T-17
T-17/39 थी किस बला की धूप कहीं अब्रे-तर न था-मनोज मित्तल ‘कैफ़’
साहिबो 31 को आख़िरी पोस्टिंग होना थी. आज इरशाद साहब के फोन के बाद आसिफ़ अमान साहब का ईमेल आया तो मुझे अपनी दूसरी ग़लती का अहसास हुआ. मनोज मित्तल ‘कैफ़’ की तरही ग़ज़ल तो 10-12 दिन पहले मेरे पास आ गयी थी. इस ग़ज़ल पर कुछ अदबी गुफ्तगू भी हुई फिर मैं मसरूफ़ियत के […]
T-17/38 दरपेश उसके बाद कोई और सफ़र न था-अमीर इमाम
साहिबो 31 को आख़िरी पोस्टिंग होना थी. आज इरशाद साहब का फोन आया तो मुझे अपनी ग़लती का अहसास हुआ. अमीर इमाम साहब की तरही ग़ज़ल तो 10-12 दिन पहले मेरे पास आ गयी थी मगर मैं बला की मसरूफ़ियत के चलते भूल गया और इसे पोस्ट नहीं कर सका. इनकी मेहनत मेरी ग़लती के […]
T-17/37 आंगन जो बँट गया तो वो पहले सा घर न था-दिनेश कुमार स्वामी ‘शबाब’ मेरठी
आंगन जो बँट गया तो वो पहले सा घर न था कोई भी अब किसी के लिये मोतबर न था जो मोम को भी सख्त चटानों में ढाल दे पिछली सदी के लोगों में ऐसा हुनर न था इक ख़ौफ़ था जो ले गया शक्लों को छीन कर बस भीड़ ही थी भीड़ में कोई […]
T-17/36 हालात से कोई भी वहाँ बेख़बर न था-अरविन्द असर
हालात से कोई भी वहाँ बेख़बर न था लेकिन किसी के दिल पे ज़रा भी असर न था पहले भी एक बार मिरे पास घर न था. इस बार की तरह मैं मगर दर-ब-दर न था चेहरा, निगाह, होंठ ही पढ़ता था वो मिरे उसको भरोसा लफ़ज़ के किरदार पर न था टी.वी. की उस […]
T-17/35 रिश्ता था पुरअसर ये कोई ज़िक्र भर न था-आशीष नैथानी ‘सलिल’
रिश्ता था पुरअसर ये कोई ज़िक्र भर न था उसकी निगाह में था तो मैं दर-ब-दर ब था लफ़्ज़ों की कोशिशें हुई नाकाम बार-बार आँखों से कह दूँ हाले-दिल इतना हुनर न था आये ज़रूर ख़ाब में पलभर के वास्ते नश्शे में चूर था मैं मगर रातभर न था होठों पे कंपकंपाते हुए होंठ क्या […]
T17/34 अंधी सी इक डगर थी, कोई राहबर न था-देवेंद्र गौतम
अंधी सी इक डगर थी, कोई राहबर न था हम उसको ढूंढते थे उघर, वो जिधर न था इतना कड़ा सफ़र था कि रूदाद क्या कहें हर सम्त सिर्फ़ धूप थी, कोई शज़र न था अहबाब की कमी न थी राहे-हयात में लेकिन तुम्हारे बाद कोई मोतबर न था सुनने को सारे शहर की सुनते […]
T-17/33 मिलता जहाँ न फ़ैज़ कोई ऐसा दर न था-‘शाज़’ जहानी
मिलता जहाँ न फ़ैज़ कोई ऐसा दर न था ‘उसकी गली से फिर भी हमारा गुज़र न था’ तुझ सा सख़ी न था कोई, मुझको भी फख्र है दुनिया में ख़ाकसार सा दरयूज़ागर न था हैरत की बात है कि दुआ भी न आयी काम माना किसी सबब से दवा में असर न था तसकीन […]
T-17/32 बस्ती में कोई बेदरो-दहलीज़ घर न था-असरार-उल-हक़ ‘असरार’
बस्ती में कोई बेदरो-दहलीज़ घर न था मेरी ही दस्तकों में हुनर मोतबर न था पैराहने-हयात की पैमाइशें ही क्या गर पांव ढक लिये हैं तो चादर में सर न था दावे तो बेहिसाब अनल-हक़ के थे मगर मंसूर अहदे-नौ का कोई दार पर न था हम थे कि देख लेते थे हर संग में […]
