बहुत चुप हूँ कि हूँ चौंका हुआ मैं
ज़मीं पर आ गिरा उड़ता हुआ मैं
बदन से जान तो जा ही चुकी थी
किसी ने छू लिया ज़िंदा हुआ मैं
न जाने लफ़्ज़ किस दुनिया में खो गय
तुम्हारे सामने गूंगा हुआ मैं
भँवर में छोड़ आये थे मुझे तुम
किनारे आ लगा बहता हुआ मैं
बज़ाहिर दिख रहा हूँ तन्हा तन्हा
किसी के साथ हूँ बिछड़ा हुआ मैं
चला आया हूँ सहराओं की जानिब
तुम्हारे ध्यान में डूबा हुआ मैं
अब अपने आपको खुद ढूँढता हूँ
तुम्हारी खोज में निकला हुआ मैं
मिरी आँखों में आँसू तो नहीं हैं
मगर हूँ रूह तक भीगा हुआ मैं .
बनाई किसने ये तस्वीर सच्ची
वो उभरा चाँद ये ढलता हुआ मैं
bahut achha farmaya apne..
इतनी शानदार ग़ज़ल,
मुझे सबसे अच्छी बात लगी इतने सरल शब्दों में इतने गहरे भावों को पिरोना…..
इरशाद भाई इसी तरह लिखतें रहें, शुभकामनाएँ
“शेर अच्छा ,बुरा नहीं होता
शेर होता है या नहीं होता”
इरशाद भाई ये आपकी नैसर्गिक मेधा और आपकी कड़ी मिहनत का ही नतीजा है कि आपके यहाँ मुसलसल अश,आर हो रहे हैं.आपकी ये ताज़ा ग़ज़ल भी आपके बेहतरीन कलामों की कड़ी है.बस इसी तरह हमें आपकी कलम के नगीने मिलते रहें.
bhai shukriya koshish jaari hai …kai baar kaamyaab ho jaata hoon aur kai baar nakaam …lekin aise hi girte padte ek din chalna seekh jaunga …phir aap log to hain hi housla dene ke liye..
बहुत चुप हूँ कि हूँ चौंका हुआ मैं
ज़मीं पर आ गिरा उड़ता हुआ मैं
मैं शाख़ से गिरा था सितारों की आस में
मुरझा के आ गिरा हूँ मगर सर्द घास में –शिकेब
इरशाद भाई –आपका ऊला मुकम्मल है “ बहुत चुप हूँ कि हूँ चौंका हुआ मैं” – शानदार और जानदार मिसरा है और निभाया भी खूब है – बढिया मतला हुआ ।
बदन से जान तो जा ही चुकी थी
किसी ने छू लिया ज़िंदा हुआ मैं
किसी अहिल्या का बयान हो सकता है और बेहिसी के दौर मे मुहब्बत की निगाह की तवक्को झलकती है इस शेर मे- ।
न जाने लफ़्ज़ किस दुनिया में खो गय
तुम्हारे सामने गूंगा हुआ मैं
बकौल ग़ालिब – करने गये थे उनसे तागाफुल का हम गिला
की एक ही निगाह कि बस ख़ाक हो गये –ग़ालिब
और
जादू है या तिलस्म तुम्हारी ज़बान में
तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था –
इस मंज़र को आपने भी बहुत सुन्दर कहा है अपने शेअर मे।
भँवर में छोड़ आये थे मुझे तुम
किनारे आ लगा बहता हुआ मैं
एक शेर = छुड़ा के हाथ बहुत दूर बह गया है चाँद
किसी के साथ समन्दर में डूबता है कोई –शिकेब
आउर इरशाद भाई आपका शेर ठीक इस शेर के बाद की स्थिति का शेर है ।
शेर बहुत पसन्द आया
बज़ाहिर दिख रहा हूँ तन्हा तन्हा
किसी के साथ हूँ बिछड़ा हुआ मैं
दो शेर
मुस्कुराते हुये पलकों पे सनम आते हैं
आप क्या जाने कहाँ से मेरे ग़म आते हैं
मैं उसी मोड़ पर मुद्दत से खड़ा हूँ कि जहाँ
एक आवाज़ सी आयी थी कि हम आते हैं ।
यानी — “ किसी के साथ हूँ बिछड़ा हुआ मैं”
चला आया हूँ सहराओं की जानिब
तुम्हारे ध्यान में डूबा हुआ मैं
जुज़ कैसी कोई और न आया बरूए कार
सहरा मगर बतंगिये चश्मे हुसूद था – ग़ालिब
और
तुम्ही सच सच बताओ कौन था शींरी के पैकर में
कि मुश्ते ख़ाक की ख़्वाहिश में कोई कोहकन क्यों हो
दोनो शेर तिलस्मी हैं — आपका शेर इरशाद भाई आपनी सादगी में एक ऐश्वर्य रखता है – ध्यान का यह संकेन्द्रण कि दिशा का बोध नहीं –यह ख्याल सुन्दर शेर कहलवा गया ।
अब अपने आपको खुद ढूँढता हूँ
तुम्हारी खोज में निकला हुआ मैं
जिसको हो दीनो –दिल अज़ीज़ , उसके गली में जाये क्यों !!!!
