Irshad Khan Sikandar
T-33/9 मसअला दरकिनार करना था. इरशाद खा़ं ‘सिकंदर’
मसअला दरकिनार करना था टूटकर उससे प्यार करना था एक लड़की के ख़्वाब सुनते हुए फ़ैसले पर विचार करना था सब अक़ीदों की फ़ौज यकजा थी इक अक़ीदे पे वार करना था ज़ख़्म की धज्जियाँ उड़ाने पर लफ़्ज़ को तार-तार करना था रूह इक दिन रखी गई गिरवी जिस्म का कारोबार करना था इश्क़ की […]
T-32/3अल्फ़ को काट अलिफ़,लैल को लैला लिक्खा-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
अल्फ़ को काट अलिफ़,लैल को लैला लिक्खा भाड़ में जाये ज़बाँ तुमने जो चाहा लिक्खा ज़िन्दगी, आज तलक हमने तेरी कॉपी में एक ही लफ़्ज़ कई मर्तबा काटा लिक्खा जब मुझे इल्म हुआ मिसरा-ए-सानी मैं हूँ बस उसी वक़्त तुझे मिसरा-ए-ऊला लिक्खा वस्ल में टूट गये हिज्र में चमके दमके इश्क़ ने जिस भी तरह […]
ख़्वाब लाज़मी, शेरगोई फ़र्ज़, और इश्क़ वाजिब है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
ख़्वाब लाज़मी, शेरगोई फ़र्ज़, और इश्क़ वाजिब है ग़ालिबन मिरे,दिल की जुस्तजू,अक़्ल पर भी ग़ालिब है पैर मोड़कर, हाथ ओढ़कर,सो रही थी इक बच्ची क्या ख़बर उसे, पाँव की तरफ़ जो दिशा है मग़रिब है आप का समय,क़ीमती है पर,मेरी बात सुनिये तो दाँव पर लगी,एक ज़िन्दगी,आपसे मुख़ातिब है आसमाँ तले, ये ज़मीन है, दरमियान […]
ताज़ा ग़ज़ल, वही बस्ती वही सहरा वही रूदाद ज़िंदाबाद-इरशाद ख़ान सिकंदर
वही बस्ती वही सहरा वही रूदाद ज़िंदाबाद नए दिन में हुई ताज़ा तुम्हारी याद ज़िंदाबाद दिखा माँझी के सीने में तुम्हारा अज़्म जूँ का तूँ सो बरबस ही कहा दिल ने मियाँ फ़रहाद ज़िंदाबाद तिरे आने से मेरे घर में रंगत लौट आती है तिरे जाने से होती है ग़ज़ल आबाद ज़िंदाबाद वो जिन कामों […]
t-30/24 नींद इक ख़्वाब ने बरसों से उड़ाई हुई है. इरशाद ख़ान सिकंदर
नींद इक ख़्वाब ने बरसों से उड़ाई हुई है इश्क़,ये जोत भी तेरी ही जलाई हुई है जगमगाता है तिरा अक्स मिरी आँखों में इश्क़ में अपनी यूँ भरपूर कमाई हुई है इक तरफ़ तुम कि उतरते नहीं चित से मेरे इक तरफ़ अश्कों ने भी धूम मचाई हुई है मसअला ये नहीं हम इश्क़ […]
शब, उदासी, अलाव क्या कहने-इरशाद ख़ान सिकंदर
शब, उदासी, अलाव क्या कहने दिल! यूँ मूँछों पे ताव क्या कहने मसअला, मसअले से हल होगा मोहतरम के सुझाव क्या कहने हिज्र के दाँत हो गए खट्टे इश्क़ के हाव भाव क्या कहने हर घड़ी मुझपे हाथ शफ़क़त का ज़ख़्म के रख रखाव क्या क्या कहने इक समंदर ने ये कहा आकर हम हैं […]
वो मेरे ख़यालों से परे जा नहीं सकता-इरशाद ख़ान सिकंदर
वो मेरे ख़यालों से परे जा नहीं सकता ये बात मगर उसको मैं समझा नहीं सकता यूँ बैठा तिरी बाट निहारूँ भला कब तक मैं काम पे निकलूँ तू अगर आ नहीं सकता वो मेरी कमी है तो कमी है मुझे तस्लीम सच्चाई तो हर बार मैं झुटला नहीं सकता तू मेरी ही आवाज़ में […]
