यूँ समझ लो कि मिरी जान को आई हुई है
‘एक शय ऐसी मिरी जाँ में समाई हुई है’
ख़ुश हैं, आराम से हैं, ज़िन्दा हैं, ताबिंदा हैं
हाँ ये अफ़वाह हमारी ही उड़ाई हुई है
ऐसा लगता है तुझे बात बताते हुए ये
जैसे ये बात कभी पहले बताई हुई है
इक नई दुनिया बना लेते हैं आओ हम तुम
ये भी दुनिया तो हमारी ही बनाई हुई है
फ़स्ल भी आएगी कुछ सब्र करो हमअस्रों
कल ही तो ख़ाब के बीजों की बुवाई हुई है
धूप का रंग तो देखो ज़रा बरसात के बाद
इतनी शफ़्फ़ाफ़ है जैसे कि नहाई हुई है
दिल की दीवार मिरी छू न कहीं लेना तुम
रंग कच्चा है अभी ताज़ा पुताई हुई है
हार में जीत निहाँ होती है अक्सर ‘सौरभ’
शर्त कुछ सोच के हमने भी लगाईं हुई है
सौरभ शेखर
09873866653
धूप का रंग तो देखो ज़रा बरसात के बाद
इतनी शफ़्फ़ाफ़ है जैसे कि नहाई हुई है.
हार में जीत निहाँ होती है अक्सर ‘सौरभ’
शर्त कुछ सोच के हमने भी लगाईं हुई है
सौरभ भाई…कमाल की ग़ज़ल..मुबारक.
सौरभ भाई !! सभी शेर प्रभावशाली कहे हैं !! बुवाई का काफिया भी एकदम नया है और बहुत सहज आया है !! शेर गहरे हैं और एक दो पायदान उतरकर ही इनकी रंगत से बाबस्ता हुआ जा सकता है यानी शाइरी तहदार है !! बाकी मैं दादा के कमेण्ट से पूर्ण सहमत हूँ – मयंक
सर शायरी और नस्र दोनों में आपसे बहुत कुछ सीखने को मिला है. शुक्रिया इस स्नेह के लिए अदना लफ्ज़ लगता है. हार्दिक आभार.
ख़ुश हैं, आराम से हैं, ज़िन्दा हैं, ताबिंदा हैं
हाँ ये अफ़वाह हमारी ही उड़ाई हुई है
ख़ास तौर पर ये शेर और पूरी ग़ज़ल बहुत अच्छी हुई है सौरभ साहब …बधाई
बहुत शुक्रिया रश्मि जी!
वाहःहः खूब शेखर साहेब बधाई कबूल करें
बहुत शुक्रिया सीमा जी!
सौरभ आपका लहजा सबसे अलग सबसे जुदा जा रहा है। पूरी ग़ज़ल भरपूर है और इस माने में बहुत मज़बूत है कि हर क़ाफ़िया आपके यहाँ अपने ही अंदाज़ में बाँधा गया है। अब वक़्त आ गया है कि आपको किताब ले आनी चाहिये। मुहतरम बानी मनचंदा के शेर के हवाले से बात कहना बेहतर होगा। आपका रंग हर्फ़े-मोतबर बन रहा है और इसे अब मंज़रे-आम पर आना चाहिये।
बोलती तस्वीर में इक नक़्श लेकिन कुछ हटा सा
एक हर्फ़े-मोतबर लफ़्ज़ों के लश्कर में अकेला
दादा शायरी का मेरे लिए सबसे बड़ा हासिल आपका स्नेह है. दुआ करता हूँ कि ये बना रहे. किताब भी इसी बूते आएगी. आदरांजलि.
Wah wah
Bahut Shukriya Moni Gopal Saahab!