3 Comments

T-33/13 ख़ुद को मसरूफ़-ए-दार करना था. अभय कुमार “अभय”

ख़ुद को मसरूफ़-ए-दार करना था
यूं तेरा इन्तज़ार करना था।

तू है मुझमें तो मैं भी हूं तुझमें
बस यही ऐतबार करना था।

लाख बेताब थीं तमन्नाएं
सब्र भी इख़्तियार करना था।

उनका जाना चमन में सजधज कर
गुलकदा शर्मसार करना था।

उनका वादा था दिल्लगी उनकी
बस हमें सोगवार करना था।

तीर पर तीर छोड़ने वाले
कुछ तो रुक रुक के वार करना था।

मैं अगर मुजरिम-ए-वफ़ा ठहरा
जुर्म ये बार बार करना था।

दूर ख़ुद से भी कर दिया जिसने
उस अना का शिकार करना था।

प्यार से बढ़ के और है भी क्या
आप को सिर्फ प्यार करना था।

अभय कुमार “अभय”
08171611298

About Lafz Admin

Lafzgroup.com

3 comments on “T-33/13 ख़ुद को मसरूफ़-ए-दार करना था. अभय कुमार “अभय”

  1. उम्दा ग़ज़ल मगर ये शेर ग़ज़लों क्या मजमूओं पर भारी कह लिया। मान गए उस्ताद वाह वाह वाह वाह

    तू है मुझमें तो मैं भी हूं तुझमें
    बस यही ऐतबार करना था

Your Opinion is counted, please express yourself about this post. If not a registered member, only type your name in the space provided below comment box - do not type ur email id or web address.