T-15

T-15/38 झुकाये बैठा है सर को, किसी की माना क्या-‘तुफ़ैल’ चतुर्वेदी

झुकाये बैठा है सर को, किसी की माना क्या ज़रा भी अक़ल की सुन ले तो वो दिवाना क्या रची-बसी तिरी ख़ुश्बू से वापसी की क़सम हवा लगायेगी फिर मेरे ताज़ियाना क्या नहीं मिलाता वो ऑंखें तो ग़म उठाना क्यूँ खुला कोई भी न होगा शराबख़ाना क्या अगर सहार नहीं थी तो क्यों किया था […]

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T-15/37 जिधर से आ गये उस सिम्त मुड़ के जाना क्या-गोविन्द गुलशन

जिधर से आ गये उस सिम्त मुड़ के जाना क्या ‘वो नर्मरौ है नदी का मगर ठिकाना क्या’ तुम एक बार ज़रा आँधियों से पूछ ही लो उड़ा के ले गयीं ख़ाबों का आशियाना क्या हवायें सीख लें कब किस पे वार करना है चराग बुझने ही वाला हो तो बुझाना क्या उसे तो मंज़िले-मक़सूद […]

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T-15/36 जहां न कोई हो अपना वहां पै जाना क्‍या-‘प्रेम’ पहाड़पुरी

जहां न कोई हो अपना वहां पै जाना क्‍या जहां पै कोई हो अपना वहां से आना क्‍या इसी में उलझा रहेगा भला ज़माना क्‍या न दूट पायेगा इसका ये खोना पाना क्‍या तुम्हें है ‍फ़ि‍क्र नशेमन की मुझको गुलशन की न हो चमन ही सलामत तो आशियाना क्‍या अब एक रोज़ हमेशा के वास्‍ते […]

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T-15/35 वक़ारे-इश्‍क़ क़दम-दर-क़दम गिराना क्‍या-मनोज कुमार ‘कैफ़’

वक़ारे-इश्‍क़ क़दम-दर-क़दम गिराना क्‍या रहे-तलब में चले हो तो सिर झुकाना क्‍या हमीं ने रेत का दरिया था इन्तिख़ाब किया यहां पहुंच के सदा अल-अतश लगाना क्‍या हमारे ज़ौक़ो-तजस्‍सुस को है सलीब तलब खड़ा है वक़्त लिये सिर्फ़ ताज़ि‍याना क्‍या बहुत घुटन है चलूं सैर को, ज़रा देखूं खुला हुआ है हवा का शराबख़ाना क्‍या […]

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T-15/34 वो शेर सुन के मिरा हो गया दिवाना क्या-नज़ीर नज़र

वो शेर सुन के मिरा हो गया दिवाना क्या ! ! ! मैं सच कहूँगा तो मानेगा ये ज़माना क्या कभी तो आना है दुनिया के सामने उसको अब उसको ढूँढने दैरो-हरम में जाना क्या ख़ुशी के वास्ते जद्दो-जहद बहुत की है पड़ेगा वैसे मुझे दर्द भी कमाना क्या सुना है काम चलाते हो तुम […]

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T-15/33 ज़रा सी लौ है इसे इतना आज़माना क्या-‘शबाब’ मेरठी

ज़रा सी लौ है इसे इतना आज़माना क्या हवा चराग़ से करती है दोस्ताना क्या कुरेदती है ख़मोशी बहुत मुझे दिन-रात है उसके पास सवालात का ख़ज़ाना क्या अँधेरा हो गया जाओ शराब ले आओ चराग़ शाम को घर में नहीं जलाना क्या वो मेरे सामने हो कर भी है फ़रारी में उठा के ले […]

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T-15/32 पराई आँखों से जलधार को बहाना क्या – नवीन