मिरी आँखों में आँसू क्यों नहीं हैं
मगर हूँ रूह तक भीगा हुआ मैं .- सुन्दर !!
शक न कर मेरी खुश्क आँखों पर
यूँ भी आँसू बहाये जाते हैं
बनाई किसने ये तस्वीर सच्ची
वो उभरा चाँद ये ढलता हुआ मैं
इस शेर के हम्ख्याल कोई शेर नहीं – नया और बहुत सुन्दर शेर हुआ !! पिक्चर पोर्ट्रैट शैली में – ढलने वाली शै सूरज है यह बगैर कहे कह दिया !! यही इस शेर का नूर है बहुत सुन्दर बहुत सुन्दर !!
इरशाद भाई !! इस गज़ल ने शाम सुहानी कर दी – बधाई –मयंक
bhai sahab sadar pranaam, ab to jab bhi main koi ghazal post karta hoon to apki pratikriya ki raah takta hoon…apki pratikriya sachmuch mujhe oorja deti hai apna sneh banaaye rakhen….
रविवारीय महाबुलेटिन में 101 पोस्ट लिंक्स को सहेज़ कर यात्रा पर निकल चुकी है , एक ये पोस्ट आपकी भी है , मकसद सिर्फ़ इतना है कि पाठकों तक आपकी पोस्टों का सूत्र पहुंचाया जाए ,आप देख सकते हैं कि हमारा प्रयास कैसा रहा , और हां अन्य मित्रों की पोस्टों का लिंक्स भी प्रतीक्षा में है आपकी , टिप्पणी को क्लिक करके आप बुलेटिन पर पहुंच सकते हैं । शुक्रिया और शुभकामनाएं
dhanyawaad…ajaykumarjha sahab …
irshad bhai..behad umda ghazal hai..
kisk ke saath hun bichhuda hua main…
kya kahna is sher kal….
चला आया हूँ सहराओं की जानिब
तुम्हारे ध्यान में डूबा हुआ मैं
kya gazab…kya gazab..kya gazab… sahara…. ahaaa…………
बनाई किसने ये तस्वीर सच्ची
वो उभरा चाँद ये ढलता हुआ मैं
yah she’r bhi behad accha hai…waah
ek badmaashi…
kaheen koyle sa ho jaaun n kala
tere asha’ar se jalta hua main…. 😀
swapnil bhai apki khule dil se tareef kee main tareef karta hoon …duniyawi rishton me log aksar bhai se dushman ho jaate hai mujhe fakhra hai ki hum dost se bhai hue aur bhai bhi aise jinka duniyawi rishte se koi lena dena nahin ….
छोटी बह्र पर शानदार पेशकश इरशाद भाई। मुबारकबाद कुबूल करें।
dada apki mubarakbaad aur mubaarakbaad me chhupa sneh donon tahe dil se qubool hai
इरशाद भाई मुझे ‘मैं’ रदीफ़ की ग़ज़लें बहुत पसंद हैं……मैंने खुद भी इस रदीफ़ में कुछ ग़ज़लें कही हैं……आपकी ये ग़ज़ल भी ‘मैं’ रदीफ़ में है……इसलिए इसका पसंद आना स्वाभाविक ही है…….
मगर हूँ रूह तक भीगा हुआ मैं……….वो उभरा चाँद ये ढलता हुआ मैं……….क्या कहना इन मिसरों का……वाह…वाह…वाह……
aap hi kee ungli pakadkar chalne kee koshish kar raha hoon vikas bhai …aur ziyaada kya kahoon kai baar ziyaada kahne se bhi jazbaat bikhar jaate hain
Shabd dundh nahi pa raha hoon ghazal mein duba hua main irshad sahab mere paas shabd nahi hai tareef ke liye aur sirf main hi kyon doston ki mahfil mein maine is ghazal ko padha to saare khamosh ho gaye ek ne chuppi todi to sabo ne kaha thodi der khamoshi rahne do abhi ghazal ko mahsoos karne do irshad bhai sabon ki or se aapko salam
नीरज भाई आप सभी मित्रों का हार्दिक आभार ……मुझे बहुत खुशी है कि आप इतनी व्यस्तता के बाद भी वेबसाइट पर अपना अमूल्य समय दे रहे हैं …और ग़ज़लों पर अपनी प्रतिक्रया भी व्यक्त कर रहे हैं …पुनः आभार
चला आया हूँ सहराओं की जानिब
तुम्हारे ध्यान में डूबा हुआ मैं
अब अपने आपको खुद ढूँढता हूँ
तुम्हारी खोज में निकला हुआ मैं
मिरी आँखों में आँसू क्यों नहीं हैं
मगर हूँ रूह तक भीगा हुआ मैं .
बनाई किसने ये तस्वीर सच्ची
वो उभरा चाँद ये ढलता हुआ मैं………………………… बेहद खुबसूरत ……… शब्द नहीं है कम्मेंट के लिए……………………
शुक्रिया मोहतरम…