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T-33/1 गर मिरा ही शिकार करना था. आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी

गर मिरा ही शिकार करना था
तुमको सीने प वार करना था

जौर को शोलाबार करना था
लुत्फ़ को आबशार करना था

थे यहाँ आए, तो बहरसूरत
हमको ये दश्त पार करना था

सख़्त मुश्किल था पालना नफ़्रत
कितना आसान प्यार करना था

नागहाँ आये वो तो बर्क़ गिरी
बज़्म को होशियार करना था

हम न थे होश में, चलो, माना
फ़र्ज़ क्या तेरा आर करना था

उन्स जिनको अदब से है उनमें
“शाज़” का भी शुमार करना था

आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी
M 129 सेक्टर 25
नोएडा 201301
मोबाइल 9350027775

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15 comments on “T-33/1 गर मिरा ही शिकार करना था. आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी

  1. सख़्त मुश्किल था पालना नफ़्रत
    कितना आसान प्यार करना था

    ZINDABAD

  2. शाज़ साहब, उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद। आपकी कहाँ दिन ब दिन निखरती जा रही है। सलासत, रवानी आती जा रही है। सैकड़ों दाद क़ुबूल फ़रमाइये

    • बहुत बहुत शुक्रिया तुफ़ैल साहब. आपसे मिली दाद वाक़ई हौसलाअफ़्ज़ाई करती है.

      “शाज़” जहानी

  3. वाह खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई

  4. वाह वाह आ. आलोक जी… बहुत उम्दा ग़ज़ल पेश की आपने …
    शेर दर शेर मुबारक़बाद कुबूल करें
    सादर

  5. Gar Mira hi shikar karna that
    Bahut khoob bhaisabir usmani

  6. बहुत खूब बहुत ही खूबसूरत दाद कुबुल कीजिये गिरह भी खूब
    सैफ़ी रायपुर

  7. Bahut hi pyari ghazal….

  8. शाज़ साहिब,
    ग़ज़ल तो है ही मगर ये शै’र-
    सख़्त मुश्किल था पालना नफ़्रत
    कितना आसान प्यार करना था
    सादा अौर ख़ूबसूरत। वाह वाह।

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