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T-5/20-तरही-5 का समापन-भाग-2 तुफ़ैल चतुर्वेदी

शायरी का जो बयानिया लहजा है वो अमूमन इकहरा होता है, मगर उसमें उपमाओं का प्रयोग शायर की क्षमता के हिसाब से ज़बरदस्त होता है। आइये मीर अनीस के मर्सियों से लिए गए दो बंद देखें। घोड़े की तारीफ करते हुए मीर अनीस फ़रमाते हैं जुरअत में रश्के-शेर तो हैकल में पीलतन पोई के वक़्त […]

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T-5/20-तरही-5 का समापन-भाग-1 तुफ़ैल चतुर्वेदी

भाषा भाष क्रिया की व्युत्पत्ति है। भाष का अर्थ है प्रकाशित करना. जो प्रकाशित करती है, स्पष्टता बढाती है, वही भाषा है। यानी जिससे समझ बढे, स्थितियों, प्रकृति का ज्ञान बढ़े। ज़ाहिर है इस कार्य को करने के लिए आदान-प्रदान की ज़ुरूरत है। बहस भी इसका एक स्वरूप है। इस बार मैं केवल अपनी ग़ज़ल […]

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T-5/18 ख़ाक था, जिस्म का लेकिन मुतबादिल हुआ मैं-तुफ़ैल चतुर्वेदी

ख़ाक था, जिस्म का लेकिन मुतबादिल हुआ मैं ‘उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं’ हाथ मलती है फ़ज़ा शह्र के हैं लोग अवाक क़हक़हे छोड़ के ख़ामोशी में दाख़िल हुआ मैं हाथ फैलाये हुए दश्त बुलाता था मुझे एक दीवाना था, दीवानों में शामिल हुआ मैं शर्त जां देने की ठहराते हो,हाज़िर […]

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T-5/17 शम्मे-अशआर के परवानों में शामिल हुआ मैं-द्विजेन्द्र द्विज

शम्मे-अशआर के परवानों में शामिल हुआ मैं उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं शेर की शक्ल में औराक़ पे नाज़िल हुआ मैं उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं गुम हुआ ख़ुद से भी दुनिया से भी ग़ाफ़िल हुआ मैं उसपे मर मिट के ये किस दश्त में दाख़िल हुआ […]

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T-5/16 एक लहराती हुई नद्दी का साहिल हुआ मैं-पवन कुमार

एक लहराती हुई नद्दी का साहिल हुआ मैं फिर हुआ ये कि हरिक लहर से चोटिल हुआ मैं अब बनाते हैं मिरे दोस्त निशाना मुझको ‘तुझको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं’ दिल में इस राज़ को ताउम्र छुपाया मैंने किसकी चाहत में था शामिल किसे हासिल हुआ मैं इश्क़ की फ़्ह्म क्या […]

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T-5/15 लाख अरमान लिए बज़्म में दाख़िल हुआ मैं-अभय कुमार अभय मेरठी

लाख अरमान लिए बज़्म में दाख़िल हुआ मैं तेरे अंदाज़े-तग़ाफ़ुल ही से घाइल हुआ मैं हिज्र की आग में तपकर ही हुआ हुं कुन्दन “उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं सब करिश्मा है तिरा इसमें मेरा कुछ भी नहीं कभी तूफ़ाने-बला मैं, कभी साहिल हुआ मैं तेरी अज़मत का करूं ज़िक्र कहाँ […]

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T-5/14 कभी मक़तूल हुआ और कभी क़ातिल हुआ मैं-असरार किठोरवी

कभी मक़तूल हुआ और कभी क़ातिल हुआ मैं हाँ मगर अपने हरेक फ़ेल प माइल हुआ मैं मौज-दर-मौज किया पार यॆ दरिया-ए-हयात जब भी मझधार हुआ आप ही साहिल हुआ मैं जब्र है तौर तिरा ज़ब्त रविश है मेरी तू ही नाचार हुआ और न बेदिल हुआ मैं कोई पत्थर जो मेरी सम्त उधर से […]

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T-5/13 रफ़्ता रफ़्ता जो तेरी आंच में दाख़िल हुआ मैं-दिनेश शर्मा ‘शबाब’ मेरठी

रफ़्ता रफ़्ता जो तेरी आंच में दाख़िल हुआ मैं ऐसा लगने लगा बारिश के मुक़ाबिल हुआ मैं तुझको देखा कि अजंता की किसी मूरत को बस के बुत जैसा बना ख़ुद से भी ग़ाफ़िल हुआ मैं सुब्ह को ओक में भरने की तलब होती है जब से उस हुस्न के दीदार में शामिल हुआ मैं […]

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T-5/12 उसको इन्साफ़ मिले इसलिये आदिल हुआ मैं- याक़ूब आज़म

उसको इन्साफ़ मिले इसलिये आदिल हुआ मैं उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं फ़र्श पे टूट के तारे न बिखर जायें कहीं एक एहसास हुआ जब कभी बेदिल हुआ मैं मुझपे इल्ज़ाम-तराशी का हुनर बेजा है तिरी मर्ज़ी से ही दिल में तिरे दाख़िल हुआ मैं सच को सच कहने की उसने […]

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T-5 11–तू मेरे पंख जलाकर ……–मयंक अवस्थी

ऐ समन्दर तेरी तस्कीन का साहिल हुआ मैं फिर भी क्यूँ तुझको लगा तेरे मुकाबिल हुआ मैं  मैं ही दुनिया हूँ तो सब कुछ तो मेरा हिस्सा है कैसे दुनिया की हरिक राह की मंज़िल हुआ मै जब अनासिर की रिदा ओढ के सो जाता हूँ ख़्वाब इक आ के डराता है कि बातिल हुआ मैं आँख खोली तो छुपा […]

