T-13

तरही-13 का समापन

दोस्तो, इस बार की तरही महफ़िल भी मेरे ख़याल से ख़ासी कामयाब रही। बयालीस ग़ज़लें आयीं। सभी शायरों ने अच्छी ग़ज़लें कहीं। फिर भी कुछ चूकें जो नुमायां तौर पर रहीं उनकी निशानदेही मुझे ज़ुरूरी लग रही है। ग़ज़ल में ज़म एक बड़ा दोष है। पूरा मिसरा या मिसरे को कहीं से भी तोड़ देने […]

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T-13/42 एक झलक उसकी, मिसरा हो जाता है-तुफ़ैल चतुर्वेदी

एक झलक उसकी….. मिसरा हो जाता है दोबारा देखूं मतला हो जाता है बादल उठता है…. चेहरा हो जाता है बैठे-बैठे मुझको क्या हो जाता है उसके दिल में पहले तबस्सुम बैठाओ बीज ही कुछ दिन में बूटा हो जाता है उसकी सूरत खिंच जाती है अश्कों में सारा मंज़र सतरंगा हो जाता है दिल […]

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T-13/41 रिश्तों में जब भी घुन पैदा हो जाता है-‘शबाब मेरठी’

रिश्तों में जब भी घुन पैदा हो जाता है रेशम का धागा मांझा हो जाता है दरिया का पानी नहरों में आने दो खेतों में आ कर सोना हो जाता है लालच आ जाये तो फिर ईमां है क्या पल भर में सब कुछ मलबा हो जाता है यूं तो चुप रहता है दरिया का […]

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t-13/40 उसकी सुमिरन से ऐसा हो जाता है-शरीफ़ अंसारी-2

उसकी सुमिरन से ऐसा हो जाता है मन के अन्दर उजियारा हो जाता है अक्षर-अक्षर पढ़ने वाला ही इक दिन इल्मो-हुनर का गहवारा हो जाता है सोच-समझ कर मुंह खोला कीजे वरना सारी उम्र का पछतावा हो जाता है उसके पैर कहां पड़ते हैं धरती पर जिसके हाथ में दो पैसा हो जाता है पैदल […]

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T-13/39 तेरे आते ही ऐसा हो जाता है-रशीद ‘इमकान’

तेरे आते ही ऐसा हो जाता है सूरज जैसा ग़म, तारा हो जाता है आ लगता है सीने से जब फूल मिरा मेरा सीना बाग़ीचा हो जाता है मुंह-बोले शायर जब ग़ज़लें पढ़ते हैं उस्तादों का मुंह उजला हो जाता है दहशत घर कर जाये दिल में तो भाई शेरों का जंगल पिंजरा हो जाता […]

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T-13/38 जाने कब कोई अपना हो जाता है-आशीष नैथानी ‘सलिल’

जाने कब कोई अपना हो जाता है इक चेहरा दिल का टुकड़ा हो जाता है कभी-कभी घर में ऐसा हो जाता है सबका एक अलग कमरा हो जाता है जज़्बों की बाढ़ आती है पलभर और फिर ‘धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है’ हँसी-ख़ुशी सब कुछ रहती है सपनों में सुब्ह उठूँ तो सब कूड़ा […]

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T-13/37 जब कोई चेहरा, चेहरा हो जाता है-मदन मोहन दानिश

जब कोई चेहरा, चेहरा हो जाता है मंज़र-मंज़र आईना हो जाता है बहुत ज़ियादा आँख से बारिश ठीक नहीं वरना ये शीशा धुंधला हो जाता है रंग अलग हैं जात- पात के चक्कर से फूल और तितली में रिश्ता हो जाता है रात कहानी में मरने वाला किरदार दिन होते ही क्यों ज़िन्दा हो जाता […]

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T-13/36 शाम ढले तेरा चरचा हो जाता है-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’-2

शाम ढले तेरा चरचा हो जाता है नींद का हर क़तरा गुस्सा हो जाता है जब भी आता हूं मैं दरिया की जानिब हर गुज़रा लम्हा ताज़ा हो जाता है लम्हा लम्हा आग भड़कती है दिल में `धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है’ गर मुफ़लिस को ज़द में लेना हो तो फिर हाथ दरोग़ा का […]

