T-20

T-20-तरही महफ़िल का समापन

साहिबो तरही में इस बार शायर हज़रात ने बहुत उम्दा काम किया. कई दोस्तों ने तो ग़ज़ल कई-कई बार दुबारा कही. शुरू में कई साथियो को ज़मीन कठिन लग रही थी मगर बाद में राह आसान लगने लगी. यूँ तो सब ठीक-ठाक रहा मगर कुछ ग़लतियां भी हुईं. बहरहाल मैं बिना शायर का नाम इस्तेमाल […]

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T-20/55 आपकी याद लगातार सम्हाले हुए हैं -‘खुरशीद’ खैराड़ी

आपकी याद लगातार सम्हाले हुए हैं दश्त में ज़ीनते-बाज़ार सम्हाले हुए हैं एक मुद्दत से पलक पर नहीं लगती है पलक मेरी आँखें शबे-बेदार सम्हाले हुए हैं दर्द बख़्शे हैं हमें तूने सो करते हैं नज़्म शायरी में तिरा इज़हार सम्हाले हुए हैं यादे-पाज़ेब की ज़िंदाँ में यही सूरत है ? ”आप ज़ंजीर की झंकार […]

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T-20/54 रुख़ हवा का भी ख़रीदार संभाले हुए हैं-नकुल गौतम

रुख़ हवा का भी ख़रीदार संभाले हुए हैं इश्तिहारों ने ही अख़बार संभाले हुए हैं हर तरफ़ फैल रही है जो वबा लालच की अब तबीबों ने भी बाज़ार संभाले हुए हैं कर रही है ये बयानात का सौदा खुल के ये अदालत भी गुनहगार संभाले हुए हैं आप का हुस्न तो परवाने बयां करते […]

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T-20/53 दर्दो-वहशत का इक अंबार संभाले हुए हैं-मुमताज़ नाज़ां

दर्दो-वहशत का इक अंबार संभाले हुए हैं कितने ग़म हैं, कि यूँ ही यार संभाले हुए हैं तेरी गुफ़्तार, तेरा लुत्फ़, तेरा ग़म, तेरी याद कितनी चीज़ें हैं कि बेकार संभाले हुए हैं दौरे-सरमाया में बिकते हुए नाकाम उसूल सर पे कब से ये गराँ बार संभाले हुए हैं इनमें आबाद हैं टूटे हुए कुछ […]

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T-20/52 इनको छूना न ख़बरदार संभाले हुए हैं,दिनेश कुमार स्वामी “शबाब” मेरठी

इनको छूना न ख़बरदार संभाले हुए हैं अब ये दरवाज़े ही दीवार संभाले हुए हैं हाय वो आँखें, वो रुख़सार, वो सीने की उठान इक बदन में कई तलवार संभाले हुए हैं कितनी सदियों से अजंता के ये बुत देखो तो लब पे ख़ामोशी की गुफ़्तार संभाले हुए हैं ज़िंदा रहने को ज़रूरी हैं बहुत […]

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T-20/51 आज भी अज़मते-किरदार संभाले हुए हैं-असलम इलाहाबादी

आज भी अज़मते-किरदार संभाले हुए हैं तेज़ आंधी में भी दस्तार संभाले हुए हैं कुछ तिरे लोग भी करते हैं तिरा ज़िक्र बहुत कुछ तिरी साख को अख़बार संभाले हुए हैं किसकी हिम्मत है इधर आँख उठा कर देखे इस इलाक़े को तो सरकार संभाले हुए हैं अहले-सरवत तो निकलते ही नहीं हैं घर से […]

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T-20/50 कितनी मुश्किल से ये आज़ार संभाले हुए हैं-मनीष शुक्ल

कितनी मुश्किल से ये आज़ार संभाले हुए हैं लड़खड़ाती हुई गुफ़्तार संभाले हुए हैं अब तो आवाज़ बिखरने सी लगी है अपनी फिर भी हम क़ूवते-इज़हार संभाले हुए हैं बदहवासी में गुज़र जाते कभी के हद से आबले पांव के रफ़्तार संभाले हुए हैं ख़ुद को होने न दिया ठीक किसी भी सूरत अब तलक […]

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T-20/49 आपके दर्द के दीनार संभाले हुए हैं-दिनेश नायडू

