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T-22/10 दूर मंज़िल है, मगर जाना है-इमरान हुसैन “आज़ाद”

दूर मंज़िल है, मगर जाना है
“आज हर हद से गुज़र जाना है”

ग़म ने सीने में जमा लीं परतें
क्या मिरे दिल को खंडर जानाहै ?

एक हमदर्द भंवर ने पूछा
तुमको साहिल से किधर जाना है

वक़्त अपना है सहर होने तक
यादे-माज़ी में उतर जाना है

ख़्वाब के शौक़ बताऊँ तुमको
टूटना और बिखर जाना है

शाम, बेसुध सी हुई हर ख़ाहिश
अब तो लगता है कि मर जाना है

इमरान हुसैन “आज़ाद”

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24 comments on “T-22/10 दूर मंज़िल है, मगर जाना है-इमरान हुसैन “आज़ाद”

  1. वक़्त अपना है सहर होने तक
    यादे-माज़ी में उतर जाना है KHOOB

  2. ख़्वाब के शौक़ बताऊँ तुमको
    टूटना और बिखर जाना है… क्या अच्छे लहजे में शेर कहा है… वाह

  3. बहुत सुंदर ग़ज़ल हुई इमरान साहब। दाद कुबूल फ़रमाएं।

  4. Bahut bahut shukriya sir

  5. waaaahhh jaandaar ghazal hai…bahut khoob

  6. behad umda kalaam.. murassa ghazal ke liye dili mubarkbaad!!

  7. दूर मंज़िल है, मगर जाना है
    “आज हर हद से गुज़र जाना है”
    मतले की सम्प्रेषणीयता प्रभावित करती है !! हौसले का शेर है !!
    ग़म ने सीने में जमा लीं परतें
    क्या मिरे दिल को खंडर जानाहै ?
    ये सिमिली जो अव्वल मिसरे मे है वो खूबसूरत है !!
    एक हमदर्द भंवर ने पूछा
    तुमको साहिल से किधर जाना है
    अच्छा है अच्छा है !! ये दुनिया गर मिल भी जाये तो क्या है ??!!
    वक़्त अपना है सहर होने तक
    यादे-माज़ी में उतर जाना है
    फिर अच्छा शेर कहा है !!! और शायराना फितरत का इज़हार भी है ये !!
    ख़्वाब के शौक़ बताऊँ तुमको
    टूटना और बिखर जाना है
    ख़्वाब के शौक़ और नियति दोनो यही हैं !!!
    इमरान भाई !! अच्छी गज़ल कही है आपने !!! बहुत सुन्दर !!! –मयंक

  8. ग़म ने सीने में जमा लीं परतें
    क्या मिरे दिल को खंडर जानाहै ?

    एक हमदर्द भंवर ने पूछा
    तुमको साहिल से किधर जाना है

    Waah imraan bhai….bahoot khoob….poori gazal achhi hui hai….dheron daad…

  9. एक हमदर्द भंवर ने पूछा
    तुमको साहिल से किधर जाना है

    वक़्त अपना है सहर होने तक
    यादे-माज़ी में उतर जाना है
    आदरणीय इमरान हुसैन ‘आज़ाद ‘ साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है ,ढेरों दाद कबूल फरमावें |सादर |

    • आदरणीय खुर्शीद साहब बहुत बहुत शुक्रिया
      सादर
      इमरान

  10. इमरान भाई

    सहर होने तक यादे माज़ी में डूबे रहना,शाम होते ही ख़ाहिशों का बेसुध हो जाना, गम का सीने में परते जमा लेना, दिल का खंडर हो जाना, टूट कर बिखर जाना, ये तमाम बिंब जो आपने अपनी शायरी में पिरोये है मुझे अपने दिल के बेहद करीब लगे,

    शुभकामनाएं
    दिनेश

  11. ख़्वाब के शौक़…..भई वाह
    आज़ाद साहब उम्दा ग़ज़ल के लिए बधाई
    सादर
    पूजा

  12. एक हमदर्द भंवर ने पूछा
    तुमको साहिल से किधर जाना है..wahhh..umda ghazal hui hai Imran bhai..daad
    _kanha

  13. imran hussain sahab.. bahut umda ghazal..

    ग़म ने सीने में जमा लीं परतें
    क्या मिरे दिल को खंडर जानाहै ?

    एक हमदर्द भंवर ने पूछा
    तुमको साहिल से किधर जाना है
    ye do she’r to behad pasand aaye….. daad qubulen..

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