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T-7/30 ख़ून से था जिस्म सबका तर-ब-तर, मेरा भी है-तुफ़ैल चतुर्वेदी
दोस्तो ! राजेंद्र मनचंदा ‘बानी’ मेरे पसंदीदा शायर हैं और लफ़्ज़ के अगले अंक में उनकी गज़लें आनी हैं। मैं उन के कलाम के प्रूफ़ पढ़ रहा था और ये मिसरा सूझा। मुझे ध्यान ही नहीं रहा कि मैं इस ज़मीन में पहले ही ग़ज़ल कह चुका हूँ। तरही कलाम की शर्त होती है कि […]
T-7/29 ज़ुल्मतों के वास्ते ख़ाबे-सहर मेरा भी है-दिनेश नायडू
ज़ुल्मतों के वास्ते ख़ाबे-सहर मेरा भी है शब से लड़ने का इरादा उम्र भर मेरा भी है दश्त में , सहरा में ,गर्दे-रहगुज़र में ,ख़ाक में वहशतों से वहशतों का इक सफ़र मेरा भी है उम्र भर ख़ानाबदोशी , हर क़दम आवारगी याद तक आता नहीं क्यों कोई घर मेरा भी है एक दरिया की […]
T-7/28 कह सकूँ ख़ुद से ‘वो देखो एक घर मेरा भी है’-द्विजेन्द्र द्विज
कह सकूँ ख़ुद से ‘वो देखो एक घर मेरा भी है’ हर सफ़र में बस ये सपना सोच भर मेरा भी है कुछ तो हैं माँ की दुआएँ , कुछ पिता के ख़्वाब हैं और मेरे साथ कुछ अज़्मे-सफ़र मेरा भी है मैं इसे घुटनों पे रखकर कब तलक बैठा रहूँ , ‘आसमाँ इक चाहिये […]
T-7/27 तेरा कुनबा है इधर वीरां उधर मेरा भी है-फ़ानी जोधपुरी
तेरा कुनबा है इधर वीरां उधर मेरा भी है आग में जलता हुआ वो देख घर मेरा भी है छोड़ कर घर-बार अपना तुम ही बस आयी नहीं नाम,रिश्ते,दोस्ती सब दांव पर मेरा भी है भूल कर भी भूल कब पायी वो मुझको आज भी उसकी हर कॉपी में ज़िक्रे-मुख़्तसर मेरा भी है ज़िन्दगी आवारगी […]
T-7/26 क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है-धर्मेन्द्र कुमार सिंह
क्रांति के लाखों स्वरों में एक स्वर मेरा भी है खा रहे नेता जो उसमें आयकर मेरा भी है सिर्फ़ पानी, धूप, मिट्टी और हवा काफ़ी नहीं आसमां इक चाहिये मुझको कि सर मेरा भी है भाग आया मैं वहाँ से क़त्ल होता देखकर हाथ लेकिन ख़ून से क्यूँ तर-ब-तर मेरा भी है जो निठल्ला […]
T-7/25 थी छुपाने की ज़ुरूरत क्यों कि सर मेरा भी है-मुहम्मद आज़म
थी छुपाने की ज़ुरूरत क्यों कि सर मेरा भी है है बहुत छोटा सा लेकिन एक घर मेरा भी है है किसी की याद की गठरी मिरा रख्ते-सफ़र ज़िंदगानी का बहुत लम्बा सफ़र मेरा भी है जिस के हर पत्ते में है इक शोला-ए-शर का वुजूद आशियां ऐसे शजर की शाख़ पर मेरा भी है […]
T-7/24 आपकी इस सल्तनत में कुछ गुज़र मेरा भी है-पवन कुमार
आपकी इस सल्तनत में कुछ गुज़र मेरा भी है है फ़लक भर आपका हक़ आंख भर मेरा भी है सोचता हूँ जितना डरता था मैं पापा से कभी क्या मिरी औलाद को उतना ही डर मेरा भी है ख़म रखूं कब तक मैं गरदन अपने सीने की तरफ़ ‘आसमां इक चाहिये मुझको कि सर मेरा […]