आपके दर्द के दीनार संभाले हुए हैं कुछ नहीं बाक़ी सो नाचार संभाले हुए हैं ज़िंदगी इतना हमें पीछे नहीं छोड़ कि हम भागते-दौड़ते रफ़्तार संभाले हुए हैं अब न थम पायेगा आहों का ये दरिया हमसे कब से हम ज़ब्त की दीवार संभाले हुए हैं फ़त्ह मुमकिन है कि इन लोगों के हाथ आये […]

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T-20/48 एक उम्मीद पे इक़रार संभाले हुये हैं-अनिल जलालपुरी

एक उम्मीद पे इक़रार संभाले हुये हैं लोग इन्कार पे इन्कार संभाले हुये हैं डूबते वक़्त ये हँसते हुए सूरज ने कहा चाँद तारे मेरा किरदार संभाले हुये हैं ज़िम्मेदारी से मुकर जाना बहुत आसां है जो गुनहगार हैं घर-बार संभाले हुये हैं सिरफिरे लोगों ने कुहराम मचा रक्खा है सब्र वाले हैं जो संसार […]

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T-20/47 दिल्ली वाले वो जो सरकार संभाले हुए हैं-सलीम ख़ान

दिल्ली वाले वो जो सरकार संभाले हुए हैं ऐसा लगता है कि बाज़ार संभाले हुए हैं सिर्फ कश्कोल का ही पास उन्हें रखना था उनको भी देखिये व्योपार संभाले हुए हैं बुद्ध होने के लिए राजकुंवर होना था इतना काफ़ी है कि घरबार संभाले हुए हैं जिनको फूलों से है निस्बत वो रखें ध्यान उनका […]

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T-20/46 जो मिरी सोच का मेयार संभाले हुए हैं-भुवन निस्तेज

जो मिरी सोच का मेयार संभाले हुए हैं वो तो ख़ुद में कई किरदार संभाले हुए हैं बड़ी ख़ूबी से जो बाज़ार संभाले हुए हैं आज वो देश की सरकार संभाले हुए हैं अब सुख़न को है किया जिनके हवाले हमनें वो तो इस पार से उस पार संभाले हुए हैं ग़ौर से सुनिये नया […]

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T-20/45 हम तहे-दिल से ग़मे-यार संभाले हुए हैं-प्रेम कुमार पहाड़पुरी

हम तहे-दिल से ग़मे-यार संभाले हुए हैं और हमको कईं ग़मख़ार संभाले हुए हैं वक़्त ज़ाया न करें, इक नई तामीर करें आप गिरती हुई दीवार संभाले हुए हैं और चीज़ों से मकां की नहीं हमको मतलब हम फ़क़त संगे-दरे यार संभाले हुए हैं मैं न होता तो तरस खाता तू किस पर या रब […]

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T-20/44 क़ल्ब में लोग अहंकार संभाले हुए हैं-नासिर अली “नासिर”

क़ल्ब में लोग अहंकार संभाले हुए हैं नाग को दिल में लगातार संभाले हुए हैं आप लोगों की यक़ीनन है मुअज्जिज़ हस्ती इल्म की दौलते-अम्बार संभाले हुए हैं दौरे-हाज़िर के यक़ीनन हैं यज़ीदी खूंखार हाथ में ज़ुल्म की तलवार संभाले हुए हैं हमसे रौशन है हक़ीक़त में वक़ारे-हस्ती शान से गुलशने-किरदार संभाले हुए हैं किस […]

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T-20/43 ये भले लोग तो दस्तार सँभाले हुए हैं-द्विजेन्द्र द्विज

ये भले लोग तो दस्तार सँभाले हुए हैं सर मगर काँधों पे ख़ुद्दार सँभाले हुए हैं यह अलग बात है आज़ार सँभाले हुए हैं एक अजब नूर ये रुख़सार सँभाले हुए हैं रू-ब-रू हमसे हमेशा रहा है हर मौसम हम पहाड़ों का भी किरदार सँभाले हुए हैं यह जो आवाज़ों का जमघट है हमारे अन्दर […]

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T-20/42 – कुछ नये ज़ख्म हैं, कुछ दाग़ पुराने है,मगर … मयंक अवस्थी

