ज़ो’म का ही तो आरिज़ा है मुझे
मेरा मैं ही तो खा गया है मुझे
मैं तलबगार था मसर्रत का
दफ्तरे-रंजो-ग़म मिला है मुझे
आतिशे-ज़ेरे-पा ठहरने न दे
अब तो मंज़िल भी रास्ता है मुझे
दर्द तो कम नहीं मगर इस ने
ख़ूगरे-सब्र कर दिया है मुझे
ख़ुदग़रज़, बेवफा, हक़ीरो-फक़ीर
उस ने क्या क्या नहीं कहा है मुझे
जब हुआ होश मन्द तब से ही
“अपने अंजाम का पता है मुझे ”
मैं ने अश्’आर कब लिखे यारो
मेरे अश्’आर ने लिखा है मुझे
मेरा हमज़ाद है, सुनो ‘आज़म’
मुझ से बेहतर जो जानता है मुझे
मुहम्मद ‘आज़म’ 09827531331
मुहम्मद आज़म साहब मुकम्मल ग़ज़ल हुई है ,
क्या अच्छे अच्छे शेर पढ़ाए आपने
वाह , बहुत मुबारक़बाद
Bahut achchi Ghazal wah wah
Mere asha’ar ne likha…….Kya kahna
डा आज़म साहब !! शिल्प, कहन और मेयार पर यही अब तक की सबसे अच्छी गज़ल है इस ज़मीन पर इस तरही में –
ज़ो’म का ही तो आरिज़ा है मुझे
मेरा मैं ही तो खा गया है मुझे
एक आध्यात्मिक कहन है कि अस्तित्व को अहंकार खाता है और ईश्वर अहंकार को खाता है!! मतले पर दाद !!
मैं तलबगार था मसर्रत का
दफ्तरे-रंजो-ग़म मिला है मुझे
ज़ुबान पर दाद !!
आतिशे-ज़ेरे-पा ठहरने न दे
अब तो मंज़िल भी रास्ता है मुझे
हूँ वही “आज़म” असीरी में भी अतिश ज़ेरे पा ……
दर्द तो कम नहीं मगर इस ने
ख़ूगरे-सब्र कर दिया है मुझे
दर्द इंसान को माँझता है !! ये ज़रूरी शय है एक कीमती अहसास देता है ग़म का !!!
ख़ुदग़रज़, बेवफा, हक़ीरो-फक़ीर
उस ने क्या क्या नहीं कहा है मुझे
क्या बात है क्या बात है ??!!! फिर भी इसके आगे की बात शायद यही होगी कि –कितने शीरीं थे उसके लब,, आज़म …
जब हुआ होश मन्द तब से ही
“अपने अंजाम का पता है मुझे ”
बेहतरीन गिरह लगाई है –I know nothing but the fact of my ignorance .. शऊर बालिग हो जाने के बाद ही इसका इल्म होता है !!!
मैं ने अश्’आर कब लिखे यारो
मेरे अश्’आर ने लिखा है मुझे
हासिले ग़ज़ल शेर … यादगार शेर कहा है !!!
आज़म साहब !! इस ग़ज़ल के लिये पूरी दाद !!! –मयंक
मेरे अशआर ने लिखा है मुझे लाज़वाब ग़ज़ल डॉ आज़म सर वआआःह्ह्ह्ह्ह्ह्
दर्द तो कम नहीं मगर इस ने
ख़ूगरे-सब्र कर दिया है मुझे
Wah, Wah
Lajawab gazal hui sir
Dili daad qubul kijiye
Sadar
Imran
आतिशे-ज़ेरे-पा ठहरने न दे
अब तो मंज़िल भी रास्ता है मुझे
दर्द तो कम नहीं मगर इस ने
ख़ूगरे-सब्र कर दिया है मुझे
Kya kahne aazam sahab… kya hi umda sher hue hain… in do aashaar par bataure khaas daad…
आपको क्या कहूँ ? कहें भाई ?
आपने फिर चकित किया है मुझे !!
-सौरभ पाण्डेय
नैनी, इलाहाबाद
Aazam sahab, kya khoobsurat girah lagayi hai aapney!! Dilee Mubarakbaad…
Azam Bhai is mukammal ghazal ke liye aapko dheron daad…
आतिशे-ज़ेरे-पा ठहरने न दे
अब तो मंज़िल भी रास्ता है मुझे
kya kahne azam sahab bahut khoob
dili daaad
sadar
Alok
मैं ने अश्’आर कब लिखे यारो
मेरे अश्’आर ने लिखा है मुझे…
Waah aazam sahab khoob..
Daad haazir hae…
Sadar
Pooja
पिछले 15 बरस के उर्दू साहित्य के सफ़रनामे पर नज़र दौड़ायें तो एक बात साफ़ दिखाई देती है कि शायरी की ज़बान आसान मगर ख़याल के हवाले से पेचीदा होती जा रही है। शायर सरल भाषा को प्रमुखता दे रहे हैं साथ ही कठिन विचारों को शेर में पिरोने की कोशिश कर रहे हैं। इस बात के लिये हम लफ़्ज़ समूह के लोग भी अपनी पीठ थपथपा सकते हैं कि उर्दू साहित्य के दरबार की ज़बान बेहतर करने में हमारा भी अच्छा-ख़ासा हिस्सा है। हमारे माध्यम से पचीसों मेहनती लोगों ने कड़े कोस तय किये। ज़ीना दर ज़ीना चढ़ कर चाँद को छुआ और अब कुश्शातगां, मुग़बचा, ख़ारे-मुग़ीलां, पीरे-मुगां जैसी ख़तरनाक, डरावनी ज़बान लगभग वर्जित हो गयी है। मुहम्मद आज़म साहब के इसी शेर को देखिये। आसान ज़बान में किस बला का ख़याल नज़्म हुआ
आतिशे-ज़ेरे-पा ठहरने न दे
अब तो मंज़िल भी रास्ता है मुझे
इसी तरह शायरी की मज़ेदार शैली मकलमा { डायलॉग } इस शेर में कैसी ख़ूब उभर कर आई है। ऐसा लगता है कि दो लोग बात कर रहे हों। यही ज़बान की सबसे ऊँची-बड़ी मंज़िल है कि शेर उस ज़बान में कहा जाये कि फिर उसकी नस्र { गद्य } न हो सके
ख़ुदग़रज़, बेवफा, हक़ीरो-फक़ीर
उस ने क्या क्या नहीं कहा है मुझे