सुकूने-क़ल्ब का भी ज़रीया हो गया है
किसी का नाम मेरा वज़ीफ़ा हो गया है
मिरा अपना लहू था पराया हो गया है
समंदर पार जा कर वहीँ का हो गया है
वो शर्मिंदा नहीं है ख़ुलासा हो गया है
खता मेरी वफ़ा का निशाना हो गया है
अदब मिलता कहा है अदब की महफ़िलों में
ये शग्ले-शायरी भी तमाशा हो गया है
ग़ज़ल क़तआत नज़्में क़सीदे नात दोहे
हमारा भी अदब में असासा हो गया है
लिये कागज़ की कश्ती जुनूं वाला अकेला
समंदर के सफ़र पर रवाना हो गया है
दवा के नाम पर अब भले लगते हैं जामुन
ग़िज़ा के नाम पर बस करेला हो गया है
ज़रा सा सच कहा था नतीजा सामने है
अब उसका मुंह तो देखो ज़रा सा हो गया है
कुचलना मात देना नहीं है इतना आसां
कठिन ये मसअला अब अना का हो गया है
शफ़ीक़ अब रस्मे-इजरा करो जल्दी से भाई
महब्बत का मुकम्मल शुमार हो गया है
शफ़ीक़ रायपुरी 09406078694
bahut umdaa ghazal hui hai shafeeq sahab…lajawqb..wahh…daad qubule’n
-Kanha
आदरणीय जनाब शफ़ीक़ साहब।
आपको पढ़ कर अच्छा लगता है।
यह ग़ज़ल भी क्या खूब हुई।
बहुत बधाई।
और हां, …………….
शफ़ीक़ अब रस्मे-इजरा करो जल्दी से भाई
महब्बत का मुकम्मल शुमार हो गया है
सादर
नवनीत
नवनीत शर्मा JI HAUSLA AFZAAYI KE LIYE MAMNOON HU’N. BAHUT BAHUT SHUKRIYA.
बड़ी खूबसूरत ग़ज़ल हुई है शफ़ीक साहब। दिली दाद कुबूल कीजिए। इन अश’आर के क्या कहने।
सुकूने-क़ल्ब का भी ज़रीया हो गया है
किसी का नाम मेरा वज़ीफ़ा हो गया है
अदब मिलता कहा है अदब की महफ़िलों में
ये शग्ले-शायरी भी तमाशा हो गया है
लिये कागज़ की कश्ती जुनूं वाला अकेला
समंदर के सफ़र पर रवाना हो गया है
दवा के नाम पर अब भले लगते हैं जामुन
ग़िज़ा के नाम पर बस करेला हो गया है
कुचलना मात देना नहीं है इतना आसां
कठिन ये मसअला अब अना का हो गया है
‘सज्जन’ धर्मेन्द्र साहब । bahut bahut shukriya, daad basar-o-chashm qabool hai.
लिये कागज़ की कश्ती जुनूं वाला अकेला
समंदर के सफ़र पर रवाना हो गया है
हरेक शेर हीरे की तरह। बही खूब शफ़ेक साहब। बहुत बहुत बधाई।
GHAZAL PAR BADHAAEE KE LIYE BAHUT BAHUT SHUKRIYA bimlendukumarsingh SAHAB
HAMA RAnG ASHAAR KAHE HAIn…HAR SHER APNI FIKR AUR TARSEEL KE MAQAASID MEn KAMYAAB HAI.. DAAD HI DAAD ..
DR AZAM
BAHUT BAHUT SHUKRIYA Dr. AAZAM SAHAB, GHAZAL PAR DAAD KE LIYE MAMNOON-O-MUTASHAKKIR HU’N.
मिरा अपना लहू था पराया हो गया है
समंदर पार जा कर वहीँ का हो गया है
dheron Dad kabool ho sahab…
BAHUT BAHUT SHUKRIYA JANAAB-E-AALI, Bhuwannistej ji,
सुकूने-क़ल्ब का भी ज़रीया हो गया है
किसी का नाम मेरा वज़ीफ़ा हो गया है
मस्लहत दरकनार ! जिसका भी नाम हो आपको बहुत बहुत मुबारक !!!
रूह को शाद करें जिस्म को पुरनूर करें
हर नज़ारे मे ये तनवीर कहाँ होती है
मतला अलग और खास है !! दाद !!!