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T-13/35 सागर उसका आईना हो जाता है-प्रकाश अर्श

सागर उसका आईना हो जाता है अम्बर सा नीला नीला हो जाता है उसके अब्बू से मैं ट्यूशन लेता हूँ उसके घर आना जाना हो जाता है दुनिया भर की रातें देख के आँखों में ख़ाबों का सीना चौड़ा हो जाता है मार दिया करता हूँ सर दीवारों से जब भी ये कमरा सूना हो […]

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T-13/34 दुख जब कोई मुझसे बड़ा हो जाता है-नज़ीर नज़र

दुख जब कोई मुझसे बड़ा हो जाता है रो लेता हूँ मन हल्का हो जाता है उस दम महँगी पड़ती है तेरी आदत सारा आलम जब सस्ता हो जाता है कैरम की गोटी सा है जीवन मेरा रानी लेते ही ग़च्चा हो जाता है रोज़ बचाता हूँ इज़्ज़त की चौकी मैं रोज़ मगर इन पर […]

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T-13/33 रहते-रहते उसको क्या हो जाता है-शफ़ीक़ रायपुरी

रहते-रहते उसको क्या हो जाता है हंसते-हंसते नमदीदा हो जाता है रिश्तों का फल जब कड़वा हो जाता है अच्छा ख़ासा मन मैला हो जाता है शुहरत जिस दम बेरौनक़ हो जाती है शुहरत वाला फिर तन्हा हो जाता है जब भी याद आ जाती है उस महवश की रौशन मेरा हर लम्हा हो जाता […]

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T-13/32 चोट ग़मों की खाकर क्या हो जाता है-ख़ुरशीद ‘खैराड़ी’

चोट ग़मों की खाकर क्या हो जाता है क्या ऐसे शायर पुख्ता हो जाता है अव्वल अव्वल शोर मचाता है हर दिल आख़िर सिस्टम का पुरज़ा हो जाता है किस जादू से,सोचों का जामिद सहरा तुझको सोचूं तो दरिया हो जाता है जिस दिल में हो प्यार किसी का पाकीज़ा वो…मंदिर मस्ज़िद गिरजा हो जाता […]

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T-13/31 लोगों के कहने से क्या हो जाता है-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’

लोगों के कहने से क्या हो जाता है जादू है पीतल सोना हो जाता है रंगे-मुहब्बत जब गहरा हो जाता है इक चेहरा मेरा चेहरा हो जाता है फ़र्ते-अक़ीदत से जो अदा हो जाता है नाज़ के क़ाबिल वो सजदा हो जाता है कुहरा छंट जाता है जब नासमझी का इन्सां ख़ुद ही शर्मिंदा हो […]

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T-13-30 गणेश गायकवाड़

प्यार इबादत, इश्क़ खुदा हो जाता है आशिक़ का फिर दर्द दवा हो जाता है ज़ख्म जिगर का जब गहरा हो जाता है ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’ जब शुहरत का सूरज ढलने वाला हो तब साया क़द से लंबा हो जाता है उसके सारे ऐब ख़ूबियां बनते हैं जो भी अल्ला को […]

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T 13/29 मेरे दिल को अपने दिल में रहने दो -मयंक अवस्थी

तनहाई में जाने क्या हो जाता है पत्थर, जैसे आईना हो जाता है मुझमें एक ख़ला ये कहता है अक्सर माटी का तन माटी का हो जाता है सबसे बाँहें फैलाकर मिलते रहिये सिर ऊँचा सीना चौड़ा हो जाता है कुछ तो है उस बेदिल की शख़्सीयत में जो मिलता है दिलदादा हो जाता है […]

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T-13/28 अनिल जलालपुरी

हुस्ने-जानां बेपरदा हो जाता है बेरौनक़ फिर हर जलवा हो जाता है अनहद नाद सुनाई देने लगता है रोते रोते जब सजदा हो जाता है इक सरगम सी बजती है सातों छत पर ख़ुद से ख़ुद का यूँ रिश्ता हो जाता है शाम गुज़रती है जब भी छूकर मुझको मयख़ाने में हंगामा हो जाता है […]

