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T-29/52 वो कि मुड़-मुड़ के देखता है मुझे-आशीष नैथानी ‘सलिल’

वो कि मुड़-मुड़ के देखता है मुझे
ये ख़मोशी बड़ी सदा है मुझे

चाँद तारों से दोस्ती है मिरी
मुद्दतों से मुग़ालता है मुझे

तुमको खो कर बिखर गया हूँ मैं
मेरा होना भी सालता है मुझे

बहता दरिया उछालकर बूँदें
ख़ामुशी से जगा रहा है मुझे

ज़िन्दगी तेरे ग़म कहूँ किससे
किसने आराम से सुना है मुझे

इसलिए भी बिखेर देता हूँ
कोई जी भर समेटता है मुझे

लफ्ज़, आवाज़ हैं अपाहिज को
सिर्फ इनका ही आसरा है मुझे

एक अरसे से लापता हूँ मगर
‘अपने अंजाम का पता है मुझे’

आशीष नैथानी ‘सलिल’ 07032703496

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9 comments on “T-29/52 वो कि मुड़-मुड़ के देखता है मुझे-आशीष नैथानी ‘सलिल’

  1. आशीष नैथानी साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है |
    मुबारकबाद कुबूल कीजिये |
    सत्य चंदन

  2. वाह वाह सलिल साहब बहुत ख़ूब

  3. आशीष साहब, आपके कलम में अब पुख़्तगी आने लगी है। दिन ब दिन निखरते जा रहे हैं। ये दो शेर बहुत अच्छे कहे। दाद क़ुबूल कीजिये। वाह वाह

    चाँद तारों से दोस्ती है मिरी
    मुद्दतों से मुग़ालता है मुझे

    इसलिए भी बिखेर देता हूँ
    कोई जी भर समेटता है मुझे

  4. Salil sahab achhi gazal hui hae…badhaai
    Pooja

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