दिल हमें बेकरार करना था
आपका इंतिज़ार करना था
जिस्म को बेचना गुनाह नहीं
रूह का इफ़्तिख़ार करना था
उस तरफ वो मिले मिले न मिले
हमको ये दश्त पार करना था
बोझ पलकों पे बढ़ गया मेरी
झील को आबशार करना था
क्यों पशेमां है देख कर चेहरा
आईना संगसार करना था
मैं मिटा कर उसे हुआ तनहा
अपने दुश्मन से प्यार करना था
जानेमन, बच गया हूँ शर्म करो
तुमको भरपूर वार करना था
नीरज गोस्वामी
09860211911
नीरज भाईं साहिब
ख़ूबसूरत ग़ज़ल के लिए हार्दिक बधाई।
….बच गया हूँ…..आइना संगसार
बहुत ख़ूब
दिल हमें बेकरार करना था
आपका इंतिज़ार करना था
क्या ही बढ़िया मतला हुआ है,खूब,
जिस्म को बेचना गुनाह नहीं
रूह का इफ़्तिख़ार करना था
वाह कमाल शेर,रूह का इफ़्तिख़ार करना था, वाह वाह
उस तरफ वो मिले मिले न मिले
हमको ये दश्त पार करना था
सुन्दर हर शेर बेमिसाल,गहराई लिए हुए
बोझ पलकों पे बढ़ गया मेरी
झील को आबशार करना था
मुझे इस खूबसूरत शेर को अपने सबसे ज्यादा पसंदीदा शेरों में शामिल करने की बहुत खुशी है।
मैं मिटा कर उसे हुआ तनहा
अपने दुश्मन से प्यार करना था
क्या करीने से फ़लसफ़ाए ज़िन्दगी को बयान किया गया है।वाह वाह
जानेमन, बच गया हूँ शर्म करो
तुमको भरपूर वार करना था
क्या तंज भी इतने मीठे होते हैं?,ललकार इतनी खूबसूरत!
हर एक शेर जेहन में उतरता हुआ। बहुत कामयाब ग़ज़ल के लिए ढ़ेरों ढ़ेरों दाद नीरज सर। आज पूरा दिन दिलो दिमाग पर छाई रहेगी ये ग़ज़ल ।वाह।
बेहतरीन।
HAUSLA AFZAHI KA SHUKRIYA JANAB
बेहतरीन।