T-24

ग़ज़ल:- तड़प उठा, झुका, गिरा, ख़मोश लब सहार की-तुफ़ैल चतुर्वेदी

तड़प उठा, झुका, गिरा, ख़मोश लब सहार की ये बात है हमारे दिल की बांके, तरहदार की जो दिल में ज़ख़्म था तो दिल में ज़ख़्म था दिखाते क्या अनापरस्त थे बहुत हँसी ही इश्तहार की कहाँ तलक तिरा ख़याल भी रफ़ू करे, सो ख़ुद कटी-फटी रिदा-ए-ज़िन्दगी थी तार-तार की सरल नहीं था आंसुओं की […]

Rate this:

T-24/38 न ज़ुल्मतों के शहर की न यूरिशे-ग़ुबार की-नूरुद्दीन ‘नूर’

न ज़ुल्मतों के शहर की न यूरिशे-ग़ुबार की ‘ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की’ हमारे दीनो-धर्म आज आंधियों की ज़द में हैं कि नस्ले-नौ ने दहरियत की राह अख़्तियार की बहुत से लोग जिसको काम कह के मुजतनिब रहे हयात की नदी उसी घड़े से हमने पार की ये ज़िदगी तो दश्ते-नामुराद […]

Rate this:

T-24/37 तज़्मीन-बकुल देव

साहिबो इस तज़ामीनी ग़ज़ल को कल ही पोस्ट होना था मगर पोस्ट करते-करते रात के डेढ़ बज गए और नींद से बोझल हो कर आँखें झुंझलाने लगीं तो मैंने बकुल की इस ग़ज़ल, नूरुद्दीन साहब की ग़ज़ल और अपनी ग़ज़ल को रोक लिया। बकुल, नूरुद्दीन साहब की ग़ज़ल के लिए माफ़ी और अपनी ग़ज़ल का क्या […]

Rate this:

T-24/36 कहीं तो हद भी आ चुके तुम्हारे इंतज़ार की-पवन कुमार

कहीं तो हद भी आ चुके तुम्हारे इंतज़ार की जियूँगा और कब तलक मैं ज़िन्दगी उधार की मिलेगी फ़त्ह या शिकस्त वक़्त ही बताएगा मैं लड़ रहा हूँ ज़िदगी से जंग आर-पार की भटक रहे थे मुद्दतों से हम भी अपनी जां लिए उसे भी एक उम्र से तलाश थी शिकार की जुनूँ हुआ, तपिश […]

Rate this:

T-24/35 क़फ़स में रात सुन रहे थे सिम्फ़नी बहार की-शबाब मेरठी

क़फ़स में रात सुन रहे थे सिम्फ़नी बहार की जुनूं बढ़ा तो तोड़ दीं सभी हदें हिसार की अटारियों पे आके आफ़ताब खांसने लगा मगर कटी नहीं है शब हमारे इंतज़ार की मैं ख़ाक हो चुका हूँ अब मुझे जलाना छोड़ दो नहीं रही है बात अब तुम्हारे अख़्तियार की चढ़ा हुआ है रात का […]

Rate this:

T-24/34 बचानी हो हुज़ूर को जो आबरू दयार की -नवीन सी. चतुर्वेदी

बचानी हो हुज़ूर को जो आबरू दयार की तो मुलतवी नहीं करें अरज किरायेदार की न तो किसी उरूज की न ही किसी निखार की ये दासतान है सनम उतार के उतार की बहुत हुआ तो ये हुआ कि हक़ पे फ़ैसला हुआ कहाँ समझ सका कोई शिकायतें शिकार की चमन की जान ख़ुश्बुएँ हवा […]

Rate this:

T-24/33 किसी के ग़म की मार ने बड़ी हसीन मार की-नवनीत शर्मा

किसी के ग़म की मार ने बड़ी हसीन मार की कि चोट खा के गा रही है रूह मुझ सितार की ले देख बन गई न आज ! खाई इक दरार की उजड़ गई वो वादियां जो दिल में थी चिनार की बिछड़ के भी मैं उससे खिलखिला रहा हूं आज भी कि रौनक़ें बनी […]

Rate this:

T-24/32 कहीं पे मज़हबों की और है कहीं वक़ार की -शाहिद हसन ‘शाहिद ‘

कहीं पे मज़हबों की और है कहीं वक़ार की अज़ल से जंग जारी है जहां में इक़्तिदार की ये पीरज़ादगाने-नस्ल का अब हाल हो गया कि खा रहे हैं बेच कर वो चादरें मज़ार की फ़ना की राह से गुज़र के ज़िन्दगी मिली हमें थी कल ख़िज़ाँ हयात में है अब कली बहार की मैं […]

