मसअला दरकिनार करना था
टूटकर उससे प्यार करना था
एक लड़की के ख़्वाब सुनते हुए
फ़ैसले पर विचार करना था
सब अक़ीदों की फ़ौज यकजा थी
इक अक़ीदे पे वार करना था
ज़ख़्म की धज्जियाँ उड़ाने पर
लफ़्ज़ को तार-तार करना था
रूह इक दिन रखी गई गिरवी
जिस्म का कारोबार करना था
इश्क़ की चिन्दियाँ सँभाले हुए
उम्रभर इंतेज़ार करना था
धूप की उंगलियाँ पकड़ना पड़ीं
“हमको ये दश्त पार करना था”
ख़ुद ब ख़ुद हो न पाया, बस ख़ुद में
इक ज़रा सा सुधार करना था
काम तो काम है सो हमको भी
रंजो-ग़म अख़्तियार करना था
बन रही थी फ़ज़ा उजालों की
रात को होशियार करना था
उस घड़ी थे कहाँ सिकन्दर जी
युद्ध जब आरपार करना था
इरशाद खा़ं ‘सिकंदर’
09818354784
एक लड़की के ख़्वाब सुनते हुए
फ़ैसले पर विचार करना था
ज़ख़्म की धज्जियाँ उड़ाने पर
लफ़्ज़ को तार-तार करना था
रूह इक दिन रखी गई गिरवी
जिस्म का कारोबार करना था
वाह खूबसूरत …………. ग़ज़ल अच्छी लगी वाह…………………
बहुत अच्छी ग़ज़ल, आपका रंग रिवायती होने के साथ साथ हिंदी का मुहावरा भी संजोता जा रहा है। ये आपका अनोखापन है। खांटी ज़मीन की महक। उम्दा ग़ज़ल के लिए भरपूर दाद
इश्क़ की चिन्दियाँ सँभाले हुए
उम्रभर इंतेज़ार करना था
धूप की उंगलियाँ पकड़ना पड़ीं
“हमको ये दश्त पार करना था”
IRSHAD BHAI , BEHTAREEN GHAZAL KE LIYE DHERON DAAD KABOOL KAREN .HAR SHER KAMAAL HAI…ZINDABAD