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T-13/26 शाम तले जब दिन बौना हो जाता है-अनघ शर्मा

शाम तले जब दिन बौना हो जाता है परछाईं का क़द लम्बा हो जाता है फूल से खिल पड़ते हैं उसकी आमद से पत्ता यादों का पीला हो जाता है तेरी यादें शोर मचाने लगती हैं रात गये जब सन्नाटा हो जाता है सुनता हूँ मैं रातें काली करने से एक न इक दिन सब […]

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T-13/25 शाम ढले जब दिल तनहा हो जाता है-अभय कुमार अभय

शाम ढले जब दिल तनहा हो जाता है यादों का हर ग़म गहरा हो जाता है ख़ुश्क आंखें और दिल वीरान है मुद्दत से ‘धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है’ लगन भगीरथ जैसी हो इस शर्त के साथ चट्टानों में भी रास्ता हो जाता है संगे-मलामत लोग मुसलसल फेकें तो पत्थर दिल भी आईना हो […]

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T-13/24 दर्द को भी कहते हैं दवा हो जाता है-असरार उल हक़ असरार

दर्द को भी कहते हैं दवा हो जाता है लोगों को शायद धोका हो जाता है सात अबाओं में नंगा हो जाता है जिसकी दाढ़ी में तिनका हो जाता है बीनाई में आ जाये गर पुख्तापन मिटटी जैसा हर सोना हो जाता है मारक़ा-ए-दिल और दुनिया हैं मुद्दत से देखिये किसके सर सेहरा हो जाता […]

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T-13/23 दिन भर जैसे पाकीज़ा हो जाता है-परवीन ख़ान

दिन भर जैसे पाकीज़ा हो जाता है उससे मिलकर सब अच्छा हो जाता है एक रियाज़त है रोना हँसना गाना गाते –गाते सुर पक्का हो जाता है कोई जादू है क्या उसके हाथों मै पत्थर छू दे तो हीरा हो जाता है दिल में एक उम्मीद थी वो भी टूट गयी ख़त्म यहीं अब हर […]

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T-13/22 धीरे धीरे दर्द फ़ना हो जाता है-पवन कुमार

धीरे धीरे दर्द फ़ना हो जाता है धीरे धीरे जी हल्का हो जाता है धीरे धीरे ज़ख्म फ़ज़ा के भरते हैं धीरे धीरे रंग हरा हो जाता है धीरे धीरे आँख समंदर होती है ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’ धीरे धीरे मौसम रंग बदलते हैं धीरे धीरे क्या से क्या हो जाता है […]

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T-13/21 आईना ही जब झूठा हो जाता है-राजीव भारोल

आईना ही जब झूठा हो जाता है तब सच कहने से भी क्या हो जाता है अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है मिलना जुलना कम ही होता है उनसे बात हुए भी […]

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T-13/20 उनसे जब रिश्ता पक्का हो जाता है-मुनव्वर अली ताज

उनसे जब रिश्ता पक्का हो जाता है मन मजनूं या दिल लैला हो जाता है अपनापन झूटा क़िस्सा हो जाता है अपना घर अपना हिस्सा हो जाता है चाहत का गुलशन, राहत का राजनगर ‘धीरे-धीरे सब सहरा हो जाता है’ हो जाती है जब अपनी तहज़ीब अना तब अपना अख़लाक़ जुदा हो जाता है ख़िदमत […]

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T-13/19 मुझमें कोई दीवाना हो जाता है-अहमद सोज़

मुझमें कोई दीवाना हो जाता है अपना हो तो घर सहरा हो जाता है रिश्तों की परिभाषा केवल है इतनी कभी पराया कभी अपना हो जाता है सामने उसके आ जाती है जब धरती सूरज भी हर शब अंधा हो जाता है पत्थर फेंक के लोग तमाशा करते हैं सारे शह्र में हंगामा हो जाता […]

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T-13/18 वक़्त तिरे जब आने का हो जाता है-अंकित सफ़र

