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T-13/21 आईना ही जब झूठा हो जाता है-राजीव भारोल

आईना ही जब झूठा हो जाता है
तब सच कहने से भी क्या हो जाता है

अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं
पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है

मिलना जुलना कम ही होता है उनसे
बात हुए भी इक अरसा हो जाता है

जादू है कुछ चारागर के हाथों में
ऐसे थोड़ी दर्द हवा हो जाता है

इतनी सी ये बात कोई समझा ही नहीं
जिसको अपना लो, अपना हो जाता है

धूप में थोड़ी बाल पकाये हैं हमने
हमको भी कुछ अंदाज़ा हो जाता है

आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें
इन सब से रिश्ता गहरा हो जाता है

जी भारी भारी सा है, रो लेते हैं
रो लेने से जी हल्का हो जाता है

बड़ा वही होता है जिसमें गुण भी हों
धन दौलत से कौन बड़ा हो जाता है

वक़्त सुखा देता है नदिया, ताल सभी
‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’

लम्बे सफ़र में इक अनजाना चेहरा भी
जाना पहचाना चेहरा हो जाता है,

पहुँच बहुत ऊंची है मेरे आक़ा की
वो जैसा कह दें वैसा हो जाता है.

राजीव भारोल 510-565-8260

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26 comments on “T-13/21 आईना ही जब झूठा हो जाता है-राजीव भारोल

  1. राजीव भाई उम्दा ग़ज़ल हुई है..इन अश’आर पर ख़ास दाद क़ुबूल हो:

    अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
    ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

    आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं
    पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है

    वाह!

  2. राजीव जी
    आईना ही जब झूठा हो जाता है
    तब सच कहने से भी क्या हो जाता है
    अच्छा शेर !!!!
    आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें
    इन सब से रिश्ता गहरा हो जाता है
    वाह जी वाह !!!

  3. bahut achchi ghajal kahi apne.

  4. wah wah wah wah wah, kaafi achhi ghazal hai, khusoosan shuru ke 4-5 ashaar bahot hi achhe ban pade hain, kya kehne, excellent

  5. राजीव साहब, ये दोनों शेर पसंद आये। दाद क़ुबूल फ़रमाइये

    आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें
    इन सब से रिश्ता गहरा हो जाता है

    जी भारी भारी सा है, रो लेते हैं
    रो लेने से जी हल्का हो जाता है

  6. अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
    ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

    जादू है कुछ चारागर के हाथों में
    ऐसे थोड़ी दर्द हवा हो जाता है

    इतनी सी ये बात कोई समझा ही नहीं
    जिसको अपना लो, अपना हो जाता है

    आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें
    इन सब से रिश्ता गहरा हो जाता है

    जी भारी भारी सा है, रो लेते हैं
    रो लेने से जी हल्का हो जाता है

    बड़ा वही होता है जिसमें गुण भी हों
    धन दौलत से कौन बड़ा हो जाता है

    वक़्त सुखा देता है नदिया, ताल सभी
    ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’

    tamaam gazal hi umdaa hai ,waah waah ,raajiiv jii daad kubul karen.

  7. अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
    ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

    आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं
    पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है
    राजीव भरोल सा.प्रणाम |निहायत दिलकश अश्हार और इतनी खुबसूरत ग़ज़ल के लिए ढेरों दाद काबुल फरमाएं |बहुत २ बधाई

  8. राजीव !! सभी अश आर के सानी मिसरे बेहतर इम्कान रखते हैं –आपने सीधी सादी गिरहें लगाईं हैं – अश आर तस्लीम !!! इन दो शेरों पर आपको दाद !!
    आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें
    इन सब से रिश्ता गहरा हो जाता है
    एक शेर कतील शिफाई का है — बेसबब तुमसे मैं लड़ रहा हूँ
    ये मुहब्बत नहीं है तो क्या है
    वक़्त सुखा देता है नदिया, ताल सभी
    ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’
    और गिरह में आपने तरही मिसरे की सम्भावना को समोया है इसलिये ये शेर अच्छा हुआ !! –मयंक

    • मयंक जी शुक्रिया. इमकान वाला कमेन्ट समझ नहीं आया. थोडा खुल कर बताएं.