घर में ग़ुरबत भी हो बिटिया भी सयानी हो तो- इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
देखिये हश्र अगर आग बुझानी हो तो रोकिये ख़ुद को ज़रा आँख में पानी हो तो मैं बड़े बूढ़ों के एहसास समझ सकता हूँ घर में ग़ुरबत भी हो बिटिया भी सयानी हो तो ये बताओ कि बुरा सा तो नहीं मानोगे हमसे हर बार यही सादाबयानी हो तो मैं समझता हूँ तुझे अपना,बता दीजो […]
T-29/29 ये नया तजरुबा हुआ है मुझे-इरशाद ख़ान सिकंदर
ये नया तजरुबा हुआ है मुझे चाँद ने चूमकर पढ़ा है मुझे अपनी पीठ आप थपथपाता हूँ इश्क़ पर आज बोलना है मुझे देखिये क्या नतीजा हाथ आये वो गुणा-भाग कर रहा है मुझे मुझको जी भर के तू बरत ऐ दिन शाम होते ही लौटना है मुझे आपका साया भी वहीँ उभरा रौशनी ने […]
है अनोखा समाँ ज़ेह्न के दरमियाँ आग जैसी कोई शय सुलगती हुई उठ रहा है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’ धुआँ
है अनोखा समाँ ज़ेह्न के दरमियाँ आग जैसी कोई शय सुलगती हुई उठ रहा है धुआँ आँसुओं की ज़बाँ, आशिक़ी, बेकसी की वही दास्ताँ सुन रही हैं बयाँ गहरी ख़ामोशियाँ रफ़्ता-रफ़्ता तिरी सम्त हम कुछ बढ़े, रफ़्ता रफ़्ता कहानी कुछ आगे बढ़ी, और फिर यूँ हुआ तेज़ मोड़ आया नद्दी भंवर बन गयी नाव उलटने […]
T-28/8 मुद्दआ ही खो गया नारों के बीच-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
हज़रते-मीर तक़ी मीर की वो ग़ज़ल जिसको तरही किया गया काश उठें हम भी गुनहगारों के बीच हों जो रहमत के सज़ावारों के बीच जी सदा उन अब्रुओं ही में रहा की बसर हम उम्र तलवारों के बीच चश्म हो तो आइनाख़ाना है दह्र मुंह नज़र आता है दीवारों के बीच हैं अनासिर की ये […]
T-27/26 मिरी जो मान तो साइड में दुनियादारी रख-इरशाद ख़ान सिकंदर
मिरी जो मान तो साइड में दुनियादारी रख मिरे अज़ीज़ मुहब्बत का काम जारी रख समझ सके तो समझ वक़्त की ज़रूरत को बना इक इश्क़ का मंदिर मुझे पुजारी रख फ़ज़ा में चारों तरफ़ शोर है धुआँ सा है कुछ अपने आप से बाहर भी जानकारी रख तमाशे देख तमाशों से भागता क्यों है […]
चाँद की दस्तार सर से क्या गिरी-इरशाद ख़ान ‘सिकन्दर’
चाँद की दस्तार सर से क्या गिरी धूप की बौछार सर पे आ गिरी आज मैं सबकी नज़र में आ गया मेरी नज़रों से मगर दुनिया गिरी जाओ तुम भी!भीड़ का हिस्सा बनो एक लड़की फिर कुएँ में जा गिरी रात मजबूरन हवस के पाँव पर अपने बच्चों के लिये बेवा गिरी आंसुओं के लाव-लश्कर […]
T-26/57 अपना ज़मीर बेच दूँ ? मर जाऊँ क्या करूँ-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस की ज़मीन को तरह किया गया जीता रहूँ कि इश्क़ में मर जाऊं क्या करूँ तू ही मुझे बता मैं किधर जाऊं क्या करूँ है इज़्तेराबे-दिल से निपट अरसा मुझपे तंग आज उस तलक बदीदा-ए-तर जाऊं क्या करूँ हैरान हूँ कि क्यूंकि ये क़िस्सा चुके मिरा सर रखके तेग़ ही पे […]
