Lafz Admin
ग़ज़ल:- डरा रहे है ये मंज़र भी अब तो घर के मुझे
डरा रहे है ये मंज़र भी अब तो घर के मुझे दिखाई ख़ाब दिए रात भर खंडर के मुझे मैं रोज़ ग़ज़लों में हर शाम चाँद टांकता हूँ सितारे चूमते हैं शब ! उतर उतर के मुझे गंवा दी उम्र तुझे नज़्म कर नहीं पाया मिले हैं यूँ तो सलीक़े हरिक हुनर के मुझे इस […]
T-33/29 उसपे ख़ुद को निसार करना था. द्विजेन्द्र द्विज
उसपे ख़ुद को निसार करना था इश्क़ क्या बार-बार करना था? अपना यूँ कारोबार करना था ख़ुद को इक इश्तिहार करना था ज़ीस्त को पुर-बहार करना हश्र तक इन्तज़ार करना था ग़म अता थी तो उसमें लुत्फ़ आता यह भी परवरदिगार करना था उससे हम इल्तिजा भी क्या करते खु़द को ही शर्मसार करना था […]
T-33/28 प्यार को यादगार करना था. अज़्हर इनायती
प्यार को यादगार करना था, इश्क़ दीवानावार करना था लोग जल्दी में थे बदलने की, वक़्त का इंतज़ार करना था सबको हैरत थी पर मुकद्दर को, उसको ही शह्रयार करना था हल अकेला था मैं मसाइल का, मश्वरा किससे यार करना था थोड़ा पानी था अपनी छागल में, और हमें दश्त पार करना था सबसे […]
T-33/27 दर्द पर इख़्तियार करना था. शबाब मेरठी
दर्द पर इख़्तियार करना था, उनको बेरोज़गार करना था. रौशनी इश्तिहार मैख़ाने, सबको मेरा शिकार करना था. उसने वादा किया था फिर मुझसे, फिर मुझे इंतज़ार करना था. इक बहाना था मुस्कुराना तो, यास को ग़मगुसार करना था. धूप का काम सब दरारों को, सुब्ह का इश्तिहार करना था. इश्क़ का काम ही अनारकली, बादशाहत […]
T-33/26 मुझको अपना कहार करना था. बकुल देव
मुझको अपना कहार करना था, कब उसे दश्त पार करना था ? सदके में जुनूं के दामन के, पैरहन तार तार करना था. दरिया करना था अश्क को पहले, फिर उसे बेकनार करना था. शह्रयारी के और थे आदाब, पहले अपनों पे वार करना था. बह्स मंज़िल से कुछ न थी,उनको, शिकव ए रहगुज़ार करना […]
T-33/25 बस यही इक विचार करना था. अब्दुल अहद ‘साज़’
बस यही इक विचार करना था हम को क्यार इख़्तियार करना था हम कि फ़र्ज़ान-ए-जुनूं ठहरे ज़ह्न को तार तार करना था इस गुमां पर हो उस तरफ साहिल हमको ये दश्त पार करना था आखि़रेकार कर न पाए हम वो जो अंजाम-ए-कार करना था शुअलगी तक था नग़्मगीं का सफ़र शायरी को शरार करना […]
T-33/24 दिलनवाज़ी से प्यार करना था. सैयद नासिर अली
दिलनवाज़ी से प्यार करना था रूह को ख़ुशगवार करना था छांव ठंडी जहां को मिल जाती ज़ीस्त को सायादार करना था मालिके दो जहां है बंदानवाज़़ उसके बंदों से प्याार करना था जि़ंदगी एक बार मिलती है ज़ात को बावक़ार करना था बात की तह तलक पहुंच जाते सौ तरह से विचार करना था हमने […]
T-33/23 बस ज़रा फेरफार करना था – नवीन
