहुत नाशाद मेरी-परवीन ख़ान

हज़रते-ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया नहीं करती असर फ़रियाद मेरी कोई किस तरह देवे दाद मेरी फ़ुग़ाने-जाँ ग़ुसिल रखता हूँ लेकिन नहीं सुनता मिरा सय्याद मेरी तु ऐ पैग़ामबर झूटी ही कुछ कह कि ख़ुश हो ख़ातिरे-नाशाद मेरी मैं तुझको याद करता हूँ इलाही तिरे दिल में भी होगी याद मेरी […]

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T-26/54 बिखर जाओ फिर हौसला ज़िन्दगी है-बिमलेंदु कुमार

हज़रते-ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया सदा फ़िक्रे-रोज़ी है ता ज़िंदगी है जो जीना यही है तो क्या ज़िदगी है छुपा मुँह न अपना के मर जाएँगे हम परी-रू तिरा देखना ज़िंदगी है मुझे ख़िज्ऱ से दो न जीने में निस्बत कि उस की बआबे-बक़ा ज़िंदगी है तिरी बे-वफ़ाई का शिकवा करें […]

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T-26/53 दूर रहकर न ख़ुदारा मुझे तड़पाया कर-शाहिद हसन ‘शाहिद’

हज़रते-ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया इस क़दर भी तो मिरी जान न तरसाया कर मिल के तन्हा तो गले से कभी लग जाया कर देख कर हम को न पर्दे में तू छुप जाया कर हम तो अपने हैं मियाँ गै़र से शरमाया कर ये बुरी ख़ू है दिला तुझ में […]

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T-26/52 इश्क़ तूने हाय! ये क्या कर दिया-सत्य चंदन

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया अब्र को पानी से पतला कर दिया हुस्न है इक फ़ित्नागर उसने वहीं जिसको चाहा उसको रुस्वा कर दिया तुम ने कुछ साक़ी की कल देखी अदा मुझको साग़र मय का छलका कर दिया बैठे बैठे फिर गयीं […]

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T-26/51 इश्क़ की आग में जो जलते हैं-सीमा शर्मा मेरठी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया आतिशे-ग़म में बस कि जलते हैं शम्अ साँ उस्तुख़्वाँ पिघलते हैं वही दश्त और वही गरेबां चाक जब तलक हाथ पांव चलते हैं देख तेरी सफ़ा-ए-सूरत को आइने मुंह से ख़ाक मलते हैं जोशिशे-अश्क है वो आंखों में जैसे उससे कुएं उबलते हैं देख आरिज़ को […]

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T-26/50 पता ग़म नहीं है तुम्‍हारा ज़मीं पर-मनोज मित्तल ‘कैफ’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया ये दिल्‍ली का नक्‍़शा उभारा ज़मीं पर कि ला अर्श को यां उतारा ज़मीं पर क़सम है सुलैमां की पेशे-ज़मां की यहीं परियों का था गुज़ारा ज़मीं पर मैं वो संगे-रह हूं कि जो ठोकरों में फिरे हर तरफ़ मारा-मारा ज़मीं पर फ़लक ने तो अपने […]

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T-26/49 जान ले ले न ज़ब्ते-आह कहीं-बकुल देव

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया या तो आवे वो रश्के-माह कहीं या हो इस शब का रू सियाह कहीं अब मुलाक़ात की वो शक्ल नहीं देख लेते हैं गाह गाह कहीं हैं जो मरदूद सारे आ़लम के कुछ तो हम से हुआ गुनाह कहीं मर्गे-दिल काश सर्द हो जावे खा के […]

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T-26/48 कौन से दौर में कब ताजवरी निकले है-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया तेरी रफ़्तार से इक बेख़बरी निकले है मस्तो-मदहोश कोई जैसे परी निकले है खोल देता है चमन में जो तू जा कर ज़ुल्फ़ें पा-ब-ज़ंजीर नसीमे-सहरी निकले है अपने रोने की कोई समझे तो आईना मिसाल दीदा-ए-ख़ुश्क से आँखों की तरी निकले है गुल को निस्बत है […]

