तू भी अब दिल से चाहता है मुझे
देख क्या वहम हो गया है मुझे
तेरी यादों से लाल है दरिया
फिर ग़ज़ब ये कि तैरना है मुझे
हां ! मैं अपना ख़याल रख लूंगा
तू मगर क्यों ये कह रहा है मुझे
तेरे बीहड़ में शाम कर डाली
सोच ले! कैसे लूटना है मुझे
इक खंडर में सजा हुआ सब्ज़ा
क्या बताऊं कि क्या हुआ है मुझे
लाश कांधों पे अपने रक्खी है
ख़ुद को ढोने का हौसला है मुझे
चांद के सेंक ने सिखाया है
कैसे सूरज को देखना है मुझे
मुझमें बेहोश इक मिरा महरम
हाेश आने पे ढूंढ़ता है मुझे
रुख हक़ीक़त का लूटता है सुकूं
बाग़ अब सब्ज़ देखना है मुझे
इससे पहले कि रूह बाग़ी हो
जिस्म का शहर छोड़ना है मुझे
मौत और इश्क़ नाम दो, घाट इक
ये सबक़ गांठ बांधना है मुझे
इक ख़लिश सी है जिससे ज़िंदा हूं
और तो किसका आसरा है मुझे
रात को रात ही कहूंगा मैं
‘अपने अंजाम का पता है मुझे’
नवनीत शर्मा 9418040160
बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है नवनीत जी
दाद हाज़िर है
बबुत शुक्रिया
Navneet ji
Kya khoob gazal kahi hai..aur yeh sher bohot umda hua
इक ख़लिश सी है जिससे ज़िंदा हूं
और तो किसका आसरा है मुझे
Daad kubool karein!
तमाम ग़ज़ल ही निहायत उमदा है भैया
सैकड़ों दाद
आलोक
नवीन साहब , आपकी ग़ज़ल के बारे में सिर्फ ये कहूंगा
क़ाबिले -दाद हैं सारे अशआर
दाद दूँ किस पे सोचता हूँ मैं
बहुत बहुत मुबारकबाद
तू भी अब दिल से चाहता है मुझे
देख क्या वहम हो गया है मुझे
मुहब्बत जो न करे कम है !! अच्छा शेर कहा है !!!
जादू है या तिलस्म तुम्हारी ज़बान मे
तुम झूठ कह रहे थे मुझे ऐतबार था
तेरी यादों से लाल है दरिया
फिर ग़ज़ब ये कि तैरना है मुझे
लाल –मानीखेज़ अर्थ पैदा कर रहा है शेर में – मतलब कि अहसास लहूलुहान है और इससे उबरना भी है – खूब शेर कहा है !!!
तेरे बीहड़ में शाम कर डाली
सोच ले! कैसे लूटना है मुझे
इस शेर पर भी पूरी दाद !! “”मैं तो तेरा असीर हुआ –तेरी शर्तों पर समर्पण किया है””
इक खंडर में सजा हुआ सब्ज़ा
क्या बताऊं कि क्या हुआ है मुझे
तनहाई –उमीद और इंतज़ार दीख रहे हैन शेर में !!
इससे पहले कि रूह बाग़ी हो
जिस्म का शहर छोड़ना है मुझे
तोड दे शायद अनासिर का कफ़स
रूह मे अब कुव्वते पर्वाज़ है –मयंक
इक ख़लिश सी है जिससे ज़िंदा हूं
और तो किसका आसरा है मुझे
ज़िन्दगी के वास्ते इक रोग ज़रूरी है –सिर्फ सेहत के सहारे ज़िन्दगी कटती नहीं !!
रात को रात ही कहूंगा मैं
‘अपने अंजाम का पता है मुझे’
नवनीत भाई !! बहुत उम्दा ग़ज़ल कही !! दीगर अशार भी अच्छे हैं – नये शब्दों का इस्तेमाल खूब किया है –मयंक
Umda ghazal hui hai Navneet bhaai. Daad haazir hai.
लाश कांधों पे अपने रक्खी है
ख़ुद को ढोने का हौसला है मुझे
चांद के सेंक ने सिखाया है
कैसे सूरज को देखना है मुझे
मुझमें बेहोश इक मिरा महरम
हाेश आने पे ढूंढ़ता है मुझे
Lajawab gazal sit
Dili daad qubul kijiye
Sadr
इमरान भाई साहब।
बहुत शुक्रिया।
सादर
नवनीत
Navnit bhai
पूरी ग़ज़ल बेहतरीन है। इस तरह की सबसे अच्छी ग़ज़ल में से एक । इन दो शेरों पर ढेरों ढेरों दाद ।
तेरी यादों से लाल है दरिया
फिर ग़ज़ब ये कि तैरना है मुझे
और
हां ! मैं अपना ख़याल रख लूंगा
तू मगर क्यों ये कह रहा है मुझे ।
इस शेर पर तो हम लुटे से महसूस कर रहे हैं ।
तेरे बीहड़ में शाम कर डाली
सोच ले! कैसे लूटना है मुझे
वाह जी वाह ।
रात को रात ही कहूंगा मैं
‘अपने अंजाम का पता है मुझे’
आ. पवन साहब।
बहुत मशकूर हूं।
ज़र्रानवाज़ी के लिए शुक्रिया।
करम बनाए रखें।
सादर
नवनीत
मुझमें बेहोश है मेरा मरहम… वाह नवनीत जी।
ढेरों मुबारकबाद
सादर
पूजा
पूजा जी,
नमस्कार।
आभार।
सादर
नवनीत
रात को रात ही कहूंगा मैं
‘अपने अंजाम का पता है मुझे’
Subhan Allah…behtareen ghazal bhai…lajawab girah…waah waah
आ. नीरज भाई साहब।
प्रणाम।
आभार।
नवनीत
Kya shandar ghazal kahi hai bhaiya…wah wah..zindabad
Kanha
प्रिय कान्हा जी,
इस स्नेह के लिए आभार।
सादर
नवनीत
Poori ki poori ghazal kamaal hai navneet bhai. … kya kahne…
स्वप्निल भाई।
आपका प्यार है।
आभार।
सादर
नवनीत
laash kaandhey pe rkkhi hai
खुद को ढूढ़ना है मुझे
इससे पहले की रूह बागी हो
इस ज़िस्म को छोड़ना है मुझे
कमाल अशआर कहे नवनीत साहेब वआआआआआआआआआःह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्
सीमा शर्मा जी।
आभार।
शुक्रिया
सादर
नवनीत
मतले से गिरह तक पूरी ग़ज़ल मुरस्सा, नवनीत ज़िंदाबाद। इसी तरह मेहनत करते जाइये। वाह वाह
आदरणीय दादा,
प्रणाम।
आपका आशीर्वाद है। अपेक्षाओं पर खरा उतरूं, यह चुनौती है।
सादर
नवनीत