T-7/22 रू-ब-रू राजा के इक नूरे-नज़र मेरा भी है एफ़.ए.सैफ़ी एडवोकेट
रू-ब-रू राजा के इक नूरे-नज़र मेरा भी है है महल उसका तो इक छोटा सा घर मेरा भी है हाल कुछ तेरी तरह ऐ बेख़बर मेरा भी है सूना-सूना आज तक दिल का नगर मेरा भी है रूह फूंकी है ग़ज़ल में मीरो-ग़ालिब ने अगर इसमें शामिल बूंद भर खूने-जिगर मेरा भी है तू जफ़ा […]
T-7/21 क्या कहूं कैसे कहूं वो बेख़बर मेरा भी है-शफ़ीक़ रायपुरी
क्या कहूं कैसे कहूं वो बेख़बर मेरा भी है हां समन्दर पार इक लख्ते-जिगर मेरा भी है ज़ुल्म के आगे नहीं झुकना हुनर मेरा भी है सच के शानों पर नुमायां आज सर मेरा भी है ख़ून मैंने भी जलाया है नई तामीर में शह्रे-अख़लाक़ो-वफ़ा में एक घर मेरा भी है मुझको भी आ कर […]
T-7/20 उस गली में कोई तो नूरे-नज़र मेरा भी है-‘शबाब मेरठी’
उस गली में कोई तो नूरे-नज़र मेरा भी है एक चिलमन, इक दरीचा, एक दर मेरा भी है ज़िन्दगी की राह में तू हमसफ़र मेरा भी है तेरी आंखों में कोई आंसू अगर मेरा भी है धूप हर मौसम में जिन पर इक इबारत लिख गयी रास्ते के उन दरख़तों में शजर मेरा भी है […]
T-7/19 पत्थरों के शहर में शीशे का घर मेरा भी है-डॉ॰ सूर्य बाली “सूरज”
पत्थरों के शहर में शीशे का घर मेरा भी है खौफ़ में साये में जीने का हुनर मेरा भी है क़त्ल, दहशत, बम, धमाके, हैं दरिंदे हर तरफ वहशतों के दौर में मुश्किल सफ़र मेरा भी है देखना है कब तलक लेगा मेरा वो इम्तहान प्यार की बाज़ी में सब कुछ दांव पर मेरा भी […]
T-7/18 हो न हो मंज़िल सफ़र इक मुख़्तसर मेरा भी है-सतपाल ख़याल
हो न हो मंज़िल सफ़र इक मुख़्तसर मेरा भी है वक़्त की सूली पे लटका एक सर मेरा भी है मैं कि दरिया की तरह बहता नहीं हूँ रात-दिन हूँ तो इक तालाब ही लेकिन सफ़र मेरा भी है एक ही मौसम उदासी का है सदियों से जहाँ दर्द की उन बस्तियों में एक घर […]
T-7/17 तपते सहराओं का इक लम्बा सफ़र मेरा भी है-द्विजेन्द्र ‘द्विज’
तपते सहराओं का इक लम्बा सफ़र मेरा भी है फिर भी ज़िन्दा है जुनूँ तो राहबर मेरा भी है गो ज़मीं पर एक वक़्फ़ा मुख़्तसर मेरा भी है रह न जाऊँ मैं यहीं बस एक डर मेरा भी तू मेरे चेह्रे में गुम है मैं तेरे चेह्रे में गुम ख़ुदफ़रेबी का यही तेरा हुनर, मेरा भी […]
T-7/15 यूं ही गलियों में मुक़द्दर दर-ब-दर मेरा भी है-नवनीत शर्मा
यूं ही गलियों में मुक़द्दर दर-ब-दर मेरा भी है क्यों नहीं सुनता मिरी तू कुछ अगर मेरा भी है कातिलों को अब सज़ा हो या न हो लेकिन किसी हाशिये पर इक बयाने-मुख़्तसर मेरा भी है मैं भी जूझा हूँ हवा से इस कबूतर की तरह देख वो आंधी में उड़ता एक पर मेरा भी […]