T-26/35 कब ज़मीं आसमाँ से उठता है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर
हज़रते मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसकी ज़मीन को तरह किया गया अहले-दिल गर जहाँ से उठता है इक जहाँ जिस्मो-जाँ से उठता है चलो ऐ हम-रहो ग़नीमत है जो क़दम इस जहाँ से उठता है जम्अ रखते नहीं, नहीं मालूम ख़र्च अपना कहाँ से उठता है गर नक़ाब उसके मुंह से उट्ठी नईं शोर क्यों कारवां […]
उनकी यादों का सिलसिला है अभी-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
उनकी यादों का सिलसिला है अभी ज़ख़्म पूरा कहाँ भरा है अभी उनसे बरसों का साथ छूट गया बिफरे दरिया को बांधना है अभी हमको यूँ ही उदास रहने दो तेज़ अहसास की हवा है अभी मेरी दुनिया उजाड़ दी जिसने उसको बसता भी देखना है अभी तुम अगर चाहो लौट सकते हो वापसी का […]
इश्क़ का क़ायदा पढ़ा कीजे-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
इश्क़ का क़ायदा पढ़ा कीजे रूह तक रौशनी किया कीजे नाउमीदी तो कुफ़्र है, उनसे मुस्कुराकर मिला-जुला कीजे मेरे मुँह पे वो मेरी गायेगा गुफ़्तगू आइने से क्या कीजे वस्ल हो या कि हिज्र ऐ आँखों दोनों मौसम में रतजगा कीजे टकटकी बाँधे कबसे बैठा हूँ कुछ मिरा भी हला-भला कीजे आँच आये न आप […]
जिसको लेकर ख़्वाब बुने थे वो चेहरा ही ख़्वाब हुआ-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
जिसको लेकर ख़्वाब बुने थे वो चेहरा ही ख़्वाब हुआ अब आँखों का हाल भी सुनिये हर आँसू तेज़ाब हुआ मैंने जिस पर हाथ रखा वो हीरा ही हो पाया बस तुमने जिसको मारी ठोकर वो पत्थर नायाब हुआ मुस्तैदी से हर पल मैंने तेरी राहें रौशन कीं सुब्ह को सूरज सा मैं उभरा शाम […]
T-25/19 पैबंदे-ज़ख़्म दिल की रिदा में लगा रहा-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
पैबंदे-ज़ख़्म दिल की रिदा में लगा रहा मैं बदहवास हम्दो-सना में लगा रहा जिसपर मिरे वजूद का दारोमदार बुत वो तमाम उम्र ख़ुदा में लगा रहा गिर गिर के लोग साहिबे-दस्तार हो गये मैं ख़्वामख़्वाह अपनी अना में लगा रहा मुझको यक़ीं था माँग रही होगी वो मुझे ‘मैं उसके साथ साथ दुआ में लगा […]
ग़ज़ल:- ऑंखें मूँदे सोच रहे हैं-इरशाद ख़ान सिकंदर
ऑंखें मूँदे सोच रहे हैं क्या हम तुमको भूल चुके हैं मैं मेरी सच्चाई और वो तीनों तीन जगह रहते हैं उट्ठे तो आकाश छुएंगे बैठे हैं जब तक, बैठे हैं सहरा, छाले, कांटे, वहशत मुझसे मेरा दुःख सुनते हैं जिन बोतल से बाहर निकला हम क्यों अब तक चुप बैठे हैं मिट्टी मिट्टी को […]
ग़ज़ल:- तूने क्या क्या ज़माने कुछ न किया-इरशाद ख़ान सिकंदर
तूने क्या क्या ज़माने कुछ न किया आया नारा लगाने कुछ न किया घर में रहते, गए ही क्यों थे गर ? दश्त में भी दिवाने कुछ न किया तीरगी ढक रही है मेरे ज़ख़्म रौशनी बेहया ने कुछ न किया इब्तिदा आपकी क़यामत थी हैफ़-सद इन्तेहा ने कुछ न किया आसुंओं ने ही की […]
