ख्वाहिशों को उधार करना था
और कुछ इन्तिज़ार करना था
दश्त ये हमको पार करना था
रास्ते को ग़ुबार करना था
जिंदगी में है प्यार थोड़ा सा
थोड़े को बेशुमार करना था
लोग जन्नत दिखा रहे हैं मुझे
और मुझे ऐतबार करना था
कोई बदशक्ल था मिरे आगे
आइना संगसार करना था
अहमद ‘सोज़’ (मुंबई)
09867220699
बहुत खूब -कहा आपने—जन्नत वाले शेयर में तो गज़ब ढाया —
MediaLink Ravinder, Ludhiana
+91 9915322407
अहमद सोज़ साहब, इस शेर के लिये सैकड़ों दाद। क्या तहदारी है। “लोग जन्नत दिखा रहे हैं” मुझे यानी ये कारे-बेमसरफ़ जारी है, “और मुझे ऐतबार करना था” था यानी मैं ऐतबार करने की मंज़िल से आगे चला आया, अब ऐतबार नहीं करता। पुराने चावल यूँ ही अच्छे नहीं कहे जाते। वाह वाह अच्छी ग़ज़ल के लिये दाद क़ुबूल फ़रमाइये
लोग जन्नत दिखा रहे हैं मुझे
और मुझे ऐतबार करना था
लोग जन्नत दिखा रहे हैं मुझे
और मुझे ऐतबार करना था
LAJAWAB