Leave a comment

T-32/8 हमने जब प्यार का कागज पे है किस्सा लिक्खा. बनवारी लाल मूंदड़ा 

हमने जब प्यार का कागज पे है किस्सा लिक्खा
अश्क धोते ही गये नाम तुम्हाकरा लिक्खा

हम को मालूम हकीक़त है शहंशाह तिरी
चाहे अख़बार ने कुछ भी तेरा किस्सा लिक्खा

तेरे शोलों को भी शबनम की तरह पी लूंगा
प्यासे होठों ना तेरे नाम है दरिया लिक्खा

ख़्वाब तो ख़्वाब हैं जो टूट गये मन रोया
और आंसू ना बहें ऐसे था रोना लिक्खा

सुन क़लम के ओ सिपाही तेरी ज़ि‍म्मेदारी
है ये लाजि़म कि अमल कर तू भी अपना लिक्खा

रोज आंसू से मैं रुखसार को धो लेता हूं
ख़ुद रहा बासी तेरे इश्क को ताज़ा लिक्खा

जिन्दगी तेरा वतीरा न समझ पाया मैं
कर दिया गीत पुराना जो भी ताज़ा लिक्खा

बनवारी लाल मूंदड़ा 

About Lafz Admin

Lafzgroup.com

Your Opinion is counted, please express yourself about this post. If not a registered member, only type your name in the space provided below comment box - do not type ur email id or web address.