कहा तो सब ने सभी से कि है छुपाना क्या मगर किसी ने किसी के कहे को माना क्या ये रोज़-रोज़ का ही रूठना-मनाना क्या मुहब्बतों में सनम जीतना-हराना क्या पराई आँखों से जलधार को बहाना क्या नहीं है प्यार तो फिर प्यार का बहान: क्या कभी वनों को जलाया कभी बुझाये चराग़ हवाओ तुमने […]

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T-15/31 शिकस्त से हूँ मैं अब तक मुख़ातिमाना क्या-अहमद सोज़-2

शिकस्त से हूँ मैं अब तक मुख़ातिमाना क्या है मुझमें कोई अभी तक सिपाही आना क्या दिखायी देने लगी है दरार रिश्तों में है हम में दोस्तों कोई मुनाफ़िक़ाना क्या हताश हूँ मैं बनाने-बिगाड़ने से बहुत ये बार-बार मिटाना मुझे बनाना क्या जो सोचता हूँ तो लगता हूँ ख़ाली हाथ सा मैं मिरे बदन से […]

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T-15/30 अब इस क़दर भी सदा नाक-भौं चढ़ाना क्या-परवीन ख़ान

अब इस क़दर भी सदा नाक-भौं चढ़ाना क्या ज़रा सी बात का हर वक़्त दोगे ताना क्या नज़र के सामने लाशें बिछी हैं खुशियों की अब ऐसे हाल में आता है मुस्कुराना क्या तुम्हारी पहली पहल ने ही दिल दुखाया है हो जिसकी नींव ही टेढ़ी वो घर बनाना क्या फ़लक पे चाँद सितारों सा […]

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T-15/29 छुपाऊँ कैसे हक़ीक़त गढ़ूं फ़साना क्या-‘नूर’ जगदलपुरी

छुपाऊँ कैसे हक़ीक़त गढ़ूं फ़साना क्या समझ में कुछ नहीं आता करूँ बहाना क्या न जाने कब मिरी कश्ती बहा के ले जाये ‘वो नर्मरौ है नदी का मगर ठिकाना क्या’ वो आब क्या जो बुझाये न प्यास प्यासों की मिटाये भूक न भूकों की जो वो दाना क्या तिरे बग़ैर तो गुलशन में कुछ […]

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T-15/28 किसी के जब्रो-तशद्दुद से ख़ौफ़ खाना क्या-‘शफ़ीक़’ रायपुरी

किसी के जब्रो-तशद्दुद से ख़ौफ़ खाना क्या बचाना हाथ ज़ुरूरी है सर बचाना क्या न जाने कब वो लगा दे मुझे ठिकाने से रहे-हयात है ये मौत का ठिकाना क्या जिसे भी देखो वो करता है बात नफ़रत की नहीं ख़ुलूसो-मुरव्वत का अब ज़माना क्या चली है छोड़ के क्यूँ ऐ ख़ुशी की शहज़ादी तुझे […]

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T-15/27 ये आंसुओं से कोई पूछे यूँ निभाना क्या-‘आसिफ़’ अमान

ये आंसुओं से कोई पूछे यूँ निभाना क्या ज़रा सी बात पे आँखों से रूठ जाना क्या ए दिल बता उसे मुमकिन है भूल जाना क्या अगर नहीं है तो फिर इसमें सर पचाना क्या सवाल यूँ करे जैसे जवाब जाने है चलेगा सामने उसके मिरा बहाना क्या यह सोच ही तो हमें रोकती है […]

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T-15/26 ‘शरीफ़’ अंसारी

जहाने-ऐशो-तरब से फ़रेब खाना क्या यहाँ किसी का हुआ है कभी ज़माना क्या सख़ी से अपना कोई राज़े-दिल छुपाना क्या बता न हाथ लगा है कोई ख़ज़ाना क्या जहां ख़ुलूसो-महब्बत का दौर-दौरा हो वहाँ पे हर्फ़े-शिकायत ज़बां पे लाना क्या मैं अपनी राह से भटका हुआ मुसाफ़िर हूँ बताऊँ अपना किसी को पता-ठिकाना क्या हुज़ूर […]