T-17/31 हम लाख चाहते भी तो इससे मफ़र न था-अभय कुमार ‘अभय’
हम लाख चाहते भी तो इससे मफ़र न था बेकैफ़ धड़कनों का सफ़र बेसफ़र न था छूने को आसमान ही सर पर न था कहीं वरना बिसात भर तो मैं बेबालो-पर न था हम वा तो कर रहे थे दरे-दिल को बार-बार उन दस्तकों पे नाम तुम्हारा मगर न था बेशक ख़ता हुई कि तुम्हें […]
T-17/30 लुटने का ख़ौफ़ जान से जाने का डर न था-‘शफ़ीक़’ रायपुरी
लुटने का ख़ौफ़ जान से जाने का डर न था बस बात इतनी साथ मिरे रहबर न था माहौल पुरसुकूं था कहीं शोरो-शर न था बच्चे न थे तो घर सा मिरा अपना घर न था आहों में जितना चाहिये उतना असर न था इस वास्ते तो राहते-जां मेरे घर न था ईसार, प्यार, मेहर, […]
T-17/29 सहरा था, तेज़ धूप थी, कोई शजर न था-सुख़नवर हुसैन
सहरा था, तेज़ धूप थी, कोई शजर न था कैसा था वो सफ़र कि कोई हमसफ़र न था मंज़िल पे आके हो गया अहसास ये मुझे माँ के सिवा किसी कि दुआ में असर न था आँखों से मेरी निकला था जो उनकी याद में कैसे कहूं वो अश्क का क़तरा गुहर न था वो […]
T-17/28 मुफ़लिस न था अमीर न था ताजवर न था-मुनव्वर अली ‘ताज’
मुफ़लिस न था अमीर न था ताजवर न था उल्फ़त की बारगाह में ज़ेरो-ज़बर न था रिश्ता किया हवस ने वो जिसमें ये डर न था. फेरे न थे निकाह न था कुछ महर न था कारण पता लगा ये मुहब्बत की मौत का दिल का सुलूक़ उस के लिये मोतबर न था अपनी गज़ल […]
T-17/27 या ज़िन्दगी को जीने का मुझमें हुनर न था-अहमद ‘सोज़’
या ज़िन्दगी को जीने का मुझमें हुनर न था या मेरा ही ख़मीर मुझे मोतबर न था तर्के-तअल्लुक़ात ने खोला है भेद ये इक दूजे के बग़ैर हमारा गुज़र न था अब बैठ कर जो सोचूँ तो लगता है यूँ मुझे जिसको सकून कहते है वो उम्र-भर न था कुछ अजनबी तो साथ खड़े हो […]
T-17/26 क्यूँ अपना लग रहा था वो अपना अगर न था-प्रेम ‘पहाड़पुरी’
क्यूँ अपना लग रहा था वो अपना अगर न था था मुख़्तसर सवाल मगर मुख़्तसर न था दुनिया की रस्मो-राह से मैं बाख़बर न था इस वास्ते यहाँ के ग़मों से मफ़र न था अहबाब मेरे लाये हैं मेरे रक़ीब को क्या शहर भर में और कोई चारागर न था हर चंद ख़ामियों पे मिरी […]
T-17/25 दावा करूँ कि संग था इक, वो गुहर न था-सौरभ शेखर
दावा करूँ कि संग था इक, वो गुहर न था इतना यक़ीन मुझको मिरी आँखों पर न था हैवानियत से जिसकी यूँ हैरतज़दा थे लोग इंसान था मियां वो कोई जानवर न था बू ख़ून की न आती थी किस हाथ से कहो दामन लहू से बोलो ज़रा किसका तर न था था हमक़दों का […]
T-17/24 अपनी पहुँच से उसका बहुत दूर घर न था-गोविन्द गुलशन
अपनी पहुँच से उसका बहुत दूर घर न था ‘उसकी गली से फिर भी हमारा गुज़र न था’ कल मौत मुझको बाल बिखेरे हुए मिली जीने का ज़ोम था मुझे मरने का डर न था ये ताल-मेल है मिरा इक माहताब से कल वो उधर नहीं था तो मैं भी उधर न था ठहरा हुआ […]