T-24/11 चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की तो अब लड़ो हवाओं से लड़ाई आरपार की कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की वो शाहज़ादा और उसपे शायरी का भी मरज़ कोई उमीद ही नहीं है उसमें अब सुधार की हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ […]
T-23/24 उम्मीद की अलख सी जगाई हुई तो है-इरशाद ख़ान सिकन्दर
उम्मीद की अलख सी जगाई हुई तो है दुनिया की साख हमने बचाई हुई तो है यूँ दश्त-दश्त ख़ाक उड़ाते हो किस लिये हमने भी चोट इश्क़ में खाई हुई तो है मुमकिन है इस ज़मीन में ग़ज़लों के गुल खिलें तरतीब से ग़मों की बुआई हुई तो है सूखा पड़ा हुआ था यहाँ अब […]
T-22/14 जीते जी काम ये कर जाना है-इरशाद ख़ान “सिकंदर”
जीते जी काम ये कर जाना है जिस्म के पार उतर जाना है आपकी बात अलग हो शायद ख़ैर हम सबको तो मर जाना है अबके सोचा है उसे देखूँ तो मुस्कुराना है गुज़र जाना है कैसे भरपाई ख़ला की होगी बाक़ी ज़ख़्मों को तो भर जाना है सबने रोका है जिधर जाने से ये […]
कोई वजूद का अपने निशाँ बनाता जाऊं-इरशाद ख़ान ‘सिकन्दर’
कोई वजूद का अपने निशाँ बनाता जाऊं मैं चाहता हूँ तुझे आसमां बनाता जाऊं अगर मैं आ ही गया भूले भटके मकतब में तो क्यों न तख़्तियों पे तितलियाँ बनाता जाऊँ मिरे बग़ैर भी मिलना है तुझको दुनिया से सो लाज़मी है तुझे काइयाँ बनाता जाऊं मैं बन गया तो हूँ हिस्सा तुम्हारे क़िस्से का […]
T-21/5 सुनो! हमीं ने किये इश्क़ के दिये रौशन-इरशाद ख़ान “सिकंदर”
सुनो! हमीं ने किये इश्क़ के दिये रौशन ये और बात है उस वक़्त ख़ुद भी थे रौशन तुम्हारा अक्स भी अम्बर पे रक़्स करता है हमारे अश्क भी होते हैं दिन ढले रौशन तुम्हारे क़ह्र से लेकर हमारे सब्र तलक ग़ज़ल में हो गये पहलू कुछ अनछुये रौशन खुली जो आंख तो काली उदास […]
ग़ज़ल:- अचानक सारे मंज़र बोल उट्ठे-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
अचानक सारे मंज़र बोल उट्ठे हंसी गूंजी तो पत्थर बोल उट्ठे ज़बानें बंद होंगी शह्र भर की किसी दिन गर समंदर बोल उट्ठे मैं जिनके हिज्र में सर धुन रहा था वो इक दिन मेरे अन्दर बोल उट्ठे पढ़ा जैसे ही मैंने इश्क़नामा सभी जानिब से ख़न्जर बोल उट्ठे वही सूनी सड़क थी और मैं […]
ग़ज़ल:- दिल, मिरी उम्मीद पर बिलकुल खरा उतरा नहीं-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
दिल, मिरी उम्मीद पर बिलकुल खरा उतरा नहीं आंसुओं का रात जो दरिया चढ़ा उतरा नहीं जो बना मुझसे नतीजा सामने है आपके मेरे हक़ में आसमां से फ़ैसला उतरा नहीं चाँद काली रात ओढ़े आ गया था बाम पर मेरी नज़रों से वो दिलकश हादसा उतरा नहीं ज़ेह्न के दर बंद करके हुक्म की […]
पेड़ ख़्वाबों के हरे थे वक़्त ऐसा था कभी-इरशाद ख़ान “सिकन्दर”
