भूत सर पर सवार करना था
अपने क़ातिल से प्यार करना था
जिसका होना भी तय नहीं अब तक
उस पे क्या ऐतबार करना था?
ज़ख्म आकर कुरेदने थे उन्हें
और हमें इंतज़ार करना था
मुड़़ गए हम ख़बर मिली ज्यों ही
पीठ पर उनको वार करना था
दिल पे लिख कर गए हैं नाम अपना
बस उन्हें इश्तिहार करना था
शेख़ चिल्ली वो सबके हमदम हैं
बस हमें दरकिनार करना था
– शेख़ चिल्ली
sheikhchillig@gmail.com
वाह-शेख चिल्ली साहिब कमाल कर दिया आपने!
हर शेयर सीधा दिल में उतरता है।
–MediaLink Ravinder, Ludhiana
+91 9915322407
साहब आप कौन हैं ? ऐसी धुली-मंझी ज़बान में ऐसे शेर ? ? ? ये किसी नौज़ायदा-नौमश्क़ का काम नहीं हो सकता। आपके शेर कुहनामश्क़ी की चुग़ली कर रहे हैं। बराहे-करम दाद क़ुबूल फ़रमाइये और शेख़चिल्ली के तख़ल्लुस की ओट से बाहर आइये। लफ़्ज़ पर आपकी आमद इज़ाफ़ा है। स्वागत
ज़ख्म आकर कुरेदने थे उन्हें
और हमें इंतज़ार करना था
दिल पे लिख कर गए हैं नाम अपना
बस उन्हें इश्तिहार करना था
प्रणाम तुफ़ैल साहब,
मेरे शेखचिल्लीपन का हौंसला बढ़ाने के लिए शुक्रिया।
दरअसल मैं आपका भक्त हूँ। आप से मिली दाद बहुत मआनी रखती है।
मैं मक्तबे-सुखन का एक student हूँ।
तख़ल्लुस के पर्दे में जाना एक मजबूरी है।
शेख़चिल्ली