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T-15/25 रहें तबीयतें ऐसी भी आशिक़ाना क्या-मुमताज़ नाज़ाँ

रहें तबीयतें ऐसी भी आशिक़ाना क्या बुते-तुराब के आगे भी सर झुकाना क्या जो जान कर भी हैं अनजान हर हक़ीक़त से अब अपना हाले-तबाही उन्हें दिखाना क्या हमारे नाज़ उठाये हैं चाँद-तारों ने हमारे नाज़ उठायेगा ये ज़माना क्या भरोसा इतना न कर तुंद-ख़ू हवाओं पर कि रुख़ हवा का बदल जाये कब, ठिकाना […]

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T/24-मेरा नसीब मुझे कर्बला में लाया है -मयंक अवस्थी

ये आँख मूँद, अकेले में मुस्कुराना क्या तुम्हारे साथ है गुज़रा हुआ ज़माना क्या ग़ज़ल के शेर रक़ीबों को अब सुनाना क्या जो बुझ चुके हैं उन्हें बेसबब जलाना क्या मुझे ये इल्म नहीं था कि ख़ल्क अन्धी है कोई चराग़ अब इस रात में जलाना क्या वो आसमान से गिरता तो हम उठा लेते […]

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T-15/23 फ़लक ही ओढ़ना और है ज़मीं बिछाना क्या-बिमलेंदु

फ़लक ही ओढ़ना और है ज़मीं बिछाना क्या दिवाने है तिरा सहरा में ही ठिकाना क्या कभी कभी तो अँधेरों के दिन पलटते हैं बुझा हो दिल तो चराग़ों को फिर जलाना क्या तिरे अता किये ज़ख़्मों से घर सजाया है हुआ है यूँ ही मुनव्वर ग़रीबख़ाना क्या तिरे फ़िराक़ में सिगरेट तो साथ सुलगी […]

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T-15/22 अमल रहेगा मिरा मिस्ले-ताइराना क्या-डॉ आज़म

अमल रहेगा मिरा मिस्ले-ताइराना क्या तलाश रोज़ करूँगा मैं आबो-दाना क्या फिर आप देर से चुप हैं जवाब देने में फिर आप सोच रहे हैं कोई बहाना क्या तअल्लुक़ात में नुक़सान फ़ायदे का ख़याल तमाम रिश्ते हुए आज ताजिरना क्या जो लोग करते हैं तारीफ़ सामने मेरी पता नहीं है कि कहते हैं ग़ाएबाना क्या तरह […]

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T-15/21 जुनूने-शौक़ अगर है तो हिचकिचाना क्या-राजीव भरोल

जुनूने-शौक़ अगर है तो हिचकिचाना क्या उतरना पार या कश्ती का डूब जाना क्या हमारे बिन भी वही क़हक़हे हैं महफ़िल में हमारा लौट के आना या उठ के जाना क्या यही कहा है सभी से कि ख़ैरियत से हूँ अब अपना हाल हर इक शख्स को सुनाना क्या दिखाने को तो दिखा दूं मैं […]

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T-15/20 तुझे भी याद है वो रूठना मनाना क्या-पवन कुमार

तुझे भी याद है वो रूठना मनाना क्या अभी जवान है गुज़रा हुआ ज़माना क्या सुरूरे-इश्क़ को ताज़िंदगी करो महसूस जो रूह भीग चुकी है तो फिर सुखाना क्‍या जो बात नक़्श है दिल पर वो मिट नहीं सकती सो उसके वास्ते लम्हात क्या ज़माना क्या अजीब खेल है हर बार जिसने तीर सहे बना […]

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T-15/19 सियाह रात के साये में आना जाना क्या-याक़ूब आज़म

