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T-26/54 बिखर जाओ फिर हौसला ज़िन्दगी है-बिमलेंदु कुमार

हज़रते-ग़ुलाम हमदानी मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिसे तरह किया गया

सदा फ़िक्रे-रोज़ी है ता ज़िंदगी है
जो जीना यही है तो क्या ज़िदगी है

छुपा मुँह न अपना के मर जाएँगे हम
परी-रू तिरा देखना ज़िंदगी है

मुझे ख़िज्ऱ से दो न जीने में निस्बत
कि उस की बआबे-बक़ा ज़िंदगी है

तिरी बे-वफ़ाई का शिकवा करें क्या
ख़ुद अपनी ही याँ बेवफ़ा ज़िंदगी है

अजल के सिवा उस की दारू नहीं कुछ
अजब दर्द दूर-अज़-दवा ज़िंदगी है

तू गुलशन में रह गुल ये कहता था उस से
तिरे दम से मेरी सबा ज़िंदगी है

जिन्होंने किया है दिल आईना अपना
उन्हीं लोगों की बासफ़ा ज़िंदगी है

कहाँ की हवा तक रहा है तू नादाँ
कि पल मारते याँ हवा ज़िंदगी है

न हम मुफ़्त मरते हैं कू-ए-बुताँ में
कि मरने से याँ मुद्दआ ज़िंदगी है

तो ऐ ‘मुसहफ़ी’ गर है आशिक़ फ़ना हो
कि आशिक़ को बाद-अज़-फ़ना ज़िंदगी है

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बिमलेंदु कुमार साहब की तरही ग़ज़ल

बिखर जाओ फिर हौसला ज़िन्दगी है
बड़ा ही अजब मसअला ज़िन्दगी है

सलीक़े से अपनी भवें तान लेगी
किसी बेवफ़ा की अदा ज़िन्दगी है

हसीं तो बहुत है मगर फिर भी साहब
किसी की कहाँ दिलरुबा ज़िन्दगी है

कहीं कोई दरिया न दरिया का नक़्शा
सराबों का इक सिलसिला ज़िन्दगी है

मैं हर्फ़े-तमन्ना किसे अब सुनाऊं
मिरी आरज़ू से ख़फ़ा ज़िन्दगी है

न बातें करो लम्स-बोसों की हमसे
कि जितना बढ़ो फ़ासला ज़िन्दगी है

पपीहे की हूकें, कहाँ तू! कहाँ तू!
कहीं दूर की इक सदा ज़िन्दगी है

निकालूँगा मैं फिर कभी नुक़्से-दुनिया
समझ लूं मैं पहले कि क्या ज़िन्दगी है

बिमलेंदु कुमार 09711381945

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6 comments on “T-26/54 बिखर जाओ फिर हौसला ज़िन्दगी है-बिमलेंदु कुमार

  1. बिखर जाओ फिर हौसला ज़िन्दगी है
    बड़ा ही अजब मसअला ज़िन्दगी है
    सलीक़े से अपनी भवें तान लेगी
    किसी बेवफ़ा की अदा ज़िन्दगी है
    हसीं तो बहुत है मगर फिर भी साहब
    किसी की कहाँ दिलरुबा ज़िन्दगी है
    कहीं कोई दरिया न दरिया का नक़्शा
    सराबों का इक सिलसिला ज़िन्दगी है
    मैं हर्फ़े-तमन्ना किसे अब सुनाऊं
    मिरी आरज़ू से ख़फ़ा ज़िन्दगी है
    न बातें करो लम्स-बोसों की हमसे
    कि जितना बढ़ो फ़ासला ज़िन्दगी ह
    क्या गज़ब शेर कहे हैं विमलेदु साहेब वाह वाह मुबारकबाद कबूल कीजिये

  2. कहीं कोई दरिया न दरिया का नक़्शा
    सराबों का इक सिलसिला ज़िन्दगी है
    Bahut achi gazal hui sir
    dili daad hazi hai

  3. निकालूँगा मैं फिर कभी नुक़्से-दुनिया
    समझ लूं मैं पहले कि क्या ज़िन्दगी है

    क्या बढ़िया शेर हुआ है बिमलेन्दु जी.. ढेरों दाद
    सादर
    पूजा

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