T-8

T-8/33 हवा ने तिलमिला कर तिश्नगी से-‘असरार’ मेरठी

हवा ने तिलमिला कर तिश्नगी से खुरच ली रेत भी सूखी नदी से अजब दिल पर क़यामत की घड़ी है जुनूं की ख़ैर या रब आगही से हुईं बीनाइयाँ मफ़लूज नाहक मिला क्या इस उमड़ती रौशनी से चूका पाये न जब क़ीमत ख़िरद की बदल डाला ख़ुदी को बेख़ुदी से बहुत बरसे हैं पत्थर तो […]

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T-8/32 मिरी हर गुफ़्तगू है अब मुझी से-अभय कुमार ‘अभय’

मिरी हर गुफ़्तगू है अब मुझी से न कुछ कहना न कुछ सुनना किसी से चरागों से न धूप और चांदनी से ये दुनिया तो है रौशन आदमी से कभी मिलते भी हैं तो बेदिली से बहुत जी भर गया है ज़िन्दगी से लिये आँखों में हैं सौ इल्तिजायें मगर कहते नहीं हैं कुछ किसी […]

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T-8/31 बहलता कैसे दिल झूटी ख़ुशी से-अख़तर वामिक़

बहलता कैसे दिल झूटी ख़ुशी से ‘मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से’ तिरा होना न होना बेसबब है ये सीखा है अधूरी ज़िन्दगी से जहां मैं हूँ वहां कोई नहीं है तबीयत ही नहीं मिलती किसी से मैं अच्छा या बुरा इंसान ही हूँ ख़ता होती है इक इंसान ही से समंदर से मिली […]

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T-8/28 कहूँ क्या शोख़,कमसिन सी नदी से-अंकित सफ़र

कहूँ क्या शोख़,कमसिन सी नदी से तिरे अंदाज़ मिलते हैं किसी से नये रिश्ते की क्या कुछ शक्ल होगी अगर आगे बढ़ें हम दोस्ती से तुम्हें मिल जायेगा क्या ? ऐ निगाहो हमारे दिल की पल-पल मुख़बिरी से हमारे होंठ कुछ हैरान से हैं तुम्हारे होंठ की इस पेशगी से न होने में तिरे होने […]

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T-8/27 अदावत तो नहीं मेरी किसी से-डॉ.’आज़म’

अदावत तो नहीं मेरी किसी से महब्बत भी नहीं लेकिन सभी से गदायी तो शहनशाही किसी से ख़ुदा जो काम ले ले आदमी से चमक से जो बना दे मुझको अंधा ख़ुदा मुझको बचा उस रौशनी से कठिन हैं इश्क़ के सारे मराहिल ये तय होंगे फ़क़त दीवानगी से मिरे अन्दर बहुत शोरो-शग़ब है दबा […]

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T8/26 तअर्रुफ हो न पाया जिंदगी से… मयंक अवस्थी

तअर्रुफ हो न पाया जिंदगी से रही वो दूर ही मुझ अजनबी से मैं शहरे-संग में इक शीश:गर हूँ मुसल्सल लड़ रहा हूँ खुदकुशी से वो ख़ुद इक मौज थी बहरे-फना की तवक़्क़ो थी बहुत जिस जिंदगी से अँधेरे बारहा थर्रा रहे हैं घटाओं में बिफरती रोशनी से वगर्ना कौन इनको देख् पाता सितारे खुश […]

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T-8/25 उबर पाओगे क्या उसकी कमी से-‘शबाब’मेरठी

उबर पाओगे क्या उसकी कमी से सजा लेते हो क्यों चेह्रा हंसी से मिरे अन्दर कभी बारिश हुई थी पता चलता है लफ़्ज़ों की नमी से जुनूं की आग बढ़ती जा रही है परेशां ख़ुद हूँ मैं आवारगी से बहुत रोना भी तो अच्छा नहीं है ये लोहा कट गया आख़िर नमी से कोई मेरे […]