Rate this:

T-24/31 अदा नहीं हमारी…छुप के दोस्तों पे वार की-‘आतिश’ इंदौरी

अदा नहीं हमारी…छुप के दोस्तों पे वार की हैं दुश्मनों से भी यहाँ परंपरा जुहार की सनी हैं आदमी के खूँ से पत्तियां चिनार की हैं आतताइयों के डर में वादियाँ बहार की पता नहीं कि आदमी की जीत हो कि हार हो ख़ुदा से जंग है जहाँ पे उसके इख़्तियार की तपा केपीट कर […]

Rate this:

T-24/30 कहाँ रही है मिल्कियत हमारे इक़्तिदार की-नासिर अली नासिर

कहाँ रही है मिल्कियत हमारे इक़्तिदार की कमीनगी तो देखिये मियां किरायेदार की बड़ी ही आन-बान से बसीरतों के गुल खिले न पूछ सरबलन्दियां हयाते-मुश्क़बार की मिरी निगाहो-क़ल्ब में ग़ज़ब का अहतराम है उतारूं क्यों न आरती शफ़ीक़ो-ग़मगुसार की जहाँ की सख़्त गुफ़्तगू भुला दी कितने प्यार से शगुफ़्तगी तो देखिये मिज़ाजे-बुर्दबार की मिरे क़दम […]

Rate this:

T-24/29 ज़रूरतें नहीं हैं कुछ भी सोच की विचार की-कुमार अभय

ज़रूरतें नहीं हैं कुछ भी सोच की विचार की कि रास आ ही जायगी ये ज़िन्दगी उधार की विसाल के ख़ुमार की न हिज्र के निखार की “ये दास्तान है नज़र प रौशनी के वार की” तमाम उम्र मौत से दू ब दू रही मगर कोई भी काट ला सका न ज़िन्दगी के वार की […]

Rate this:

T-24/28 सफ़र की हमने इब्तिदा ही ऐसी शानदार की-आसिफ़ अमान

सफ़र की हमने इब्तिदा ही ऐसी शानदार की रुकावटें किनारे हो गईं थी रहगुज़ार की पहाड़ काटने थे जो वो जल्द इसलिए कटे ज़ियादा वक़्त छेनियों की हमने तेज़ धार की दिखाई वो दिया तो ज़ख्म दिल के हो गए हरे चलो कोई तो शक्ल हमने देख ली बहार की वो इश्क़ के नशे की […]

Rate this:

T-24/27 मुक़ाबले में फिर से हार हो गयी पगार की-नकुल गौतम

मुक़ाबले में फिर से हार हो गयी पगार की दिहाड़ियां ग़ुलाम हो के रह गयीं उधार की जवान उस ग़रीब की हुई हैं जब से बेटियां पड़ी है भारी ‘सौ लुहार की’ पे ‘इक सुनार की’ उस ऊंघती गली में दफ़अतन वो उनसे सामना “ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की” सज़ा में […]

Rate this:

T-24/26 महक रही हैं बाहें आज मेरे इंतज़ार की-बिमलेंदु कुमार

महक रही हैं बाहें आज मेरे इंतज़ार की बयार तेरे तन की है या रुत है नौ-बहार की तुम्हीं से बरक़रार है सुहाग चांदनी क यां वगरना क्या है वज्ह शामे-हिज्र के ख़ुमार की जली है रात यादों में सुलग सुलग के इस तरह कि सुब्ह हो गई है नर्म राख सी सिगार की गमों […]

Rate this:

T-24/25 कलीम, तूर, लंतरानी, रब्बे-किरदिगार की-शफ़ीक़ रायपुरी

कलीम, तूर, लंतरानी, रब्बे-किरदिगार की ‘ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की’ सुकून ही मिला न कुछ फ़ज़ा मिली क़रार की गुज़र गयी तड़प-तड़प के ज़िन्दगी उधार की हयातो-मौत एक दूसरे से जूझते रहे तमाम रात चल रही थी बाज़ी जीत-हार की चमन में सैर के लिए वो आ गए जो दफ़अतन उतर […]

Rate this:

T-24/24 जो सह सके न इक चुभन भी जां पे नोके-ख़ार की-असरारुल हक़ ‘असरार’