सियाह रात के साये में आना जाना क्या जो रिश्ते टूट चुके हैं उन्हें निभाना क्या वो खेल आँख मिचोली का था सुहाना क्या तुम्हें भी याद है बचपन का वो ज़माना क्या लुटा रहे हो मुहब्बत हर इक बशर के लिये लगा है हाथ कोई प्यार का ख़ज़ाना क्या फिसल गये थे जहाँ साथ […]

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T-15/18 नज़र मिला के झुकना, ये मुस्कुराना क्या-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’

नज़र मिला के झुकाना, ये मुस्कुराना क्या तुम्हें भी मुझसे मुहब्बत है वालिहाना क्या तुम्हारे और मिरे दरमियां जो रिश्ता है अगर गुनाह नहीं है तो फिर छुपाना क्या हमारे दिल की तरफ आपकी नज़र क्यूँ है परिन्द ढूंढ रहा है कोई ठिकाना क्या वो क्या है तू नहीं समझेगा, ये बता नासेह हुआ है […]

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T-15/17 है गर्दे-फ़िक्र जबीं पर इसे हटाना क्या-‘खुरशीद’ खैराड़ी-2

है गर्दे-फ़िक्र जबीं पर इसे हटाना क्या ! ! ! दबा हुआ है यहाँ भी कोई खज़ाना क्या ? टिका दिया है निशाने पे दिल को फिर मैंने हर इक दफ़ा तो चुकेगा तेरा निशाना क्या ये आपकी है मुहब्बत निखर गया हूं कुछ वगरना मुझमें था अहसास शाइराना क्या नमक भी होता है अश्कों […]

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T-15/16 हवा है तू तिरी ताक़त का कुछ ठिकाना क्‍या-नवनीत शर्मा

हवा है तू तिरी ताक़त का कुछ ठिकाना क्‍या मैं ख़ुश्क पत्‍ता हूँ फिर मुझको आज़माना क्‍या अलाव दर्द का मैं ख़ुद जलाये रखता हूँ वगरना बुझने में लगता है इक ज़माना क्‍या बयान नींद में करते हो बड़बड़ाते हुए छुपा के दिल में न रख पाओगे फ़साना क्‍या पुरानी चोटों के दिल पर निशान […]

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T-15/15 ग़ज़ल सुनाऊँ मैं ऐसे में आशिक़ाना क्या-मुबारक रिज़वी

ग़ज़ल सुनाऊँ मैं ऐसे में आशिक़ाना क्या शरीके -बज़मे-सुख़न है मिरा ज़माना क्या निगाहे-आम ने वो हादिसात देखे हैं तिरी ज़बां से सुनेगा कोई फ़साना क्या ख़बर तो लेती है अपने पड़ोस की दुनिया मगर पता नहीं होता दुरूने-ख़ाना क्या तेरे इशारे पे मरते हैं लोग सौ-सौ जान तिरी निगाह है इस दर्जा क़ातिलाना क्या […]

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T-15/14 वो जानता है लुटाना है क्या बचाना क्या-मुनव्वर अली ‘ताज’

वो जानता है लुटाना है क्या बचाना क्या जो जानता है हवा का है आना जाना क्या इसी बहाव से बस्ती उजड़ भी सकती है ‘वो नर्मरौ है नदी का मगर ठिकाना क्या’ गुज़र गया वो उदासी का कारवां ले कर बना लिया था उमीदों का आशियाना क्या वो आ रहा है किसी दिल की […]

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T-15/13 लबों पे हर्फ़े-शिकायत फ़िज़ूल लाना क्या-फ़ज़ले-अब्बास सैफ़ी

लबों पे हर्फ़े-शिकायत फ़िज़ूल लाना क्या मुहब्बतों में किसी का भी दिल दुखाना क्या उसी से चाहो मदद और उसी को पूजो भी सिवा ख़ुदा के कहीं और गिड़गिड़ाना क्या भला जब उसने किसी का भी आज तक न किया करेगा मेरा भला फिर भला ज़माना क्या करो न तर्के-तअल्लुक़ बिना सबब हमसे जले चराग़ […]

