हज़रते-मुसहफ़ी की ग़ज़ल जिस ज़मीन को तरह किया गया
आज कुछ सीने में दिल है ख़ुद ब ख़ुद बेताब सा
कर रहा है बेक़रारी पारा-ए-सीमाब सा
ज्यूँ गुले-तर क्या ही इससे छलके है उसका बदन
वो जो पैराहन गले में उसके है सीमाब सा
मैं हूँ और ख़िलवत है और पेशे-नज़र माशूक़ है
है तो बेदारी वले कुछ देखता हूँ ख़ाब सा
कल शबे-तारीक में ज्यूँ ही हुए वो बेनक़ाब
जलवागर रू-ए-ज़मीं पर हो गया महताब सा
मुसहफ़ी’ क्यों लख़्ते-दिल रोने की खाता है क़सम
है नुमायां कुछ तो आँखों में मिरी ख़ूँनाब सा
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नूरुद्दीन ‘नूर’ साहब की तरही ग़ज़ल
फिर सरे-मिज़गां चला आया है कुछ-कुछ आब सा
रोक रक्खा था अभी तक मैंने इक सैलाब सा
दे गया है जबसे कोई उनके आने की ख़बर
तब से आँखें भी हैं बेकल दिल भी है बेताब सा
इक हयूला सा है रक़्सां ज़हनो-दिल में आज भी
रात दिन रहता है मंज़र साथ मेरे ख़ाब सा
सोचता हूँ अब उसे किस चीज़ से तश्बीह दूँ
उसकी रंगत चांदनी सी और बदन महताब सा
कब की सारी कश्तियाँ हमने जला दी हैं मगर
जाने क्यों अब भी तअक़्क़ुब में है इक गिर्दाब सा
जब कभी गिरते हैं पत्थर कांच के घर पर मिरे
उस घड़ी होता है मजमा सामने अहबाब सा
रात छत पर आ गये वो ‘नूर’ तनहा बेनक़ाब
जलवागर रू-ए-ज़मीं पर हो गया महताब सा
नूरुद्दीन ‘नूर’ 09867578999
Noor sahab, behtareen aur khoobsurat gazal ke liye mubarakbaad!
bahut khoob
मतले में
आब
और
सैल +आब =सैलाब आये है
उम्दा ग़ज़ल पर मुबारकबाद
waaaaaaaah!! Noor sb shandaar ghazal ke liye mubarakbaad!!
DE GAYA HAI JAB SE KOI UN KE AANE KI KHABAR
TAB SE AA’NKHE’N BHI HAI’N BEKAL DIL BHI HAI BETAAB SA
Waah waah Noor sahab
POORI GHAZAL BEHTAREEN KHOOB SAARI DAAD HAAZIR HAI QABOOL KARE’N