बस ज़रा फेरफार करना था। दायरों को दयार करना था॥ अब तो हम ख़ुद नहीं रहे उसके। जिस पर एकाधिकार करना था॥ नित बिगड़ते ही जा रहे हैं हम। जबकि हमको सुधार करना था॥ रामजी ने तो कुछ कमी न रखी। कुछ हमें भी विचार करना था॥ हार भी अपनी जीत भी अपनी। फ़ैसला इस […]
T-33/22 दिल हमें बेकरार करना था. नीरज गोस्वामी
दिल हमें बेकरार करना था आपका इंतिज़ार करना था जिस्म को बेचना गुनाह नहीं रूह का इफ़्तिख़ार करना था उस तरफ वो मिले मिले न मिले हमको ये दश्त पार करना था बोझ पलकों पे बढ़ गया मेरी झील को आबशार करना था क्यों पशेमां है देख कर चेहरा आईना संगसार करना था मैं मिटा […]
T-33/21 काम मुश्किल ये यार करना था. राहुल ‘राज’
काम मुश्किल ये यार करना था एक नफ़रत को प्यार करना था दूर रहकर हसीन ख्वाबों का हमको ये दश्त पार करना था जिस्म पे आके रुक गये तुम तो रूह का दरिया पार करना था उसका दिल तोड़ना नहीं मक़्सद बस मुझे होशियार करना था तुमने हाँ करके लुत्फ़ खत्म किया और कुछ बेक़रार […]
T-33/20 चाँद का इन्तिज़ार करना था. पवन कुमार
चाँद का इन्तिज़ार करना था रात को बेक़रार करना था रेत खानी थी धूप पीनी थी हमको ये दश्त पार करना था जानता हूँ ख़सारा है लेकिन इश्क़ का कारोबार करना था जो मेरे हर तरह मुख़ालिफ़ हैं उनमें ख़ुद को शुमार करना था रोकने थे अगर क़दम मेरे बाज़ुओं को हिसार करना था अब […]
T-33/19 ग़म को फस्ले बहार करना था. मुनव्वर अली “ताज”
ग़म को फस्ले बहार करना था तब खुशी का शुमार करना था हुस्न को साज़गार करना था इश्क़ को खाकसार करना था ज़र्फ को पुरवक़ार करना था सब्र से हमकिनार करना था उस की रहमत से दाग़ धुल जाते आँख को अश्कबार करना था बेदिली से सही मगर दिल को ख्वाहिशों का मज़ार करना था […]
T-33/18 ख्वाहिशों को उधार करना था. अहमद ‘सोज़’
ख्वाहिशों को उधार करना था और कुछ इन्तिज़ार करना था दश्त ये हमको पार करना था रास्ते को ग़ुबार करना था जिंदगी में है प्यार थोड़ा सा थोड़े को बेशुमार करना था लोग जन्नत दिखा रहे हैं मुझे और मुझे ऐतबार करना था कोई बदशक्ल था मिरे आगे आइना संगसार करना था अहमद ‘सोज़’ (मुंबई) […]
T-33/17 मुझसे थोड़ा तो प्यार करना था. आकर्षण कुमार गिरि
मुझसे थोड़ा तो प्यार करना था एक बार ऐतबार करना था साथ रिश्तों का एतबार लिये ‘हमको ये दश्त पार करना था’ गम-ए-दौरां बिठा के डोली में रोज़ ख़ुद को कहार करना था याद में जो कटी, कटी ना कटी उस हर इक शब से प्यार करना था रूह को भी क़रार आ जाए कोई […]
T-33/16 सब्र कुछ बादाख़्वार करना था. मनोज कुमार मित्तल ‘कैफ़’
सब्र कुछ बादाख़्वार करना था शाम का इंतिज़ार करना था इश्क़ में ख़ुद बिखर गये आख़िर टूट कर यूँ न प्यार करना था बात गुल तोड़ने प ख़त्म हुई मसअला ख़त्म ख़ार करना था इश्क़ में जुरअतें भी लाज़िम थीं ज़ब्त भी इख़्तियार करना था रास आने लगी थी क़ैद मगर उसका ज़िक्र ए बहार […]