      • राजीव!! कमेण्ट का अर्थ यही है कि आपके सानी मिसरे अगर तरह के लिये दिये जायें तो इन पर बहुरंगी गिरहें सामने आयेंगी – और आपने सीधी सादी राह वाली गिरहें अपने मिसरों के लिये चुनी हैं – कोई कोई मिसरे ऐसे होते हैं कि गिरहें सारी एक ही मुकाम पर पहुँच जाती है –लेकिन आपके मिस्रों की सम्भावनाये वृहत्तर हैं – मिसाल के तौर पर दो गिरहें आपके मिसरों पर मैं लगा रहा हूँ – आशय यहीं है कि आपके सानी मिसरे बेहद सम्भावनाजन्य हैं —
        धूप में थोड़ी बाल पकाये हैं हमने
        हमको भी कुछ अंदाज़ा हो जाता है—1
        उनका वो अन्दाज़ दिखाई देता है
        हमको भी कुछ अंदाज़ा हो जाता है

        आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं
        पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है—2
        चिकनी सूरत वालों को मत देखा कर
        पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है
        मेरा कमेण्ट पाज़िटिव है !! लेकिन शायद यह बात पहले सम्प्रेषित नहीं हो सकी। दूसरी बात कि आप बहुत खूब शेर कहते हैं और मैं आपसे खूबतर की उमीद हमेशा रखूँगा –इतना मेरा आप पर हक बनता है —मयंक

        • मयंक जी शुक्रिया. मुझ जैसे जड़बुद्धि को बिना उदाहरन बात जल्दी समझ नहीं आती और उर्दू में भी हाथ तंग है इसलिए आपका कमेन्ट समझ नहीं आया था. अब समझा. आपकी बात बिलकुल सही है.

  9. kya hi pyare pyare sher kahe hain rajeev sahab …
    अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
    ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

    आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं
    पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है…..mubarakbaad qubool karen

  10. बहुत अच्छे शेर कहे हैं राजीव जी, ये शेर बेहद पसंद आये

    “अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे …..” वाह

    “आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं …….” लाजवाब

    “आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें ……..” अच्छा है।

    यूँ ही खूबसूरत शेर कहते रहें।

  11. bahut acchi ghazal hui hai rajeev ji…

    अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
    ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

    bahut umdaa sher hai.. waah
    वक़्त सुखा देता है नदिया, ताल सभी
    ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’
    girah bhi pasand aayi.. daad qubulen

  12. अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
    ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

    bharol sahab bilkul mahoul ki jamini haqiqat ukeri hai apne is sher me …..

    आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें
    इन सब से रिश्ता गहरा हो जाता ह
    kya kehne … marhaba
    saadar
    kanha

  13. बढ़िया ग़ज़ल के लिये बहुत शुक्रिया

  14. राजीव जी,

    बहुत उम्‍दा ग़ज़ल और कई शे’र तो लूट कर ले गए…….
    आईना ही जब झूठा हो जाता है
    तब सच कहने से भी क्या हो जाता है

    अम्न की बातें इस माहौल में मत कीजे
    ऐसी बातों पे झगड़ा हो जाता है

    आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं
    पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है

    जी भारी भारी सा है, रो लेते हैं
    रो लेने से जी हल्का हो जाता है

    वक़्त सुखा देता है नदिया, ताल सभी
    ‘धीरे धीरे सब सहरा हो जाता है’

    शुक्रिया इस खूबसूरत ग़ज़ल के लिए
    नवनीत

  15. राजीव जी
    उम्दा ग़ज़ल … हर शेर रवां दवां …..!!!!

    आईना ही जब झूठा हो जाता है
    तब सच कहने से भी क्या हो जाता है
    बेहतरीन मतला है साहब !!!!

    आँगन में इतनी बारिश भी ठीक नहीं
    पाँव फिसलने का ख़तरा हो जाता है
    हाय क्या मंज़र है ….!

    आओ थोड़ा झगड़ें, कुछ तकरार करें
    इन सब से रिश्ता गहरा हो जाता है
    इतनी फुर्सत भी नहीं मिलती अब तो…।

    जी भारी भारी सा है, रो लेते हैं
    रो लेने से जी हल्का हो जाता है
    सच कहा !!!
    उम्दा ग़ज़ल के लिए शुक्रिया !!!!!

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