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T-26/47 इस तरह से अपना सौदा कर दिया-पूजा भाटिया

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया रो के इन आँखों ने दरिया कर दिया अब्र को पानी से पतला कर दिया हुस्न है इक फ़ित्नागर उसने वहीं जिसको चाहा उसको रुस्वा कर दिया तुम ने कुछ साक़ी की कल देखी अदा मुझको साग़र मय का छलका कर दिया बैठे बैठे फिर गयीं […]

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T-26/46 है दौर फ़िरक़ापरस्ती का बुग़ज़ो-नफ़रत का-नासिर अली ‘नासिर’

हज़रत ग़ुलाम हमदानी ‘मुसहफ़ी’ साहब की ग़ज़ल दिलो-दिमाग़ था कब हमको ऐसी ज़िल्लत का ख़ुदा करे कि बुरा होय उस महब्बत का न बोसा लेने की कर मुझ पे ओ मियां तुहमत वो होगा और कोई शख़्स मेरी सूरत का शबे-विसाल गुज़र ही गयी इक आन के बीच फिर आया दुःख मुझे देने को रोज़े-फ़ुर्क़त […]

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T-26/45 हर घड़ी इंतज़ार कैसा है-गुमनाम पिथौरागढ़ी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया दिल को ये इज़ितरार कैसा है देखियो बेक़रार कैसा है एक बोसा भी दे नहीं सकता मुझको प्यारे, तू यार कैसा है कुश्ता-ए-तेग़े-नाज़ क्या जाने ख़ंजरे-आबदार कैसा है हर घड़ी गालियाँ ही देते हो जान मेरी ये प्यार कैसा है मय नहीं पी कियूं छुपाते […]

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T-26/44 क्यों चैन-सुकूं अपना, बर्बाद करूँ रोऊं-डॉ मुहम्मद आज़म

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया आता है यही जी में फ़रियाद करूँ रोऊँ रोने से ही टुक अपना, दिल शाद करूँ रोऊँ किस वास्ते बैठा है चुप इतना तू ऐ हमदम क्या मैं ही कोई नौहा बुनियाद करूँ रोऊँ यूँ दिल में गुज़रता है जा कर किसी सहरा में ख़ातिर […]

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T-26/43 होंटों पे जो अपने लिए इन्कार खड़े हैं-शाहिद हसन ‘शाहिद’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया हम दिल को लिए बर-सरे-बाजार खड़े हैं हैरान-ए -तमन्ना-ए-ख़रीदार खड़े हैं ग़ैरों से वो ख़लवत में हैं मशग़ूले-ज़राफ़त हम रश्क के मारे पसे-दीवार खड़े हैं उन शर्मज़दों को भी बुला सामने अपने जो शर्म के मारे पसे-दीवार खड़े हैं अज बहरे-ख़ुदा बाम पर आ ऐ […]

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T-26/42 निशाने पर किसी के हूँ कि होता है गुमाँ मुझको-फ़ज़्ले-अब्बास सैफ़ी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया रहा गुल से ज़ियादा बीमे-ताराजे-ख़िज़ाँ मुझको बनाना ही न था ऐसे चमन में आशियाँ मुझको निगाहों में बहारे-गुल को मैं तो लूट लेता हूँ भला क्या रुख़सते-सैरे-चमन दे बागबाँ मुझको पड़ा हूँ शाख़ से गिर कर मैं बर्गे-ज़र्द की सूरत ख़ुदा जाने कहाँ ले जाय […]

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T-26/41 बेकराँ बेकराँ से उठता है-नवीन सी चतुर्वेदी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसको तरह किया गया अह्ले-दिल गर जहाँ से उठता है इक जहाँ जिस्मो-जाँ से उठता है चलो ऐ हमरहो ग़नीमत है जो क़दम इस जहाँ से उठता है जम्अ रखते नहीं, नहीं मालूम ख़र्च अपना कहाँ से उठता है गर नक़ाब उस के मुँह से उठ्ठी नईं शोर क्यों कारवाँ से उठता […]