T-33/15 रंजो ग़म इख़्तियार करना था. फ़ज़ले अब्बाास ‘सैफ़ी’
रंजो ग़म इख़्तियार करना था हर ख़ुशी का शिकार करना था मौत ख़ुद शानदार हो जाती ज़ीस्त को शानदार करना था सामने आते वो तो किस मुंह से पुश्त पर जिनको वार करना था मैं न कहता था लौट आऊंगा आपको इंतिज़ार करना था इसलिये आ गये वकालत में झूठ का कारोबार करना था क़ब्ल […]
T-33/14 उसको तो शर्मशार करना था. परवीन ख़ान
उसको तो शर्मशार करना था अपने ग़म का सिंगार करना था गर जुनूँ से भरे हुए थे आप तब तो कुछ शानदार करना था यार तुमने भी ख़ैर.. जाने दो “हमको ये दश्त पार करना था” सोच पर अपनी वार कर बैठे सोच पर उसकी वार करना था उसको अपनी जुबां की लज़्ज़त को बेजुबां […]
T-33/13 ख़ुद को मसरूफ़-ए-दार करना था. अभय कुमार “अभय”
ख़ुद को मसरूफ़-ए-दार करना था यूं तेरा इन्तज़ार करना था। तू है मुझमें तो मैं भी हूं तुझमें बस यही ऐतबार करना था। लाख बेताब थीं तमन्नाएं सब्र भी इख़्तियार करना था। उनका जाना चमन में सजधज कर गुलकदा शर्मसार करना था। उनका वादा था दिल्लगी उनकी बस हमें सोगवार करना था। तीर पर तीर […]
T-33/12 ज़हर का अब उतार करना था. मनोज अबोध
ज़हर का अब उतार करना था सामने से प्रहार करना था काम कुछ इसप्रकार करना था ये सफ़र यादगार करना था चाक दामन को तार करना था प्यार यूँ बे-शुमार करना था धर्म-रक्षा अगर नशा है तो ये नशा बार बार करना था कोई मुश्किल नहीं यहाँ जीना आदतों में सुधार करना था नफ़रतें आगईं […]
T-33/11 रोज़ो-शब को शुमार करना था. असरार किठौरवी
रोज़ो-शब को शुमार करना था शुक्रे-सद किरदिगार करना था। हर अंधेरा शुमार करना था रात को शर्मसार करना था हो न पाया कि बाद -ए-तरके-वफ़ा कुछ नया कारोबार करना था शर्त दरिया-ए-दिल की क्या कहते डूबना था ना पार करना था आंख को अश्कबार करना भी दर्द को इश्तेहार करना था और क्या है भला अताये-हयात […]
T-33/10 तख़्त को उस्तवार करना था. छिज्जू शकूर
तख़्त को उस्तवार करना था शह को बस रोज़गार करना था बेगुनाहों का कत्ल करके उन्हें अदू को शर्मसार करना था रात काली थी मानता हूँ मगर सुब्ह का इंतज़ार करना था क़ाफ़िला पास ही था मंज़िल के बख़्त पर ऐतबार करना था कितनी रातें इन्हीं में डूब गईं आहों पर इख़्तियार करना था चैन […]
T-33/9 मसअला दरकिनार करना था. इरशाद खा़ं ‘सिकंदर’
मसअला दरकिनार करना था टूटकर उससे प्यार करना था एक लड़की के ख़्वाब सुनते हुए फ़ैसले पर विचार करना था सब अक़ीदों की फ़ौज यकजा थी इक अक़ीदे पे वार करना था ज़ख़्म की धज्जियाँ उड़ाने पर लफ़्ज़ को तार-तार करना था रूह इक दिन रखी गई गिरवी जिस्म का कारोबार करना था इश्क़ की […]
