T-11

तरही-11 का समापन-तुफ़ैल चतुर्वेदी

दोस्तो ! बहुत शर्मिंदा हूं कि तरही मिसरा ख़ुद निकालने के बावजूद अच्छी क्या …ठीक सी ग़ज़ल भी नहीं कह पाया। अपनी बेबसी अर्ज़ करने की इजाज़त दीजिये। मेरी मुश्किल इस बार दो रही हैं। पहली तो सदा की सी कि सारी ग़ज़लें संपादक होने के नाते ख़ाकसार की नज़र से गुज़र कर जाती हैं। […]

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T-11/24 धूप को छाँव किया चाहती है —मयंक अवस्थी

धूप को छाँव किया चाहती है और क्या माँ की दुआ चाहती है ऐसा जुगनू हूँ मैं जिसकी धुन पर कहकशाँ रक़्स किया चाहती है जोंक लिपटी है अबस पत्थर से ज़िन्दगी खून पिया चाहती है लफ़्ज़ भगवान पुराना है बहुत ज़िन्दगी ख्वाब नया चाहती है वो हमें दिल से मुनव्वर न दिखे “जिन चराग़ों […]

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T-11/23 सब्ज़ मिट्टी की गिज़ा चाहती है-दिनेश कुमार स्वामी ‘शबाब’ मेरठी

सब्ज़ मिट्टी की गिज़ा चाहती है धूप शबनम का पता चाहती है फिर सियासत का मज़ा चाहती है आग पानी का पता चाहती है अपनी तन्हाई कहां रक्खी जाय ज़िन्दगी मुझ में ख़ला चाहती है कोई दोशाला उढ़ा दीजे इसे धूप सर्दी का मज़ा चाहती है सारी दुनिया के समंदर का नमक उसके चेहरे की […]

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T-11/22 दिल का दरवाज़ा खुला चाहती है-अभय कुमार ‘अभय’

दिल का दरवाज़ा खुला चाहती है और मस्ती मिरी क्या चाहती है शोरे-मह्शर में समाअत मेरी इक सदा तेरी सुना चाहती है उसकी ज़ैबाइशे-रुख़ को मिरी दीद रोज़ पढ़-पढ़ के पढ़ा चाहती है तुमको जाना है उधर ही कि जिधर वक़्त की ताज़ा हवा चाहती है हो गया क्या ये तबीयत को मिरी तुझ पे […]

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T-11/21 ज़िन्दगी और न क़ज़ा चाहती है-असरार उल हक़ ‘असरार’

ज़िन्दगी और न क़ज़ा चाहती है जाने क्या मेरी दुआ चाहती है बेक़बाई न क़बा चाहती है चश्मे-बीना तो हया चाहती है अपने मेराज पे है तीराशबी रात भर सुब्ह हुआ चाहती है ये भी सच है कि नये अहद की ख़ल्क़ इक ख़ुदा ख़ुद से नया चाहती है हर बुलंदी है जो नाज़ां ख़ुद […]

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T-11/20 रोशनी मेरी हुआ चाहती है-रश्मि सबा

रोशनी मेरी हुआ चाहती है बस वो दरवाज़ा खुला चाहती है क़त्ल होने से बचा चाहती है मेरी तन्हाई दुआ चाहती है बेल ज़िद्दी है जुनूं की मेरी वो लिपटने को हवा चाहती है घर का दरवाज़ा कभी खुलता नहीं फिर भी दहलीज़ दिया चाहती है मेरी तख़लीक़ ख़फ़ा है मुझसे मेरी पहचान जुदा चाहती […]

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T-11/19 देखा जाये तो भला चाहती है-राजीव भारोल

देखा जाये तो भला चाहती है मेरी बीमारी दवा चाहती है खुद से बेज़ार हुआ चाहती है तीरगी एक दिया चाहती है डांटती है भी, तो अच्छे के लिये माँ है, वो थोड़ी बुरा चाहती है फिर से बहनों के पुराने कपड़े? बच्ची सामान नया चाहती है! कितनी आसाँ है हयात उनके लिये “जिन चरागों […]

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T-11/18 उनके क़दमों में क़ज़ा चाहती है-शफ़ीक़ रायपुरी

उनके क़दमों में क़ज़ा चाहती है ज़िन्दगी मेरी बक़ा चाहती है कोई शिकवा न गिला चाहती है ज़िन्दगी मेहरो-वफ़ा चाहती है वो खटकते हैं अंधेरों को सदा ‘जिन चराग़ों को हवा चाहती है’ मेरा अल्लाह बचाता है मुझे और दुनिया है बुरा चाहती है घूमती फिरती है शानों पे लिये सूखे पत्तों को हवा चाहती […]

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T-11/17 रंग पीला है हरा चाहती है-पवन कुमार

रंग पीला है हरा चाहती है ये फ़ज़ा बर्गो-नवा चाहती है जो घड़ी दूर हुआ चाहती है वापसी की वो दुआ चाहती है ज़िन्दगी मेरी ये क्या चाहती है अपने दुश्मन का भला चाहती है कश्मकश में है कि जाना है कहाँ एक तितली जो उड़ा चाहती है हर मुसाफिर से भला क्यूँ ये सराय […]

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T-11/16 ख़्वाब पलकों पे सजा चाहती है-परवीन ख़ान

ख़्वाब पलकों पे सजा चाहती है आस आकाश खुला चाहती है मेरे अंदर कोई नन्ही चिड़िया इक मुहब्बत की फ़ज़ा चाहती है ये मिरी सादा-मिज़ाजी भी बस सारी दुनिया का भला चाहती है मुश्किलें रोज़ नई दे देकर ज़िंदगी मुझसे वफ़ा चाहती है रौशनी रात में भरने के लिये ज़िंदगी मुझ सा दिया चाहती है […]

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T-11/15 है अजब लड़की वफ़ा चाहती है-फ़रहत ख़ान

है अजब लड़की वफ़ा चाहती है आज के दौर में क्या चाहती है बात जो अपनी अना चाहती है वो तो दरअस्ल दुआ चाहती है किस को अहसास है बदकारी का हर नफ़स आज मज़ा चाहती है ग़म का एहसास चुभन हो दिल में शायरी ऐसी … … फ़ज़ा चाहती है लगता है मरना ही […]

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T-11/14 मेरे होटों को छुआ चाहती है-स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’

मेरे होटों को छुआ चाहती है ख़ामुशी! तू भी ये क्या चाहती है ? मेरे रस्ते से हटा चाहती है दिल की दीवार गिरा चाहती है मेरे कमरे में नहीं है जो कहीं अब वो खिड़की भी खुला चाहती है ज़िन्दगी! गर न उधेड़ेगी मुझे किसलिए मेरा सिरा चाहती है सारे हंगामे हैं परदे पर […]

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T-11/13 सुब्ह सी शाम दिखा चाहती है-प्रकाश सिंह अर्श

सुब्ह सी शाम दिखा चाहती है तेरी तस्वीर हुआ चाहती है एक दुनिया है मिरी आँखों में अब वो आँखों में ख़ला चाहती है घर की बुनियाद ख़फा है इतनी एक-इक दर को नया चाहती है सांस दर सांस घटा जाऊं मैं सांस पर सांस लड़ा चाहती है एक घबराई ख़मोशी मुझमें रात भर मुझ […]

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T-11/12 बंद दर खोल रखा चाहती है-अनिल जलालपुरी

बंद दर खोल रखा चाहती है हर घुटन ताज़ा हवा चाहती है सात घोड़ों पे न जाये सूरज राह आराम ज़रा चाहती है मुझपे मुश्किल न कभी आये कोई बस यही मां की दुआ चाहती है मुझपे आसान रही है दुनिया रूह सजदे में रुका चाहती है बोल मत उनकी सिफ़ारिश में ‘अनिल’ जिन चराग़ों […]

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T-11/11 ये सियासत है रिया चाहती है-नवनीत शर्मा

ये सियासत है रिया चाहती है ये महब्‍बत है दुआ चाहती है बेखुदी मुझमें ख़ला चाहती है और फिर मेरी रज़ा चाहती है फिर मेरी आंखों में सूरज डूबा शाम सी दिल में हुआ चाहती है कितने पैबंद लगाऊं आख़िर ज़िंदगी कैसी क़बा चाहती है अश्‍क सूखे हैं, घुटन रोने को आज कुछ हमसे नया […]

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T-11/10 प्यार की एक सदा चाहती है-हरीश प्रथवानी “राही “

प्यार की एक सदा चाहती है अब तपिश दिल की बुझा चाहती है कसमसाती है हया परदे में आसमां अब ये खुला चाहती है लौट आओ है गुज़ारिश मेरी ज़िन्दगी ज़ख़्म नया चाहती है जिसने ठुकराया मुझे राहों में वो ख़ुशी मेरा पता चाहती है ख़ुदग़रज़ इतनी कहां थी पहले आज यारी भी अना चाहती […]

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T-11/9 और क्या मेरी दुआ चाहती है-डॉ आज़म

और क्या मेरी दुआ चाहती है सारी दुनिया का भला चाहती है दर्द नाक़ाबिले-बर्दाश्त मिले मेरी बर्दाश्त भी क्या चाहती है आज हो जाउं इसी में ग़रक़ाब अश्क की मौजे-बला चाहती है नाम सुक़रात का छोटा कर दे वो सज़ा मेरी ख़ता चाहती है मैं उतर आउं अदाकारी पर बस यही तेरी अदा चाहती है […]

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T-11/8 जिन चिरागों को हवा चाहती है-सिद्ध नाथ सिंह

जिन चिरागों को हवा चाहती है उनसे दुनिया भी ज़िया चाहती है रह गया एक पहेली बन के, ज़ीस्त क्या हमसे भला चाहती है. ये सुना जब से मसीहा है तू, रूह हर ज़ख़्म नया चाहती है. देखना ही न हवा चाहे जो मौज साहिल पे लिखा चाहती है. है ये दुनिया भी अजब महबूबा, […]

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T-11/7 और जीने की रज़ा चाहती है-देवेन्द्र गौतम

और जीने की रज़ा चाहती है ज़िंदगी मेरा बुरा चाहती है आंधियों से न बचाये जायें जिन चराग़ों को हवा चाहती है सर झुकाये तो खड़ा है हर पेड़ और क्या बादे-सबा चाहती है बंद कमरे की उमस किस दरजा हर झरोखे की हवा चाहती है मेरी तकलीफ़ बिछड़ कर मुझसे मुझको पहले से सिवा […]

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T-11/6 आंख तो ख़ाब नया चाहती है-अनिल जलालपुरी

आंख तो ख़ाब नया चाहती है पेट की भूख ग़िज़ा चाहती है सच यही होता है दुनिया का मियां झूट पर झूट नया चाहती है आसमानों में नयी हलचल है ये ज़मीं कैसी घटा चाहती है एक आवारगी मेरे अन्दर पांचवीं सम्त खुला चाहती है नन्हीं चिड़िया ने पसारे डैने आसमां और बड़ा चाहती है […]

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T-11/5 नाम ज़ालिम का लिया चाहती है-सौरभ शेखर

नाम ज़ालिम का लिया चाहती है अब जुबां मेरी खुला चाहती है करवटें लेने लगा सन्नाटा चीख़ इक मुझमें जगा चाहती है हर मुसीबत से रिफ़ाक़त मेरी हर बला मेरा भला चाहती है पासबानी वो करे ख़ुद उनकी ‘जिन चराग़ों को हवा चाहती है’ लालची क़ौम नहीं है, साहब रोटियां, कपड़े, दवा चाहती है उसने […]

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T-11/4 रात सूरज की ज़िया चाहती है-डॉ. आदिक भारती

अपने हासिल से सिवा चाहती है रात सूरज की ज़िया चाहती है छाँव तो सबका भला चाहती है धूप से पूछो वो क्या चाहती है नश्शा आमेज़ अदा चाहती है ज़ुल्फ़ कुछ और हवा चाहती है अब्र के घर से निकलती हर बूँद प्यासी धरती का पता चाहती है वो क़फ़न बाँधे हुए हैं सर […]

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T-11/3 इक मुहब्बत का ख़ुदा चाहती है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

इक मुहब्बत का ख़ुदा चाहती है मेरी उम्मीद भी क्या चाहती है कोई मफ़हूम नया चाहती है यानी तख़लीक़ ग़िज़ा चाहती है दिल पे छाया है बला का जादू हमको भी एक बला चाहती है कैसी पागल है मिरी नादानी अम्न का फूल खिला चाहती है अब तिरी याद को समझाये कौन ज़ख़्म हर वक़्त […]

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T-11/2 इश्क़ की शम्म बुझा चाहती है-दिनेश नायडू

इश्क़ की शम्म बुझा चाहती है शायरी तेज़ हुआ चाहती है मैं भी हर ख्वाब भुला बैठा हूँ वो भी अब ख्वाब नया चाहती है सबको होना है मुहब्बत में ख़ाक आग भी किसका भला चाहती है तेरी उम्मीद अभी तक मुझमें सारे पेड़ों को हरा चाहती है क्यूँ मुहब्बत में मिलन का हो ज़िक्र […]

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T-11/1 तेरे क़दमों में बिछा चाहती है-विकास शर्मा ‘राज़’

तेरे क़दमों में बिछा चाहती है अब मिरी ख़ाक हवा चाहती है मैं कहाँ चाहता हूँ सन्नाटा मेरे अंदर की फ़ज़ा चाहती है अब खिलौनों से नहीं बहलेगी ख़ल्क़ सचमुच का ख़ुदा चाहती है कब तलक बोझ उठाये छत का अब ये दीवार गिरा चाहती है मेरी आवाज़ तो इक क़तरा है ख़ामुशी सैले-नवा चाहती […]

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T-11 तरही मिसरा :- जिन चराग़ों को हवा चाहती है

दोस्तो ! तरही निकालने का वक़्त आ गया है। मिसरा पेश करने से पहले कुछ बात करना चाहूंगा। पिछले कुछ समय से अनुभव आया है कि आप लोग तरह के सिवा बाक़ी हलचलों की ओर कम उन्मुख हो रहे हैं। तरह में भी हर ग़ज़ल को ख़ासी तादाद में पढ़ रहे हैं मगर कमेंट कम […]

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