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T-15/12 यक़ीन कर के जलाते हो आशियाना क्या-राजमोहन चौहान

यक़ीन कर के जलाते हो आशियाना क्या वो आदमी है किसी बात का ठिकाना क्या कि आदमी है बड़ा गांव को बताना क्या किये हैं माँ पे तो अहसान यूँ गिनाना क्या ये जिस्म क्या है इसे यूँ भी आज़माना क्या वो बेवफा है उसे देवता बनाना क्या ज़रा सुनो भी उसे चाहता है क्या […]

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T-15/11 पहन के झूटी हँसी महफ़िलों में जाना क्या-शकील आज़मी

पहन के झूटी हँसी महफ़िलों में जाना क्या उदास हैं तो उदासी में मुस्कुराना क्या तमाशे ज़हन के आसूदगी पे निर्भर हैं लगी हो नींद तो तारों का झिलमिलाना क्या गले लगाने से पहले ये काम करना था बना लिया उसे अपना तो आज़माना क्या शराब छोड़ दी सिगरेट भी तोड़ दी हमने तुम्हारे वास्ते […]

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T-15/10 सदा लगाता रहेगा ये ताज़ियाना क्या-दिनेश नायडू

सदा लगाता रहेगा ये ताज़ियाना… क्या ? चलो दिखायें ज़माने को है दिवाना क्या वो ज़िन्दगी तो न थी सिर्फ़ एक लम्हा थी उसी के ध्यान में दिन रात डूब जाना क्या कभी कभी मैं खुले दिल से रो भी लेता हूँ उदासियों में भला सिर्फ़ मुस्कुराना क्या उदास शाम है, ग़म का वही फ़साना […]

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T-15/9 अकेले बैठ के रो-रो के मुस्कुराना क्या- स्वप्निल तिवारी ‘आतिश’

अकेले बैठ के रो-रो के मुस्कुराना क्या जो तू नहीं तो तिरी याद का भी आना क्या बसे रहेंगे हमेशा उदासियों में मिरी अधूरे ख़ाब हैं इनका पता-ठिकाना क्या हमारी आँखों ने मोती लुटा दिये सारे मिलेगा ख़ाली हवेली में अब ख़ज़ाना क्या जहां जवाब थे होने वहाँ पे गिरहें हैं उलझ गया है सवालों […]

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T-15/8 चराग़े-लफ्ज़ बहुत हो चुका पुराना क्या-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

चराग़े-लफ्ज़ बहुत हो चुका पुराना क्या हुआ है तुमसे मुख़ातिब नया ज़माना क्या तिरा ख़याल दबे पांव आ गया दिल में सो कर दूँ अश्कों को आँखों से अब रवाना क्या चले भी आओ कभी ख़ाब के दरीचे में यहाँ भी राह में दीवार है ज़माना क्या ज़रा सा प्यार दिया और ख़ुश हुए सब […]

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T-15/7 मैं दर-ब-दर हूँ बहुत मुझको ढूंढ पाना क्या-अभय कुमार ‘अभय’

मैं दर-ब-दर हूँ बहुत मुझको ढूंढ पाना क्या बताऊँ क्या तुन्हें यारो मिरा ठिकाना क्या किनारे लाख कहें तुम यक़ीन मत करना ‘वो नर्मरौ है नदी का मगर ठिकाना क्या’ हरेक दिल में धड़कता है फ़िक्र में तू है बना सकेगा कोई तुझसे फिर बहाना क्या जो दिल चुराओ तो जानें कि चोर हो तुम […]

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T-15/6 हयाते-ख़स्ता से इतना भी दिल लगाना क्या-असरार उल हक़ ‘असरार’