T-33/8 हर खुशी को निसार करना था. मुनव्वर अली ‘ताज’
हर खुशी को निसार करना था इस तरह उन से प्यार करना था वस्ल की राहतों से हम को तो हिज्र को ग़मगुसार करना था ज़ुल्फ की तीरगी से उन को तो हर उजाले प वार करना था दरगुज़र की सिफात से हम को ज़ुल्म को शर्मसार करना था याद आती है राहतों की तरह […]
T-33/7 आंसुओं का सिंगार करना था. आयुष चराग़
आंसुओं का सिंगार करना था यूं तेरा इंतज़ार करना था खुद को बादल बना लिया हमने “हमको ये दश्त पार करना था” दिल लगाने का काम था मुश्किल, इक ख़ला को दयार करना था। हश्र ये है कि , अब भी ज़िंदा हैं अज़्म ये था कि प्यार करना था एक कतरे लहू पे इतना […]
T-33/6 भूत सर पर सवार करना था. शेख़ चिल्ली
भूत सर पर सवार करना था अपने क़ातिल से प्यार करना था जिसका होना भी तय नहीं अब तक उस पे क्या ऐतबार करना था? ज़ख्म आकर कुरेदने थे उन्हें और हमें इंतज़ार करना था मुड़़ गए हम ख़बर मिली ज्यों ही पीठ पर उनको वार करना था दिल पे लिख कर गए हैं नाम […]
T-33/5 इश्क़ बेइख़्तियार करना था. आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी
इश्क़ बेइख़्तियार करना था ये जहाँ दरकिनार करना था साथ होते न आप, तो मुश्किल हमको ये दश्त पार करना था मैकदा मिल गया तो था लाज़िम शुक्रे परवरदिगार करना था उनके कूचे में हो गये रुस्वा आप को इफ़्तिख़ार करना था आपके इस मज़ाक़ का मक़्सद क्या मुझे बुर्दबार करना था ? मुझ को […]
T-33/4 वक़्त का एतिबार करना था. ‘खुरशीद’ खैराड़ी
वक़्त का एतिबार करना था आपको इंतिज़ार करना था सींचकर ज़र्द-सर्द रिश्तों को इस ख़िज़ाँ को बहार करना था फँस गया है वो मेरे चंगुल में जिसको मेरा शिकार करना था सारी दुनिया गुनाहगार हुई इक मुझे संगसार करना था शायरी तो फ़क़त बहाना है साफ़ दिल का ग़ुबार करना था ज़रफ़िशानी से डर गई […]
T33/3 खुद पे ही ऐतबार करना था. “साबिर” उस्मानी
खुद पे ही ऐतबार करना था हमको ये दश्त पार करना था वहशते-इश्क़ जब हुआ तारी पैरहन तार-तार करना था तुम न आये तुम्हारी मर्जी थी हमको तो इन्तज़ार करना था हिज्र में काम था यही यारों चाँद – तारे शुमार करना था उसकी गलियों में हम भटकते थे उसको भी बेक़रार करना था जो […]
T-33/2 नख़्ल-ए-दिल रेगज़ार करना था. निलेश “नूर”
नख़्ल-ए-दिल रेगज़ार करना था, इक तसव्वुर ग़ुबार करना था. तेरी मर्ज़ी!!! ये ज़ह्न दिल से कहे, बस तुझे होशियार करना था. वो क़यामत के बाद आये थे हम को और इंतिज़ार करना था. हाल-ए-दिल ख़ाक छुपता चेहरे से जिस को सब इश्तेहार करना था. लुत्फ़ दिल को मिला न ख़ंजर को कम से कम आर-पार […]
T-33/1 गर मिरा ही शिकार करना था. आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी
गर मिरा ही शिकार करना था तुमको सीने प वार करना था जौर को शोलाबार करना था लुत्फ़ को आबशार करना था थे यहाँ आए, तो बहरसूरत हमको ये दश्त पार करना था सख़्त मुश्किल था पालना नफ़्रत कितना आसान प्यार करना था नागहाँ आये वो तो बर्क़ गिरी बज़्म को होशियार करना था हम […]
T-33 तरही मिसरा- हमने ये दश्त पार करना था
हज़रात आदाब, तुफ़ैल साहब ने बहुत यक़ीन के साथ लफ़्ज़ का काम मुझे सौंपा था..और इस बाबत आप सभी को इत्तिला भी कर दी गयी थी। मैं तबीयत नासाज़ रहने के बाइस पिछले तीन महीने बहुत परेशान रहा और लफ़्ज़ को बिल्कुल भी वक़्त न दे सका..सो तुफ़ैल साहब से और आप सभी से भी […]
T-32/13 फूल को फूल लिखा कांटे को कांटा लिक्खा. शाहिद हसन ‘शाहिद’
फूल को फूल लिखा कांटे को कांटा लिक्खा क्यों ज़माना है खफ़ा मैंने बुरा क्या लिक्खा अपने दिल का यूँ तिरे हुस्न से रिश्ता लिक्खा शाम को भी तिरे आने पे सवेरा लिक्खा सौ बलाओं ने मुझे घेरा हुआ है,फिर भी हाल अपना जिसे लिक्खा बहुत अच्छा लिक्खा बेक़रारी ही में क्या उम्र गुज़र जायेगी […]
T-32/12 दर्द को चांद तो आंसू को सितारा लिक्खा. असरार किठौरी
दर्द को चांद तो आंसू को सितारा लिक्खा। ग़म को भी हमने कभी ग़म न तुम्हारा लिक्खा। ज़िन्दगी जैसा तुझे पाया है वैसा लिक्खा। है ग़लत क्या जो तमाशे को तमाशा लिक्खा। बेबसी ख़ूब समझते हैं क़लम की हम भी बारहा हमने भी क़ातिल को मसीहा लिक्खा। इस ख़ता पर भी सज़ा पाई हमेशा हमने […]
T-32/11 सुब्ह ने शाम लिखी शब ने सवेरा लिक्खा. नाज़िम नक़वी
सुब्ह ने शाम लिखी शब ने सवेरा लिक्खा सबने मिलजुल के तुम्हारा ही सरापा लिक्खा बच्चे ने गेंद लिखी बूढ़े ने चश्मा लिक्खा जिसकी जैसी थी ज़रूरत उसे वैसा लिक्खा कैसे बतलाता हुदूदे ग़मे दौरां का हिसार प्यास ऐसी थी कि सहरा को भी दरिया लिक्खा आज के दौर पे लिखने को उठाई जो क़लम […]
T-32/9 जो बुरे से था बुरा उसको भी अच्छा लिक्खा. एस. जी. रब्बानी ‘अयाज़’
जो बुरे से था बुरा उसको भी अच्छा लिक्खा हर हक़ीक़त को छुपाते हुए क़िस्सा लिक्खा़ ख़ासियत थी नहीं जिसमें कोई उसको तुमने सिर्फ़ अनोखा ही नहीं बल्कि निराला लिक्खा आपसे सीखे कोई बात बढ़ाकर कहना जगमगाते हुए जुगनू को सितारा लिक्खा लब से जो झूठ निकलता है हलाहल की तरह उसको भी अापने अमृत […]
T-32/10 जो लिखा तेरे कलम ने वो तो तीखा लिक्खा. शिज्जू शकूर
जो लिखा तेरे कलम ने वो तो तीखा लिक्खा पर ये अच्छा है बरहने को बरहना लिक्खा रेत को आब-ए-रवाँ, धूप को झरना लिक्खा प्यास इतनी थी कि सहरा को भी दरिया लिक्खा शख़्स जो भीड़ का हिस्सा नहीं था उसके लिए आख़िरश शाह ने इक दिन का अँधेरा लिक्खा एक मुद्दत से अदब में […]
T-32/8 हमने जब प्यार का कागज पे है किस्सा लिक्खा. बनवारी लाल मूंदड़ा
