ख़ुद को मसरूफ़-ए-दार करना था
यूं तेरा इन्तज़ार करना था।
तू है मुझमें तो मैं भी हूं तुझमें
बस यही ऐतबार करना था।
लाख बेताब थीं तमन्नाएं
सब्र भी इख़्तियार करना था।
उनका जाना चमन में सजधज कर
गुलकदा शर्मसार करना था।
उनका वादा था दिल्लगी उनकी
बस हमें सोगवार करना था।
तीर पर तीर छोड़ने वाले
कुछ तो रुक रुक के वार करना था।
मैं अगर मुजरिम-ए-वफ़ा ठहरा
जुर्म ये बार बार करना था।
दूर ख़ुद से भी कर दिया जिसने
उस अना का शिकार करना था।
प्यार से बढ़ के और है भी क्या
आप को सिर्फ प्यार करना था।
अभय कुमार “अभय”
08171611298
उम्दा ग़ज़ल मगर ये शेर ग़ज़लों क्या मजमूओं पर भारी कह लिया। मान गए उस्ताद वाह वाह वाह वाह
तू है मुझमें तो मैं भी हूं तुझमें
बस यही ऐतबार करना था
KHOOBSURAT GHAZAL
Thanks