T-16

T-16/29 वो बन रहा है या सचमुच ही भोलाभाला है-प्रेम कुमार शर्मा प्रेम’ पहाड़पुरी

वो बन रहा है या सचमुच ही भोलाभाला है जवाब पाने को सिक्का यूँही उछाला है जुनूं है, शौक़ है, ख़ुदएतमादी है क्या है जो आस्तीन में सांपों को मैंने पाला है कहे, कहे न कहे कुछ तो उसके दिल में है जो उसने रास्ता मिलने का ख़ुद निकाला है तुम्हारे ग़म को ही कोसा […]

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T-16/28 करख्‍़तगी ने सुऊबत ने कोह ढाला है-मनोज कुमार मित्‍तल ‘कैफ़’

करख्‍़तगी ने सुऊबत ने कोह ढाला है मगर इसी ने गुलों को जतन से पाला है यहां तो आठ पहर चार सू धुंधलका है ‘अंधेरा है कि तेरे शहर में उजाला है’ चलूं हवाओं पे इसको भी साथ लिखता चलूं मिरी हयात तमन्‍नाओं का मक़ाला है ये क्‍या मियां कि हमारा वजूद कुछ भी नहीं […]

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T-16/27 किसी की याद ने ज़ख़मों को नोच डाला है-गोविन्द गुलशन

किसी की याद ने ज़ख़मों को नोच डाला है कोई चराग़ नहीं है मगर उजाला है अभी न तोड़िये उम्मीद के नशेमन को ख़िज़ां के बाद का मौसम बहार वाला है न शिव हूँ और न सुक़रात ही हूँ मैं लेकिन मिरे भी सामने इक ज़हर का पियाला है हमारे शहर में ख़ुददार कम नहीं […]

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T-16/26 कोई कुआँ हो या तालाब पाट डाला है-दिनेश कुमार स्वामी ‘शबाब’ मेरठी

कोई कुआँ हो या तालाब पाट डाला है मिरे वतन में यज़ीदों का बोल-बाला है शदीद ठण्ड का मौसम अजब निराला है कि आज पानी भी पत्थर में ढलने वाला है तिरे लबों पे वो सुर्ख़ी थी, आग थी, क्या थी ? पता नहीं मिरे होठों पे कैसा छाला है समन्दरों का सफ़र जो कभी […]

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T-16/25 ज़रा सा ख्व़ाब जो आँखों में हमने पाला है-परवीन खान

ज़रा सा ख्व़ाब जो आँखों में हमने पाला है हदों से अपनी वो बाहर निकलने वाला है उसी के दम से मैं तारीकियों से लड़ती हूँ यक़ीन मानिये मुझमें भी इक मलाला है कभी तो आयेगा वो लौटकर मिरी जानिब इसी उमीद ने अब तक मुझे संभाला है मुझे भी अपने ही जैसा बना लिया […]

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T-16/24हर एक सिम्त अंधेरों का बोल-बाला है-इरशाद खान ‘सिकंदर’

हर एक सिम्त अंधेरों का बोल-बाला है सो तय है अब कोई सूरज निकलने वाला है ये किसने काट दीं पैरों की मेरे जंजीरें ये किसने दुःख के गिरेबाँ पे हाथ डाला है किसी की एक ही दस्तक से टूट सकता था मिरी उदासी के दर पर जड़ा जो ताला है हम उसमें बैठके करते […]

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T-16/23 ज़ियादा उम्र नहीं इसकी, मरने वाला है-डॉ मुहम्मद ‘आज़म’

ज़ियादा उम्र नहीं इसकी, मरने वाला है हमारे हाथ में उर्दू का जो रिसाला है वो दर जहां कि मोहब्बत का बोल-बाला है मिरी नज़र में वो मस्जिद है, वो शिवाला है यहाँ के दोस्त निराले हैं ढब निराला है न हम-निवाला है कोई, न हम-पियाला है जतन हज़ार करे फिर भी बच नहीं सकता […]

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T-16/22 जो मेरी पीठ पे ख़ंजर चलाने वाला है-‘शफ़ीक़’ रायपुरी

जो मेरी पीठ पे ख़ंजर चलाने वाला है वो आज भी मिरा हमप्याला-हमनिवाला है ख़ुशी से हमने तिरे ग़म को दिल में पाला है हमारे जीने का अंदाज़ ही निराला है तमाम रात जो आरामगाह में गुज़री अब इन्तक़ाम ये दिन उसका लेने वाला है कोई हमारा भरोसा करे तो कैसे करे यहाँ यक़ीन को […]

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T-16/21तुम्हारा हुस्ने -ख़िताबत बहुत निराला है-शरीफ़ अंसारी

तुम्हारा हुस्ने -ख़िताबत बहुत निराला है कि तुमने तर्ज़े-तकल्लुम अलग निकाला है तुम्हारी याद से दिल में वो रौशनी फैली कि जैसे फ़िक्र का सूरज निकलने वाला है मैं उसके ग़म का बहुत अहतिराम करता हूँ बसद-ख़ुलूस जिसे आंसुओं ने पाला है न आया गौहरे कामयाब उसके हाथों में अगरचे उसने समंदर खंगाल डाला है […]

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T-16/20 तिरे अता किये ज़ख्मों को यूँ सम्हाला है-बिमलेंदु कुमार

तिरे अता किये ज़ख्मों को यूँ सम्हाला है बड़े जतन से तबस्सुम में हमने ढाला है तुम्हारे जाने से ख़ाली हुआ ये घर इतना कई ग़मों ने वहाँ आज डेरा डाला है हुई है देर बहुत मौत तुझको आने में कि ज़िन्दगी ने हमें कब का मार डाला है कभी कभी ही सफ़र में ये […]

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T-16/19 ज़बां ख़मोश है जिसकी लबों पे ताला है-मुनव्वर अली ताज

ज़बां ख़मोश है जिसकी लबों पे ताला है वही गुलों की वसीयत समझने वाला है उसी के दम से करिश्मा ये होने वाला है जहाँ पुकारेगा सूरज का मुंह भी काला है वफ़ा ख़ुलूसो-मुहब्बत को भूल कर है ख़ुश दीवाली है या मिरी क़ौम का दिवाला है मिरा ख़याल अँधेरा बदल नहीं सकता मिरी नज़र […]

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T-16/18 हमारा अज़मे-जवां किस क़दर निराला है-मुबारक रिज़वी

हमारा अज़मे-जवां किस क़दर निराला है सफ़ीना हम ने समंदर में तोड़ डाला है अजल के ख़ौफ़ से लब मेरे काँप जाते हैं जहां में गरचे मिरा खूब बोलबाला है हज़ारों ग़म यहाँ हमने उठा के रक्खे हैं क़सम खुदा की तिरा ग़म बहुत निराला है दुआ-दुरूद करो फ़ातिहा-सलाम पढ़ो जनाज़ा आज हमारा निकलने वाला […]

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T-16/17 वही तो मंज़िले-मक़सूद पाने वाला है-‘नूर’ जगदलपुरी

वही तो मंज़िले-मक़सूद पाने वाला है पहाड़ काट के जिसने भी पथ निकला है सियह-सफ़ेद नज़ारों में क्या नज़र आये ‘अँधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है’ ये और बात कि होते हैं हाथ लोगों के मगर सहारा कोई और देने वाला है ख़ुदा ने दूर किया है ग़मो-अलम दिल से उसी ने सारी […]

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T-16/16 निबाह करना था सो हल भी ख़ुद निकाला है-आसिफ़ अमान

निबाह करना था सो हल भी ख़ुद निकाला है हर एक ऐब किसी का हुनर में ढाला है वो दिल जो उनके तग़ाफ़ुल से मिट नहीं पाया उसे अब उनकी तवज्जो ने मार डाला है यहाँ तो होश ने मंज़िल क़ुबूल कर ली थी यहाँ से तूने जुनूं रास्ता निकाला है सफ़ाई देंगे जफ़ाओं की […]

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T-16/15 निगाहे-शौक़ ने ये ज़ाविया निकला है-असरार-उल-हक़ ‘असरार’

निगाहे-शौक़ ने ये ज़ाविया निकला है जहाँ भी तू नज़र आये वहीँ उजाला है तिरे हुज़ूर जो पहुंचें तो किस तरह पहुंचें कहीं है राह में काबा कहीं शिवाला है न जाने क्या थी हमें जुस्तजू कि जिसके लिये हरेक शहर हरिक दश्त को खंगाला है लहू-लहू है हमारी इबादतों का सिला कि संग-संग को […]

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T-16/14 जहाने-शौक़ का दस्तूर भी निराला है-अभय कुमार ‘अभय’

जहाने-शौक़ का दस्तूर भी निराला है कि दिल में हश्र बपा है ज़बां पे ताला है तिरे ख़याल में गुम हूँ मुझे ख़बर ही नहीं ‘अँधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है’ करेंगे सच की हिफाज़त भला हमीं कब तक जिधर भी देखिये झूटों का बोलबाला है तुम्हारा ग़म हमें जां से अज़ीज़ है […]

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T-16/13 वही गवाह जो सच्चे बयान वाला है-प्रखर मालवीय ‘कान्हा’

वही गवाह जो सच्चे बयान वाला है ज़बां पे उसकी भी ख़ामोशियों का ताला है शरीफ़ शख्स है , अहसान लादने के लिये मुझे गिराया है ख़ुद, ख़ुद मुझे सम्हाला है उबरते ही तिरे ख़ाबों से मैं ये देखूँगा ‘ अंधेरा है कि तेरे शहर में उजाला है ‘ अभी मैं ज़िंदा हूँ इस पर […]

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T-16/12 तुम्हारी बज़्म में सच के लबों पे ताला है-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’

तुम्हारी बज़्म में सच के लबों पे ताला है और उस पे दावा कि इंसाफ़ मिलने वाला है बड़े ही नाज़ से इस दिल को हमने पाला है इसे संभाल के रखना ये भोला-भाला है वो जिसकी ज़ात से मंसूब हैं मिरी ग़ज़लें वो अपने हुस्न में इक शोला-ए-जव्वाला है न हमको देख हिक़ारत से […]

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T-16/11कोई है बेटा, कोई भाई, कोई साला है-‘सुख़नवर’ हुसैन

कोई है बेटा, कोई भाई, कोई साला है सियासी खेल में रिश्तों का बोलबाला है कुछ इस अदा से मिरी माँ ने मुझको पाला है मिरी रगों में लहू देश-प्रेम वाला है वो इक मकान जो आबाद था कभी हमसे वो अब खंडर है वहां मकड़ियों का जाला है किसी को सूखी हुई रोटी भी […]

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T-16/10 फ़लक है सुर्ख़ मगर आफ़ताब काला है-मयंक अवस्थी

फ़लक है सुर्ख़ मगर आफ़ताब काला है “अन्धेरा है कि तिरे शहर में उजाला है” तमाम शहर का मंज़र ही  अब निराला है कोई है साँप, कोई साँप का निवाला है शबे-सफ़र तो इसी आस पर बितानी है अजल के मोड़ के आगे बहुत उजाला है. जहाँ ख़ुलूस ने खायी शिकस्त दुनिया से वहीं जुनून ने […]

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T-16/9 हमारे रिज़क़ में जो हाथ का निवाला है-फ़ज़ले-अब्बास ‘सैफ़ी’

हमारे रिज़क़ में जो हाथ का निवाला है सिवा ख़ुदा के भला कौन देने वाला है उसी के हाथ में चाबी, उसी का ताला है ख़ुदा की शान निराली करम निराला है न कोई शिकवा-शिकायत न कोई नाला है ज़बां पे सब्रो-तहम्मुल का ऐसा ताला है कहीं पे सूखे निवालों का बोल-बाला है कहीं पे […]

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T-16/8 तिरी अना ने सलीक़े से जो निकाला है-नवनीत शर्मा

तिरी अना ने सलीक़े से जो निकाला है वो मेरे रुख़ पे मिरे दर्द का रिसाला है कहूं या छोड़ूं ज़बां पर जो आने वाला है जी.. वो.. मैं.. हां..क‍ि ये मौसम बदलने वाला है वो इक चराग़ जिसे ख़ून देके पाला है सितम ये क्‍या कि हवा का वही निवाला है तिरी तलाश में […]

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T-16/7 हक़ीक़तों की सदा कौन सुनने वाला है-मुमताज़ नाज़ाँ

हक़ीक़तों की सदा कौन सुनने वाला है यहाँ तो झूट का ऐ यार बोलबाला है अब आज़माये हुए को भी आज़माना क्या वो शख्स अपना हमेशा का देखा-भाला है शफ़क़ के रुख़ पे शबे-ग़म का ख़ून बिखरा है सहर का आज तो कुछ रंग ही निराला है गिला करें भी तो बेमेहरियों का किस से […]

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T-16/6 कहीं सफ़ेद कहीं रंग इसका काला है-अहमद सोज़

कहीं सफ़ेद कहीं रंग इसका काला है अँधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है अभी तलक तो है इंसानियत हमारे बीच अभी तलक तो मुहब्बत का बोल-बाला है वो जिसको पाँव की जूती समझ रहे थे सब कभी वो लक्ष्मीबाई कभी मलाला है ख़ला में शोर जमा कर रहा है दीवाना अभी तलक ये जो […]

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T-16/5 अँधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है-अहमद कमाल परवाज़ी

अँधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है हमारे ज़ख्म पे क्या फ़र्क़ पड़ने वाला है हरेक मोड़ पे तन्हाई ने सम्हाला है वो आदमी हूँ जिसे बद्दुआ ने पाला है चलो ये देख लें अब किसकी जीत होती है मैं ख़ाली हाथ तिरे हाथ में निवाला है ये किसने खींची है तस्वीर भूखे बच्चों […]

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T-16/4 ख़ुदा के साथ यहाँ राम हमनिवाला है-धर्मेन्द्र कुमार सिंह

ख़ुदा के साथ यहाँ राम हमनिवाला है ये राजनीति का सबसे बड़ा मसाला है जो आपके लिये मस्जिद है या शिवाला है मेरे लिये वो मुहब्बत की पाठशाला है लगा दो आग, ढहेगा न बद्दुआओं से ये कोयले का महल जन्मजात काला है रक़ीब ख़त्म हुए आपके सभी, अब तो वो आप ही को डसेगा […]

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T-16/3 सफ़ेद रंग भी इक ज़ाविये से काला है-सौरभ शेखर

सफ़ेद रंग भी इक ज़ाविये से काला है सियाहियों में भी पैबस्त कुछ उजाला है ख़ता ज़रा भी नहीं रास्तों के काँटों की गुनाहगार मिरे पाँव का ही छाला है ये कैसा खौफ़ तुझे है बता मिरे भाई निगाहें चीख रही हैं, ज़बां पे ताला है ये सर्द रात,ये ख़लवत, अलाव माजी का बदन पे […]

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T-16/2 तेरी जफ़ा का जो दिल पर जमील छाला है-‘खुरशीद’ खैराड़ी

तेरी जफ़ा का जो दिल पर जमील छाला है बिसाते-दश्त पे लेटा हुआ ग़ज़ाला है हर इक बशर है परेशाँ हर इक जिगर बेकल न शाम है न सवेरा निज़ाम काला है उतर गया है नशा प्यार का हबीबों का ख़ुमारे-ख़ाम को मैंने ग़ज़ल में ढाला है नसीब ने मेरे मुझको रुलाया है जब जब […]

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T-16/1 दबा हुआ मिरे सीने में जो ये नाला है-दिनेश नायडू

दबा हुआ मिरे सीने में जो ये नाला है तमाम शहर में सैलाब लाने वाला है उसे बता दो जो दीपक जलाने वाला है सियाह रात का हर एक रंग काला है भले चमक तो रहा है अभी फ़लक पर वो मगर ये शम्स किसी रात का निवाला है वही है जिसने मुझे उम्र भर […]

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T-16 मिसरा तरह :- अँधेरा है कि तिरे शहर में उजाला है

साहिबो तरह पर काम करने, बात करने और मज़ा लेने का वक़्त आ गया. पिछली तरह भी इसी बह्र में थी. मेरी ख़ाहिश है कि लगातार कुछ मिसरे इसी या इसी के आस-पास की बहरों में निकले जायें. ये बह्र ग़ज़ल में सबसे ज़ियादा बरती जाने वाली बह्र तो नहीं है मगर अच्छे शेर कहने […]

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