हज़रते-मीर तक़ी मीर की ज़मीन जिसमें ग़ज़ल कही गयी :-
जाए है जी निजात के ग़म में
ऐसी जन्नत गई जहन्नम में
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समर कबीर साहब की तरही ग़ज़ल
जब तलक दम रहा मिरे दम में
मुस्कुराता रहा हर इक ग़म में
गीत अपने अलग-अलग हैं मगर
हमने गाया है एक सरगम में
फ़ासला कितना कम है देख ज़रा
तेरी जन्नत मिरे जहन्नम में
एक ख़्वाहिश है पूरी कर देना
ग़ुस्ल करना है आबे-ज़म ज़म में
तू बुराई तलाश करता रहा
काश अच्छाई ढूंढता हम में
मौत को अपनी ज़ेर कर लेता
इतनी ताक़त कहाँ थी रुस्तम में
ज़ख़्मे-दिल आँसुओं में तैरते हैं
फूल जैसे नहाये शबनम में
कौन इस इम्तिहाँ से गुज़रेगा
कौन डालेगा जान जोखम में
जग प ज़ाहिर न हो सके वो “समर”
जो हुनर थे छुपे हुए हम में
समर कबीर 09753845522
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khobsoorat kalaam
Umda ghazal janab!! waaaaaaah!!!
तेरी जन्नत मिरे जहन्नम में…वाह क्या खूब कहा है
समर कबीर साहब।
दाद क़ुबूल करें।
सादर
पूजा
जब तलक दम रहा मिरे दम में
मुस्कुराता रहा हर इक ग़म में
गीत अपने अलग-अलग हैं मगर
हमने गाया है एक सरगम में
समर साहब..बेहद ख़ूबसूरत ग़ज़ल.
दिली दाद क़ुबूल कीजिए.
kya hi achchi ghazal hai, mohtaram Sameer saheb. mubarakbaad qubool farmayen.
वाह वाह कमाल के अशआर समर कबीर साहेब बहुत बहुत खूब बहुत बहुत मुबारक आपको
कौन इस इम्तिहाँ से गुज़रेगा
कौन डालेगा जान जोखम में
एक बेहद खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत मुबारकबाद समर कबीर साहब
शुक्रिया
गीत अपने अलग-अलग हैं मगर
हमने गाया है एक सरगम में
Wahhhhhhh kya khubsurat gazal hui
Sir
Dili daad qubul kijiye
जनाब समर कबीर साहब बेहद मुरस्सा ग़ज़ल हुई है दिली दाद कुबूल फ़रमायें
तरही-28 का उस्तादाना ग़ज़ल से बाबरकत आग़ाज़ हुआ। पुराने चावलों का ज़ायक़ा अलग ही होता है। ऐसी सलीस ज़बान कि ज़ाफ़रानी पुलाव की सी महक, वाह वाह। समर साहब ढेरों दाद क़ुबूल फ़रमाइये