मेरी सांसे मेरे अशआर सम्हाले हुये हैं मेरे बच्चे मेरा संसार सम्हाले हुये हैं बेलियाकत हैं जो तलवार सम्हाले हुये हैं फिर भी हम सर नही दस्तार सम्हाले हुये हैं चन्द ख़ैरात के अशआर का मतलब ये नही आप अब मीर का दरबार सम्हाले हुये हैं कुछ नये ज़ख्म हैं, कुछ दाग़ पुराने है,मगर मेरे […]

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T-20/41 इक अलग क़िस्म का किरदार सँभाले हुए हैं -हुमा कानपुरी

इक अलग क़िस्म का किरदार सँभाले हुए हैं मज़हबी लोग जो दीवार सँभाले हुए हैं शौक़ तो उनका भी है अम्न की बातें करना हाँ, मगर हाथ में तलवार सँभाले हुए हैं वो हमें दे के चला जाता है गाली हर दिन फिर भी हम हैं कि जो गुफ़तार सँभाले हुए हैं जैसे विरसे में […]

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T-20/40 अपना विरसा है ये किरदार, संभाले हुए हैं-तुफ़ैल चतुर्वेदी

अपना विरसा है ये किरदार, संभाले हुए हैं इस हवा में हमीं दस्तार संभाले हुए हैं कोई वीराना बसाना तो बहुत आसां था हम तिरे शहर में घर-बार संभाले हुए हैं वरना सैलाब ज़माने को बहा ले जाता अपनी आँखें तिरे बीमार संभाले हुए हैं दोस्ती काम बहुत आयी है अपने साहब कब के मिट […]

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T-20/39 इतनी नफ़रत में भी कुछ प्‍यार संभाले हुए हैं-पवनेंद्र ‘पवन’

इतनी नफ़रत में भी कुछ प्‍यार संभाले हुए हैं हम अभी तक सभी त्‍योहार संभाले हुए हैं बाप दादाओं के उपकार संभाले हुए हैं मां-बहन का भी तभी भार संभाले हुए हैं बस दहकते हुए अंगार संभाले हुए हैं बेवफ़ा के लिए उद्गार संभाले हुए हैं डालियां फूलाें की कुछ ख़ार संभाले हुए हैं बस […]

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T-20/38 अपनी हिम्‍मत सरे-बाज़ार संभाले हुए हैं-मनोज मित्तल “कैफ”

अपनी हिम्‍मत सरे-बाज़ार संभाले हुए हैं ये भरम हम हैं ख़रीदार संभाले हुए हैं मुंजमिद हैं कोई असरार संभाले हुए हैं या कोई अज्‍़म ये कोहसार संभाले हुए हैं वक्‍़त का है ये तकाज़ा कि फ़रामोश करें और हम याद के अंबार संभाले हुए हैं अब तो लाज़ि‍म है उन्‍ही पर मेरी बै’अत हो जाय […]

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T-20/37 चुटकुलेबाज़ तो बाज़ार सँभाले हुए हैं-आदिक भारती

चुटकुलेबाज़ तो बाज़ार सँभाले हुए हैं और हम सरफिरे दस्तार सँभाले हुए हैं अह्ले-किरदार तो किरदार सँभाले हुए हैं और सियासत को रियाकार सँभाले हुए हैं अब चुनाव आये तो इस पर ही रखेंगे ऊँगली एक मुद्दत से हम इनकार सँभाले हुए हैं लीडरों की कोई करतूत छुपी रह न सके मोर्चा मीडिया अख़बार सँभाले […]

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T-20/36 कभी टीवी कभी अखबार संभाले हुए हैं-डॉ मुहम्मद ‘आज़म’-दूसरी ग़ज़ल

कभी टीवी कभी अखबार संभाले हुए हैं आज ये दोनों ही सरकार संभाले हुए हैं क्यों न हों शहर के बाजार उदासी में ग़र्क़ लोग अब घर से ही बाज़ार संभाले हुए हैं अब परखना है जिन्हें देखें बस उनका सेलफ़ोन मेमोरी कार्ड सब असरार संभाले हुए हैं नैट के दौरे-तरक़्क़ी का तमाशा देखो घर […]

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T-20/35 दीन को धर्म को मक्कार संभाले हुए हैं-डॉ मुहम्मद आज़म

दीन को धर्म को मक्कार संभाले हुए हैं जो नहीं रोज़ा वो इफ़्तार संभाले हुए हैं महफ़िले-शेर अदाकार संभाले संभाले हुए हैं और हम शेर का मेयार संभाले हुए हैं शेरगोई के सरोकार कहाँ जा पहुंचे आप अब भी लबो-रुख़सार संभाले हुए हैं अम्न के दरिया को मसमूम बनाने का फ़र्ज़ कुछ तो इस पार […]