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T-26/40 सहवन जो आज लब पे तिरा नाम आ गया-अब्दुल अहद ‘साज़’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल किस ज़मीं को तरह किया गया नागह चमन में जब वो गुलअंदाम आ गया गुल को शिकस्ते-रंग का पैग़ाम आ गया सोचे था अहले-जुर्म में किसको करूँ मैं क़त्ल इतने में याद उसको मिरा नाम आ गया अफ़सोस है कि हम तो रहे मस्ते-ख़ाबे-सुब्ह और आफ़ताबे-उम्र लबे-बाम आ गया है जाये-रहम हाल […]

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T-26/39 अबके सवाले-वस्ल का बन कर जवाब आ-बकुल देव

हज़रत ग़ुलाम हम्दानी मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसको तरह किया गया आना है यूं मुहाल तो इक शब न ख़्वाब आ. मुझ तक ख़ुदा के वास्ते ज़ालिम शिताब आ. देता हूं नामा मैं तुझे इस शर्त पर अभी, क़ासिद तू उस के पास से ले कर जवाब आ. ऐसा ही अज़्म है तुझे गर कू ए यार […]

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T26/38 आग है ख़ूब थोड़ा पानी है-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया ज़ख्म है और नमक फ़िशानी है दोस्ती दुश्मनी-ए-जानी है नक़्शे-अव्वल है चेहरा-ए-यूसुफ़ और तिरा चेहरा नक़्शे-सानी है तेरे कूचे से माने-ए-रफ़्तार हमको अपनी ही नातवानी है हुस्न में चेहरा उस गुल-ए-तर का नक़्शे-रंगीन-ए-किल्क-ए-मानी है उसपे परवाने गो हुजूम करें शम्अ की वो ही कम -ज़बानी है इस […]

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T-26/37 बिछड़ कर वो सरे-मंज़िल गया है-द्विजेन्द्र ‘द्विज’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया नसीबों से कोई गर मिल गया है तो पहले उस पे अपना दिल गया है करेगा याद क्या क़ातिल को अपने तड़पता याँ से जो बिस्मिल गया है लगे हैं ज़ख़्म किस की तेग़ के ये कि जैसे फूट सीना खिल गया है ख़ुदा के वास्ते उस को […]

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T-26/36 फिर सरे-मिज़गां चला आया है कुछ-कुछ आब सा-नूरुद्दीन ‘नूर’

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया आज कुछ सीने में दिल है ख़ुद ब ख़ुद बेताब सा कर रहा है बेक़रारी पारा-ए-सीमाब सा ज्यूँ गुले-तर क्या ही इससे छलके है उसका बदन वो जो पैराहन गले में उसके है सीमाब सा मैं हूँ और ख़िलवत है और पेशे-नज़र माशूक़ है है तो […]

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T-26/35 कब ज़मीं आसमाँ से उठता है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर

हज़रते मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया अहले-दिल गर जहाँ से उठता है इक जहाँ जिस्मो-जाँ से उठता है चलो ऐ हम-रहो ग़नीमत है जो क़दम इस जहाँ से उठता है जम्अ रखते नहीं, नहीं मालूम ख़र्च अपना कहाँ से उठता है गर नक़ाब उसके मुंह से उट्ठी नईं शोर क्यों कारवां […]

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T-26/34 रँग चलते हों जैसे बांकी चाल-तुफ़ैल चतुर्वेदी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया ओ मियां बांके है कहाँ की चाल तुम जो चलते हो नित ये बांकी चाल नाज़े-रफ़्तार ये नहीं देखा हमने देखि है इक जहाँ की चाल लाखों पामाले-नाज़ हैं उनके कौन समझे है इन बुताँ की चाल कब्क को देख के ये कहने लगा ये चले […]

