वक़्त का एतिबार करना था
आपको इंतिज़ार करना था
सींचकर ज़र्द-सर्द रिश्तों को
इस ख़िज़ाँ को बहार करना था
फँस गया है वो मेरे चंगुल में
जिसको मेरा शिकार करना था
सारी दुनिया गुनाहगार हुई
इक मुझे संगसार करना था
शायरी तो फ़क़त बहाना है
साफ़ दिल का ग़ुबार करना था
ज़रफ़िशानी से डर गई उल्फ़त
दिल को अपने निसार करना था
क्यों सियाही से सन गए हो तुम
क्या मुझे दाग़दार करना था
चैन मिल जाए आह भरने से
दिल को यूँ बेक़रार करना था
नफ़रतों के लिए न वक़्त रहे
प्यार यूँ बेशुमार करना था
रूह को जो गुनाह लज़्ज़त दे
ज़िस्म को बार-बार करना था
आदमीयत की बात आने पर
धर्म को दरकिनार करना था
ख़ार था हिज़्र का हर इक लम्हा
‘हमको यह दश्त पार करना था’
आँसुओं को ग़ज़ल में ढाल लिया
दर्द को बावक़ार करना था
धूल ‘खुरशीद’ झाड़कर नभ की
भोर को आबदार करना था
‘खुरशीद’ खैराड़ी जोधपुर ।
09413408422
आदमीयत की बात आने पर
धर्म को दरकिनार करना था
Sachchsa aur khara sher… behtareen ghazal…dheron daad huzoor
सभी अशआर बाकमाल, बधाई हो
आदमीयत की बात आने पर
धर्म को दरकिनार करना था- अति सुंदर
खुशीद साब बेहतरीन ग़ज़ल
शायरी तो फ़क़त बहाना है
साफ दिल का गुबार करना था
इस शेर पर खास दाद कुबूल कीजिए
सैफ़ी रायपुर
Bahut umda gazal hai khurshid bhai dad kubool kijiye
रूह को जो गुनाह लज़्ज़त दे
ज़िस्म को बार-बार करना था..
वाह वा..आ. ख़ुर्शीद साहब.. बहुत उम्दा ग़ज़ल कही आपने ..बहुत बहुत बधाई
ख़ुर्शीद साहब, भरपूर ग़ज़ल कही। वाह वाह, इस तरह निखरते रहिये, मंज़िलें मारते रहिये। उम्दा ग़ज़ल के लिये सैकड़ों दाद क़ुबूल फ़रमाइये।