हमने जब प्यार का कागज पे है किस्सा लिक्खा अश्क धोते ही गये नाम तुम्हाकरा लिक्खा हम को मालूम हकीक़त है शहंशाह तिरी चाहे अख़बार ने कुछ भी तेरा किस्सा लिक्खा तेरे शोलों को भी शबनम की तरह पी लूंगा प्यासे होठों ना तेरे नाम है दरिया लिक्खा ख़्वाब तो ख़्वाब हैं जो टूट गये […]
T-32/7 अपने किरदार को लिक्खा भी तो धुंधला लिक्खा. अभय कुमार ‘अभय’
अपने किरदार को लिक्खा भी तो धुंधला लिक्खा। मेरी मजबूरी ने ऐसा भी फ़साना लिक्खा। पहले ख़ुद को भी बहर तौर अकेला लिक्खा। तब कहीं जाके तेरे वस्ल का किस्सा लिक्खा। हमने जब कुछ भी लिखा ज़िक्र तुम्हारा लिक्खा। नाम में क्या है तुम्हारा या किसी का लिक्खा। ज़ुल्फ़ बिखराई ज़रा उसने तो ऐसा भी […]
T-32/6 लिखने वालों ने तो जब प्यार का क़िस्सा लिक्खा. चंद्रभान भारद्वाज
लिखने वालों ने तो जब प्यार का क़िस्सा लिक्खा आग का दरिया लिखा डूब के जाना लिक्खा प्यार में पहले पहल पत्र लिखा जब उसने खुद को तो हीर लिखा मुझको भी राँझा लिक्खा प्यार ने सारे नियम सारी हदों को तोड़ा प्यास ऐसी थी कि सेहरा को भी दरिया लिक्खा इस ज़माने ने लिखा […]
T-32/5 ऑंख का तारा कभी राज दुलारा लिख्खा. फज़ले अब्बास सैफी
ऑंख का तारा कभी राज दुलारा लिख्खा मॉं ने बच्चों को सदा घर का उजाला लिख्खा ।। ऐबजोर्इ भी न की और न कसीदा लिख्खा शाह जैसा नज़र आया मुझे वैसा लिख्खा ।। वादए वस्ल पे मत पूछो के क्या -क्या लिख्खा उसने हर बार नया एक बहाना लिख्खा ।। लिखने वालो ने तो मत […]
T-32/4 जो निराला है उसे हम ने निराला लिख्खा. सैयद नासिर अली नासिर
जो निराला है उसे हम ने निराला लिख्खा रौनके बज़्म को पुरनूर सितारा लिख्खा ।। राहे इंसान नवाज़ी के हैं राही हम ने आपसी प्रेम को ही दर्द का रिश्ता लिख्खा ।। हक़ की तार्इद ज़रूरी है सदाकत के लिये पूछिये हम से न तार्इद में क्या-क्या लिख्खा ।। अच्छे-अच्छे भी मुकाबिल में कहां हैं […]
T-32/2 चारागर तुमको कभी तुमको मसीहा लिक्खा. साबिर उस्मानी
चारागर तुमको कभी तुमको मसीहा लिक्खा. नज़रें मिलते ही तबीयत को है अच्छा लिक्खा. मैंने बरबादी का जब अपने है क़िस्सा लिक्खा. तुमको सुख ख़ुद को है दुख- दर्द का हिस्सा लिक्खा. झूटे को झूटा जो सच्चे को है सच्चा लिक्खा. लोग कहने लगे तुमने ये भला क्या लिक्खा. इश्क़े-लैला का असर था कि जो […]
T-32/1 ज़िंदगानी में किसी ग़ैर को अपना लिक्खा. आलोक कुमार श्रीवास्तव “शाज़” जहानी
ज़िंदगानी में किसी ग़ैर को अपना लिक्खा कट गई सोच के क़िस्मत में यही था लिक्खा नामाबर, ये तो बता मैं ने ग़लत क्या लिक्खा पासुख़े ख़त में जो उसने मुझे इतना लिक्खा तू नुजूमी है ? ज़रा पढ़ के सुना तो मुझ को आस्माँ पर है सितारोँ ने जो क़िस्सा लिक्खा ख़त तो है […]