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T-26/33 इश्क़ को छाँव मैं समझा था भभूका निकला-तुफ़ैल चतुर्वेदी

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया रात पर्दे से ज़रा मुहँ जो किसू का निकला शोला समझा था उसे मैं पे भभूका निकला महरो-मह उस की फबन देख के हैरान रहे जब वरक़ यार की तस्वीरे-दो-रू का निकला ये अदा देख के कितनों का हुआ काम तमाम नीमचा कल जो टुक उस […]

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T-26/32 दिल ये मेरा निहाल था, क्या था-द्विजेन्द्र ‘द्विज’

हज़रते-मसहफी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया ख़्वाब था या ख़याल था क्या था हिज्र था या विसाल था क्या था मेरे पहलू में रात जा कर वो माह था या हिलाल था क्या था चमकी बिजली सी पर न समझे हम हुस्न था या जमाल था क्या था शब जो दिल दो […]

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T-26/31 मैं शजर हूँ और इक पत्ता है तू-इमरान हुसैन ‘आज़ाद’

हज़रते मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीं को तरह किया गया गरचे ऐ दिल आशिक़े-शैदा है तू लेकिन अपने काम में यकता है तू आशिक़ो-माशूक़ करता है जुदा ऐ फ़लक ये काम भी करता है तू लाख पर्दें गर हों तेरे हुस्न पर कोई पर्दो में छुपा रहता है तू हाले-दिल कहने लगूँ हूँ मैं तो […]

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T-26/30 बात आ चुकी है कारगरो-रायगां के बीच-बकुल देव

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीं को तरह किया गया कुछ इन दिनों है और हवा गुलसितां के बीच बुलबुल से ये कहो कि रहे आस्तां के बीच अब उन मुसाफ़िरों का निशां किस से पूछिये जो ख़ाक़ हो के रह गये रेगे-रवां के बीच करता नहीं कभी जो रहम मेरे हाल पर है क्या ग़ज़ब […]

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T-26/29 बात गर सच्‍ची है तक्‍़सीर, भली लगती है-नवनीत शर्मा

ह़ज़रत मुसहफ़ी साहब की ग़ज़ल जिसे तरही किया गया पांव में क़ैस से ज़ंजीर भली लगती है यूं ही दीवाने की तस्‍वीर भली लगती है अपनी क्‍या तुझसे कहूं तू ही कह अपनी मुझसे कि मुझे तेरी ही तक़रीर भली लगती है खुशनुमां है तिरे आरिज़ पे ये ख़त यूं जिस तरह गिर्द कु़रआन के […]

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T-26/28 उसने तहसीले-मालो-ज़र ली है-मुनव्वर अली ताज

मुहतरम मुसहफी साहब की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया. अश्क ने राहे-चश्मे-तर ली है मसलहत कुछ तो दिल से कर ली है दीदे-रुख़ से है बाग़ बाग निगाह कैसी फूलों से गोद भर ली है मैंने बाज़ारे-हुस्ने खूबां से मोल इक हसरते-नज़र ली है आओ मैदां में तुम भी सर बुलंद उसने फिर तेग़ और […]

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T-26/27 ज़ह्न में यूँ तो इक दलील सी है-“समर कबीर”

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया उम्रे-पसमांदा कुछ दलील सी है ज़िंदगानी भी अब क़लील सी है गिरिया करता हूँ अब मैं नामे-हुसैन आंसुओं की जो एक झील सी है चल दिला वो पतंग उड़ाता है अभी आने में उसके ढील सी है लोग करते हैं वस्फ़े-नूरजहाँ मैंने देखा वो ज़न तो फ़ील सी […]

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T-26/26 माहौल बेरुख़ी का बद इस क़दर न देखा-चंद्रभान भारद्वाज

मुसाहिफी साहब की ग़ज़ल जिसको तरह किया गया की आह हमने लेकिन उसने इधर न देखा इस आह का तो हमने कुछ भी असर न देखा क्या क्या बहारें आईं क्या क्या दरख़्त फूले नख़्ले-दुआ को लेकिन मैं बारवर न देखा हरगिज़ हुआ न यारो वो शोख़ यार अपना ज़ीं पेश वर्ना हमने क्या क्या […]