T-7/14 आईना है आईना कुछ तो असर मेरा भी है-अभय कुमार ‘अभय’
आइना है आइना कुछ तो असर मेरा भी है देखिये हर अक्स में अक्से-नज़र मेरा भी है तुमको पाने के लिये खोना पड़ा क्या क्या मुझे धडकनों पर तू है क़ाबिज़ दिल अगर मेरा भी है देर तक पगड़ी कोई सर पर कभी टिकती नहीं बस यही कहते रहो साहब कि सर मेरा भी है […]
T-7/13 हूँ मुसाफ़त-आशना पर राहबर मेरा भी है-असरार मेरठी
हूँ मुसाफ़त-आशना पर राहबर मेरा भी है जाने कब किस मोड़ पर लुट जाऊं डर मेरा भी है आप अपने घर बदलते जायें लेकिन कब तलक दस्तकों का सिलसिला इक दर-ब-दर मेरा भी है लाख मैं काबानशीं हूँ बुतकदे का तू मकीं कुछ इधर तेरा भी है और कुछ उधर मेरा भी है इस बिखरती […]
T-7/12 जानता हूँ मैं सफ़र ये मुख़्तसर मेरा भी है -सौरभ शेखर
जानता हूँ मैं सफ़र ये मुख़्तसर मेरा भी है आबे-दरिया हूँ, समंदर मुन्तज़र मेरा भी है इक चराग़े-दिल फ़क़त रौशन अगर मेरा भी है रहनुमा मेरा भी है, फिर राहबर मेरा भी है अब तलक हैरान हूँ मैं रात के उस ख़ाब से ख़ून की बरसात है,घर तर-ब-तर मेरा भी है शर्त हर मंज़ूर कर […]
T-7/11 रास्तों से मंजिलों तक का सफ़र मेरा भी है-प्रकाश सिंह ‘अर्श’
रास्तों से मंजिलों तक का सफ़र मेरा भी है नाम इस गर्दे-सफ़र पर मुख़्तसर मेरा भी है हाल देखो क्या हुआ है, इक सवाले-वस्ल पर, तर-ब-तर है उसका चेहरा, तर-ब-तर मेरा भी है दुश्मनों की धूप की जंगल में छोड़ आया हूँ मैं और कुछ भी तो नहीं है, हाँ शजर मेरा भी है बाँट […]
T-7/10 लफ़्ज़ की दुनिया में शाइस्ता हुनर मेरा भी है-अज़ीज़ बेलगामी
लफ़्ज़ की दुनिया में शाइस्ता हुनर मेरा भी है इस ख़राबे में तमाशा सर-ब-सर मेरा भी है मैं भी लुट जाऊँगा शायद आप जैसे लुट गये राह में एक राहबर शोरीदा-सर मेरा भी है मुझ को मेयारे-वफ़ा की इस लिये है जुस्तजू क़ाफ़िला शहरे-वफ़ा से दर-ब-दर मेरा भी है सायबाँ की छाँव हर सर को […]
T-7/9 हँस पड़ा जब ये सुना हाकिम को डर मेरा भी है-विकास शर्मा ‘राज़’
हँस पड़ा जब ये सुना हाकिम को डर मेरा भी है बाग़ियों की आग में शामिल शरर मेरा भी है मैं भी बैठा हूँ मुक़द्दर की हवा के दौश पर ख़ुश्क पत्तों की तरह अन्धा सफ़र मेरा भी है मेरा तेशा भी चला था रात की दीवार पर सो शफ़क़ पर कुछ तो हक़ ऐ […]
T-7/8-नाम वालों में लक़ब आशुफ़्ता-सर मेरा भी है-अब्दुस्सलाम ‘कौसर’
नाम वालों में लक़ब आशुफ़्ता-सर मेरा भी है मुतमइन हूँ राहे-उल्फ़त में गुज़र मेरा भी है ग़ौर से देखो तो आयेगा नज़र मेरा भी है सरफ़रोशों में नुमायां है एक सर मेरा भी है बन-संवर कर बज़्म की रौनक़ बने बैठे तो हैं आपकी इस दिलकशी में कुछ असर मेरा भी है अपने दिल में तूने […]