जो सह सके न इक चुभन भी जां पे नोके-ख़ार की सुना रहे हैं दास्ताँ हमें सलीबो-दार की अगर यही है ज़िन्दगी तो क्या करें ये ज़िन्दगी न सुब्ह ऐतबार की न शाम ऐतबार की हर इक दरे-मुराद से फिरे हैं नामुराद हम बक़ौले-मीर सर धरे ये तुहमत अख़्तियार की जो दिन को दिन कहा […]

Rate this:

T-24/23 उदासियों की झील में खिली कली बहार की-सीमा शर्मा

उदासियों की झील में खिली कली बहार की चमक रही थी इस तरह कि फुलझड़ी अनार की हवा थी मस्त मस्त और अपनी मस्तियों में गुम कहानियां सुना रही थी गुल को अपने प्यार की जिसे मैं तोड़ कर नदी में फेंक आई थी कभी अभी तलक झनक झनक है दिल में उस सितार की […]

Rate this:

T-24/22 सहन तो हो नहीं रही है ज़िन्दगी उधार की-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’

सहन तो हो नहीं रही है ज़िन्दगी उधार की गुहार ख़ुद लगा रहा हूँ एकमुश्त वार की क़दम क़दम पे तीरगी का इख़्तियार हो गया ‘ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की’ हरेक आइने में अक्स था अलग अलग मिरा न जाने ज़िंदगी ने कैसी शक्ल इख़्तियार की बदन से रूह जा गिरी […]

Rate this:

T-24/21 हरी-भरी हैं वादियां समंदरों के पार की-मनोज मित्तल ‘कैफ़’

हरी-भरी हैं वादियां समंदरों के पार की मगर वो ठंडकें हमारे नीम सायादार की यक़ीन की गुमान की दुआ की इंतिज़ार की हमारी दासतां रही है अनसुनी पुकार की रखी है आबरू तिरे किये हर एक वार की अमान की तलब न की न चाह ग़मगुसार की मुशावरत हुर्इं कई नसीहतें हुईं बहुत मगर रविश […]

Rate this:

T-24/20 मैं दास्ताँ सुना रहा था एक रेगज़ार की-दिनेश नायडू

मैं दास्ताँ सुना रहा था एक रेगज़ार की कहाँ से मुझमें आ गयीं सदायें आबशार की अँधेरे में बिखर गए सभी दिए निगाह के बड़ी तवील रात थी तुम्हारे इंतज़ार की न कोई आरज़ू, न कोई ख़ाब है, न जुस्तजू किसी ने दिल के शहर में कुछ ऐसी लूटमार की अभी तो सिर्फ दश्त की […]

Rate this:

T-24/19 मिसाल ऐसी मिल न पायेगी कहीं भी प्यार की-सुख़नवर हुसैन

मिसाल ऐसी मिल न पायेगी कहीं भी प्यार की चमन में जैसी निभ रही है फूल और ख़ार की किया है वादा आने का तो वादे को निभाइये गुज़र न जाये देखिये ये शब है इंतज़ार की उजड़ गए तो ग़म नहीं बसेंगे एक रोज़ फिर ख़ज़ां के बाद रुत ज़रूर आती है बहार की […]

Rate this:

T-24/18 क़ज़ा को मिल गयी है फिर घड़ी उसी क़रार की-पूजा भाटिया

क़ज़ा को मिल गयी है फिर घड़ी उसी क़रार की भरी बहार में गिरीं जो पत्तियां चिनार की चिलम में भर के ग़म नए जो खींचते रहे हैं क़श मज़े में ही गुज़र रही है ज़िन्दगी ख़ुमार की लरज़ रहे हैं होंठ भी, है आँख भी भरी हुई लड़ाई लड़ रहे हैं अश्क जैसे आर […]

Rate this:

T-24/17 इबारतें चमक रही हैं दिल में तेरे प्यार की-आयुष ‘चराग़’

इबारतें चमक रही हैं दिल में तेरे प्यार की दिए की लौ में जल रही है रात इंतज़ार की भटक रही है आसमाँ में आरज़ू की फ़ाख़्ता ज़मीं पे ज़िन्दगी पड़ी है आग में बुख़ार की मिरी वो मंज़िले न थीं जो मंज़िलें मुझे मिलीं मिरी नहीं थी राह वो जो मैने इख़्तियार की झुलस […]

Rate this:

