गर मिरा ही शिकार करना था
तुमको सीने प वार करना था
जौर को शोलाबार करना था
लुत्फ़ को आबशार करना था
थे यहाँ आए, तो बहरसूरत
हमको ये दश्त पार करना था
सख़्त मुश्किल था पालना नफ़्रत
कितना आसान प्यार करना था
नागहाँ आये वो तो बर्क़ गिरी
बज़्म को होशियार करना था
हम न थे होश में, चलो, माना
फ़र्ज़ क्या तेरा आर करना था
उन्स जिनको अदब से है उनमें
“शाज़” का भी शुमार करना था
आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी
M 129 सेक्टर 25
नोएडा 201301
मोबाइल 9350027775
सख़्त मुश्किल था पालना नफ़्रत
कितना आसान प्यार करना था
ZINDABAD
बहुत बहुत शुक्रिया, नीरज भाई.
“शाज़” जहानी
शाज़ साहब, उम्दा ग़ज़ल के लिये मुबारकबाद। आपकी कहाँ दिन ब दिन निखरती जा रही है। सलासत, रवानी आती जा रही है। सैकड़ों दाद क़ुबूल फ़रमाइये
बहुत बहुत शुक्रिया तुफ़ैल साहब. आपसे मिली दाद वाक़ई हौसलाअफ़्ज़ाई करती है.
“शाज़” जहानी
वाह खूबसूरत गज़ल के लिए बधाई
वाह वाह आ. आलोक जी… बहुत उम्दा ग़ज़ल पेश की आपने …
शेर दर शेर मुबारक़बाद कुबूल करें
सादर
बहुत बहुत शुक्रिया नूर साहब.
“शाज़” जहानी
Gar Mira hi shikar karna that
Bahut khoob bhaisabir usmani
बहुत बहुत शुक्रिया, साबिर साहब.
“शाज़” जहानी
बहुत खूब बहुत ही खूबसूरत दाद कुबुल कीजिये गिरह भी खूब
सैफ़ी रायपुर
बहुत बहुत शुक्रिया, सैफ़ी साहब.
“शाज़” जहानी
Bahut hi pyari ghazal….
बहुत बहुत शुक्रिया, पवन साहब.
“शाज़”
शाज़ साहिब,
ग़ज़ल तो है ही मगर ये शै’र-
सख़्त मुश्किल था पालना नफ़्रत
कितना आसान प्यार करना था
सादा अौर ख़ूबसूरत। वाह वाह।
बहुत बहुत शुक्रिया, मनोज साहब.
“शाज़”