T-17/23 दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था-आलोक मिश्रा
दिल पर किसी की बात का ऐसा असर न था पहले मैं इस तरह से कभी दरबदर न था चारों तरफ़ थे धूप के जंगल हरे –भरे सहरा में कोई मेरे अलावा शजर न था तारे भी शब की झील में ग़रकाब हो गये मेरी उदासियों का कोई हमसफ़र न था कितने हसीन ख़ाब थे […]
T-17/22 माना बराये-नज्र कोई मालो-ज़र न था-शरीफ़ अंसारी
माना बराये-नज्र कोई मालो-ज़र न था क्या तेरी चश्मे-तर में भी कोई गुहर न था तेरा ख़याल तेरा तसव्वुर तिरा करम तेरे सिवा जहाँ में सभी कुछ तो वरना था दिल मुब्तिला-ए-ग़म तो रहा हर मक़ाम पर लेकिन तुम्हारी याद से मैं बेख़बर न था साथी न कोई साया न हमदम न हमख़याल राहे-तलब में […]
T-17/21 पहले कभी ये हादिसा पेशे-नज़र न था-द्विजेन्द्र द्विज
पहले कभी ये हादिसा पेशे-नज़र न था वक़्ते-सहर था दोस्तो ! नूरे-सहर न था उन पे कभी कहीं भी मुझे कोई डर न था जिन रास्तों पे कोई मिरा हमसफ़र न था ले दे बस हमारा जुनूँ था हमारे साथ इसके सिवा कुछ और तो रख़्ते-सफ़र न था हम जुस्तजू में उसकी तमाशा तो बन […]
T-17/20 ऐसा नहीं कि अपना कोई राहबर न था-फ़ज़ले-अब्बास ‘सैफ़ी’
ऐसा नहीं कि अपना कोई राहबर न था था तो ज़ुरूर हाँ वो मगर मोतबर न था ऐसा नहीं कि हाथ में मेरे हुनर न था लेकिन किसी हुनर में भी मैं मास्टर न था निकले हैं डूब कर कई दरिया-ए-इश्क़ से मजनूं के जैसा कोई मगर तर-ब-तर न था सब ज़ख्म देने वाले ही […]
T-17/19 ये ठीक है कि यूं तो कभी दर-ब-दर न था-नवनीत शर्मा
ये ठीक है कि यूं तो कभी दर-ब-दर न था बस रह रहा था जिसमें वही मेरा घर न था बाद उसके मंज़िलों की तड़प ख़त्म हो गयी मंज़िल था एक शख़्स कोई राह भर न था नाराज़ अपने आप से जिस रोज़ मैं हुआ बाद उसके कोई भी तो मेरा हमसफ़र न था रातें […]
T-17/18 उसकी किसी भी बात में कुछ भी असर न था-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’
उसकी किसी भी बात में कुछ भी असर न था था तो अमीरे-शहर मगर मोतबर न था जो बात साफ़-साफ़ थी मुंह से निकल गयी वैसे भी तुहमतों का मुझे कोई डर न था शामिल था मेरे ख़ून में रिश्तों का एहतराम शिकवा किसी से मुझको किसी तौर पर न था फिर भी सुकूं की […]
T-17/17 गरचे मिरे ख़ुलूस से वो बेखबर न था-रोहित सोनी ‘ताबिश’
गरचे मिरे ख़ुलूस से वो बेखबर न था फिर भी मेरी वफ़ाओं का उस पर असर न था मैं इस फरेबे-हुस्न से खुद बाख़बर न था वो था तो मेरे साथ बज़ाहिर, मगर न था अपना उसे बना न सका मैं तमाम उम्र मुझमें बहुत हुनर थे मगर ये हुनर न था लब थे ख़मोश […]
T-17/16 साथी न था कोई भी कहीं भी शजर न था-‘खुरशीद’ खैराड़ी