पेड़ ख़्वाबों के हरे थे वक़्त ऐसा था कभी शाख़े दिल पर इश्क़ चिड़िया का बसेरा था कभी कुछ बरस पहले यहाँ भी ज़िन्दगी का रक्स था अब जो रेगिस्तान है वो मीठा दरिया था कभी रौशनी के नक़्श अबतक मिल रहे हैं इसलिये मेरी आँखों में किसी का अक्स ठहरा था कभी चाँद सूरज […]
T-20/11 सख़्त मुश्किल में भी किरदार सम्भाले हुए हैं-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
सख़्त मुश्किल में भी किरदार सम्भाले हुए हैं तेरी हस्ती को गुनहगार सम्भाले हुए हैं मिट गयी होती कभी की ये रियासत फ़न की वो तो हम हैं कि जो दरबार सम्भाले हुए हैं एक इक करके निकलती गयी हाथों से ज़मीं मुहतरम लफ़्ज़े-ज़मींदार संभाले हुए हैं उन फ़क़ीरों को ख़ुदा कर दे तू सजदा […]
एक हज़ल (मुनव्वर राना साहब से मा’ज़रत के साथ )-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
भले हम आज घर पर ही तमन्चा छोड़ आये हैं मगर तुम क्या समझते हो कि पन्जा छोड़ आये हैं कभी मुमकिन है उससे ही वफ़ा का पाठ तू पढ़ ले तिरी दहलीज़ पर हम अपना कुत्ता छोड़ आये हैं रसोई गैस की सर पर पड़ी हर मार जायज़ है अँगीठी तुमने छोड़ी हम भी […]
T-19/31 चाँद ख़ामोश, मुख़ातिब है सितारा मुझसे-इरशाद खान ‘सिकंदर’
चाँद ख़ामोश, मुख़ातिब है सितारा मुझसे ये रवैया है बहरहाल तुम्हारा मुझसे अब तो कह सकता हूँ गर इश्क़ ने पूछा मुझसे मैंने वो कर दिया जो उसने कहा था मुझसे बोझ कांधों पे अगर हो तो उठा लूँ मैं भी बोझ पलकों का उठाया नहीं जाता मुझसे दरो-दीवार से इक शक्ल उभर सी आयी […]
रूह से तोड़के सबने बदन से जोड़ दिया-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
रूह से तोड़के सबने बदन से जोड़ दिया रिश्ता-ए-इश्क़ के धागे को धन से जोड़ दिया है मिरा काम मुहब्बत की पैरवी करना जबसे इक चाँद ने मुझको किरन से जोड़ दिया मैं उसे ओढ़के फिरता था दश्त भर लोगो क्यों मिरा जिस्म किसी पैरहन से जोड़ दिया वक़्त ने तोड़ दिया था मगर तअज्जुब […]
कल रात पूरी रात तिरी याद आई है -इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
कल रात पूरी रात तिरी याद आई है जानाँ ये मेरे इश्क़ की पहली कमाई है मैं इन दिनों हूँ हिज्र की लज़्ज़त में मुब्तला इक उम्र काम करके ये तनख़्वाह पाई है हाज़िर हूँ अपने दिल की मैं खाता-बही के साथ ये मैं हूँ और ले ये तिरी पाई-पाई है ख़ारिज सिरे से कर […]
तेरे अल्फ़ाज़ के पत्थर मिरे सीने पे लगे-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
तेरे अल्फ़ाज़ के पत्थर मिरे सीने पे लगे मेरे अहसास के टुकड़े मिरे चेहरे पे लगे हमने उनको भी कलेजे से लगा रक्खा है संग जो भी हमें महबूब के सजदे पे लगे इतना सुनने से तो अच्छा था कि मर ही जाता मेरी आवाज़ पे पहरे तिरे कहने पे लगे मैं तिरे इश्क़ में […]
T-18/12 बरामद चाहतों का नतीजा हो गया है-इरशाद ख़ान सिकंदर