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T-20/34 अपनी तहज़ीब लगातार संभाले हुऐ हैं-साजिद प्रेमी

अपनी तहज़ीब लगातार संभाले हुऐ हैं इस विरासत को कलाकार संभाले हुऐ हैं जिन के हाथों मैं कभी फूल हुआ करते थे अब वो तिरशूल वो तलवार संभाले हुऐ हैं फ़िक्र इतनी है भली सोच के इंसान मिलें क्या करें देश को बीमार संभाले हुऐ हैं आज उस्ताद बने फिरते हैं कुछ लोग यहाँ आप […]

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T-20/33 हौसला बरसरे-पैकार संभाले हुए हैं-पवन कुमार

हौसला बरसरे-पैकार संभाले हुए हैं ज़ख़्म हम खा के भी तलवार संभाले हुए हैं हो गया कब का जहाँगीर फ़ना दुनिया से “आप ज़ंजीर की झंकार संभाले हुए हैं” जाने किस वक़्त ये गिर जाए मकाँ मिट्टी का हम फ़क़त जिस्म की दीवार संभाले हुए हैं जैसे हम दिखते हैं वैसे नहीं हरगिज़ यारो बस […]

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T-20/32 मौसमे-हिज्र का हर वार संभाले हुए हैं-स्वप्निल तिवारी “आतिश”

मौसमे-हिज्र का हर वार संभाले हुए हैं हम तिरी याद की बौछार संभाले हुए हैं दश्त के हो चुके सारे कि जो दीवाने थे हुस्ने-जानाँ को तो हुशियार संभाले हुए हैं तुम गुज़र सकते हो कतरा के सफ़ीने वालो हम तो दरिया हैं सो मँझधार संभाले हुए हैं गिर के टूटेगी अभी एक छनाके के साथ […]

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T-20/30 रम्ज़ की राह की रफ़्तार सम्हाले हुये हैं-नवीन सी. चतुर्वेदी-दूसरी ग़ज़ल

रम्ज़ की राह की रफ़्तार सम्हाले हुये हैं वाक़ई आप तो बाज़ार सम्हाले हुये हैं हम से उठता ही नहीं बोझ पराये ग़म का हम तो बस अपने ही विस्तार सम्हाले हुये हैं एक दिन ख़ुद को सजाना है तेरे ज़ख़्मों से इसलिये सारे अलंकार सम्हाले हुये हैं आह, अरमान, तलाश और तसल्ली का भरम […]

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T-20/29 तुझ को तेरे ही ख़तावार सम्हाले हुये हैं-नवीन सी. चतुर्वेदी

तुझ को तेरे ही ख़तावार सम्हाले हुये हैं दिल तेरी बज़्म को दिलदार सम्हाले हुये हैं इश्क़ एक ऐसी अदालत है जिसे जनमों से उस के अपने ही गुनहगार सम्हाले हुये हैं जब भी गुलशन से गुजरता हूँ ख़याल आता है बे-वफ़ाओं को वफ़ादार सम्हाले हुये हैं तोड़ ही देती अदावत तो न जाने कब […]

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T-20/28 राग दीपक हो के मल्हार संभाले हुए हैं-असरार उल हक़ “असरार”

राग दीपक हो के मल्हार संभाले हुए हैं साज़े-जां तेरा हरिक तार संभाले हुए हैं तेरा ग़म तेरे तलबगार संभाले हुए हैं यानी हर लज़्ज़ते-आज़ार संभाले हुए हैं लाख बोसीदा-ओ-फ़र्सूदा हो पिंदारे-ख़ुदी अपने सर अपनी ये दस्तार संभाले हुए हैं देखना ये है भरेगा कि रहेगा ख़ाली हम भी इक ज़र्फे-क़दहख़ार संभाले हुए हैं एक […]

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T-20/27 यादगारे-गुलो-गुलज़ार संभाले हुए हैं-अभय कुमार “अभय”

