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T-33/28 प्यार को यादगार करना था. अज़्हर इनायती

प्यार को यादगार करना था,
इश्क़ दीवानावार करना था

लोग जल्दी में थे बदलने की,
वक़्त का इंतज़ार करना था

सबको हैरत थी पर मुकद्दर को,
उसको ही शह्रयार करना था

हल अकेला था मैं मसाइल का,
मश्वरा किससे यार करना था

थोड़ा पानी था अपनी छागल में,
और हमें दश्त पार करना था

सबसे ऊंची उड़ान थी जिसकी,
वो परिंदा शिकार करना था

घर के बाहर भी लोग अपने थे,
‘अज़्हर’ उनसे भी प्यार करना था

अज़्हर इनायती

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3 comments on “T-33/28 प्यार को यादगार करना था. अज़्हर इनायती

  1. वाह ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई …….
    हल अकेला था मैं मसाइल का,
    मश्वरा किससे यार करना था
    ,,,,,,,,,,,,,,

  2. हल अकेला था मैं मसाइल का,
    मश्वरा किससे यार करना था
    Zindabaad huzoor… dheron daad is ghazal ke liye

  3. हल अकेला था मैं मसाइल का,
    मश्वरा किससे यार करना था
    Behatreen ghazal ka behatreen sher…..
    Regards Azhar sahab

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