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T-8/24 अगर है राबता आवारगी से-पवन कुमार

अगर है राबता आवारगी से तो क्या डरना निशाने-गुमरही से कभी खलता था चेहरों का बदलना है अब शिकवा मुझे बेचेहरगी से रदीफ़ और क़फ़िये उलझन हैं मेरी ‘मैं आजिज़ आ गया हूं शायरी से’ उसे पहचानना है सख्त मुश्किल वो मिलता है निहायत सादगी से दुआ कीजे अब इनके टूटने की तअल्लुक़ हो गये […]

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T-8/23 हुई कल वापसी उसकी गली से-फ़ानी जोधपुरी

हुई कल वापसी उसकी गली से क़दम रोने लगे थे बेबसी से सहर से शाम तक मर-मर के जीना बहुत बेज़ार हूँ इस जिंदगी से सरापा कह नहीं पाती तुम्हारा ‘मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से’ वो मेरा सर झुकाना चाहता है जिसे दिल दे दिया मैंने ख़ुशी से ग़ज़ल को उस से रौशन […]

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T-8/22 यूँ हँसकर बात करना हर किसी से-मनोज अज़हर

यूँ हँसकर बात करना हर किसी से बहुत मायूस हो क्या ज़िन्दगी से मेरी आँखों में आँखें डाल देना कभी जो ऊब जाऊं ज़िन्दगी से न जाने कितनी नदियाँ पी चुका है समंदर..अब तो बाज़ आ तश्नगी से ये इक दिन मौत से सौदा करेगी ज़रा हुशियार रहना ज़िन्दगी से अँधेरी रात..और यादों का जंगल […]

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T-8/17 निभाए जा रहा हूँ हर किसी से – डा. आदिक भारती

निभाए जा रहा हूँ हर किसी से कोई शिकवा नहीं है ज़िन्दगी से दुबक कर मेरे पीछे छुप गया है बहुत डरता है साया रौशनी से सिला ईमानदारी का मिला है मुअत्तल हो गया हूँ नौकरी से वो कल फिर लौट आएगा उसी में जो पानी आज बिछड़ा है नदी से मज़ा जिसमें नहीं वो […]

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T-8/16 जो धुन निकली हवा की सिम्फ़नी से-गौतम राजरिशी

जो धुन निकली हवा की सिम्फ़नी से हुआ है चाँद पागल आज उसी से उबलती चाय की ख़ुशबू में भीगी महकती सुब्ह उट्ठी केतली से न जाने कितने सूरज जगमगाये हवा में तैरती इक ओढ़नी से निकल आये कई माज़ी के क़िस्से ख़तों की इक पुरानी पोटली से अभी भी खिलखिला उठता हूँ जब-तब न […]

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T-8/15 पड़ा है वास्ता ऐसे रबी से-अहमद सोज़

पड़ा है वास्ता ऐसे ग़बी से जिसे मतलब अलिफ़ से है न ई से मुझे ये किसलिये भेजा गया है यहाँ जीना भी मुश्किल है ख़ुशी से तरस आता है अपनी बेबसी पर मैं ख़ुद को तक रहा हूँ बेबसी से नये दर वा हुये हैं आगही के बड़ी उम्मीद है अपनी सदी से अभी […]

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T-8/14 ग़ज़ल लिक्खी है कितनी सादगी से-अज़ीज़ बेलगौमी

ग़ज़ल लिक्खी है कितनी सादगी से गुजरती ही नहीं पेचीदगी से सजी है फ़िक्र की शाइस्तगी से ये मह्वे-गुफ़्तगू है ज़िंदगी से शिकायत क्यूँ जहाँ की गुमरही से ज़रा हम बाज़ आयें कजरवी से न आयी रास उन को पर्दादारी उन्हें है काम बस पर्दादरी से सखी लोगों को साज़िश लग रही है परीशां हैं […]

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T-8/13 है मस्कन घर मिरा पिछली सदी से-‘शफ़ीक़’ रायपुरी

