इश्क़ बेइख़्तियार करना था
ये जहाँ दरकिनार करना था
साथ होते न आप, तो मुश्किल
हमको ये दश्त पार करना था
मैकदा मिल गया तो था लाज़िम
शुक्रे परवरदिगार करना था
उनके कूचे में हो गये रुस्वा
आप को इफ़्तिख़ार करना था
आपके इस मज़ाक़ का मक़्सद
क्या मुझे बुर्दबार करना था ?
मुझ को तुम पर यक़ीन था, इसका
ख़ुद तुम्हें ऐतबार करना था
पा चुका है वो बुतकदों में ख़ुदा
“शाज़” को संगसार करना था
आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी
M 129 सेक्टर 25
नोएडा 201301
मोबाइल 9350027775
दूसरी ग़ज़ल भी कह ली ? ? ? वाह वाह ,सैकड़ों दाद। बला का मत्ला कहा
इश्क़ बेइख़्तियार करना था
ये जहाँ दरकिनार करना था
ये शेर भी बहुत उम्दा है। अच्छी ग़ज़ल के लिए दाद
आपके इस मज़ाक़ का मक़्सद
क्या मुझे बुर्दबार करना था ?
एक बार फिर, हौसला अफ़्ज़ाई के लिए तहे दिल से मम्नून हूँ.
शाज़.