वो कि मुड़-मुड़ के देखता है मुझे
ये ख़मोशी बड़ी सदा है मुझे
चाँद तारों से दोस्ती है मिरी
मुद्दतों से मुग़ालता है मुझे
तुमको खो कर बिखर गया हूँ मैं
मेरा होना भी सालता है मुझे
बहता दरिया उछालकर बूँदें
ख़ामुशी से जगा रहा है मुझे
ज़िन्दगी तेरे ग़म कहूँ किससे
किसने आराम से सुना है मुझे
इसलिए भी बिखेर देता हूँ
कोई जी भर समेटता है मुझे
लफ्ज़, आवाज़ हैं अपाहिज को
सिर्फ इनका ही आसरा है मुझे
एक अरसे से लापता हूँ मगर
‘अपने अंजाम का पता है मुझे’
आशीष नैथानी ‘सलिल’ 07032703496
आशीष नैथानी साहब उम्दा ग़ज़ल हुई है |
मुबारकबाद कुबूल कीजिये |
सत्य चंदन
वाह वाह सलिल साहब बहुत ख़ूब
शुक्रिया मनोज जी !!
आशीष साहब, आपके कलम में अब पुख़्तगी आने लगी है। दिन ब दिन निखरते जा रहे हैं। ये दो शेर बहुत अच्छे कहे। दाद क़ुबूल कीजिये। वाह वाह
चाँद तारों से दोस्ती है मिरी
मुद्दतों से मुग़ालता है मुझे
इसलिए भी बिखेर देता हूँ
कोई जी भर समेटता है मुझे
बहुत शुक्रिया सर.
Salil saheb, mubarakbad
शुक्रिया शाहिद हसन साहब !!
Salil sahab achhi gazal hui hae…badhaai
Pooja
शुक्रिया पूजा जी !