है मस्कन घर मिरा पिछली सदी से यहां रहते हैं सारे ग़म ख़ुशी से ग़रज़ कोई न अब मतलब किसी से ग़मों के साथ रहता हूं ख़ुशी से अभी तो दूर है मंज़िल वफ़ा की है दिल बैठा थका-हारा अभी से अगर अल्लाह मारे ना किसी को नहीं मरता कोई अपनी ख़ुशी से कहाँ से […]

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T-8/12 फ़ज़ा लबरेज़ है जिस नग़्मगी से-द्विजेन्द्र ‘द्विज’

फ़ज़ा लबरेज़ है जिस नग़्मगी से वो आयी है ग़ज़ल की बाँसुरी से बचाओ ज़ह्नो-दिल की बेकली से ‘मैं आजिज़ आ गया हूँ शाइरी से’ हमें चेहरों से कोई ख़ौफ़ कब था हमारी जंग थी बेचेहरगी से यहाँ भी मुन्तज़िर कोई नहीं है मिला ये क्या मुझे घर वापसी से निकालो तुम भी अपने दिल […]

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T-8/11 ये पीपल हो गया पागल ख़ुशी से-प्रकाश सिंह अर्श

ये पीपल हो गया पागल ख़ुशी से कि बगुले लौट आये नौकरी से सफ़र पर आज भी मैं इक सदी से गुज़रता जा रहा हूँ ख़ामुशी से मेरे क़िरदार में है रात होना मुहब्बत कैसे कर लूँ रौशनी से ख़ुदा क़ुर’आन की इन आयतो को हक़ीक़त कर दे अब तो कागज़ी से मेरे भीतर ही […]

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T-8/10 तअल्लुक तोड़कर उसकी गली से-सिराज फ़ैसल ख़ान

तअल्लुक तोड़कर उसकी गली से कभी मैँ जुड़ न पाया ज़िन्दगी से ख़ुदा का आदमी को डर कहाँ अब वो घबराता है केवल आदमी से मिरी ये तिश्नगी शायद बुझेगी किसी मेरी ही जैसी तिश्नगी से बहुत चुभता है ये मेरी अना को तुम्हारा बात करना हर किसी से नज़र पड़ जाये शायद चाँदनी की […]

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T-8/9 मैं कह दूं क्यूं न जा कर चाँद ही से-मधु भूषण शर्मा ‘मधुर’

मैं कह दूं क्यूं न जा कर चाँद ही से बहलता दिल नहीं अब चाँदनी से तस्सवुर हो नहीं सकता हक़ीक़त मैं आजिज़ आ गया हूं शायरी से करेंगे वो किसी से दोस्ती क्या जो डरते हैं किसी की दुश्मनी से यही मक़सद है क्या जम्हूरियत का लडा दो आदमी को आदमी से ज़मीं, पानी, […]

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T-8/8 कभी गुज़रे थे हम उसकी गली से-इरशाद खान ‘सिकंदर’

कभी गुज़रे थे हम उसकी गली से सो पीछा छुट चुका है तीरगी से तिरी फ़ुर्क़त में क्या-क्या गुल खिले हैं बदन जलने लगा है चाँदनी से तिरी नज़रों में क़ीमत क्या है मेरी किसी लम्हे ने पूछा है सदी से मिरे सब राज़ मुझसे पूछती है ‘मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से’ अभी […]

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T-8/7 ये ज़ालिम जुड़ गई है ज़िन्दगी से-अनवारे-इस्लाम

ये ज़ालिम जुड़ गई है ज़िन्दगी से मैं आज़िज़ आ गया हूँ शायरी से तुम अपनी प्यास को धोका न देना मिलेगा कुछ नहीं सूखी नदी से मिरे भाई मुझे बदनाम मत कर तुझे जो चाहिए ले-ले ख़ुशी से तुम्हारे शह्र की गलियाँ अँधेरी ये रोशन हैं मिरी आवारगी से नज़र-अंदाज़ कर जाते हो अक्सर […]