यादगारे-गुलो-गुलज़ार संभाले हुए हैं ज़र्द पत्तों का इक अम्बार संभाले हुए हैं नूर ही नूर था हर सम्त कहीं कुछ नहीं था अंधी आँखों में वो दीदार संभाले हुए हैं ज़रपरस्तों को ही दाना भी कहा जाता है हमसे दीवाने तो किरदार संभाले हुए हैं जितनी गुज़री है तिरे ग़म में वो अच्छी गुज़री अब […]

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T-20/26 लब जो ख़ामोशी के आसार सम्भाले हुए हैं-नवनीत शर्मा-दूसरी ग़ज़ल

लब जो ख़ामोशी के आसार सम्भाले हुए हैं ऐसा लगता है कि यलग़ार संभाले हुए हैं तुम चलो फूलों पे, फूलों पे चलो तुम, अपना रास्ता ख़ूब है पुरख़ार, संभाले हुए हैं शाख़ पर उनको हरा पत्ता बुरा लगता है ज़र्द पत्‍तों का जो अंबार संभाले हुए हैं ज़िन्दगी जेल सही फिर भी है रंगीन […]

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T-20/25 इस गिरानी में भी किरदार संभाले हुए हैं-फ़ज़ले-अब्बास ‘सैफ़ी’

इस गिरानी में भी किरदार संभाले हुए हैं जिनमें है ज़र्फ़ वो दस्तार संभाले हुए हैं हम ज़माने के सब आज़ार संभाले हुए हैं अपने दामन में फ़क़त ख़ार संभाले हुए हैं लब पे कहने को वो इंकार संभाले हुए हैं अपनी आँखों में मगर प्यार संभाले हुए हैं हौसला, सब्र, यक़ीं और दयानतदारी मुझको […]

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T-21/24 एक हम जो रसनो-दार संभाले हुए हैं-इनआम ‘शरर’

एक हम जो रसनो-दार संभाले हुए हैं वरना कुछ लोग तो दस्तार संभाले हुए हैं ऐसे लोगों से भी है राब्ता मेरा कि जिन्हें फ़िक्र सर की नहीं दस्तार संभाले हुए हैं इस कशाकश में या हम या वो ख़ुदा जानता है किस तरह अपना ये किरदार संभाले हुए हैं अब तो करना ही है […]

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T-20/23 तेरी बुनियाद का किरदार संभाले हुए हैं-माहिर शैदाई

तेरी बुनियाद का किरदार संभाले हुए हैं छूले अफ़लाक हम आसार संभाले हुए हैं हौसले ऐसे सरे-दार संभाले हुए हैं जैसे फंदा नहीं हम हार संभाले हुए हैं मेरी ख़ामोश तबीयत की मुहाफ़िज़ आँखें इन दिनों ज़िम्मा-ए-गुफ़तार संभाले हुए हैं मुनहसर झूठ पे उम्मीदे-शिफा है अब तो बस दिलासे दिले-बीमार संभाले हुए हैं जो भी […]

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T-20/22 मुनहनी जिस्म है कुहसार संभाले हुए हैं-आसिफ़ ‘अमान’

मुनहनी जिस्म है कुहसार संभाले हुए हैं हम भी हर हाल में किरदार संभाले हुए हैं अब न उनको है तवक़्क़ो न हमें कुछ उम्मीद दोनों इक ख़ाब को बेकार संभाले हुए हैं इसको होना ही है इक़रार में तब्दील इक दिन और हम किसलिये इनकार संभाले हुए हैं लाओ आफ़ात का रुख़ मोड़ दो […]

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T-20/21 पिछली तारीख़ का अख़बार सम्हाले हुये हैं-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’

पिछली तारीख़ का अख़बार सम्हाले हुये हैं उनकी तस्वीर को बेकार सम्हाले हुये हैं यार इस उम्र में घुँघरू की सदायें चुनते ‘आप ज़ंजीर की झंकार सम्हाले हुये हैं’ हम से ही लड़ता-झगड़ता है ये बूढा सा मकां हम ही गिरती हुई दीवार सम्हाले हुये हैं यार अब तक न मिला छोर हमें दुनिया का […]

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T-20/20 ज़िन्दगी तेरा यही सार संभाले हुए हैं-पूजा भाटिया

ज़िन्दगी तेरा यही सार संभाले हुए हैं प्यार था, प्यार है बस प्यार संभाले हुए हैं मोल भूलें न कभी जीत का बस इस ख़ातिर मुद्दतों पहले हुई हार संभाले हुए हैं नफ़रतों का ही सही कुछ तो है रिश्ता अपना दोनों ही अपना सा किरदार संभाले हुए हैं जो संभाली न गयी तुमसे कोई […]