वक़्त तिरे जब आने का हो जाता है दीवाना और दीवाना हो जाता है आँखें ही फिर समझौता करवाती हैं नींद से जब मेरा झगड़ा हो जाता है खुश्क निगाहें, बंजर दिल, रेतीले ख्व़ाब देख मुहब्बत में क्या क्या हो जाता है एक ख़याल ख़यालों में पलते-पलते रफ़्ता-रफ़्ता अफ़साना हो जाता है चंद बगूले यादों […]

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T-13/17 क्या कहिये क्या क्या महंगा हो जाता है-मुमताज़ नाज़ां

क्या कहिये क्या क्या महंगा हो जाता है जब इन्सां का खूं सस्ता हो जाता है रंग उदासी का गहरा हो जाता है दिल पर यादों का साया हो जाता है आता तो है जनता का सेवक बन कर और इक दिन सब का आक़ा हो जाता है छोटी छोटी बातों की वुस’अत से भी […]

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T-13/16 जी भर रोकर जी हल्का हो जाता है-अनिल जलालपुरी

जी भर रोकर जी हल्का हो जाता है वरना तन-मन जलथल सा हो जाता है हर ज़र्रे को रोशन करके आख़िर में शाम ढले सूरज बूढ़ा हो जाता है बस तो जाते हैं घर सारे बेटों के बस आँगन टुकड़ा टुकड़ा हो जाता है जाहिल जब बैठेंगे आलिम के दर पे हश्र यक़ीनन ही बरपा […]

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T-13/14 रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’

रो-धो के सब कुछ अच्छा हो जाता है मन जैसे रुठा बच्चा हो जाता है कितना गहरा लगता है ग़म का सागर अश्क बहा लूं तो उथला हो जाता है लोगों को बस याद रहेगा ताजमहल छप्पर वाला घर क़िस्सा हो जाता है मिट जाती है मिट्टी की सोंधी ख़ुशबू कहने को तो, घर पक्का […]

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T-13/13 सारा आलम इक जैसा हो जाता है-शरीफ़ अंसारी

सारा आलम इक जैसा हो जाता है अंधियारा जब सरमाया हो जाता है चलते चलते मिल जाती है मंज़िल भी होते होते सब अच्छा हो जाता है तुमको अच्छा कहते-कहते, क्या कहिये कहने वाला ख़ुद अच्छा हो जाता है दिल में चाहे जितना ग़म का बोझ रहे तुम से मिल कर मन हल्का हो जाता […]

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T-13/11 तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है-आलोक मिश्रा

तन्हा रह कर हासिल क्या हो जाता है बस, ख़ुद से मिलना-जुलना हो जाता है नींद को बेदारी का बोसा मिलते ही हरा-भरा सपना पीला हो जाता है अक्स उभरता है इक पहले आँखों में फिर सारा मंज़र धुँधला हो जाता है नाचने लगती हैं जब किरनों की परियाँ चांदी-सा पानी सोना हो जाता है […]

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T-13/10 सच कहने से फ़र्ज़ अदा हो जाता है-नवीन सी चतुर्वेदी

सच कहने से फ़र्ज़ अदा हो जाता है लेकिन सब का दिल खट्टा हो जाता है हरे नहीं करने हैं फिर से दिल के ज़ख़्म हस्ती का उनवान ख़ला हो जाता है स्टेज ने मेरा नाम भी छीन लिया मुझसे क्या कीजे! किरदार बड़ा हो जाता है इसी जगह इन्सान पलटता है तक़दीर इसी जगह […]

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T-13/9 ताक़त का जिसको नश्शा हो जाता है-सौरभ शेखर

ताक़त का जिसको नश्शा हो जाता है उसका लहजा ज़हर-बुझा हो जाता है रुकता है इक रहरौ पास तमाशे के देखते-देखते इक मजमा हो जाता है और बहारों से क्या शिकवा है मुझको ख़ाली दिल का ज़ख्म हरा हो जाता है आँखों वाले लोग ही कौन से बेहतर हैं आँखों को भी तो धोखा हो […]

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T-13/8 गौतम राजरिशी-चाँद ज़रा जब मद्धम-सा हो जाता है