T-24/15 ज़बान पर सभी की बात है फ़क़त सवार की-नीरज गोस्वामी

ज़बान पर सभी की बात है फ़क़त सवार की कभी तो बात भी हो पालकी लिए कहार की गुलों की तितलियों की वो भला करेगा बात क्या जिसे कि फ़िक्र रात दिन लगी हो रोज़गार की बिगड़ के जिसने पा लिया तमाम लुफ़्ते-ज़िन्दगी बशर सुनेगा ही नहीं वो बात फिर सुधार की वो खुश रहे […]

Rate this:

T-24/14 गुलों का ज़िक्र भी नहीं, न मदहे-हुस्ने-यार की-डॉ आज़म

गुलों का ज़िक्र भी नहीं, न मदहे-हुस्ने-यार की मेरी ग़ज़ल में बात है, रसन की और दार की बताऊँ दास्तान क्या ,तुम्हें विसाले-यार की कि इस से लुत्फ़ख़ेज़ तो, घड़ी थी इन्तिज़ार की गुथे हैं हाथ हाथ में ,नज़र में कोई और है नहीं नहीं नहीं नहीं, अदा नहीं ये प्यार की नवा-ए-दर्दो-ग़म सुनो, सदा-ए-ज़ेरो-बम […]

Rate this:

T-24/13 कुछ और देर के लिए है शोरिशें ग़ुबार की-बकुल देव

कुछ और देर के लिए हैं शोरिशें ग़ुबार की न दिन हैं फिर चढ़ाव के न रात हैं उतार की नयी रुतों के जिस्म पर ग़ुबार लफ़्ज़-लफ़्ज़ है यहीं पे हर्फ़-हर्फ़ थीं कहानियां बहार की जब आ सकी न इश्क की मुसाफ़िरत मक़ाम तक तो मुश्किलों ने मंज़िलों की शक्ल इख़्तियार की सजे-सजाये ख़्वाब थे […]

Rate this:

T-24/12 तलाश मैंने ज़िन्दगी में ,तेरी बेशुमार की-इमरान हुसैन ‘आज़ाद’

तलाश मैंने ज़िन्दगी में ,तेरी बेशुमार की जो तू नहीं मिला तो तुझ सी शक्ल अख़्तियार की तक़ाज़ा करने मौत आई तब मुझे पता लगा अभी तलक मैं ले रहा था सांस भी उधार की थी सर्द याद की हवा, मैं दश्त में था माज़ी के न पूछिये जनाब मैंने कैसे रात पार की तमाम […]

Rate this:

T-24/11 चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की तो अब लड़ो हवाओं से लड़ाई आरपार की कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की वो शाहज़ादा और उसपे शायरी का भी मरज़ कोई उमीद ही नहीं है उसमें अब सुधार की हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ […]

Rate this:

T-24/10 छुपी नहीं हैं शक्ल रात में भी रहगुज़ार की-स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’

छुपी नहीं हैं शक्ल रात में भी रहगुज़ार की है रौशनी फ़ज़ा में पुरउम्मीद इंतज़ार की अजीब ताल-मेल है हमारी चाल-ढाल में जमी हुई है मुझ पे ही नज़र मिरे शिकार की न जाने कैसा ग़म पिला दिया है तूने दिल इसे हमारी शब को लत सी लग गयी है तेरे बार की नए सुरों […]

Rate this:

T-24/9 बढा रही हैं रंगतें हुज़ूर के दयार की -नवीन

बढा रही हैं रंगतें हुज़ूर के दयार की। धिनक-धिनक-धिनक-धिनाक-धिन धुनें धमार की॥ निकुंज के सनेहियों को और चाहिये भी क्या। वही किशन की बाँसुरी वही धुनें धमार की॥ इसी लिये तो आप से सनेह छूटता नहीं। इक आप ही तो सुनते हैं शिकायतें शिकार की॥ लता-पताएँ छोड़िये महक तलक उदास है। बिछोह में झटक गयी […]

Rate this:

T-24/8 कोई कलीम हो गया किसी ने जां निसार की-नाज़िम ‘नक़वी’

कोई कलीम हो गया किसी ने जां निसार की ”ये दस्तान है नज़र पे रोशनी के वार की” ये लिजिये ख़ुदी बुलन्द हो चुकी है और हम बना रहे हैं ख़ुद ही हद भी अपने इख़्तियार की ये नज़्म है वो अज़्म है वो रज्म है वो बज़्म है बयानियां ही की हैं सबने अपने […]

Rate this:

T-24/7 न नौसबा की बात है, न ये किसी बयार की-देवेंद्र गौतम

न नौसबा की बात है, न ये किसी बयार की ये दास्तान है नजर पे रौशनी के वार की किसी को चैन ही नहीं ये क्या अजीब दौर है तमाम लोग लड़ रहे हैं जंग जीत-हार की न मंजिलों की जुस्तजू, न हमसफर की आरजू न काफिलों की चाहतें न गर्द की, गुबार की जहां […]

Rate this:

T-24/6 जो सोचो तो सज़ा है ये हमारे ही शिआर की -मुमताज़ नाज़ां

जो सोचो तो सज़ा है ये हमारे ही शिआर की समा गई हैं धुंध में तजल्लियाँ नहार की भटक रही हैं दर ब दर वो रौनक़ें बहार की चमन से बाग़बान तक है जुस्तजू में ख़ार की ये भीक की इमामतें, ये आरज़ी अनानियत चलेंगी कितनी देर तक ये शुहरतें उधार की ये कारी कर्बे-बेहिसी […]

Rate this:

T-24/5 थमायेंगीं वो बालकों को रोटियां उधार की-राजमोहन चौहान

थमायेंगीं वो बालकों को रोटियां उधार की चलेंगी जब हवेलियों से खुशबुएँ बघार की कड़ी कड़ी मिली नहीं तिरे-मिरे विचार की इसी लिये उठी यहाँ ये बात जीत-हार की समय नहीं ज़रा कहीं कोई हो बात प्यार की किसी की सोच में नहीं है काल के कुठार की लुटा दिये मिटा दिये ये जिस्मो-जाँ तिरे […]

Rate this:

T-24/4 परीक्षा दी यहाँ किसी ने जब भी अपने प्यार की-चंद्रभान भारद्वाज

परीक्षा दी यहाँ किसी ने जब भी अपने प्यार की पड़ी है मार झेलनी कटार या अँगार की खुली है आँख जब किया है सूर्य का मुक़ाबला ‘ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की’ झरे थे फूल कल तलक तो उनके शब्द शब्द से उन्हीं के होंठ आज बात कर रहे हैं ख़ार […]

Rate this:

T-24/3 गिरी हैं झील में जो चंद पत्तियाँ चिनार की-गौतम राजरिशी

गिरी हैं झील में जो चंद पत्तियाँ चिनार की सुना रही हैं पानियों को धुन कोई सितार की नहीं है स्वाद तेरे बिन धुएँ में इसके, आ भी जा कि ज़िन्दा हो वो ख़ुशबू फिर से बुझ चुके सिगार की उधर है बेरुख़ी की फ़ौज और तन्हा दिल इधर छिड़ी है जंग ‘सौ सुनार की’ […]

Rate this:

T-24/2 तनाबें जब उखड़ गईं तमाम एतबार की-“समर कबीर”

तनाबें जब उखड़ गईं तमाम एतबार की हमें न अब सुनाइये कहानियाँ बहार की फ़क़ीर की, न शाह की, न जौहरी-सुनार की यहाँ पे बात कर रहा हूँ मैं तो सिर्फ़ प्यार की ज़रा सी देर बाद ये चराग़ बुझ ही जाएगा हदें तमाम ख़त्म हो रही हैं इन्तिज़ार की चढ़े दिमाग़ पर तो फिर […]

Rate this:

T-24/1 रहे वो मुद्दतों तलक तलाश में बहार की-“शाज़” जहानी

रहे वो मुद्दतों तलक तलाश में बहार की जो ख़ूबसूरती समझ न पाए ख़ारज़ार की तुलूअ आफ़ताब शिर्क़ में हुआ तो है मगर अभी कहाँ हुई है ख़त्म रात इंतज़ार की रही न बात शर्म की कि क़र्ज़ माँगना पड़े बफ़ख़्र लोग जी रहे हैं ज़िंदगी उधार की बशर का वज़्न हो रहा ज़मीनो-मालो-ज़र से […]

Rate this:

T-24 मिसरा तरह :- ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की

साहिबो, मैं कल मनोज मित्तल ‘कैफ़’ साहब की गज़लें पोस्ट कर रहा था कि उनकी एक ज़मीन ने मेरा ध्यान ख़ास तौर पर अपनी और खींचा। हमने इस बह्र में अभ्यास भी नहीं किया है। तरही महफ़िल का मिसरा निकालने का समय भी आ गया है। इस बार उनके इस मिसरे को ही तरह तय […]

Rate this: