T-10
T-10/39 समापन-तुफ़ैल चतुर्वेदी
दोस्तो, आज 26 तारीख़ है। इस बार की तरही ख़ासी दिक़्क़त-तलब रही। इस तरही में 38 ग़ज़लें पोस्ट हुईं। कुछ ग़ज़लें हटायी भी गयीं या पोस्ट नहीं की जा सकीं। यानी मेहनत तो ख़ासी हुई मगर मेरे नज़दीक जैसी मेरी ख़ाहिश थी या मैं चाहता था वैसी ग़ज़लें नहीं हुईं। मेरी आपकी तो बात जाने […]
T-10/38 रौशनी जितना छटपटाती है-तुफ़ैल चतुर्वेदी
रौशनी जितना छटपटाती है तीरगी उतनी बढती जाती है किस बला की चमक है आंखों में सारी तस्वीर झिलमिलाती है कोई शय जल रही है सीने में इक सुहाती सी आंच आती है दिन नहीं आता मेरी दुनिया में रात जाती है रात आती है छोड़ देता है दिन किसी सूरत शाम सीने पे बैठ जाती […]
T-10/37 वो हवा जो वरक़ उड़ाती है-विकास शर्मा ‘राज़’
वो हवा जो वरक़ उड़ाती है मुझको तरतीब दे के जाती है आइनों का नहीं बिगड़ता कुछ धूप टकरा के लौट जाती है जो समाअत में घोलती थी रस वो सदा शोर होती जाती है ख़ुद ही होना है अब नुमू हमको क्या पता कब बहार आती है मेरे हिस्से का अब्र बरसेगा तिश्नगी मेरी […]
T-10/36 चाहे ठोकर हमें गिराती है-पूरन अहसान
चाहे ठोकर हमें गिराती है गिर के उठना मगर सिखाती है गोद में चिड़िया चहचहाती है शाख़ ममता के गीत गाती है देख बेवा की आंखों का सैलाब आइने में दरार आती है ख़ाब क्यों देखूं राजमहलों के नींद जब झोपड़ी में आती है किस लिए हम जहां में आये थे और तक़दीर क्या दिखाती […]
T-10/35 बात उनकी ठकुरसुहाती है-विजय प्रकाश भारद्वाज
बात उनकी ठकुरसुहाती है पर अदब को न रास आती एक पल के हसीन लालच में खुद से की शर्त टूट जाती है उसके पैग़ाम जब भी पढता हूँ आग मज़मून से उठ आती है दूरियां खुद सिकुड़ने लगती हैं याद जब फ़ासले मिटती है बारहा अम्न के संदेशे पर एक सरहद सी टूट जाती […]
T-10/34 मुद्दतों ख़ूब आज़माती है-रश्मि सबा
मुद्दतों ख़ूब आज़माती है फिर मुहब्बत समझ में आती है रूप अपना उजालने के लिए ज़िन्दगी धूप में नहाती है सब चराग़ों को डस चुकी आंधी एक दिन ख़ुद से हार जाती है. सारा आलम दुहाई देता है रात जब दास्तां सुनाती है मुझसे लिपटी हुई है याद कोई मुझको सरसब्ज़ जो बनाती है कोई […]
T-10/33 क्यूँ कि फ़ितरत में बेसबाती है – अज़ीज़ बेलगामी
क्यूँ कि फ़ितरत में बेसबाती है ख़ौफ़ बे-रहरवी से खाती है जब भी बादे-ख़िराम आती है नक़्शे -पा आब पर बनाती है बे-ज़रर ज़िन्दगी के क्या कहने चोट खाती है, मुस्कुराती है पेचो-ख़म काकुले-सुख़न के नहीं जीस्त की लट बहुत सताती है दूर हैं हम दरीदा दहनी से हम को बिस्यार गोयी आती है ज़न […]