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T-24/11 चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की
तो अब लड़ो हवाओं से लड़ाई आरपार की

कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं
कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की

वो शाहज़ादा और उसपे शायरी का भी मरज़
कोई उमीद ही नहीं है उसमें अब सुधार की

हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ नहीं
सो जान बूझकर ये मैंने ख़ाक अख़्तियार की

सिवाय अपनी ज़ात के किसी पे भी यक़ीं न रख
सफ़र में काम आएगी ये बात ख़ाकसार की

महीने दिन बरस नहीं गुज़ार दी तमाम उम्र
न आना अब कि लग चुकी है लत सी इंतिज़ार की

ग़मो-ख़ुशी की सब धुनें थीं घर चलाने के लिये
कहाँ मैं पूरी कर सका ज़रूरतें सितार की

हुआ जो चाँद जलवागर तो आफ़ताब ढह गया
ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की

ख़ुदा न ख़्वास्ता तुम्हें भी मेरी याद आ पड़े
तो भेज देना मेरी सम्त कश्तियाँ पुकार की

ग़ज़ल के ख़ादिमों की सफ़ में सबसे आगे मैं रहूँ
मिले मुझे ये चाकरी तो कर लूँ बेपगार की

तू आये भी तो क्या मुझे न आये भी तो क्या मुझे
कि मैंने तेरी आरज़ू कभी की दरकिनार की

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’ 09818354784

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24 comments on “T-24/11 चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की-इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’

  1. bahut khoob…tewar bhare sher…aap aise to na the….itni bebaaki…pasand aayi

  2. बहुत खूब।
    सिकन्दर साहब!

    क्या बात है। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई

  3. चढ़ाई आस्तीन और ज़बान धारदार की
    तो अब लड़ो हवाओं से लड़ाई आरपार की
    खूब चल रहा है ये खेल !! और हवाओं का कोई वतन तो है नहीं !! इसलिये बेसबब खुद की ही ऊर्जा बर्बाद होनी है !! क्या खूब शेर कहा है और इस ज़मीन मे ये मतला बहुत खूब है !!
    कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं
    कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की
    तस्लीम !! सभू को पूरा यकीन है !!!
    वो शाहज़ादा और उसपे शायरी का भी मरज़
    कोई उमीद ही नहीं है उसमें अब सुधार की
    शुक्रिया भाई ! आपने मुझे शाहज़ादा कहा !!! –एक शेर – जो इक चराग़ हवओं की धुन पे रक्साँ है
    उसे बताओ अभी वक़्त है सुधर जाये –मयंक
    हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ नहीं
    सो जान बूझकर ये मैंने ख़ाक अख़्तियार की
    अहसास के लिये रूह और उसकी ज़मीन के लिये बदन ज़रूरी है !! वाह !!
    सिवाय अपनी ज़ात के किसी पे भी यक़ीं न रख
    सफ़र में काम आएगी ये बात ख़ाकसार की
    बुलन्द !!!बुलन्दी है !!! अना परस्त शेर है !!!
    हुआ जो चाँद जलवागर तो आफ़ताब ढह गया
    ये दास्तान है नज़र पे रौशनी के वार की
    वाह वाह !!
    सिपाहे शाम के नेज़े पे आफताब का सर
    किस एहतिमाम से परवरदिगारे शब निकला –अहमद फराज़
    ग़ज़ल के ख़ादिमों की सफ़ में सबसे आगे मैं रहूँ
    मिले मुझे ये चाकरी तो कर लूँ बेपगार की
    एक बार फिर शुक्रिया तारीफ करने के लिये !!!
    इरशाद भाई !! बहुत सुन्दर और रवाँ !! और क्या तेवर हैं वाह वाह ! –मयंक

    • मयंक जी
      ग़ज़ल के बाद आपकी समीक्षा पढ़ कर ग़ज़ल का मज़ा दुगना हो जाता है।

      आपका शुक्रिया। हमे बहुत सीखने को मिलता है आपसे

    • मैं तो ग़ज़ल सुना के अकेला खड़ा रहा
      सब अपने अपने चाहने वालों में खो गए…नूर साहब
      देखा भाई साहब आपने अपनी समीक्षा का इम्पैक्ट???
      नकुल गौतम साहब ही नहीं बहुत लोग आपके कमेंट को ढूंढ ढूंढकर पढ़ते हैं।मैं भी…..
      आपकी ज़र्रानवाज़ी का बहुत बहुत शुक्रिया

  4. kamaal kiya hai irshad Bhai aapne..poori ghazal umda hai… waah

  5. हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ नहीं
    सो जान बूझकर ये मैंने ख़ाक अख़्तियार की

    kya kahne Dada ..bahut umda gazal hui hai …
    aur tarhi misre par girah bhi kamaal hai

    dili daad qubuul kare.n

    regrds

  6. कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं
    कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की
    sachcha sher hai dada…
    behad umda ghazal..sadar

  7. कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं
    कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की

    भरपूर ग़ज़ल। इरशाद साहब के रंग की।

    दिली दाद हाजि़र है भाई।
    सादर
    नवनीत

  8. ज़िंदाबाद भैय्या ज़िंदाबाद, क्या ही अच्छे अच्छे शेर निकाले है, वाह वाह वाह, मज़ा आ गया, क्या बात है, मुरस्सा ग़ज़ल हुई है

  9. कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं
    कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की

    हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ नहीं
    सो जान बूझकर ये मैंने ख़ाक अख़्तियार की

    महीने दिन बरस नहीं गुज़ार दी तमाम उम्र
    न आना अब कि लग चुकी है लत सी इंतिज़ार की

    तू आये भी तो क्या मुझे न आये भी तो क्या मुझे
    कि मैंने तेरी आरज़ू कभी की दरकिनार की

    इरशाद भाई जियो पूरे उस्तादाना रंग में रंगी ग़ज़ल पढ़ के तबियत खुश हो गयी एक से बढ़ कर एक खूबसूरत शेर कहें हैं आपने जिनकी जितनी तारीफ़ करूँ कम ही होगी , अहा हा हा भाई वाह।

  10. कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं
    कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की | क्या कहने वाह !!

    हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ नहीं
    सो जान बूझकर ये मैंने ख़ाक अख़्तियार की !! बहुत खूब !

    महीने दिन बरस नहीं गुज़ार दी तमाम उम्र
    न आना अब कि लग चुकी है लत सी इंतिज़ार की ! आह, बेमिसाल !

    ख़ुदा न ख़्वास्ता तुम्हें भी मेरी याद आ पड़े
    तो भेज देना मेरी सम्त कश्तियाँ पुकार की !! वाह वाह वाह वाह !!

    एक-एक शेर खूबसूरत कहा है इरशाद भाई !
    दाद कुबूल कीजिये !!

  11. कमाल था कमाल हूँ कमाल ही रहूँगा मैं
    कभी न आयेगी जनाब रुत मिरे उतार की

    वो शाहज़ादा और उसपे शायरी का भी मरज़
    कोई उमीद ही नहीं है उसमें अब सुधार की

    हो इश्क़ या इबादतें बदन नहीं तो कुछ नहीं
    सो जान बूझकर ये मैंने ख़ाक अख़्तियार की

    WAhhhhh WAhhhhh dada
    Bahut achi gazal hui
    dili daad qubul kijiye

    Sadar

  12. Maashaallah…….kya gazal kahi hae aapne.ek ek sher kamaal hae.
    Sach maza aa gaya .
    Dheron dher taliyon ki gadgadahat ke saath dher sati daad qubool karein.
    Sadar
    Pooja

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