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T-5/10 जब कभी हद्दे-ख़राबात में दाख़िल हुआ मैं-डॉ आज़म

जब कभी हद्दे-ख़राबात में दाख़िल हुआ मैं गुम हुआ ऐसा कि फिर ख़ुद को न हासिल हुआ मैं कुछ न सूझा मुझे जब उसके मुक़ाबिल हुआ मैं अक़्ल से दूर हुआ फ़्ह्म से ग़ाफ़िल हुआ मैं शिद्दते-इश्क़ ने बख्शा मुझे आवारापन ‘उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं’ बंदगी से मिरी तू, मैं […]

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T-5/9 ठोकरें खायी मगर जानिबे-मंज़िल हुआ मैं-सौरभ शेखर

ठोकरें खायी मगर जानिबे-मंज़िल हुआ मैं उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं रुक गयी आके तिरी यादों की टोली मुझमें दौर पर दौर चले अश्कों के महफ़िल हुआ मैं वार था घात में बैठे हुए कुछ ख़ाबों का जां बचानी थी मुझे इसलिये क़ातिल हुआ मैं एक जां कर गयी हम दोनों […]

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T-5/8 अपने दुख शेर में कहने पे जो माइल हुआ मैं-अब्दुल अहद ‘साज़’

अपने दुख शेर में कहने पे जो माइल हुआ मैं दर्द के हल्क़ा-ए-अहबाब में शामिल हुआ मैं ग़म के असबाक़ पढ़े, सीखी वफ़ा की तहज़ीब ‘उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं हाय वो सांवले होठों पे सलोनी गुफ़्तार बस की दिलदादा-ए-मलयालामो-तामिल हुआ मैं आगही के लिये दीवानगी लाज़िम ठहरी जितना बाहोश हुआ […]

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T-5/6ज़ात के बन में जो अपने कभी दाख़िल हुआ मैं-स्वप्निल तिवारी “आतिश”

ज़ात के बन में जो अपने कभी दाख़िल हुआ मैं अपने अंदर के अंधेरों के मुक़ाबिल हुआ मैं रास्ता भूले तो पहुंचे कोई मुझ तक यारों एक बेसम्त सफ़र की कोई मंज़िल हुआ मैं लहरें उठती रहीं गिरती रहीं दिन भर मुझमें शाम होते ही समंदर के मुक़ाबिल हुआ मैं मेरे भीतर तो कोई भी […]

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T-5/5 बंद दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं-इरशाद खान ‘सिकंदर’

बंद दरवाज़े खुले रूह में दाख़िल हुआ मैं चंद सज्दों से तिरी ज़ात में शामिल हुआ मैं खींच लायी है मुहब्बत तिरे दर पर मुझको इतनी आसानी से वर्ना किसे हासिल हुआ मैं मुद्दतों आँखें वज़ू करती रहीं अश्कों से तब कहीं जाके तिरी दीद के क़ाबिल हुआ मैं जब तिरे पांव की आहट मिरी […]

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T-5/4 हज़ल —मयंक अवस्थी

हज़ल दर तेरा बन्द था फिर भी तुझे हासिल हुआ मैं तेरे कमरे में लबे-बाम से दाखिल हुआ मैं फुलझड़ी थी कोई ऐसी तू जिसे पाने को तेरे अब्बा की इमारत पे मिसाइल हुआ मैं कब भला मैने तेरा हुस्न सरापा देखा गुस्लखाने की तेरे कब भला टाइल हुआ मैं चार सू मुझको फकत तू […]

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T-5/3 दर्द इस दर्जा मिले ज़ब्‍त में कामिल हुआ मैं-नवनीत शर्मा

दर्द इस दर्जा मिले ज़ब्‍त में कामिल हुआ मैं उसको पाने की तलब में किसी काबिल हुआ में फोन पर बात हुई उससे तो अंदाज़ा हुआ अपनी आवाज़ में बस आज ही शामिल हुआ मैं रो के अक्‍सर मैं हंसा हंस के मैं रोया भी अगर जिंदगी तुझमें तो हर रंग में शामिल हुआ मैं […]

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T-5/2 छू लिया उसने ज़रा मुझको तो झिलमिल हुआ मैं-गौतम राजरिशी

छू लिया उसने ज़रा मुझको तो झिलमिल हुआ मैं आसमां ! तेरे सितारों के मुक़ाबिल हुआ मैं नाम बेशक न लिया उसने कभी खुल के मेरा चंद ग़ज़लों में मगर उसकी तो शामिल हुआ मैं हाल मौसम का, नई फिल्म या वैसा ही कुछ कह गया सब, न कही दिल की, तो बुज़दिल हुआ मैं […]

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T-5 मिसरा तरह ‘ उसको पाने की तलब में किसी क़ाबिल हुआ मैं ‘ -तुफ़ैल चतुर्वेदी

मित्रो! इन दिनों मैं सूरत में हूँ। मुंबई से सूरत का सफ़र ट्रेन के ज़रिये हुआ। सफ़र में फ़रहत अहसास साहब का क़लमी मजमुआ जिसे विकास शर्मा राज़ ने लिख कर मुझे दिया है साथ था . कई जगह मिसरों में इस्लाहें की गयी हैं, मिसरे नामौज़ूं कर दिए गए हैं। अच्छे शायर के बड़े […]

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