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T-8/6 बिना रोये गुज़रना उस गली से-नवनीत शर्मा

बिना रोये गुज़रना उस गली से लगा ऐसा गये हम ज़िन्दगी से जिया हूं उम्र भर मैं भी अकेला उसे भी क्या मिला नाराज़गी से हूं जिसका मुंतज़िर अगले जनम तक मिली तो क्या कहूंगा उस परी से लहू में रोज़ अपने ही नहाना ‘मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से’ झलक इक मौत की […]

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T-8/5 कहां उठता है बारे-ग़म किसी से-अब्दुल अहद ‘साज़’

कहां उठता है बारे-ग़म किसी से बस अपनी कैफ़ियत कहिये सभी से प है मानूसियत क़ायम इसी से ये चेहरे आशना से अजनबी से हैं मेरे लफ़्ज़ ही मुझसे कबीदा ‘मैं आजिज़ आ गया हूं शाइरी से’ तअक़्क़ुब में मिरे आवारगी है कि मैं रहबर हूँ अपनी गुमरही से हुबाब उभरें की गौहर बहरे-फ़न में […]

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T-8/4 मिरा मरना ही तय है तिश्नगी से-स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’

मिरा मरना ही तय है तिश्नगी से कि फिर सहरा निकल आया नदी से बिछड़ते वक़्त कुछ कह भी न पाया गले लगकर मैं अपनी ज़िन्दगी से जो नक्शों में नहीं थी वो भी मंज़िल उभर आयी है इस आवारगी से सड़क पर हादसे में मर गया है वो बचता फिर रहा था ख़ुदकुशी से […]

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T-8/3 गुज़र जाऊँ अगर तेरी गली से-याक़ूब आज़म

गुज़र जाऊँ अगर तेरी गली से मुझे बस देख लेना ख़ामुशी से वही आगे बढ़ा है बेहतरी से सबक़ जिसने लिया अपनी कमी से सितारे फूल शबनम चाँदनी से पता पूछा तुम्हारा हर किसी से सफ़र कैसा है मेरी बेबसी का किसी दिन पूछ लेना मुफ़लिसी से ख़ुदा का ख़ौफ़ क्या दिल में नहीं है […]

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T-8/2 मेरे अच्छे हैं रिश्ते हर किसी से-सौरभ शेखर

मेरे अच्छे हैं रिश्ते हर किसी से बस इक बनती नहीं है ज़िन्दगी से उदासी मेरी फ़ितरत बन गयी है मुझे तकलीफ़ होती है ख़ुशी से मैं सहरा से ही पूछूंगा किसी दिन निभाना है कहाँ तक तिश्नगी से पशेमानी मुझे किस बात की है मुख़ातिब क्यों हूँ मैं शर्मिंदगी से झुके बिन भी मैं […]

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T-8/1 मसायल हल न होंगे ख़ुदकुशी से इरशाद खान ‘सिकंदर’

मसायल हल न होंगे ख़ुदकुशी से उलझना ही पड़ेगा ज़िंदगी से मुझे उसकी गली पहुंचायेगी क्या कोई पूछे मिरी आवारगी से अगर तुम सामने आओ अचानक तो हम पागल न हो जाएँ खुशी से उसे पहचानना बेहद है मुश्किल वो सबसे मिल रहा है सादगी से तिरे रस्ते में सहरा ने बताया बुझाओ प्यास अपनी […]

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T-8 लफ़्ज़ की आठवीं तरही महफ़िल। मिसरा तरह ..’मैं आजिज़ आ गया हूँ शायरी से’

हज़रात कुछ दोस्तों को शायद तरही की लत सी पड़ गयी है। इन दिनों बहुत ज़ियादा मसरूफ़ रहा हूँ सो मेरे ज़ह्न में ही नहीं था कि तरह का मिसरा निकलना है। सौरभ शेखर साहब का फ़ोन आया कि तरह का क्या हुआ ? कुछ ख़ास सोच नहीं पा रहा हूँ। सो ऐसा करते हैं […]

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