आप सोच रहे होंगे कि 15 तक तरही मुशायरा जारी रहना था. मगर 17 तक हलचल क्यों है. साहब गुनाहगार मेरा कम्प्यूटर है और सज़ावार मैं हूँ. मेरा इन्टरनेट 14 की दोपहर से 16 की दोपहर तक ख़राब था. जो ग़ज़ल 16 -17 में दिखाई दे रही हैं, वो मेरे मेल में 14 -15 को आ गयी थीं मगर मैं इन्हें देख न सका और 16 की रात तक टाइप कर-कर के पोस्ट करता रहा. अभी भी दो ग़ज़ल रह गयी हैं मगर मैं थक गया हूँ उन्हें शाम तक पोस्ट करूँगा. सभी ग़ज़लों पर अपनी राय दीजिये, इससे शायर की हौसला-अफजाई होती है
ख़तावार
तुफ़ैल चतुर्वेदी 09810387857
Wo shakhs mujhe dekhne me apne ghar sa lage hai (kiski gajal he
ख़ता maaf
चलिए खता मुआफ़ कर दी. ये लफ़्ज़ माफ़ नहीं बल्कि मुआफ़ है
teesaree Tarahee kaa intizaar hai, besabree se.
ज़ुरूर द्विजेन्द्र द्विज साहब. कामयाब शिरकत के लिये आपको बधाई. कृपया लफ़्ज़ के लिए गज़लें भेजते रहिये
Tufail जी, आप बहुत नेक काम कर रहे हैं. परेशानियां तो हर किसी को दरपेश आती रहती हैं. १-२ रोज़ पोस्टिंग्स का इधर उधर होना कोई बड़ी बात नहीं. हमारी दु’आ है की आप यूँ ही ख़िदमत-ए-शे’र-ओ-सुख़न करते रहें और हम जैसे लोग यूँ ही इस से फैज़याब होते रहें.
खुश रहिये विपुल. इस बार के तरही मुशायरे में आपका आना सुखद लगा. तरह में आया सभी कलाम लफ्ज़ के अगले अंक में छपेगा भी. इस तरह ये पक्की सियाही में महफ़ूज़ भी हो जायेगा. कृपया अगली तरही से पहले अपना दीगर कलाम भी मुझे tufailchaturvedi@yahoo.com पर भेजिए
sir, sabse pehle maafi chahta hun deri ke liye…main apni film ki shoot se lauta aur theatre shows me fir se busy ho gaya…ise excuse ki tarah na le pls…ab regular hi rahunga..fir se likhne ki koshish me juta hua hun..apko aakar hi sunaunga…
With regards
Pankaj
एक लम्बे अरसे के बाद आपसे बात हुई. क्या हाल है ? कहाँ रह रहे हैं ? कुछ समय निकाल कर नॉएडा आइये तो बात हो. खुश रहिये
दादा आप जो परिश्रम कर रहे हैं उस के बाद अपने आप को ख़तावार न कहिए। ग़ज़ल के शिल्पी का तकनीक से हाथ मिलाना अरूज़ की पगड़ी में अभी तो न जाने और कितने नगीने जड़ेगा। आप को दिन-व-दिन तकनीक के और क़रीबतर देख कर मन मन ख़ुश हो रहा है। आप हमारे साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए सराहनीय कार्य कर रहे हैं।
शहजादे कन्यादान करना इसी कारण आवश्यक माना गया है कि ये हम पर ऋण है. हमने भी लिया है तो देंगे नहीं तो चुकता कैसे होगा ? इस्लाह और दीगर हलचलें मेरे नज़दीक इसी तरह के फ़र्ज़ हैं. इसी तरह यही मेहनत हमारे साथ भी हुई थी. इरशाद का एक बहुत खुबसूरत शेर है
मैं चराग़ से जला चराग़ हूँ
रौशनी है पेशा ख़ानदान का