दिलनवाज़ी से प्यार करना था
रूह को ख़ुशगवार करना था
छांव ठंडी जहां को मिल जाती
ज़ीस्त को सायादार करना था
मालिके दो जहां है बंदानवाज़़
उसके बंदों से प्याार करना था
जि़ंदगी एक बार मिलती है
ज़ात को बावक़ार करना था
बात की तह तलक पहुंच जाते
सौ तरह से विचार करना था
हमने बरतीं हयात की क़द्रें
क़ल्ब को शानदार करना था
ख़ूबियां बहतरीन अपनाईं
शख़्सियत को मिनार करना था
प्यार‘नासिर’ है रूह की ज़ीनत
बेग़रज़ सब से प्यार करना था
सैयद नासिर अली, रायपुर
09926502405
बात की तह तलक पहुंच जाते
सौ तरह से विचार करना था
वाह ग़ज़ल अच्छी लगी वाह बधाई ……………….
लाजवाब गजल भाई , ढेरों दाद कबूलें