Raziq Ansari

खुले में छोड़ रखा है मगर सलीक़े से-राज़िक़ अंसारी

खुले में छोड़ रखा है मगर सलीक़े से बंधे हुए है परिंदों के पर सलीक़े से हमीं पे फ़र्ज़ नहीं सिर्फ़ हक़ पड़ोसी का तुम्हें भी चाहिए रहना उधर सलीक़े से कभी की हालते-बीमारे-दिल संभल जाती इलाज करते अगर चारागर सलीक़े से हमारे चाहने वाले बहुत ही नाज़ुक हैं हमारी मौत की देना ख़बर सलीक़े […]

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दिले-बीमार को सब देखने आए-राज़िक़ अंसारी

दिले-बीमार को सब देखने आए जिन्हें आना था वो कब देखने आए हिक़ारत से मुझे देखा था जिसने उसे कहना मुझे अब देखने आए उसे मैं भी समन्दर का लक़ब दूं मेरे सूखे हूए लब देखने आए मेरे टूटे हुए ख़्वाबों के टुकड़े कोई आँखों में या रब देखने आए बुलाया तो बहुत चीख़ों ने […]

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ग़ज़ल- हमारे दिल में रह कर थक न जाएं-राज़िक़ अंसारी

हमारे दिल में रह कर थक न जाएं तुम्हारे ग़म यहाँ पर थक न जाएं हमें तो ख़ैर आदत हो चुकी है चला के लोग पत्थर थक न जाएं हमारी दास्तां पर रोते रोते तुम्हारे दीदा ए तर थक न जाएं निकाला है दिलों ने काम इतना कहीं दस्ते रफ़ूगर थक न जाएं चरागों में […]

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क्यों करे हल सवाल और कोई-राज़िक़ अंसारी

क्यों करे हल सवाल और कोई रास्ता ख़ुद निकाल और कोई आप और हम तो सिर्फ मुहरे हैं चलता रहता है चाल और कोई मैं वफ़ा पर सफ़ाई कब तक दूं कीजिये अब सवाल और कोई जान रख ली गयी हथेली पर क्या तुझे दूं मिसाल और कोई ज़ख़्म कहने लगे सियासत के अब करे […]

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