पंछियों के घर लुटे और लोग बेघर हो गए
ज़लज़ला आया तो ऐसा ख़ाब बंजर हो गए
घर बनाये ईंट, आँसू, ख़ाब, पत्थर जोड़कर
फिर से वापस ईंट, आँसू, ख़ाब, पत्थर हो गए
मिट गयी दौलत की दूरी, भेद जीवन-मृत्यु का
एक कम्पन से प्रजा-राजा बराबर हो गए
मंदिरों के बुत रहे ख़ामोश तो फिर यूँ हुआ
त्रासदी में फ़ौज के जांबाज़ ईश्वर हो गए
रम गए हैं खेल में, है नाम जिसका ज़िन्दगी
चंद साँसों के खिलौने जब मयस्सर हो गए
आशीष नैथानी 0 9666060273
बहुत खूबसूरत .. वाह
जलजले का मंज़र ग़ज़ल में बखूबी दर्शाया है..
bahut khoob ashish bhai!
बहुत सुन्दर आशीष भुला|
Kya khub ghazal hui naithani sahab
WAhhhh wahhhhh
DILi daad qubul kijiye