हयाते-ख़स्ता से इतना भी दिल लगाना क्या इसी खंडर के तले है कोई ख़ज़ाना क्या कभी तो देखा करो ख़ुद को ग़ौर से तुम भी है आइने से भी मुश्किल नज़र मिलाना क्या हमारी नब्ज़ न देखो न धड़कनों को गिनो ख़ता हुआ है तुम्हारा कभी निशाना क्या वफ़ा का ज़िक्र जब आया तो होश […]

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T-15/5 बदन को आने लगा फिर से गुनगुनाना क्या-अहमद सोज़

बदन को आने लगा फिर से गुनगुनाना क्या ये खुनकियां है दिसम्बर की आशिक़ाना क्या जो पुतलियाँ तिरी आँखों की कर रही है कथक मचल रहा है बदन में कोई तराना क्या बुझा के सारे दिये सो गया था चैन से मैं यूँ मेरे सपनों में आना मुझे जगाना क्या सदा-ए-दर्द से लरज़े है शब […]

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T-15/4 ज़रा भी काम न आयेगा मुस्कुराना क्या-आलोक मिश्रा

ज़रा भी काम न आयेगा मुस्कुराना क्या तना रहेगा उदासी का शामियाना क्या मैं चाहता हूँ तकल्लुफ़ भी तर्क़ कर दो तुम नहीं हैं अब वो मरासिम तो आना-जाना क्या तमाम तीरो-तबर क्या मिरे लिये ही हैं मुझी पे लगना है दुनिया का हर निशाना क्या इन्हीं को चीर के बढ़ना है अब किनारे पर […]

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T-15/3 मिला न खेत से उसको भी आबो-दाना क्या-सौरभ शेखर

मिला न खेत से उसको भी आबो-दाना क्या किसान शह्र को फिर इक हुआ रवाना क्या कहाँ से लाये हो पलकों पे तुम गुहर इतने तुम्हारे हाथ लगा है कोई ख़ज़ाना क्या उमस फ़ज़ा से किसी तौर अब नहीं जाती कि तल्ख़ धूप क्या, मौसम कोई सुहाना क्या तमाम तर्ह के समझौते करने पड़ते हैं […]

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T-15/2 फ़क़ीर हम हैं बसायेंगे आशियाना क्या-‘खुरशीद’ खैराड़ी

फ़क़ीर हम हैं बसायेंगे आशियाना क्या लुटा के मस्ती को पाइंदगी कमाना क्या तिरे सवाल का साक़ी जवाब दूं क्या मैं दरे-हरम से भटक कर शराबख़ाना क्या ये ज़र्ब भी मैं सहूंगा कि बेवफ़ा है वो हक़ीक़तों से अज़ीज़ो नज़र चुराना क्या हर इक नज़र है हिरासाँ हर इक ज़बाँ साकित ख़ुलूसे-अहले-सियासत को आज़माना क्या […]

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T-15/1 जो तुंदखू है उसे हर समय मनाना क्या-सिद्धनाथ सिंह

जो तुंदखू है उसे हर समय मनाना क्या वो जानता ही नहीं होता मुस्कुराना क्या गिला है आज उन्हें हमने दोस्ती तोड़ी बता दें हमको कभी दोस्त भी था माना क्या किया है हाल जो दुनिया का अक़ल वालों ने वो हाल करता कभी भी कोई दिवाना क्या यक़ीं नहीं है किसी बात पर उसे […]

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तरही-15 मिसरा तरह :- वो नर्मरौ है नदी का मगर ठिकाना क्या

साहिबो तरह पर काम करने, बात करने और मज़ा लेने का वक़्त आ गया. पिछली तरह भी इसी के साथ की बह्र में थी. मेरी ख़ाहिश है कि लगातार कुछ मिसरे इसी या इसी के आस-पास की बहरों में निकले जायें. ये बह्र ग़ज़ल में सबसे ज़ियादा बरती जाने वाली बह्र तो नहीं है मगर […]

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