साथी न था कोई भी कहीं भी शजर न था तनहा था मैं सफ़र भी मिरा मुख़्तसर न था मुझको सँवारती थी बसीरत हर इक जगह बेघर तो था मगर मैं कभी बेबसर न था बातें नसीमे-सुब्ह तबस्सुम शमीमे-गुल तेरे सिवा चमन में कोई दीदावर न था अब बैठती नहीं है गुलों पर भी तितलियाँ […]
T-17/14 इस मरहले से कोई बशर बेख़बर न था-मुनव्वर अली ‘ताज’
इस मरहले से कोई बशर बेख़बर न था इस जि़दंगी के बाद हमारा सफ़र न था अपने सभी थे और पराया नगर न था लेकिन किसी के पास सुकूं का शजर न था अफ़सोस घर का बार उठाने के बाद भी अपनों के दरमियान मैं बेहतर बशर न था उल्फ़त के तार टूट के क्यों […]
T-17/13 ऐसा नहीं कि शह्र में कोई शजर न था-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
ऐसा नहीं कि शह्र में कोई शजर न था हाँ दूर-दूर कोई परिंदा मगर न था सहरा भी, आसमान भी, वहशत भी, रात भी सब कुछ था मेरे हिस्से में बस एक घर न था मुंसिफ थी रूह ज़ीस्त खड़ी कटघरे में थी कैसे कहूं कि मुझको किसी तौर डर न था पागल थी वो […]
T-17/12 क्या ख़ूब लोग थे कि जिन्हें कुछ ख़तर न था-‘नूर’ जगदलपुरी
क्या ख़ूब लोग थे कि जिन्हें कुछ ख़तर न था दिल में ख़ुदा का ख़ौफ़ था दुनिया का डर न था उसकी अता तो आम थी सबके लिये मगर करते भी क्या कि अपनी दुआ में असर न था जंगल, पहाड़, नद्दियाँ, दुश्वार घाटियां आसान इस क़दर भी हमारा न था या तो मुक़ामे-शुक्र है […]
T-17/11 ऐसा नहीं कि मुझ में कोई भी हुनर न था-डॉ मुहम्मद ‘आज़म’
ऐसा नहीं कि मुझ में कोई भी हुनर न था महफ़िल में ही कोई मगर अहले-नज़र न था दिन की मिरी ख़ता से कोई बाख़बर न था लेकिन दिली सुकून मुझे रात भर न था ईसार का जो जज़बा इधर था उधर न था कहने को दोस्त था वो हमारा, मगर न था मैं अपनी […]
T-17/10 माना रहे-वफ़ा में कोई मोतबर न था-मुमताज़ नाज़ाँ
माना रहे-वफ़ा में कोई मोतबर न था फिर भी मुहब्बतों का शजर बेसमर न था दीवानगी से रब्त ख़िरद को अगर न था शहरे-मसालिहत से जूनून का गुज़र न था ख़ौफ़ो-ज़रर के खेल से उकता गये थे सब अब के था बस इताब, किसी दिल में डर न था हर सिम्त दूर-दूर तलक थीं सियाहियां […]
T-17/9 जादू में अपने ऐसा नहीं, कुछ असर न था-आसिफ अमान
जादू में अपने ऐसा नहीं, कुछ असर न था जिस पर असर की चाह थी उस पर मगर न था जाना था आसमां के परे भी निगाह को दुनिया तेरा जमाल ही हद्दे-नज़र न था वो इस खबर में था कि मुझे कुछ खबर न थी उसको खबर नहीं थी कि मैं बेखबर न था […]
T-17/8 मुझको कोई चराग जलाने का डर न था-राज मोहन चौहान
मुझको कोई चराग जलाने का डर न था बीती रिवायतों का बना मेरा घर न था वैसे वो अजनबी ही तो था मोतबर न था पर और कोई शाम ढले राह पर न था खुल के मिले हैं तर्के-तअल्लुक के बाद हम तर्के-तअल्लुक़ात का कोई भी डर न था उस के लिये महल भी थे […]
T-17/7 जब शह्र में कोई भी मिरा अपना घर न था-दिनेश नायडू