T-7/6 खौफ़ में जीते हुए लोगों का डर मेरा भी है-‘अनिल’ जलालपुरी
खौफ़ में जीते हुए लोगों का डर मेरा भी है आम इन्सां हूं नगर में एक घर मेरा भी है चुन रहा हूं राह के कंकर तुम्हें मुश्किल न हो जिस डगर पर तुम चले हो वो सफ़र मेरा भी है बस बहुत ग़म सह चुका अब बात हक़ की कीजिये आसमां इक चाहिये मुझको […]
T-7/5 धीरे धीरे ढलते सूरज का सफ़र मेरा भी है-स्वप्निल तिवारी’आतिश’
धीरे धीरे ढलते सूरज का सफ़र मेरा भी है शाम बतलाती है मुझको एक घर मेरा भी है आ के इक चिड़िया मिरे पीपल पे बैठी इस तरह जैसे मुझसे कह रही हो ‘ये शजर मेरा भी है’ दुश्मनों की ओर से तो वार होंगे ही मगर हाँ मगर थोड़ा बहुत मुझको ख़तर मेरा भी […]
T-7/4 इस बड़े से शहर में छोटा-सा घर मेरा भी है-मधु भूषण शर्मा ‘मधुर’
इस बड़े से शहर में छोटा-सा घर मेरा भी है आसमाँ इक चाहिए मुझको कि सर मेरा भी है पाँच सालों तक हुकूमत है तुम्हारी हर पहर याद रखना बाद इसके इक पहर मेरा भी है है मुझे एहसास अपनी कमतरी का फिर भी सुन लाख ताकतवर सही तू, दिल-जिगर मेरा भी है है जहाँ […]
T-7/3 दौरे-हाज़िर में यही इक दर्दे-सर मेरा भी है-याक़ूब आज़म
दौरे-हाज़िर में यही इक दर्दे-सर मेरा भी है गुमरही की राह पर लख़्ते-जिगर मेरा भी है मान लूँ तन्हा मैं तुझको कैसे हक़दारे-चमन इस गुलिस्ताँ में तो इक बूढ़ा शजर मेरा भी है अपनी आँखों से पिलाओ या कि होठों से मुझे हक़ तुम्हारे हुस्न के इस जाम पर मेरा भी है देखने में दूर […]
T-7/2 ज़ह्न यूं उसकी अदा से बाख़बर मेरा भी है-‘तुफ़ैल’ चतुर्वेदी
दोस्तो ! इस तरह को तय करते वक़्त ये ध्यान ही नहीं रहा कि ‘बानी’ साहब की इस ज़मीन में मेरी ग़ज़ल पहले से है। उसूलन अब मुझ पर नयी ग़ज़ल कहने की ज़िम्मेदारी आ पड़ी है। ख़ैर कोशिश करता हूँ, तब तक पुरानी ग़ज़ल देखिये ज़ह्न यूं उसकी अदा से बाख़बर मेरा भी है […]
T-7/1दोस्तो ! वो मूल ग़ज़ल जिसके एक मिसरे से तरह बनायी गयी है
दोस्तो ! वो मूल ग़ज़ल जिसके एक मिसरे से तरह बनायी गयी है सिलसिला रौशन तजस्सुस1 का उधर मेरा भी है ए सितारो ! इस ख़ला2 में इक सफ़र मेरा भी है चार जानिब3 खींच दीं उसने लकीरें आग की मैं कि चिल्लाया बहुत बस्ती में घर मेरा भी है जाने किसका क्या छुपा है […]
तरही मुशाइरा-7 ‘आसमां इक चाहिये मुझको कि सर मेरा भी है’
दोस्तो इन दिनों स्वर्गीय श्री राजेंद्र मनचंदा ‘बानी’ की कई गज़लें पोस्ट हुई हैं। आइये उनकी बनायी राह पर ही चला जाये। लफ़्ज़ और उसके आप सारे साथियों की तरफ़ से ये श्रद्धांजलि भी होगी। उन्हीं का एक मिसरा “आसमां इक चाहिये मुझको कि सर मेरा भी है ” रख लेते हैं। आख़िरी तारीख़ 20-03-2013 रहेगी। […]