चाँद ज़रा जब मद्धम-सा हो जाता है अम्बर जाने क्यूँ तन्हा हो जाता है चोट लगी है जब-जब नींद की रूहों को जिस्म भी ख़्वाबों का नीला हो जाता है तेरी गली में यूँ ही आते-जाते बस ऐसा-वैसा भी कैसा हो जाता है उसके फ़ोन की घंटी पर कमरा कैसा लाल-गुलाबी सपनीला हो जाता है येल्लो […]

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T-13/7 होठों तक आकर छोटा हो जाता है-ख़ुरशीद’खैराड़ी’

होठों तक आकर छोटा हो जाता है सागर भी मुझको क़तरा हो जाता है इंसानों के कुनबे में, इंसां अपना इंसांपन खोकर नेता हो जाता है दिन क्या है, शब का आँचल ढुलका कर वो नूरानी रुख़ बेपरदा हो जाता है तेरी दुनिया में, तेरे कुछ बंदों को छूने से मज़हब मैला हो जाता है […]

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T-13/6 शाम का चेहरा जब धुँधला हो जाता है-अश्वनी शर्मा

शाम का चेहरा जब धुँधला हो जाता है मन भारी भीगा-भीगा हो जाता है यौवन, चेहरा, आँखें बहकें ही बहकें रंग हिना का जब गाढ़ा हो जाता है यकदम मर जाना,क्या मरना,यूँ भी तो ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’ सपने की इक पौध लगाओ जीवन में सुनते हैं ये पेड़ बड़ा हो जाता […]

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T-13/5 सहते सहते सच झूठा हो जाता है-राजमोहन चौहान

सहते सहते सच झूठा हो जाता है परबत कांधे का हलका हो जाता है डरते डरते कहना चाहा है जब भी कहते कहते क्या से क्या हो जाता है हल्की फुल्की बारिश में ढहते देखा पुल जब रिश्तों का कच्चा हो जाता है धीरे धीरे दुनिया रंग बदलती है कल का मज़हब अब फ़ितना हो […]

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T-13/4 तब आसां ख़ुद से मिलना हो जाता है-नवनीत शर्मा

तब आसां ख़ुद से मिलना हो जाता है जब तू मेरा आईना हो जाता है एक पुरानी बदली की याद आते ही जी! दिल का काग़ज़ गीला हो जाता है जब लिपटे है याद की मिट्टी पैरों से पक्‍का आंगन भी कच्‍चा हो जाता है तेरी यादों से रहता है क्यों ग़ाफ़िल क्यों ख़ाली दिल […]

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T-13/3 बढ़ने से ख़ुद….. दर्द दवा हो जाता है-सिद्धनाथ सिंह

बढ़ने से ख़ुद….. दर्द दवा हो जाता है क्या सच्ची मुच्ची ऐसा हो जाता है सुनवाई क़ानून करे अहले-ज़र की जब निर्धन बोले बहरा हो जाता है माँ देहरी पर बैठे बैठे सोचे है बेटा कैसे ग़ैरों सा हो जाता है जुगनू सा जलता जमीर अंधेरे में दिन आते बेनूर मरा हो जाता है खुद […]

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T-13/2 मेरी हालत का चर्चा हो जाता है-दिनेश नायडू

मेरी हालत का चर्चा हो जाता है बर्बादी का जी हल्का हो जाता है जब घिरता है तेरी यादों का कुहरा पूरा मंज़र बर्फ़ीला हो जाता है क्या पाऊंगा उससे शिकवा करने से शिकवा करने से भी क्या हो जाता है इतना है मेरी तन्हाई की फैलाव पूरा सहरा इक ज़र्रा हो जाता है बढ़ता जाता है […]

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T-13/1 माज़ी काले दलदल सा हो जाता है-स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’

माज़ी काले दलदल सा हो जाता है वक़्त ठहर कर क्या गाढ़ा हो जाता है नींद का झोंका लू जैसा हो जाता है हिज्र की रातों में ये क्या हो जाता है सहता रहता है क्या चोट उजाले की दिन में फ़लक कितना नीला हो जाता है काटती है मधुमक्खी तेरे बोसे की मेरा लहजा […]

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