बरामद चाहतों का नतीजा हो गया है ख़ुदा के फ़ज़्ल से घर मुहल्ला हो गया है किताबों को जला दो सनद का क्या करोगे कि जब हावी क़लम पर अगूंठा हो गया है किया था फ़ोन किसको उठाया फ़ोन किसने मिरी दीवानगी का कबाड़ा हो गया है किया है इश्क़ मुझसे करोगे इश्क़ मुझसे ये […]
T-18/4 बस इक ठोकर से तेरी करिश्मा हो गया है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
बस इक ठोकर से तेरी करिश्मा हो गया है पता है दिल हमारा नगीना हो गया है बदन ऐ झील तेरा सुनहरा हो गया है ये किसके आगमन से उजाला हो गया है चला कब ज़ोर उसका हमारी हठ के आगे ”अँधेरा तिलमिला कर सवेरा हो गया है” तक़ाज़े इश्क़ के भी बहुत जायज़ हैं […]
वो अचानक ही गले से आ लगा-इरशाद ख़ान सिकंदर
वो अचानक ही गले से आ लगा यार कुछ भी हो बहुत अच्छा लगा ज़िन्दगी की डायरी कोरी न रख हर वरक़ पर इश्क़ का ठप्पा लगा ठोकरों से दर हुआ दीवार में तुम समझते हो कोई तुक्का लगा ख़ाहिशों ने कर ली आखिर ख़ुदकुशी लो ठिकाने जिस्म का मलबा लगा जिस्म क्या ईमान तक […]
ये जो इश्क़ सूत दिल के करघे पे कत रहा है-इरशाद ख़ान सिकंदर
ये जो इश्क़ सूत दिल के करघे पे कत रहा है यूँ है कि मुझको कोई मुझमें बरत रहा है अहसानमंद हूँ मैं उसकी नवाज़िशों का हर शब में मेरा ग़म भी जुगनूसिफ़त रहा है मुमकिन कहाँ है साहब हर एक का हवाला गिनती के एक दिल में दुःख अनगिनत रहा है उसके निशां बदन […]
मेरी सांसों की चाबियाँ रख दीं-इरशाद ख़ान सिकंदर
मेरी सांसों की चाबियाँ रख दीं बैग में सब दवाइयाँ रख दीं मुस्कुरा कर तुम्हारी यादों ने मेरे हिस्से में सिसकियाँ रख दीं ऐब सुनने को लोग आतुर थे आपने मेरी ख़ूबियां रख दीं हम भी निकले कमाल के क़ैदी काट कर अपनी बेड़ियां रख दीं एक ताज़ा हवा के झोंके ने ग़म के माथे […]
T-17/13 ऐसा नहीं कि शह्र में कोई शजर न था-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
ऐसा नहीं कि शह्र में कोई शजर न था हाँ दूर-दूर कोई परिंदा मगर न था सहरा भी, आसमान भी, वहशत भी, रात भी सब कुछ था मेरे हिस्से में बस एक घर न था मुंसिफ थी रूह ज़ीस्त खड़ी कटघरे में थी कैसे कहूं कि मुझको किसी तौर डर न था पागल थी वो […]
किसी की दर-ब-दर मिट्टी हुई है-irshad khan sikandar
ख़यालों की नदी सूखी हुई है बहुत दिन से ग़ज़ल रूठी हुई है मैं अपने आप में सिमटा हुआ हूँ उदासी शह्र भर बिखरी हुई है ज़रा सी रौशनी लाने में यारो हमारी ज़िन्दगी काली हुई है हवा को लेना-देना क्या है इससे किसी की दर-ब-दर मिट्टी हुई है मैं आँखें बन्द करके देखता हूँ […]
T-16/24हर एक सिम्त अंधेरों का बोल-बाला है-इरशाद खान ‘सिकंदर’
हर एक सिम्त अंधेरों का बोल-बाला है सो तय है अब कोई सूरज निकलने वाला है ये किसने काट दीं पैरों की मेरे जंजीरें ये किसने दुःख के गिरेबाँ पे हाथ डाला है किसी की एक ही दस्तक से टूट सकता था मिरी उदासी के दर पर जड़ा जो ताला है हम उसमें बैठके करते […]