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T-26/25 उनकी आमद है गुलफ़िशानी है-आलोक मिश्रा

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया ज़ख़्म है और नमक-फ़िशानी है दोस्ती दुश्मनी ए जानी है नक़्शे-ए-अव्वल है चेहरा-ए-यूसूफ़ और तिरा चेहरा नक़्शे-सानी है तेरे कूचे से मानी-ए-रफ़्तार हम को अपनी ही नातवानी है उस पे परवाने गो हुजूम करें शम’अ की वो ही कमज़बानी है इस सरा में सभी मुसाफ़िर हैं यानी जो […]

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T-26/24 गुफ़्तार की इक सूरत इस तर्ह निकाली है-बकुल देव

हज़रत मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया हर-चंद के बात अपनी कब लुत्फ़ से ख़ाली है पर यार न समझें तो ये बात निराली है आग़ोश में हैं वो और पहलू मिरा ख़ाली है माशूक़ मिरा गोया तस्वीरे-ख़याली है क्या डर है अगर उस ने दर से मुझे उठवाया कहते है तग़ीरी […]

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T-25/23 साक़ी की निग़ाहों का तलबगार किधर है-दिनेश कुमार

मुसहफ़ी ग़ुलाम हमदानी साहब की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया दिल सीने में बेताब है दिलदार किधर है कुइ मुझ को बता दो वो मिरा यार किधर है हम कब से चमन-ज़ार में बेहोश पड़े हैं मालूम नहीं गुल किधर और ख़ार किधर है उस गुल का पता गर नहीं देते हो तो […]

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T-25/22 यह ग़म तो हुआ इश्क़ में मात निकली-आसिफ़ अमान

हज़रते-गुलाम हमदानी साहब की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया शबे हिज्र सहर-ए-ज़ुल्मात निकली मैं जब आँख खोली बहुत रात निकली मुझे गालियाँ दे गया वो सरीहन मिरे मुंह से हरगिज़ न कुछ बात निकली हुआ वादी-ए-क़त्ल सहरा-ए-महशर मिरी नाश जब रोज़े-मीक़त निकली कमी कर गया नाज़े-पिन्हाँ का ख़ंजर न जाँ तेरे बिस्मिल की […]

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T-26/21 हमें रास आनी है राहों की गठरी-बकुल देव

हज़रत ग़ुलाम हम्दानी मुसहफ़ी की ग़ज़ल चले ले के सर पै गुनाहों की गठरी सफ़र में ये है रूसियाहों की गठरी पड़ी रोज़े-महशर वहीं बर्क़ आ कर जहाँ थी तिरे दाद-ख़्वाहों की गठरी मुसाफ़िर मैं उस दश्त का हूँ कि जिस में लुटी कितने गुमकर्दा राहों की गठरी जहाँ सूस ने बह्र से सर निकाला […]

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T-26/20 तिरा शौक़े-दीदार पैदा हुआ है-पवन कुमार

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया तिरा शौक़े-दीदार पैदा हुआ है फिर इस दिल को आज़ार पैदा हुआ है सदा पान खा खा के निकले है बाहर ज़माने में ख़ूँख़ार पैदा हुआ है ये मदफ़न है किसका जो हर लाला यां से जिगर-ख़ूँ दिल-अफ़गार पैदा हुआ है उड़ाये हैं लख़्ते-जिगर आह ने […]

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T-26/19 मुन्तज़र ही नहीं है जब कोई-द्विजेन्द्र द्विज

हज़रते मुसहफ़ी साहब की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया कह गया कुछ तो ज़ेरे-लब कोई जान देता है बेसबब कोई जावे क़ासिद उधर तो ये कहियो राह तकता है रोज़ो-शब कोई गो कि आंखों में अपनी आवे जान मुंह दिखाता है हमको कब कोई बन गया हूं मैं सूरते-दीवार सामने आ गया है जब कोई […]