T-32 तरही मिसरा-प्यास ऐसी थी कि सहरा को भी दरिया लिक्खा
आइये तरही-32 की जानिब चला जाये। तुफ़ैल साहब ने एक मिसरा सुझाया, ‘प्यास ऐसी थी कि सेहरा को भी दरिया लिक्खा’। आइये इसे तरह बना कर काविशें की जायें। मिसरा तरह:- ‘प्यास ऐसी थी कि सहरा को भी दरिया लिक्खा’ फ़ाइलातुन फ़यलातुन फ़यलातुन फ़ेलुन ( 2122 1122 1122 22) क़ाफ़िये:- कि़स्सा, क्या, आधा, पहरा …… […]
T-31/17 ये इशारे और हैं, यह मुँह-ज़ुबानी और है. गौतम राजरिशी
यह ग़ज़ल व्हॉट्सएप पर समय से आगयी थी।माज़रत के साथ पास्ट कर रहा हूं- ये इशारे और हैं, यह मुँह-ज़ुबानी और है दर हक़ीकत मेरी-तेरी तो कहानी और है अश्क़, आहें, बेबसी, वहशत, ख़ुमारी…कुछ नहीं और है, यारो ! मुहब्बत की निशानी और है पास बैठे इक ज़रा, फिर गाल छू कर चल दिए ये […]
T-31/16 हक़ बयानी और है नाहक़ बयानी और है. मुनव्वर अली ताज
साहिबान, मुनव्वर अली ताज साहिब की ग़ज़ल वक़्त से पहुंच गई थी। मेरी चूक से ही समय पर पोस्ट नहीं को पाई। बसद माज़रत अब पोस्ट कर रहा हूं:- हक़ बयानी और है नाहक़ बयानी और है कह रही है कुछ जुबां लेकिन कहानी और है जु़ल्फ खुलकर तब बिखर ती थी घटाओं की तरह […]
T-31/15 अस्लियत कुछ और है सबको बतानी और है. ’शबाब’मेरठी
अस्लियत कुछ और है सबको बतानी और है बंद दरवाज़ों के होंटों पर कहानी और है अब इसे आंसू कहो तुम या लहू का नाम दो आज थोड़ा सा मिरी आंखों में पानी और है ख़ूबसूरत है मगर इतनी भी मत मग़़रूर हो तेरे जैसा इक चराग़ ए आस्मानी और है इश्क़ के नक़्शे मे […]
T-31/14 अब ये सुनते हैं हयात ए जाविदानी और है. अब्दुल अहद ‘साज़’
अब ये सुनते हैं हयात ए जाविदानी और है मुतमइन हम थे कि मर्गए नागहानी और है जानता हूं तेरी फ़ितरत यार ए जानी और है कह रही है कुछ ज़ुबां लेकिन कहानी और है इस्तिआरे और अलामत में है नफ़्स ए मुद्दआ शायरी में रब्त ए अल्फ़ाज़ ओ मआनी और है बासिरा और शाम्मात […]
T-31/13 यूं हुनर की ज़र्फ़ की हद आज़मानी और है. मनोज कुमार मित्तल’कैफ़’
यूं हुनर की ज़र्फ़ की हद आज़मानी और है है सफ़र बेसिम्त मुझको रह बनानी और है दे अगर आवाज़ दरिया डूब जाना फ़र्ज़ है बात पर उस वक़्त उथला हो जो पानी और है एक ही शै में जहत की जुस्तजू का खेल था नक़्श ए आज़र और है तस्वीर ए मानी और है […]
T-31/12 यह ख़यालों की चमेली, रातरानी और है. द्विजेंद्र ‘द्विज’
यह ख़यालों की चमेली, रातरानी और है दिल के सहरा में ग़मों की बाग़बानी और है सामने सबके ये रूहानी कहानी और है हाँ, पसे-पर्दा तिरी फ़ितरत पुरानी और है कोई भी खु़शियों का लश्कर छू नहीं पाता जिसे दिल में इक महफ़ूज़ ग़म की राजधानी और है आपका चेह्रा है साहब ज़ेह्नो-दिल का आइना […]