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T-20/19 लड़खड़ाते हुए मयख़ार संभाले हुए हैं-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’

लड़खड़ाते हुए मयख़ार संभाले हुए हैं मैकदे को यही दो-चार संभाले हुए हैं लाख होटों पे वो इंकार संभाले हुए हैं दिल के अंदर तो मगर प्यार संभाले हुए हैं शहर में पूछ-परख कुछ भी नहीं है फिर भी शेख़ जी जुब्बा-ओ-दस्तार संभाले हुए हैं सारे अपने तो गिराने में लगे हैं लेकिन फिर भी […]

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T-20/18 ऐसा लगता है इक आज़ार संभाले हुए हैं-बकुल देव

ऐसा लगता है इक आज़ार संभाले हुए हैं ज़िन्दगी हम तुझे बेकार संभाले हुए हैं टूट जाए न भरम अक्स के बनते बनते वो सरे-आइना किरदार संभाले हुए हैं गुम हुई जाती है तारीख़ अंधेरों में मगर आप तहरीर चमकदार संभाले हुए हैं हम से मीज़ान संभलती नहीं ज़ेह्नो-दिल की लोग बाज़ार के बाज़ार संभाले […]

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T-20/17 इल्मो-हिकमत के हम अक़दार संभाले हुए हैं-‘शफ़ीक़’ रायपुरी

इल्मो-हिकमत के हम अक़दार संभाले हुए हैं अज़मते-जुब्बा-ओ-दस्तार संभाले हुए हैं अपने असलाफ़ के अतवार संभाले हुए हैं हम चमकते हुए किरदार संभाले हुए हैं ग़म का इक वार ही बस तुमसे संभाला न गया दिल पे हम ऐसे कई वार संभाले हुए हैं जीत की शक्ल नज़र आये तो कैसे आये लोग दामन में […]

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T-20/16 बूढ़े कन्धों पे जो घर-बार संभाले हुए हैं-ख़ुर्शीद अनवर “ख़ुर्शीद”

बूढ़े कन्धों पे जो घर-बार संभाले हुए हैं यूँ समझ लीजिये संसार संभाले हुए हैं ग़र्क़ हो जाती कभी की ये हमारी हस्ती अहले-ईमां हैं जो पतवार संभाले हुए हैं दर्स देते हैं अमां का जो ज़माने भर में अपने हाथों में वो तलवार संभाले हुए हैं हर तरफ़ भीड़ है शैतानों की फिर भी […]

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T-20/15 जैसे बाज़ार ख़रीदार संभाले हुए हैं-समर कबीर

जैसे बाज़ार ख़रीदार संभाले हुए हैं तेरे दोज़ख़ को गुनहगार संभाले हुए हैं उनकी तौक़ीर करो लायक़े-तहसीन हैं वो ऐसे हालात में किरदार संभाले हुए हैं पहले इस बात को हम लोग उलट कहते थे अब तबीबों को ये बीमार संभाले हुए हैं हमसे जैसे भी बना आज तलक तो हम लोग अपनी तहज़ीब का […]

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T-20/14 अपने किरदार का मेयार संभाले हुए हैं-गणेश गायकवाड़

अपने किरदार का मेयार संभाले हुए हैं आप ज़ंजीर की झंकार संभाले हुए हैं अपने शानों पे रखा करते है हम सर अपना सर पे हम अपनी ही दस्तार संभाले हुए हैं मरज़े-इश्क़ कभी अच्छा नहीं होता जनाब आप क्यों दिल में ये बीमार संभाले हुए हैं आरज़ू भी है तमन्ना भी है ख़ाहिश भी […]

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T-20/13 मानी-ओ-लफ़्ज़ का पिन्दार संभाले हुए हैं-अब्दुल अहद “साज़”

मानी-ओ-लफ़्ज़ का पिन्दार संभाले हुए हैं हम ये गिरती हुई दीवार संभाले हुए हैं मोर्चा हार के अपनों ने सिपर डाल भी दी ये ग़नीमत है कि अग़ियार संभाले हुए हैं नोके-मिज़गां ख़मे-अबरू के वो तेवर हैं कि फिर आज के दशना-ओ-तलवार संभाले हुए हैं वो कि हैं नित नये इंकार के दरपै हर दम […]