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T-26/18 कोई सुर था न ताल था क्या था-देवेन्द्र गौतम

हज़रते-मसहफी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया ख़्वाब था या ख़याल था क्या था हिज्र था या विसाल था क्या था मेरे पहलू में रात जा कर वो माह था या हिलाल था क्या था चमकी बिजली सी पर न समझे हम हुस्न था या जमाल था क्या था शब जो दिल दो […]

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T-26/17 जान ये इंतज़ार कैसा है-पूजा भाटिया

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसमें तरही ग़ज़ल कही गयी दिल को ये इज़ितरार कैसा है देखियो बेक़रार कैसा है एक बोसा भी दे नहीं सकता मुझको प्यारे, तू यार कैसा है कुश्ता-ए-तेग़े-नाज़ क्या जाने ख़ंजरे-आबदार कैसा है हर घड़ी गालियाँ ही देते हो जान मेरी ये प्यार कैसा है मय नहीं पी कियूं छुपाते हो अंखड़ियों […]

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T-26/16 बयाँ कैसे करूँ क्या उसकी अंगड़ाई का आलम था-समर कबीर

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया शबे-हिज्राँ में था मैं और तन्हाई का आलम था ग़रज़ उस शब अजब ही बे-सरो-पाई का आलम था गिरेबाँ ग़ुंचा-ए-गुल ने किया गुलशन में सौ टुकड़े कि हर फुंदुक़ पर उस के तुर्फ़ा रानाई का आलम था निहाले-ख़ुश्क हूँ मैं अब तो यारो क्या हुआ यानी […]

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T-26/15 चाल अपनी अदा से चलते हैं-बकुल देव

हज़रत ग़ुलाम हम्दानी मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया आतिशे-ग़म में इस के जलते हैं शम्मा साँ उस्तुख़्वाँ पिघलते हैं वही दश्त और वही गिरेबाँ चाक जब तलक हाथ पाँव चलते हैं देख तेरी सफ़ा-ए-सूरत को आइने मुँह से ख़ाक मलते हैं जोशिशी अश्क है वो आँखों में जैसे उस से कुएँ […]

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T-26/14 उस नजर में सवाल था, क्‍या था-नवनीत शर्मा

हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीं को तरह किया गया ख़्वाब था या ख़याल था क्या था हिज्र था या विसाल था क्या था मेरे पहलू में रात जा कर वो माह था या हिलाल था क्या था चमकी बिजली सी पर न समझे हम हुस्न था या जमाल था क्या था शब जो दिल दो […]

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T-26/13 दिल में रह रह के जो बढ़ता है ख़ला, हम ही हैं-दिनेश नायडू

हज़रते मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया कीजिये ज़ुल्म सज़ा वारे-जफ़ा हम ही हैं खींचिए तेग़ कि मुद्दत से फ़िदा हम ही हैं तफ़्ता-दिल, सोख़्ता-जाँ, चाक़-जिगर, खाक़ -बसर क्या कहें मसदरे-सद-गुन्ना-बला हम ही हैं नहीं मौक़ूफ़ दुआ अपनी तो कुछ बादे-नमाज़ बैठते उठते जो मांगे हैं दुआ हम ही हैं ये भी […]

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T-26/12 उठानी थी हम को सलाहों की गठरी – नवीन

हज़रते-मुसहफ़ी साहब की ग़ज़ल जिसे तरह के लिये चुना गया चले ले के सर पै गुनाहों की गठरी सफ़र में ये है रू-सियाहों की गठरी पड़ी रोज़-ए-महशर वहीं बर्क़ आ कर जहाँ थी तेरे दाद-ख़्वाहों की गठरी मुसाफ़िर मैं उस दश्त का हूँ कि जिस में लुटी कितने गुम-कर्दा राहों की गठरी जहाँ सूस ने […]

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