मिरा अपना लहू था पराया हो गया है
समंदर पार जा कर वहीँ का हो गया है
मगरिब की मदभरी हुई रातो मे खो गया
इस घर मे कोई लख़्ते जिगर रोशनी का था –मयंक
वो शर्मिंदा नहीं है ख़ुलासा हो गया है
खता मेरी वफ़ा का निशाना हो गया है
सानी मिसरा !! क्या खूब है शेर भी !! लेकिन ज़ुबान का कमाल सानी मिसरे ने खूब दिखाया !!! वफा का निशाना !!! ?! बहुत खूब !!!
अदब मिलता कहा है अदब की महफ़िलों में
ये शग्ले-शायरी भी तमाशा हो गया है
झेलना है !!! मुशायरो को !! मै डायरी और किताबो को तरज़ीह देता हूँ !!! झूठी वाह वाह नही करनी पडती और अछे शेर के लिये तालियों की खुशामद भी नही करनी पड़ती !!
ग़ज़ल क़तआत नज़्में क़सीदे नात दोहे
हमारा भी अदब में असासा हो गया है
मुबारक हो यह असासा !!! आपका सरमाया मुख्तसर नही है –ऊला मिसरा निशान्देही कर रहा है !!!!
लिये कागज़ की कश्ती जुनूं वाला अकेला
समंदर के सफ़र पर रवाना हो गया है
कागज़ की एक नाव अगर पार हो गई
इसमे समन्दरो की कहाँ हार हो गई !!!!
दवा के नाम पर अब भले लगते हैं जामुन
ग़िज़ा के नाम पर बस करेला हो गया है
हम कड़वाहट के दौर मे पैदा हुये है !! हमें मीठा अच्छा नही लगता !! और शकर फिरकापरस्ती की तरह अब सभी के खून मे शुमार है –बहुत अच्छा शेर कहा है शफ़ीक़ साहब !!!
ज़रा सा सच कहा था नतीजा सामने है
अब उसका मुंह तो देखो ज़रा सा हो गया है
उसकी रऊनत विघटित हुई और फिर चूर्णीकृत हो कर भस्मीभूत हो गई !! प्रसंगवश बता दूँ कि यह शैली राग दरबारी के अमर सर्जक श्रीलाल शुक्ल जी की है उस पुस्तक में भी किसी किरदार के ज़रा से मुँह के लिये ऐसे ही कहा गया है !!!
कुचलना मात देना नहीं है इतना आसां
कठिन ये मसअला अब अना का हो गया है
कतरा अनापरस्त हुआ आज दोस्तो
दरिया मुकाबले पे खडा है , हुआ करे !!!
शफ़ीक़ अब रस्मे-इजरा करो जल्दी से भाई
महब्बत का मुकम्मल शुमार हो गया है
शफ़ीक़ अब रस्मे-इजरा करो जल्दी से भाई !!! मेरी भी यही गुज़ारिश है !! जल्द से जल्द !!! –बहुत बहुत बधाई शफ़ेक़ साहब !! पायेदार गज़ल कही आपने !!! बहुत खूब !!! –मयंक
HAMESHA KI TARAH BEHTAREEN IZHAAR-E-KHAYAAL MAYANK SAHAB, AAP GHAZAL KA MARTABA BALAND KAR DETE HAI’N. GHAZAL PAR AAP KE IZHAAR-E-KHAYAAL KE BAAD HI MUJHE APNI GHAZAL ACHCHHI LAGNE LAGTI HAI. बहुत बहुत बधाई KE LIYE MAMNOON HU’N. SHUKRIYA, NAWAAZISH……..
मिरा अपना लहू था पराया हो गया है
समंदर पार जा कर वहीँ का हो गया है
वो शर्मिंदा नहीं है ख़ुलासा हो गया है
खता मेरी वफ़ा का निशाना हो गया है
अदब मिलता कहा है अदब की महफ़िलों में
ये शग्ले-शायरी भी तमाशा हो गया है
ग़ज़ल क़तआत नज़्में क़सीदे नात दोहे
हमारा भी अदब में असासा हो गया है
आ. शफ़ीक़ सा.
अहसासों के अलग अलग रंग लिए हुए खुबसूरत ग़ज़ल हुई है |ढेरों बधाई स्वीकार करें
सादर
बधाई स्वीकार HAI KHURSHEED SAHAB, BAHUT BAHUT SHUKRIYA,
समंदर पार जा कर वहीँ का हो गया है,…..
समंदर के सफ़र पर रवाना हो गया है….
ये शग्ले-शायरी भी तमाशा हो गया है ….waahwaah waah kya kahne shafeeq sahab daad qubool karen.
DAAD KE LIYE MAMNOON HU’N IRSHAAD SAHAB, SHUKRIYA