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T-20/12 गुलशनो-वादी-ओ-कुहसार संभाले हुए हैं-”शरीफ़” अंसारी

गुलशनो-वादी-ओ-कुहसार संभाले हुए हैं तेरे कूचे के तलबगार संभाले हुए हैं अपनी हर साँस की रफ़्तार संभाले हुए हैं “आप ज़ंजीर की झंकार संभाले हुए हैं ” हमसे दो-चार जुनूंकार संभाले हुए हैं दिल के अंदर जो ग़मे-यार संभाले हुए हैं कहीं मक़तल तो कहीं दार संभाले हुए हैं सरफ़रोशी का जो मेयार संभाले हुए […]

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T-20/11 सख़्त मुश्किल में भी किरदार सम्भाले हुए हैं-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

सख़्त मुश्किल में भी किरदार सम्भाले हुए हैं तेरी हस्ती को गुनहगार सम्भाले हुए हैं मिट गयी होती कभी की ये रियासत फ़न की वो तो हम हैं कि जो दरबार सम्भाले हुए हैं एक इक करके निकलती गयी हाथों से ज़मीं मुहतरम लफ़्ज़े-ज़मींदार संभाले हुए हैं उन फ़क़ीरों को ख़ुदा कर दे तू सजदा […]

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T-20/10 मुस्‍कराहट को जो रुख़सार संभाले हुए हैं-नवनीत शर्मा

मुस्‍कराहट को जो रुख़सार संभाले हुए हैं दिल में लगता है कि आज़ार संभाले हुए हैं दिल के खण्डरात के सब्ज़े में हैं इतनी यादें कितना कुछ हम भी न बेकार संभाले हुए हैं धूप, बरसात, हवाओं से बचाती है हमें हम तेरी याद की दीवार संभाले हुए हैं क्‍यों भला ग़ैर लगायेगा निशाना मुझपर […]

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T20/9 वार पर वार है, हर वार संभाले हुए हैं-शमीम अब्बास

वार पर वार है, हर वार संभाले हुए हैं मोर्चा सरफिरे दो चार संभाले हुए हैं आख़िर इक हम ही रहे कूचा-ए- जानां का नसीब और जितने भी थे घरबार संभाले हुए हैं मोतरिफ़ ही नहीं, तब अज्र की उम्मीद ही क्या ज़िन्दगी हम तुझे बेकार संभाले हुए हैं तन्हा बस की नहीं तेरे तेरी […]

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T-20/8 घर की गिरती हुई दीवार संभाले हुए हैं-चंद्रभान भारद्वाज

घर की गिरती हुई दीवार संभाले हुए हैं एक बिखरा हुआ परिवार संभाले हुए हैं सुब्ह रोज़ी का न शामों को पता रोटी का ऐसे हालात में घर-बार संभाले हुए हैं फ़ैसला हो नहीं पायेगा हमारे हक़ में कुर्सियाँ सारी गुनहगार संभाले हुए हैं बोझ ज़ंजीर का पैरों पे सँभाला हमने आप ज़ंजीर की झंकार […]

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T-20/7 रोग़ पाले हुए, आज़ार संभाले हुए हैं-सौरभ शेखर

रोग़ पाले हुए, आज़ार संभाले हुए हैं ग़म का हम लोग ही मेंयार संभाले हुए हैं. सर क़लम होने का अफ़सोस नहीं कुछ उनको लोग ख़ुश हैं कि वो दस्तार संभाले हुए हैं. एक पैकर है ख़यालों में मगर मुबहम सा जिसकी हम हसरते- दीदार संभाले हुए हैं. फूल मेहमां की तरह आयेंगे अगली रुत […]

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T-20/6 उस की रफ़्तार को मंझधार संभाले हुए हैं-मुबारक रिज़वी

उस की रफ़्तार को मंझधार संभाले हुए हैं आप जिस कश्ती की पतवार संभाले हुए हैं अपनी अज़मत के ही मीनार संभाले हुए हैं ये जो असलाफ के किरदार संभाले हुए हैं बेगुनाहों को बचाना है बहुत ही मुश्किल नासमझ हाथ में तलवार संभाले हुए हैं एक हंगामा-ए-महशर है चमन में हर सू ग़ुंचा-ओ-गुल को […]

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