T-15/8 चराग़े-लफ्ज़ बहुत हो चुका पुराना क्या-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
चराग़े-लफ्ज़ बहुत हो चुका पुराना क्या हुआ है तुमसे मुख़ातिब नया ज़माना क्या तिरा ख़याल दबे पांव आ गया दिल में सो कर दूँ अश्कों को आँखों से अब रवाना क्या चले भी आओ कभी ख़ाब के दरीचे में यहाँ भी राह में दीवार है ज़माना क्या ज़रा सा प्यार दिया और ख़ुश हुए सब […]
T-14/14 दिन भर तो हमने चाँद की नाराज़गी सही-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
दिन भर तो हमने चाँद की नाराज़गी सही शब भर उदासियों की कड़ी धूप भी सही आँखों में कुछ, ज़बान पे कुछ और दिल में कुछ? मत ख़ाक में मिलाइये इज़्ज़त रही सही ख़ुद चलके हमसे मिलने ख़ुशी आयी और फिर चल छोड़ मेरी जान बयाँ फिर कभी सही रक्खी लबों पे रोज़ तबस्सुम की […]
एक ग़ज़ल-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
उड़े हैं होश इसी बात पर चटानों के बुलन्द हौसले हैं चन्द नौजवानों के नतीजा तय है कि अंगूर खट्टे निकलेंगे ज़मीन देखती है ख़्वाब आसमानों के बुलन्दियों से मिरा पाँव इक ज़रा फिसला तमाम रास्ते तय हो गये ढलानों के न जाने फूँक दिया क्या हवा ने कानों में चराग़ बुझ गये यारों कई […]
T-12/11 ज़रा देर ठहरा न किरदार में-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
ज़रा देर ठहरा न किरदार में कोई खोट थी क्या अदाकार में खुला भेद पहली ही बौछार में कई दर निकल आये दीवार में कहाँ फँस गये तीरो-तलवार में ज़बाँ काम कर देगी इक वार में रियासत ये हमसे सँभलती नहीं पलट आइये दिल के दरबार में सभी पगड़ियाँ सख्त मुश्किल में हैं हवा आज […]
T-11/3 इक मुहब्बत का ख़ुदा चाहती है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
इक मुहब्बत का ख़ुदा चाहती है मेरी उम्मीद भी क्या चाहती है कोई मफ़हूम नया चाहती है यानी तख़लीक़ ग़िज़ा चाहती है दिल पे छाया है बला का जादू हमको भी एक बला चाहती है कैसी पागल है मिरी नादानी अम्न का फूल खिला चाहती है अब तिरी याद को समझाये कौन ज़ख़्म हर वक़्त […]
मैं भारत हूँ यही सबसे बड़ी पहचान है मेरी-इरशाद ख़ान सिकंदर
मैं भारत हूँ यही सबसे बड़ी पहचान है मेरी मुहब्बत जिस्म है मेरा तिरंगा शान है मेरी यहीं दिल्ली की इन गलियों में मेरा दिल धड़कता है यहीं कश्मीर की वादी में मेरी रूह बसती है मिरी धरती है ऐसी देवता भी जन्म लेते हैं मिरे इक बार दर्शन को ये दुनिया भी तरसती है […]
T-10/14 इश्क़ की बाती ऐसी बाती है-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’
इश्क़ की बाती ऐसी बाती है शख्स को शख़सियत बनाती है फ़स्ल ख़्वाबों की लहलहाती है ज़िंदगी तालियाँ बजाती है रूह की झील तक पहुँचने में जिस्म की नाव डूब जाती है दायमी रंग है तसव्वुफ़ का दिल-मुसव्विर को अक़्ल आती है ज़ख़्म गिन लूँ तो होश उड़ जाएँ याद आ-आके बरग़लाती है मैं उसी […]