जब शह्र में कोई भी मिरा अपना घर न था हाँ था मगर मैं इतना कभी दर-ब-दर न था लड़ता रहा मैं आख़िरी दम तक अंधेरे से लेकिन निगाह में कभी खाबे-सहर न था यूँ तो हजारों लोग मिले मुझको राह में उस हमसफ़र सा और कोई हमसफ़र न था उसके बस एक लम्स से […]
T-17/6 दुश्वार रास्तों में भटकने का डर न था-डॉ नईम ‘साहिल’
दुश्वार रास्तों में भटकने का डर न था तनहा था दिल हमारा कोई हमसफ़र न था सबको ख़बर थी अपने-पराये की उम्र भर तेरे सिवा जहाँ में कोई बेख़बर न था अपनी बिसात से कहीं आगे उड़ान थी वो मिरे-कारवां था मगर मोतबर न था बिखरी पड़ी हैं आज भी उसकी निशानियां हश्र उसका सामने […]
T-17/5 पुरसाने-हाल कोई यहाँ चारागर न था-‘वाक़िफ़’ अंसारी
पुरसाने-हाल कोई यहाँ चारागर न था कोई भी काम ख़ैर का ईसार पर न था अपनी ख़बर नहीं थी जिसे वो था बाख़बर होशो-ख़िरद का राहे-जूनून में गुज़र न था मंज़िल की जुस्तजू थी कुछ इस तरह पेशरौ बेगानावार कोई भी अपना सफ़र न था ज़ुल्फे-सितम-शियार बहुत थी मगर हमें नैरंग-हाय-शौक़ का ग़म उम्र भर […]
T-17/4 हर शय का डर था दिल में ख़ुदा का ही डर न था-नूरुद्दीन ‘नूर’
हर शय का डर था दिल में ख़ुदा का ही डर न था शायद इसी लिये ही दुआ में असर न था . जिस शह्र के ख़मीर में शामिल था अपना ख़ून उस शह्र में हमारे लिये कोई घर न था दीवाना कर दिया था हमें शौक़े-दीद ने “उसकी गली से फिर भी हमारा गुज़र […]
T-17/3 दीवारो-दर की क़ैद में जब कोई घर न था-अहमद ‘सोज़’
दीवारो-दर की क़ैद में जब कोई घर न था तब आदमी को आदमी से कोई डर न था हम दोनों में अजीब ताल्लुक था उम-भर वो मेरे साथ रहता था पर हमसफ़र न था वो मनगढ़त कहानी सनुाता था रात-दिन बातों में उसकी जोश था लेकिन असर न था अब उठ रही है दिल से […]
T-17/2 जो साथ चल रहा था वही मोतबर न था — मयंक अवस्थी
जो साथ चल रहा था वही मोतबर न था साया भी तीरगी में मेरा हमसफर न था हर तीर खा लिया था कलेजे पे इसलिए मैं उस जगह घिरा था जहाँ पर मफ़र न था हमराह तीरगी थी हवायें भी थीं बज़िद अपने ही दिल में जोशो-जुनूँ का शरर न था आँखों से लोग जिस्म […]
T-17/1यादें थीं, ग़म थे, ज़ब्त था, कैसा समर न था-स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’
यादें थीं, ग़म थे, ज़ब्त था, कैसा समर न था सोचो तो क़द में दिल का शजर हाथ भर न था दरिया ने कश्तियाँ कई, ख़ाबों में गर्क कीं जागा तो उसके जिस्म पे इक भी भंवर न था शीशे से कोई धूप ज्यों चमकाये आँखों पर बचता कहाँ मैं उससे वो सपना किधर न […]
T-17 मिसरा तरह-उसकी गली से फिर भी हमारा गुज़र न था
साहिबो, तरही महफ़िल का मिसरा निकलने की ज़िम्मेदारी मेरी है. मगर मैं इन दिनों कुछ निजी समस्याओं से इस बुरी तरह घिरा रहा हूँ कि साइट पर भी नहीं आ सका और इसी लिये आपसे मैंने तरही महफ़िल को दो महीने के गैप से करने की इजाज़त ली. इस बीच में लफ्ज़ के एडमिन के […]